अभयदायिनी चौसठ शक्ति साधना जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में शक्ति से युक्त होकर विजय प्रदान करती है। शक्ति सम्पन्नता से साधक निरन्तर जीवन में अभिवृद्धि की ओर बढ़ता ही रहता है। शक्ति का तात्पर्य ही सृजन करना है।
हे देवी दुर्गा! आप समस्त राक्षसी वृत्तियों पर जयी होने के कारण जया हैं। आप ऋषियों, मुनियों योगियों पर जयी होने के कारण शिखरमयी हैं। आप ऋषियों, मुनियों योगियों, देवगणों एवं सिद्धि प्राप्त करने की इच्छा रखने वाले साधक वृन्दों द्वारा पूजनीय एवं वन्दनीय हैं। आपके शरीर की आभा काले मेघ के समान शान्तिदायक है। आपकी क्रोध दृष्टि शत्रुओं को भयभीत कर देती है, श्रीमस्तक पर चन्द्र रेखा एवं चारों हाथों में शंख, चक्र, कृपाण और त्रिशूल है। सिंह पर आरूढ़ आपके ही तेज से तीनों लोक परिपूर्ण हेतु सिद्धिकाममयी हैं।
मां भगवती दुर्गा का यह स्वरूप शक्ति का साकार स्वरूप है। जहां मां भगवती की आराधना होती है, वहां शक्ति चैतन्य रूप से स्थायी रहती है। शक्ति का तात्पर्य केवल बल ही नहीं है, शक्ति की व्याख्या मार्कण्डेय ऋषि ने की है, वह शक्ति का सर्वरूप है। शक्ति का तात्पर्य है- वृद्धि, सिद्धि, सौम्यता, रौद्रता, प्राणप्रतिष्ठा, चैतन्यता, बुद्धि तृष्णा, नम्रता, शान्ति, श्रद्धा, कान्ति, लक्ष्मी, स्मृति, दया तुष्टि एवं इच्छा है।
शक्ति साधना के द्वारा ही जीवन में इन सब शक्तियों की प्राप्ति हो सकती है। इन में से एक शक्ति की भी कमी रहती है तो जीवन कुछ अपूर्ण सा लगने लगता है। केवल एक रूप में साधना करने से ही शक्ति की पूर्ण सिद्धि सम्भव नहीं है, जीवन में रौद्रता के साथ-साथ अर्थात उग्रता के साथ शान्ति हो। शत्रुओं के लिये उग्रता, मित्रों के लिये शान्ति, परिवार के लिये लक्ष्मी, ज्ञान के लिये स्मृति, मन के लिये तुष्टि, निर्बल के लिये दया, स्वभाव में नम्रता, क्योंकि नम्र वहीं हो सकता है, जो शक्ति से परिपूर्ण हो। निर्बल भिक्षुक हो सकता है, याचक हो सकता है, लेकिन सबल अपने स्वभाव को सुरक्षित रखते हुये नम्रता से परिपूर्ण हो सकता है।
नवरात्रि ही नहीं जीवन का प्रत्येक दिन साधनाओं के लिये विशेष सिद्धिदायक माना गया है। शक्ति के इन हजारों स्वरूपों में प्रमुख है।
शक्ति प्रमोद में विवरण है, कि एक बार कार्तिकेय जी कैलाश पर्वत पर शिव की स्तुति करते हुये बोले- हे देवाधिदेव! तुम्हीं परमात्मा हो, शिव हो, तुम्ही सब प्राणियों की गति हो, तुम्हीं जगत के आधार हो और विश्व के कारण हो, तुम्हीं सबके पूज्य हो, तुम्हारे बिना मेरी कोई गति नहीं है।
कृपा कर के मेरे संशय का निवारण करें।
कौन सी वस्तु संसार में समस्त सिद्धियों को देने वाली है? वह कौन सा योग है जो परमश्रेष्ठ है? कौन सा विधान है, जो स्वर्ग और मोक्ष देने वाला है? बिना तीर्थ, बिना दान, बिना यज्ञ और बिना ध्यान के मनुष्य किस उपाय से सिद्धि को प्राप्त कर सकता है? यह सृष्टि किससे उत्पन्न हुई है? किसमें इसका विलय होता है? हे देव! किस उपाय से मनुष्य संसार रूपी सागर के पास उतर सकता है?
इसके उत्तर में भगवान शिव बोले कि संसार के सभी पदार्थ- जड़ या चेतन, सजीव या निर्जीव, मात्र तीन गुणों के संयोजन से ही गतिशील होते हैं। मनुष्य की समस्त गतिविधियां जीवन शैली, जीवन में उतार-चढ़ाव, गुण-दोष, स्वभाव मात्र इन तीन गुणों अर्थात ‘सत्व’, ‘रज’ एवं ‘तम’ से ही बनते हैं। इन तीनों गुणों का जिस परा शक्ति से प्रादुर्भाव होता है वही भगवती आद्या शक्ति है।
शक्ति के अनेकानेक रूप हैं, प्रत्येक स्वरूप अपनी विविधता से युक्त सर्व कल्याणकारी है। एक बार एक शिष्य ने सद्गुरुदेव से प्रश्न किया कि क्या ऐसा संभव नहीं है, हम शक्ति के बहुआयामी स्वरूप की साधना एक साथ करें। सदगुरुदेव ने शिष्य को आशीर्वाद देते हुये कहा कि शक्ति की श्रेष्ठतम साधना अभयदायिनी चौसठ कलायें शक्ति साधना है, जिसमें बीज मंत्र सहित चौसठ रूप में ध्यान किया जाय तो शक्ति को साधक को वरण करना ही पड़ता है।
24 जून दिन शनिवार को सांय 7 बजे के पश्चात् साधक स्नान कर उत्तर दिशा की ओर मुंह कर लाल आसन पर बैठ जाये और लाल धोती धारण कर गुरु पीताम्बर ओढ़ लें। सामने एक ताम्र पात्र में चौसठ शक्ति दायिनी नर्वाण यंत्र और तांत्रोक्त नारियल स्थापित कर दें तथा सामने तेल के नौ दीपक जला दें। फिर यंत्र व नारियल का पंचोपचार पूजन सम्पन्न करें। फिर चौसठ शक्ति के प्रत्येक मंत्र के उच्चारण के साथ यंत्र पर कुंकुम, अक्षत मिश्रित एक-एक लौंग चढ़ायें।
ऊँ पिं पिंगलाक्ष्यै नमः ऊँ विं विडालाक्ष्यै नमः
ऊँ सं समृद्धृयै नमः ऊँ वृं वृद्धयै नमः
ऊँ श्रं श्रद्धायै नमः ऊँ स्वं स्वाहायै नमः
ऊँ स्वं स्वाधायै नमः ऊँ मं मातृकायै नमः
ऊँ वं वसुन्धरायै नमः ऊँ त्रिं त्रिलोकरात्र्यै नमः
ऊँ सं ससवि=यै नमः ऊँ गं गायत्र्यै नमः
ऊँ त्रिं त्रिदशश्वर्यै नमः ऊँ सुं सुरूपायै नमः
ऊँ बं बहुरूपायै नमः ऊँ स्कं स्कन्दायै नमः
ऊँ अं अच्युतप्रियायै नमः ऊँ विं विमलायै नमः
ऊँ अं अमलायै नमः ऊँ अं अरूणायै नमः
ऊँ आं आरूण्यै नमः ऊँ प्रं प्रकृत्यै नमः
ऊँ विं विकृत्यै नमः ऊँ सृं सृत्यै नमः
ऊँ स्थिं स्थित्यै नमः ऊँ सं संहृत्यै नमः
ऊँ सं संधायै नमः ऊँ मं मात्र्यै नमः
ऊँ सं सत्यै नमः ऊँ हं हंस्यै नमः
ऊँ मं मर्दिन्यै नमः ऊँ रं रंजिकायै नमः
ऊँ पं परायै नमः ऊँ दं देवमात्र्यै नमः
ऊँ भं भगवत्यै नमः ऊँ दं देवक्यै नमः
ऊँ कं कमलासनायै नमः ऊँ त्रिं त्रिमुख्यै नमः
ऊँ सं सप्तमुख्यै नमः ऊँ सुं सुरायै नमः
ऊँ अं असुरमर्दिन्यै नमः ऊँ लं लंम्बोष्ठयै नमः
ऊँ ऊं ऊर्ध्वकेशिन्यै नमः ऊँ बं बहुशिखयै नमः
ऊँ वृं वृकोदरायै नम ऊँ रं रथरेखायै नमः
ऊँ शं शशिरेखायै नमः ऊँ अं अपरायै नमः
ऊँ गं गगनवेगायै नमः ऊँ पं पवनवेगायै नमः
ऊँ भुं भुवनमालायै नमः ऊँ मं मदनातुरायै नमः
ऊँ अं अनंगायै नमः ऊँ अं अनंगमदनायै नमः
ऊँ अं अनंगमेखलायै नमः ऊँ अनंगकुसुमायै नमः
ऊँ विं विश्वरूपायै नमः ऊँ अं असुरायै नमः
ऊँ अं अनंगसिद्धयै नमः ऊँ सं सत्यवादिन्यै नमः
ऊँ वं वज्ररूपायै नमः ऊँ शं शुचिवृत्तायै नमः
ऊँ वं वरदायै नमः ऊँ वं वागीश्वर्यै नमः
इस चौसठ शक्तियों के नाम से लौंग चढ़ा कर फिर साधक एकाग्र मन से दीपक की लौ पर नजर रखते हुये उक्त मंत्र की 3 माला मंत्र जप सिद्धि शक्ति माला से करें। जप पश्चात् माला को धारण कर लें।
मंत्र जप समाप्ति के बाद यंत्र को अपने पूजा स्थान में स्थापित कर दें तथा माला को सवा महीने गले में धारण करके रखें और नित्य एक माला मंत्र जप करते रहे सवा महीने के बाद माला व श्री फल को नदी में प्रवाहित कर दें।
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