कार्तिकेय रहस्य
कार्तिकेय, भगवान शंकर के ज्येष्ठ पुत्र हैं और देवताओं के रक्षक, कार्तिकेय का मतलब सर्व विजय श्री प्रदाता, शत्रु संहारक, पराक्रम के देव एवं शीघ्र प्रसन्न होने वाले, निश्चित सिद्धि प्रदाता माने जाते हैं, दक्षिण में इन्हें प्रधान देव माना गया है, भगवान सुब्रमण्यम के नाम से इनकी विशेष पूजा-साधना की जाती है, जिस प्रकार उत्तर भारत में ‘गणेशाय नमः’ अथवा किसी भी कार्य से पहले गणेश पूजा का विधान है। उसी प्रकार पूरे दक्षिण भारत क्षेत्र में श्री मुरूगन नमः जन-जन में व्याप्त है, इनके अन्य नाम हैं- स्कन्द, षड़ानन, षड्मुख, शक्तिधर, आग्नेय, कुमार इत्यादि प्रमुख है, शिव और पार्वती के एकमात्र पुत्र, श्री गणेश तो योग पुत्र हैं।
‘शारदा तिलक’ तथा ‘श्री तत्व निधि’ ग्रन्थों में इनकी उपासना का विस्तृत वर्णन दिया गया है, कार्तिकेय के मुरूगन नाम में मुरूगु शब्द का तात्पर्य है, सौन्दर्य, ताजगी, सौरभ, माधुर्य, दिव्यता तथा आनन्द और सुब्रह्मण्य का तात्पर्य है ज्ञान, लक्ष्मी, शत्रुनाश, मृत्युंजय, निरोगता और इन सब तत्वों की प्राप्ति कार्तिकेय साधना से होती है।
कार्तिकेय ऐश्वर्य, वीर्य, यश, श्री, ज्ञान और वैराग्य के प्रतीक हैं और यह सिद्ध बात है कि जहां सुब्रह्मण्यम अर्थात कार्तिकेय की पूजा होती है, वहां ज्ञान है, वर प्राप्ति है, गृह रक्षा है, धर्म और वेद है, बल है, दुष्टों का नाश है, वही शक्ति है।
गृहस्थ लोगों के लिये ही कार्तिकेय पूजा का विशेष विधान है, क्योंकि कार्तिकेय रक्षाकारक देव हैं, गृहस्थ को ही धन-धान्य, पुत्र-पौत्र का वर आवश्यक है, गृहस्थ को ही शत्रु बाधा से रक्षा, निरोगता और श्री अर्थात् लक्ष्मी और प्रसिद्धि आवश्यक है और सबसे बड़ी बात यह है कि कार्तिकेय साधना अत्यन्त सरल है।
कार्तिकेय साधना हेतु षष्ठी तिथि उत्तम मानी गई है, इसके अतिरिक्त उत्तराषाढ़ा तथा कृतिका नक्षत्र श्रेष्ठ हैं। पूरे परिवार के साथ यह साधना अवश्य सम्पन्न करनी चाहिये। कार्तिकेय पूजा में सर्वप्रथम तो गणेश पूजा की जाती है, पूरे पूजन के पश्चात् भी गणेश का पूजन पुनः किया जाता है, क्योंकि श्री गणेश, कार्तिकेय के लघु भ्राता है।
इस साधना हेतु ताम्रपात्र में शुद्ध जल, तेल, चंदन, पंचामृत (दूध, दही, घी, शहद और शक्कर), तुलसी पत्र तथा विभूति आवश्यक है, कार्तिकेय साधना में नैवेद्य शहद तथा पीसा हुआ बाजरा विशेष रूप से अर्पित किया जाता है।
साधना क्रम में चावल की ढ़ेरी स्वरूप में विशेष पीठ बना कर उस पर कार्तिकेय यंत्र (धारण करने वाला) स्थापित करें, इसके साथ एक ओर अग्नि दीप अर्थात् तेल का दीपक, दूसरी ओर भाले के आकार का शूल तथा लाल रंग के कपड़े से बनाई हुई पताका (ध्वज) अवश्य स्थापित करना चाहिये, यह शूल शक्ति का प्रतीक है, जो कार्तिकेय का मूल अस्त्र है, तथा पताका विजय का प्रतीक है।
सर्वप्रथम पूजा स्थान में एक ओर गणपति स्थापित कर गणपति का पूजन करें, फिर कार्तिकेय यंत्र के चारों ओर चावल की आठ ढ़ेरी बना कर आठ सुपारी रखें और क्रमशः इन्द्र, अग्नि, यम, निऋ्ति, वरूण, वायु, कुबेर और ईशान की स्थापना कर, प्रत्येक को हाथ जोड़ कर नमस्कार कर कुंकुम तथा पुष्प अर्पित करें, तत्पश्चात् कार्तिकेय आयुधों, शूल, पताका तथा दीप का पूजन करें, इसके पश्चात् भगवान सुब्रह्ममण्यम का ध्यान करते हुये उनके रक्त वर्णीय अर्थात् लाल वस्त्र, लाल शोभा एवं रक्त मुख का ध्यान करते हुये आह्नान करें, सर्वप्रथम शुद्ध जल यंत्र के सामने पात्र में अर्पित करें, फिर तेल अर्पित करें, यंत्र पर भस्म लगायें तथा एक-दूसरे पात्र में यंत्र रखकर कार्तिकेय बीज मंत्र का जप करते हुये पंचामृत चढ़ायें।
‘स्कन्द तेजस माला’ से एक माला बीज मंत्र का जप करते हुये निरन्तर पंचामृत को यंत्र पर अर्पित करते रहें, इस पंचामृत को परिवार के सभी सदस्यों को ग्रहण करना चाहिये, पूजन का यह पंचामृत सर्व रोगनाशक है।
शरीर से निर्बल, निरन्तर बीमार रहने वाले व्यक्ति द्वारा यदि सात दिन निरन्तर पूजन कर यह पंचामृत ग्रहण किया जाय तो उसका रोग चाहे वह शारीरिक हो अथवा मानसिक शांत हो ही जाता है।
पूजन के पश्चात् लाल रंग की पुष्प माला तथा पुष्प कार्तिकेय देव को अर्पित करें, और पात्र में रखा जल पूरे घर में थोड़ा-थोड़ा अवश्य छिड़कें, विजय पताका अपने घर के ऊपर लगानी चाहिये, इससे कभी भी घर पर शत्रु प्रभाव अथवा तांत्रिक क्रिया दोष नहीं पड़ता।
भगवान कार्तिकेय इच्छा शक्ति क्रिया शक्ति तथा ज्ञान शक्ति के शुद्ध स्वरूप है, कार्तिकेय शिव और शक्ति के मिलन का विशुद्ध रूप है, जहां कार्तिकेय है वहीं शिव भी है और शक्ति भी है।
पूजन के पश्चात् छः छोटे बालकों को कार्तिकेय कुमार का स्वरूप मानते हुये भोजन कराना चाहिये। कार्तिकेय साधना से संतान, विजय, आयु, शक्ति, निर्भयता, लक्ष्मी, यश इत्यादि की प्राप्ति निश्चित रूप से होती है, इसीलिये इनका स्वरूप सम्पूर्ण प्रसन्न अत्यन्त पुण्यमय एवं समस्त मंगल प्रदान करने वाला है।
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