सिद्धाश्रम अध्यात्म जीवन का वह आश्रय स्थल है, जिसकी उपमा संसार में हो ही नहीं सकती। देव लोक और इन्द्र लोक भी इसके सामने नगण्य हैं। यहां भौतिकता का बिल्कुल ही अस्तित्व नहीं है। सिद्धाश्रम पूर्णतः आध्यात्मिक एवं परालौकिक भावनाओं और चिन्तनों से सम्बन्धित है। यह जीवन का सौभाग्य होता है, यदि सशरीर ही व्यक्ति वहां पहुंच पाये।
इस सिद्धाश्रम की अलौकिकता और दिव्यता का मूल कारण सतत् गुरुत्वमय चिन्तन है। गुरु से भिन्न कोई विचार, कोई तर्क, कोई विवाद वहां सम्भव ही नहीं है, समस्त वातावरण ही गुरुमय है, हर कार्य गुरुता से सम्बद्ध है, प्रातः से सायं तक, अथ से इति तक समस्त क्रिया-कलाप ही गुरुत्व की अभिव्यक्ति का साकार रूप है।
सिद्धाश्रम गुरुत्व का पर्याय है, केवल गुरु ही लक्ष्य है, गुरु ही देव हैं, गुरु ही वहां की आराधना, साधना और अर्चना हैं। उसी की स्पष्ट अभिव्यक्ति के लिये वहां नित्य होने वाले सिद्धाश्रम गुरु पूजन की प्रक्रिया को साधकों के हितार्थ सर्वथा प्रथम बार प्रस्तुत किया जा रहा है।
यह साधक जीवन का सौभाग्य है कि परम पूज्य सद्गुरुदेव कैलाश श्रीमाली जी की असीम करूणा व स्नेह है कि सभी साधकों को गुरु पूर्णिमा के दिव्यतम दिवस पर सद्गुरुदेव नारायण का सिद्धाश्रम संस्पर्शित गुरु पूजन करने का अद्वितीय पावन अवसर प्राप्त हो रहा है। सिद्धाश्रम गुरु पूजन कोई सामान्य पूजन विधान नहीं है, यह तो वह अद्वितीय कोस्तुभमणि है, जिसकी खोज में हजारों वर्ष बीत जाते हैं। इस विधान से ही सद्गुरुदेव नारायण का पूजन सिद्धाश्रम के योगियों, ऋषि-मुनियों द्वारा नित्य किया जाता है। पूर्ण मनोभाव, एकाग्रता व विधान से पूजन करने पर ऐसा प्रतीत होगा आप सिद्धाश्रम में बैठकर साक्षात् सद्गुरुदेव नारायण का पूजन सम्पन्न कर रहें है। शिष्य जीवन का परम सौभाग्य है कि वह गुरु पूर्णिमा के दिव्यतम दिवस पर ऐसी अलौकिक क्रिया सम्पन्न कर पाये।
साधक को चाहिये गुरु पूर्णिमा दिवस रविवार को ब्रह्म मुहूर्त में प्रातः 04:18 से 06:53 के बीच, स्नान के बाद पीला धोती व गुरु पीताम्बर धारण करके पूर्वाभिमुख हो बैठ जायें। प्रयुक्त होने वाली पूजन सामग्री सामने रख लें।
मानसोपचार पूजन
पहले मानसोपचार से पूजन सम्पन्न करें-
लं पृथिव्यात्मकं गन्धं समर्पयामि।(कनिष्ठिका अंगुष्ठाभ्याम् नमः)
हं आकाशात्मकं पुष्पं समर्पयामि। (अंगुष्ठ तर्जनीभ्याम् नमः)
यं वाय्वात्मकं धूपम् आघ्रापयामि। (तर्जनी अंगुष्ठाभ्याम् नमः)
रं वह्नात्मकं दीपं दर्शयामि। (अंगुष्ठ मध्यमाभ्याम् नमः)
वं अमृतात्मकं नैवद्यं निवेदयामि। (अंगुष्ठ अनामिकाभ्याम् नमः)
सं सर्वात्मकं ताम्बूलं समर्पयामि। (अंगुष्ठ सर्वाभिः नमः)
पूजा के लिये सामने छोटी सी चौकी रखें, उस पर पीला कपड़ा बिछा लें, चौकी के मध्य ताम्र पात्र में निखिल चेतना यंत्र स्थापित कर लें, दायें भाग में घी का दीपक तथा धूप-पात्र रखें, सामने आचमन पात्र, पुष्प व बायीं ओर नैवेद्य आदि सामग्री रखें।
आचमन- निम्न संदर्भों को बोल कर दायें हाथ में आचमनी से जल समर्पित करें-¬ आत्मतत्वं शोधयामि स्वाहा।
ऊँ विद्यातत्वं शोधयामि स्वाहा।
ऊँ शिवतत्वं शोधयामि स्वाहा।
ऊँ सर्वतत्वं शोधयामि स्वाहा।
गणपति स्मरण
ऊँ लं नमस्ते गणपतये। त्वं वाघ्मयस्त्वं चिन्मयः।
त्वमानन्दमयस्त्वं ब्रह्ममयः। त्वं सच्चिदानन्दाद्वितीयोऽसि।
त्वं प्रत्यक्षं ब्रह्मासि। त्वं ज्ञानमयो विज्ञानमयोऽसि।
सर्वं जगदिदं त्वत्तो जायते। सर्वं जगदिदं त्वत्तस्तिष्ठति।
सर्वं जगदिदं त्वयि लयमेष्यति। सर्वं जगदिदं त्वयी प्रत्येति।
त्वं भूमि रापोऽनलोऽनिलो नभः।
त्वं चत्वारि वाक् परिमिता पदानि।
त्वं ब्रह्मा त्वं विष्णुस्त्वं रूद्रस्त्वमिन्द्रस्त्वमग्निस्त्वं
वायुस्त्वं सूर्यस्त्वं चन्द्रमास्त्वं ब्रह्म भूर्भुवः सुवरोम्।
सुमुखश्चैकदन्तश्च कपिलो गजकर्णकः।
लम्बोदरश्च विकटो विघ्ननाशो विनायकः।।
धूम्रकेतुर्गणाध्यक्षो भालचन्द्रो गजाननः।
द्वादशैतानि नामानि यः पठेच्छृणुयादपि।।
विद्यारंभे विवाहे च प्रवेशे निर्गमे तथा।
संग्रामे संकटे चैव विघ्नस्तस्य न जायते।।
श्री मन्महागणाधिपतये नमः।
आसन पूजन- दाहिने हाथ में जल लेकर ‘गुं’ इस बीज मंत्र से हाथ के जल को अभिमंत्रित करें तथा विनियोग पढ़ें-
ऊँ अस्य श्री महा मंत्रस्य पृथिव्याः मेरूपृष्ठ ट्टषिः,
सुतलं छन्दः, कूर्मो देवता, आसने विनियोगः।
आसन पर जल छिड़क दें तथा दोनों हाथ जोड़ कर भूमि को नमस्कार करें-
पृथ्वि! त्वया धृता लोका देवि! त्वं विष्णुना धृता, त्वं च
धारय मां देवि! पवित्रं कुरु चासनम्। ऊँ योगासनाय
नमः, वीरासनाय नमः, शरासनाय नमः।
आत्म प्राण-प्रतिष्ठा- अपने बायें हाथ पर दाहिना हाथ रख कर अपने भीतर प्राण-प्रतिष्ठा की भावना करें-
ऊँ आं ह्रीं क्रौं मम सर्वेन्द्रियाणि आं ह्रीं क्रौं मम वाघ्मनस्त्वक् चक्षुः श्रोत्रजिह्ना घ्राण-प्राणा इहागत्य सुखं चिरं तिष्ठन्तु स्वाहा।
कर न्यास- इसके बाद कर न्यास करें-
ऊँ अं कं खं गं घं घं आं अंगुष्ठाभ्यां नमः।
ऊँ इं चं छं जं झं ञं ईं तर्जनीभ्यां नमः।
ऊँ उं टं ठं डं ढं णं ऊं मध्यमाभ्यां नमः।
ऊँ एं तं थं दं धं नं ऐं अनामिकाभ्यां नमः।
ऊँ ओं पं फं बं भं मं औं कनिष्ठिकाभ्यां नमः।
ऊँ अं यं रं लं वं शं षं सं हं क्षं अः करतल करपृष्ठाभ्यां नमः।
अंग न्यास- उक्त अंगों का दाहिने हाथ से स्पर्श करें-
ऊँ अं कं खं गं घं घं आं हृदयाय नमः।
ऊँ इं चं छं जं झं ञं ईं शिरसे स्वाहा।
ऊँ उं टं ठं डं ढं णं ऊं शिखायै वषट्।
ऊँ एं तं थं दं धं नं ऐं कवचाय हुम्।
ऊँ ओं पं फं बं भं मं औं नेत्रत्रयाय वौषट् ।
ऊँ अं यं रं लं वं शं षं सं हं क्षं अः अस्त्राय फट्।
ध्यान- दोनों हाथ जोड़ कर श्रद्धा पूर्वक गुरुदेव का ध्यान करें-
परमं पदेवं गुरुभ्यो पर गुरूभ्यो पारमेष्ठि
गुरुभ्यो मनस त्वक् प्राण गुरुभ्यो नमः।
श्री गुरु चरणेभ्यो नमः ध्यानं समर्पयामि।
आवाहन- आवाहन मुद्रा से निम्न मंत्र पढ़ें-
आवाहयामि आवाहयामि, शरण्यं शरण्यं सदाहं भजामि।
तव नाथमेवं प्रपद्ये प्रसन्नं, गुरुर्वै शरण्यं गुरुर्वै शरण्यम्।।
श्री गुरु चरणेभ्यों नमः आवाहयामि समर्पयामि।
आसन- आसन के लिये पुष्प समर्पित करें-
ऊँ दिवोवता च श्रियै सः गुरुर्वै सह हितेनः
श्री गुरु चरणेभ्यो नमः इदं पुष्पासनं समर्पयामि।
पूजा विधि- इसके बाद विविध पूजा सामग्री से गुरु चित्र तथा यंत्र का पूजन प्रारम्भ करें,
ऊँ श्री गुरवे नमः पादयोः पाद्यं कल्पयामि नमः।
ऊँ श्री गुरवे नमः हस्तयोः अर्घ्यं कल्पयामि नमः।
ऊँ श्री गुरवे नमः मुखे आचमनीयं कल्पयामि नमः।
ऊँ श्री गुरवे नमः सुवर्णकलशच्युत
सकलतीर्थाभिषेकं कल्पयामि नमः।
ऊँ श्री गुरवे नमः धौतवस्त्रं कल्पयामि नमः।
ऊँ श्री गुरवे नमः कुसुममालां कल्पयामि नमः।
ऊँ श्री गुरवे नमः तिलकं कल्पयामि नमः।
ऊँ श्री गुरवे नमः कृष्णाजिनं कल्पयामि नमः।
ऊँ श्री गुरवे नमः गन्धं कल्पयामि नमः।
ऊँ श्री गुरवे नमः पुष्पं कल्पयामि नमः।
ऊँ श्री गुरवे नमः धूपं कल्पयामि नमः।
ऊँ श्री गुरवे नमः दीपं कल्पयामि नमः।
नैवेद्य- सामने थाली में सुस्वाद भोजन एवं फल आदि सजाकर रखें, उसे मूल मंत्र से प्रेक्षित करें। गन्ध, पुष्प से अर्चन करके, धेनुमुद्रा द्वारा अमृतीकरण करके समर्पित करें-
ऊँ श्री गुरवे नमः नैवेद्यं कल्पयामि नमः।
ऊँ श्री गुरवे नमः पानीयं कल्पयामि नमः।
ऊँ श्री गुरवे नमः उत्तरापोशनं कल्पयामि नमः।
ऊँ श्री गुरवे नमः हस्तप्रक्षालनं कल्पयामि नमः।
ऊँ श्री गुरवे नमः मुखशुद्धिजलं कल्पयामि नमः।
ऊँ श्री गुरवे नमः आचमनीयं जलं कल्पयामि नमः।
ऊँ श्री गुरवे नमः ताम्बूलं कल्पयामि नमः।
गुरु मण्डल पूजन- इन पंक्तियों का उच्चारण करके यंत्र या पादुका पर जल चढ़ायें-
ऊँ दिव्यौघगुरूपंक्तये नमः दिव्यौघ गुरुपंक्ति
श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः।
ऊँ सिद्धौघ गुरुपंक्तये नमः सिद्धौघ गुरुपंक्ति
श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः।
ऊँ मानवौघ गुरुपंक्तये नमः मानवौघ गुरुपंक्ति
श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः।
ऊँ पारमेष्ठि गुरवे नमः, पारमेष्ठि गुरु
श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः।
ऊँ श्री गुरवे नमः परात्पर गुरु
श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः।
इस मंत्र का सिद्धाश्रम शक्ति माला से 5 माला जप करें।
नीराजन-
अन्तस्तेजो बहिस्तेजः एकीकृत्यामितप्रभं।
त्रिधादीपं परिभ्राम्य कुलदीपं निवेदये।।
असित गिरि समं स्यात् कज्जलं सिन्धु पात्रे,
सुर तरू वर शाखा लेखिनी पत्रमुर्वी।
लिखति यदि गृहीत्वा शारदा सर्वकालंतदपि तव गुणानामीश पारं न याति।।
जल आरती-
ऊँ द्यौः शान्तिरन्तरिक्ष (गूं) शान्तिः पृथिवी
शान्तिरापः शान्तिरोषधयः शान्तिः। वनस्पतयः शान्तिर्विश्वे
देवाः शान्तिर्ब्रह्म शान्तिः सर्व (गूं) शान्तिः शान्तिरेव शान्तिः
सा मा शान्तिरेधि। ऊँ इद (गूं) हविः प्रजननं मे अस्तु दशवीर
(गूं) सर्वगण (गूं) स्वस्तये। आत्मसनि प्रजासनि पशुसनि
लोकन्यभयसनिः। अग्निः प्रजां बहुलां मे करोत्वन्नं पयो रेतो
अस्मासु धत्त। ऊँ सोमो वा एतस्य राज्यमादत्ते यो राजं सन्
राज्यो वा सोमेन यजते देव सुषामेतानि हवींषि भवन्ति
एतावन्तौ वै देवाना सवाः त एनं पुनः सुवन्ते राज्याय। देवसू
राजा भवति। न तत्र सूर्यो भाति न तारकं नैता; विद्युतो कुतो
यमग्निः। समेन भान्तमनुभाति सर्वं तस्य भासा; सर्वमिदं
विभाति।। श्री गुरु चरणेभ्यो नमः नीराजनं समर्पयामि।
पुष्पाञ्जलि- दोनों हाथों में खुले पुष्प लेकर मंत्र बोलें-
ऊँ यज्ञेन यज्ञमयजन्त देवास्तानि धर्माणि प्रथमान्यासन् तेह
नाकं महिमानः सचन्त यत्र पूर्वे साध्याः सन्ति देवाः।
ऊँ राजाधिराजाय प्रसह्य साहिने नमो
वयं वैश्रवणाय कुर्महे। स मे कामान् काम कामाय मह्यम्
कामेश्वरो वैश्रवणों ददातु कुबेराय
वैश्रवणाय महाराजाय नमः।
ऊँ स्वस्तिः। साम्राज्यं भौज्यं स्वाराज्यं वैराज्यं पारमेष्ठड्ढं
राज्यं महाराज्यमाधिपत्यमयं समन्तपर्यायी स्यात्।
सार्वभौमः सर्वायुषः अन्तादापराधात्।
पृथिव्यै समुद्रपर्यन्तायाः एकराडिति तदप्येष
श्लोकोऽभिगीतो मरुतः परिवेष्टारो मरूतस्यावसन् गृहे
आविक्षितस्य कामप्रेर्विश्वेदेवाः सभासद।
नाना सुगनध पुष्पाणि यथा कालोद्भवानि च।
पुष्पांजलिर्मया दत्त गृहाण गुरुनायक।।
श्री गुरु चरणेभ्यो नमः पुष्पांजलिं समर्पयामि।
नमस्कार- दोनों हाथ जोड़ कर प्रणाम अर्पित करें-
गुरुरूपमेवं गुरुर्ब्रह्मरूपं विष्णुश्च रूद्रं देवं वदाम्यं।
गुरुर्वै गुरुर्वै परम पूज्यरूपं गुरुर्वै सदाहं प्रणम्यं नमामि।।
गुरुदेव कारूण्यरूपं सदेवं गुरु आत्मरूपं प्राण स्वरूपम्।
देवस्य रूपं चैतन्यमूर्तिं गुरुर्वै प्रणम्यं गुरुर्वै प्रणम्यम्।।
चरणौ ग्रही पूर्व मदैव रूपं शरण्यै वदान्यै वदनं वदन्तम्।
अश्रुर्वतां पूर्ण मदैव तुल्यं गुरुर्वै गुरुर्वै गुरुर्वै गुरुर्वै।।
सिद्धाश्रमोऽयं परिपूर्णरूपं सिद्धाश्रमोऽयं दिव्यं वरेण्यम्।
आतुर्यमाणमचलं प्रवतं प्रदेयं सिद्धाश्रमोऽयं प्रणमं नमामि।।
सिद्धाश्रमो प्राण मदैव रूपं योगीश्वरोऽयं योगीर्वदेन्यं।
भवतोर्वदेनाथ मदैव रूपं निखिलेश्वरोऽयं प्रणमं नमामि।।
जीवोऽपि देहं निखिलेश्वरोऽयं,
निखिलेश्वरोऽयं निखिलेश्वरोऽयं।।
न शब्दं न वाक्यं न चिन्त्यं वदेन्यं
निखिलेश्वरोऽयं निखिलेश्वरोऽयं।।
ज्ञानार्वदां च वदितं ब्रह्माण्डरूपं
नित्यं वदैव वहितं सहितं सदेवं।
शब्दोर्वतां व्यर्थ मदैव नित्यं किं
पूर्व परवेत वहितं महितं च नित्यं।।
श्री गुरु चरण कमलेभ्यो नमः प्रणामाञ्जलिं समर्पयामि।
क्षमा प्रार्थना-
न जानामि योगं न जानामि ध्यानं।
न मंत्रं न तंत्रं न योगं क्रियान्वै।।
न जानामि पूर्णं न देहं न पूर्वं। गुरुर्वै शरण्यं गुरुर्वै शरण्यम्।।
त्वं मातृ रूपं पितृ स्वरूपं। आत्मस्वरूपं प्राण स्वरूपं।।
चैतन्य रूपं देवं दिवन्त्रं। गुरुर्वै शरण्यं गुरुर्वै शरण्यम्।।
मम अश्रु अर्घ्यं पुष्पं प्रसूनं। देहं च पुष्पं शरण्यं त्वमेवम्।।
जीवोद्वदां पूर्ण मदैव रूपं। गुरुर्वै शरण्यं गुरुर्वै शरण्यम्।।
त्वं नाथ पूर्णं त्वं देव पूर्णं। आत्मं च पूर्णं ज्ञानं च पूर्णं।।
अहं त्वां प्रपन्नं प्रपद्ये सदाहं। गुरुर्वै शरण्यं गुरुर्वै शरण्यम्।।
अनाथो दरिद्रो जरा रोग युक्तः।
महाक्षीणदीनः सदा जाड्य वक्त्रः।।
विपत्ति प्रविष्टः सदाहं भजामि। गुरुर्वै शरण्यं गुरुर्वै शरण्यम्।।
श्री गुरु चरणेभ्यो नमः प्रार्थनां समर्पयामि।
विशेषार्घ्य- हाथ में जल लेकर पुष्प एवं अक्षत मिला लें-
गुरुर्वै गुरोः स प्राण आत्म ब्रह्माण्ड वै प्रचः।
श्री गुरु चरणेभ्यो नमः विशेषार्घ्यं समर्पयामि।
ऊँ पूर्णमदः पूर्णमिदं पूर्णात् पूर्णमुदच्यते।
पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवाव शिष्यते।।
ऊँ शांतिः। शांतिः। शांतिः।।
अत्यन्त भाव भरे हृदय से सिद्धाश्रम स्तवन पाठ करें, साथ ही गुरु आरती व समर्पण स्तुति सम्पन्न करें।
भौतिक व सांसारिक जीवन में नित्य होने वाली रोग-शोक, सड़ी-गली दुर्गन्धपूर्ण स्थितियों को समाप्त कर पूर्ण शिवमय गणपति रिद्धि-सिद्धि, शुभ-लाभ प्रदाता युक्त जीवन निर्माण की क्रिया हेतु इस दिव्यतम गुरु पूर्णिमा के अवसर पर रायपुर छ-ग- में 09 जुलाई को प्रातः 04:18 से 06:53 के बीच सद्गुरु नारायण स्वरूप में सभी समर्पित शिष्यों को दिव्यपात द्वारा पूर्ण चैतन्यता प्रदान करेंगे।
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