अनुभूति होती क्या है- यह वह वस्तु है, जिससे आपको उसके होने का विश्वास होता है, सामान्यतः लोग ऐसी बहुत सी वस्तुओं पर विश्वास नहीं करते, जो उन्होंने देखा नहीं, परन्तु वो वस्तु है, आप लोगों में से कितने लोग अंतरिक्ष गये हैं, आप लोंगो ने देखा भी नहीं है, किताबों में पढ़ा होगा, टी-वी पर देखा होगा, आप विश्वास करते हो ना कि अंतरिक्ष है।
आप सभी चैतन्य देव भूमि पर अमृतोत्सव में भाग लेने के लिये आये। आप सभी को धन्यवाद—–!
अभी थोड़ी देर पहले हमने गुरुदेव का आह्नान किया, यदि हम वास्तविक रूप से गुरुदेव को अपने हृदय में बसा लें, गुरुदेव को अपने हृदय में अनुभव करें, तो हमारे हृदय में दुःख-कष्टों का कोई स्थान ही नहीं रहेगा, जीवन में कोई कष्ट नहीं रहेगा। कई साधक यह शिकायत करते हैं कि हमें अब साधनाओं में अनुभूति नहीं होती, अब शिविर महोत्सव में वो बात नही, परन्तु इसका कारण क्या है, सद्गुरुदेव नारायण के किसी भी शिविर का वीडियो आप देख लें, प्रत्येक साधक धोती और गुरु पीताम्बर की वेशभूषा में है, उनके हाव-भाव साधक के होते थे। चेहरे पर गंभीरता के साथ उनके क्रिया-कलाप भी साधक की भांति ही होते थे, इसलिये उन्होंने अपने जीवन में जीवन की वास्तविक पूंजी को एकत्रित किया। स्कूल में बिना यूनिफार्म घुसने नहीं दिया जाता, ये भी तो पाठशाला ही है, ऐसा क्यों हो रहा है, क्योंकि हमारी साधनाओं के प्रति निष्ठा, रूचि, श्रद्धा न्यूनतम स्तर पर आ गयी। यहां बहुत ऐसे भी बैठें हैं, जिन्होंने महीनों से गुरु पीताम्बर भी नहीं धोया, वे शिकायत करते हैं, कि मुझे अनुभूति नहीं होती।
तो साधना के बारे में भी जो लिखा है, उसे क्यों नहीं मानते, विश्वास करते। ये साधनाओं का भंडार हमारे ऋषि-मुनि द्वारा हजारों वर्षो के तप के अनुभव से उत्पन्न हुआ है। ये साधना विधियां सद्गुरुदेव डा- नारायण दत्त श्रीमाली जी ने आपके लिये सरल रूप में उपलब्ध करायी हैं। आज-कल के बच्चों को इंग्लिश के Poem याद हैं, Twinkle Twinkle तो याद है, पर सरस्वती वन्दना याद नही।
हमारे पास इधर-उधर जाने का समय है, परन्तु शिविर में या विशेष दिवस पर पूजन करने का समय नहीं है। आज जब पूरा विश्व भारतीय संस्कृति अपना रहा है, योग में, साधना में, ध्यान के मार्ग पर जा रहा है, और हम उससे दूर भाग रहें हैं और हम करीब जा रहे है hypertension, stress के। spiritual people are mentally & emotionally more strong जो व्यक्ति आध्यात्मिक है वो मानसिक और भावनात्मक रूप में ज्यादा सक्षम हैं।
क्योंकि हम अपनी संस्कृति, साधनाओं, दीक्षा, अमृत महोत्सव जैसे अनेक दिव्यतम उत्सवों को पर्व की तरह नहीं मनाते हैं। जब आप जीवन में दिव्यतम चेतना नहीं आत्मसात् करोगो, तो जीवन मंगलमय कैसे बनेगा। अमंगलमय जीवन शक्तिहीनता द्वारा प्राप्त होता है। अब देव-भूमि में भी जाने के लिये घर-घर जाकर बुलाना पड़ रहा है। देवत्व चेतना से ही देवमय स्थितियां बनती हैं। आप सभी अत्यन्त सौभाग्यशाली हैं, जो इस दिव्यतम महोत्सव का हिस्सा बनें, देवत्व भूमि की साधनात्मक क्रियाओं से निश्चित ही जीवन सुमंगलमय बनेगा।
आपका अपना
विनीत श्रीमाली
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