भगवान शिव के पुत्र गणपति सभी विघ्नों, उपद्रवों, बाधाओं और अड़चनों को समाप्त करने वाले देवता हैं, उनकी पत्नी मां जगदम्बा पार्वती शक्ति स्वरूपा हैं और शत्रुओं का नाश करने में अग्रणी हैं, वे स्वयं अन्नपूर्णा के अधिपति हैं, भूतों के स्वामी हैं, देवताओं के प्रिय हैं और योगियों के आराध्य हैं।
श्रावण का महीना भगवान शिव को अत्यन्त प्रिय है, शिव पुराण में स्पष्ट रूप से उल्लेख है कि श्रावण का पहला सोमवार योगी स्वरूप गृहस्थों के सौभाग्य का द्वार खट- खटाता है और जो इस द्वार को खोल देता है या दूसरे शब्दों में कहूं कि श्रावण महीने में विशिष्ट शिव साधना सम्पन्न कर लेता है, उसके कर्म में लिखा हुआ दुर्भाग्य भी सौभाग्य में बदल जाता है, यदि उसके जीवन में दरिद्रता लिखी हुई भी है, तब भी भगवान शिव की साधना उस दरिद्रता को मिटा कर सम्पन्नता की पंक्तियां लिख देता है, यदि जीवन में कर्जा है, व्यापार में बाधायें हैं, आर्थिक न्यूनता है, तो फिर भगवान शिव की ये साधनायें सर्वोत्तम है। जिससे लक्ष्मी घर में निवास करती है
शिव उपनिषद में बताया गया है, कि लक्ष्मी प्राप्ति से सम्बन्धित या लक्ष्मी को आबद्ध करने से सम्बन्धित अन्य सभी साधनाओं को समुद्र में फेंक देना चाहिये क्योंकि श्रावण मास में की गई इस साधना से लक्ष्मी को हर स्थिति में साधक के घर में आना ही पड़ता है, स्थायी रूप से निवास करना ही पड़ता है और साधक को जीवन में सुख, सौभाग्य, यश, ऐश्वर्य प्राप्त होता है। अनुभव में यह आया है, कि यह साधना सम्पन्न होने पर धन लाभ होता ही है, व्यापार उन्नति की ओर अग्रसर होने लगता है, यदि व्यापार प्रारम्भ नहीं हो रहा हो, या उसमें अड़चने आ रही हो तो व्यापार प्रारम्भ हो जाता है, जो उसके मन की इच्छायें होती हैं वे पूरी होने लगती है और साधक निरन्तर उन्नति की ओर अग्रसर होने लगता है। अन्य व्यापार या व्यवसाय नौकरी या आजीविका से संबंधित कार्य करने वालों को विभिन्न स्त्रोतों से धन उपार्जन होने लगता है, और साधक तीव्र गति से आगे बढ़ता हुआ अपने सारे मनोरथों को, अपनी सारी इच्छाओं को पूर्ण करने में समर्थ, सफल हो पाता है।
इस वर्ष श्रावण मास पंच सोमवार (चन्द्रोदय युक्त) 10 जुलाई सोमवार से 07 अगस्त सोमवार तक रहेगा, यह पूरा माह भगवान शिव से सम्बन्धित है और यह माह होगा गृहस्थ जीवन को सुदृढ़ व पूर्ण आनन्दमय निर्मित करने के लिये। क्योंकि गृहस्थ जीवन में प्रथम पूज्य देव महादेव ही हैं। जो गृहस्थ जीवन की विषम परिस्थितियों का शमन कर आनन्द, भोग, विलास युक्त जीवन प्रदान करते हैं।
इस बार श्रावण मास में पांच सोमवार है, साथ ही सबसे बड़ा अद्भुत योग है, कि इस बार श्रावण पूर्णिमा पर पूर्ण चन्द्र ग्रहण का योग बन रहा है। जिससे इस दिवस का महत्व सहस्त्र गुणा अधिक प्राप्त होगा। यह अवसर जाग्रत, चैतन्य साधको के लिये सदाशिव का ही वरदान है।
गृहस्थ जीवन में महत्वपूर्ण योगदान प्रदान करने वाली दो साधनायें आगे प्रस्तुत की जा रही है। साधक को चाहिये कि वे समय का सामंजस्य बनाकर दोनो साधनायें अनिवार्य रूप से सम्पन्न करें, यदि ऐसा संभव ना हो तो निश्चय ही एक साधना अवश्य सम्पन्न करें। ये साधनायें आप किसी भी सोमवार को सम्पन्न कर सकते हैं।
जीवन में श्रेष्ठता तो तभी संभव है, जब व्यक्ति का समाज में वर्चस्व हो, जहां उसकी बातों को ध्यान पूर्वक सुना जाता हो, सम्मान पूर्वक ग्रहण किया जाता हो और धन, ऐश्वर्य से भी सम्पन्न हो, क्योंकि धन और सम्मान आदि आज के भौतिक जीवन में महत्वपूर्ण एवं आवश्यक हैं। जो धन से पूर्ण है, उसी का गृहस्थ जीवन सुखमय कहा जा सकता है। क्योंकि धन से ही भौतिक जीवन की अधिकांश व्यवस्था संचालित होती है, बिना धन के आप जीवन के किसी भी पड़ाव को सही रूप में नहीं जी सकते हैं।
इस हेतु भगवान शिव के कुबेराधिपति स्वरूप की साधना करनी चाहिये, जिससे गृहस्थ जीवन में सुख- समृद्धि, कुशलता, वैभव, ऐश्वर्य, भोग-विलास के सभी साधन उपलब्ध हो सकें। इस साधना से साधक अतुलनीय धनवान, ऐश्वर्यवान और वैभवशाली होता है और लक्ष्मी अपने ‘श्री’ स्वरूप में भगवान शिव के साथ अखण्ड रूप से विद्यमान होती है और सांसारिक जीवन की सभी आवश्यकताओं की पूर्ति के साथ लक्ष्य प्राप्ति के लिये क्रियाशील बनाये रखती है।
किसी भी सोमवार को स्नान आदि से निवृत्त होकर स्वच्छ वस्त्र धारण कर लें, उसके पश्चात् नर्मदेश्वर शिवलिंग व शाम्ब सदाशिव जीवट स्थापित कर उक्त मंत्र का 3 माला मंत्र जप धनवर्षिणी माला से करें।
मंत्र जप पश्चात् सभी सामग्री किसी जलाशय में विसर्जित कर दें।
वर्तमान परिदृश्य को देखते हुये यह कहना पड़ रहा है कि गृहस्थ जीवन सामाजिक दृष्टिकोण से असफल बनकर रह गया है। दिन-प्रतिदिन स्थितियां भयावह हो रही हैं, वासना युक्त कार्यो में संलिप्तता बढ़ती ही जा रहीं हैं, जिससे अनेक गृहस्थ जीवन दूषित होने की स्थिति में पहुंच चुके हैं।
पूर्व में ऐसा नहीं था, एक बार विवाह के पश्चात् पति-पत्नी सात जन्मों तक साथ रहने का संकल्प लेते थे, आज-कल तो 5-7 साल में ही तलाक की नौबत आ जाती हैं, अथवा पति-पत्नी में भयानक अर्तंकलह व्याप्त हो जाता है, एक ही छत के नीचे जिन्दगियां अलग-अलग रास्ते अपना लेती हैं।
इस सामाजिक परिवर्तन में सबसे अधिक विवाहित स्त्रियों का ह्रास होता है, उन्हें शारीरिक व मानसिक दोनों तरह की यातनाओं को सहना पड़ता है, प्रत्येक स्त्री के मन में डर रहता है, कहीं उनके गृहस्थ जीवन में कोई अनहोनी ना घट जाये।
यह साधना उन सभी गृहस्थ साधक-साधिकाओं के लिये है, जो अपने गृहस्थ जीवन को सुदृढ़ता, प्रेम, सद्-व्यवहार, सम्मान, अपनापन, सौभाग्य से पूर्ण होने की आंकाक्षा रखती हैं, साथ ही जो अपने गृहस्थ को सुचारू रूप से व्यतीत कर रहे हैं, क्योंकि वर्तमान में अपना जीवन सुरक्षित करना भी अत्यन्त आवश्यक है, साथ ही पति का दीर्घायु जीवन ही स्त्री के लिये सबसे बड़ा वरदान है। भगवान सदाशिव व माता गौरी की जीवनी शक्ति को आत्मसात करने हेतु आवश्यक है कि आप सभी गृहस्थ साधक- साधिकायें यह साधना अनिवार्य रूप से सम्पन्न करें। संभव हो तो पति-पत्नी संयुक्त होकर साधना सम्पन्न करें।
किसी भी सोमवार को गृहस्थ सुख प्राप्ति श्री लॉकेट व सौभाग्य शक्ति गुटिका पंचोपचार पूजन कर उक्त मंत्र का शिव-गौरी शक्ति माला से 5 माला मंत्र जप करें।
मंत्र जप पश्चात् सभी सामग्री को किसी जलाशय में विसर्जित कर दें।
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