उस दिन मैं शाम को कार्यालय से घर जल्दी वापस आ गया था, मन बड़ा बैचेन था, इच्छा हो रही थी, कि नौकरी छोड़ दूं परन्तु यदि नौकरी छोड़ दूंगा, तो करूंगा क्या? यही प्रश्न बार-बार मानस पटल पर उभर कर मानो मेरे निर्णय को चुनौती दे रहा था। शुरु से ही मेरी रूचि संगीत की ओर विशेष रूप से रही है, परन्तु दुर्भाग्य यह कि चाह कर भी मैं इसमें इच्छित सफलता नहीं प्राप्त कर पा रहा था और यह बात सर्वविदित ही है, कि कला के प्रेमी को नौकरी शोभा नहीं देती और न ही उसका रूझान नौकरी की तरफ संभव है।
अनमने मन से उठ कर मैंने अपने लिये एक प्याली चाय बनायी और आराम से कुर्सी पर बैठ कर उस किताब के पृष्ठ उलटने लगा, जो मैंने पिछले सफर में खरीदा था। पुस्तक ज्यादा रूचिकर नहीं थी, परन्तु उसका एक खण्ड मेरा ध्यान अपनी ओर आकृष्ट करने में सफल हुआ। उसमें कुछ साधनायें भी छपी थीं और उन्हीं में से एक थी मधुश्रवा गन्धर्व कन्या की साधना जब मैं पढ़ते-पढ़ते मधुश्रवा गन्धर्व कन्या पर पहुंचा, तो एक क्षण तो खुशी के मारे मेरी चीख ही निकल गयी, मुझे अपना स्वप्न सत्य सा होता दिखाई दे रहा था।
पुस्तक में यह वर्णित था, कि जो कोई इस साधना को सिद्ध कर लेता है, वह स्वतः ही उच्चकोटि का संगीतज्ञ, गीतकार एवं कला के क्षेत्र में अद्वितीय हो जाता है, विद्वत् समाज में उसका पूर्ण सम्मान होता है और वह धन, यश, मान, वैभव आदि सब कुछ प्राप्त करने में समर्थ हो जाता है। डूबते को जैसे तिनके का सहारा शायद मैं कुछ कर पाऊंगा पुस्तक में मधुश्रवा साधना अंकित थी, जिसे मैने भली भांति हृदयंगम कर लिया, परन्तु एक बात जो बार-बार मुझे कचोट रही थी, वह यह कि मैंने अभी तक जीवन में कोई गुरु नहीं बनाया था और बिना गुरु के साधना।
परन्तु उसके बाद घटनायें इतनी तीव्र गति से घटित होती गयी, कि आज भी फुरसत के क्षणों में जब मैं सोचता हूं तो चकित सा रह जाता हूं। उसी रात स्वप्न में मुझे सफेद धोती-कुर्ता पहने एक आकृति दिखाई दी थी, अत्यधिक दिव्य व्यक्तित्व था, उनका हाथ आशीर्वाद मुद्रा में उठा हुआ था और वे कह रहे थे, ‘भय रहित होकर साधना आरम्भ करो—निश्चय ही आरम्भ करो–’ मैं झटके से नींद से उठ बैठा और मैंने तुरन्त बत्ती जलाई- रात्रि के साढ़े तीन बजे थे कक्ष में मेरे सिवा कोई नहीं था हां! एक अलौकिक सुगन्ध वातावरण में व्याप्त थी। सुबह स्वप्न को याद करके मन अत्यधिक पुलकित था। मैंने उसी दिन से साधना सम्पन्न करने की ठानी और सभी साधना सामग्रियों को एकत्र करने का प्रयास किया, इस बीच पूरा एक माह गुजर गया।
सभी साधना सामग्रियों के एकत्र होने के बाद पुस्तक में वर्णित विधि से साधना प्रारम्भ कर दी तथा दिये गये मंत्र का जप करने लगा। मंत्र जप समाप्त होने पर वहीं भूमि पर ही कम्बल बिछा कर उस पर सो गया। इस प्रकार दूसरा ओर तीसरा दिन भी निर्विघ्न ही बीता फिर चौथे दिन—!
मैं साधना के लिये आसन पर बैठा ही था, कि गुलाब और चन्दन की सुगन्ध का एक तीव्र झोंका कहीं से आकर नथुनों में समा गया कुछ क्षणों के लिये तो मैं मदहोश ही हो गया। अभी मंत्र जप आधा ही हुआ था, कि घुंघरूओं की छम-छम ओर चूडि़यों की खन-खनाहट वातावरण में गूंज उठी वहां कोई दिखाई तो नहीं दे रहा था, परन्तु ध्वनि निरन्तर ही आ रही थी और जब तक मेरी साधना पूरी नहीं हो गयी, तब तक आती ही रही। पांचवीं रात को कुछ खास नहीं हुआ, जब मैं साधना करके उठा, तो ऐसा लगा, कि कोई मेरे पास से उठ बाहर गया है। छठे दिन मैं पूर्ण उत्साह के साथ साधना में संलग्न था। जब कुछ मालायें ही शेष रह गयी थीं, बिम्बात्मक रूप में एक स्त्री हवा में तैरती हुई सी मेरे समक्ष उपस्थित हुई और ठीक मेरे सामने आकर बैठ गयी।
उसका सौन्दर्य अनुपम था, अवर्चनीय था, अद्वितीय था वैसा अद्वितीय सौन्दर्य मैंने इससे पहले कभी नहीं देखा था और जब देखा, तो देखता ही रहा गया कुछ समय के लिये मैं अचेत हो गया माला हाथ में स्थिर पड़ी थी और होंठ शायद कोई गीत गुनगुनाने लगे थे। तभी मेरे कानों में उस दिव्य पुरूष की आवाज गूंजी, जिसे मैंने पहले दिन स्वप्न में देखा था- ‘मंत्र जप नहीं रूकना चाहिये, संयम पूर्वक मंत्र जप करते रहो।’ इस आदेश को सुनते ही मेरी चेतना वापस लौटी और अपनी आंखें बंद कर पूर्ण मनोयोग पूर्वक मंत्र जप करने का प्रयास करने लगा।
सातवीं रात उस साधना की आखिरी रात थी। मैंने मंत्र जप प्रारम्भ ही किया था, कि तभी पायजेब की छम-छम सुनाई दी मैंने आंखें खोलीं, तो देखा-संगीत की सप्त लहरियों के साथ कल वाली स्त्री ही मेरे सामने उपस्थित थी, सशरीर कई गुणा ज्यादा आकर्षण—–ज्यादा मोहक—! मैंने बल पूर्वक उधर से अपना ध्यान हटा कर साधना में केन्द्रित किया— वह चल कर मेरे पास आयी और मेरे साथ सट कर बैठ गयी और मेरे कन्धों पर उसने अपना सिर टिका दिया, उसकी गर्म सांसें मेरे बदन से टकरा कर एक अजीब सी उत्तेजना को जन्म दे रही थीं। कुछ पल के लिये तो मुझे होश ही नहीं रहा, ऐसा लगा, कि मैं उन सांसों की गर्मी से पिघलता चला जा रहा हूं।
तभी उस दिव्य पुरूष का बिम्ब मेरी आंखों के सामने साकार हुआ और उसने मंत्र जप जारी रखने का संकेत किया, मैंने अपना ध्यान उसकी तरफ से हटाने की कोशिश की और पुनः मंत्र जप में संलग्न हो गया। इस बीच उसने न जाने कितने ही प्रश्न किये परन्तु मैं कुछ नहीं बोला और केवल मंत्र जप करता रहा जब मेरा मंत्र जप पूर्ण हुआ, तो मैंने पहले से ही लाकर पास में रखी गुलाब के पुष्पों की माला उसके गले में पहना दी। ऐसा करते ही उसने मुझसे कहा – ‘मैं मधुश्रवा हूं, तुमने मुझे सिद्ध किया है और अब मैं तुम्हारे साथ प्रेमिका रूप में रहने के लिये वचनबद्ध हूं। जब भी तुम मुझे याद कर मेरे मंत्र का ग्यारह बार उच्चारण करोगे, मैं तत्काल तुम्हारे सामने उपस्थित हो जाऊंगी।’
वह दिन है और आज की दिन— वह नित्य मेरे पास आती, मुझे संगीत एवं दूसरी कलाओं के अनेक गोपनीय रहस्यों को बताती, मेरी समस्याओं का समाधान करती और प्रेम की अमृत वर्षा कर मुझे आनन्द प्रदान करती। उसके साहचर्य में कब मैं धीरे-धीरे संगीत के क्षेत्र में उच्चता और प्रसिद्धि प्राप्त करता गया, मैं खुद नहीं जानता। आज मुझे कोई भी वाद्य यंत्र बजाने में मुश्किल नहीं होती, जब मैं गाता हूं, तो लोग कहते है कि मानो कानों में मधु उड़ेल दिया हो सर्वत्र मेरे गीत-संगीत की सराहना होती है, उच्चकोटि के विद्वानों ने भी मेरी प्रशंसा की है यह सब उस गन्धर्व कन्या के कारण ही हुआ है और आज मेरे पास सब कुछ है- धन, वैभव, यश, सम्मान—!
और सबसे बड़ी बात तो यह है, कि मुझे पूज्य गुरुदेव के चरण कमलों में स्थान प्राप्त हुआ। जब मैं पहली बार जोधपुर पहुंचा और उनके कक्ष में कदम रखा, तो एक क्षण के लिये तो मैं गहन आश्चर्य में डूब गया मेरे सामने और कोई नहीं, सफेद धोती-कुर्ता पहने वही व्यक्तित्व बैठा था, जिसके मार्गदर्शन में मैंने यह साधना सम्पन्न की थी तथा जिसकी मधुर ध्वनि पहले भी मेरे कानों में अमृत घोल चुकी थी- ‘भय रहित होकर साधना आरम्भ करो— निश्चय ही आरम्भ करो।’
गन्धर्व कन्या मधुश्रवा साधना शीघ्र ही फलप्रद होती है, क्योंकि यह स्वयं भी मानव के संसर्ग में आने को व्यग्र रहती है।
यह साधना 23 जुलाई दिन रविवार को हरियाली अमावस्या पर सम्पन्न करें। रात्रि दस बजे के उपरान्त पीत वस्त्र धारण कर पूर्वाभिमुख होकर बैठें। अपने सामने बाजोट पर श्वेत वस्त्र बिछा कर उस पर गुलाब की पंखुडि़यों के ऊपर मधुश्रवा यंत्र को स्थापित कर उसका पंचोपचार पूजन करें, फिर दिव्य शक्ति माला से 5 माला मंत्र जप सात दिन तक करें।
सातवें दिन जब मधुश्रवा उपस्थित हो, तो पहले से ही लाकर रखी हुई गुलाब के पुष्पों की माला उसके गले में पहना दें। ऐसा करने पर यह साधना सिद्ध हो जाती है। अगले दिन सुबह ही यंत्र, माला व गुटिका को किसी नदी या तालाब में प्रवाहित कर दें और इस साधना के विषय में किसी को भी कुछ न बतायें। इसके बाद ग्यारह बार उपरोक्त मंत्र का जप करने पर मधुश्रवा सामने उपस्थित हो सकती हैं और साधक की इच्छा पूर्ण करती हैं।
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