समय वह धन है, जिसे अगर बरबाद करोगे तो समय ही एक दिन आपको बरबाद कर देगा। जीवन का आनन्द लेना है तो जीवनचर्या को नियमित एवं योजनाबद्ध तरीके से जीकर ही ले सकते हैं और तभी समय का सदुपयोग सम्भव है। हम जितने समय तक जीयें धुआँ बनकर न जीयें, ज्योति बनकर, लपट बनकर जीयें। ज्योति आत्म-शुद्धि से आती है और आत्म शुद्धि तक पहुँचने का बहुत महत्त्वपूर्ण साधन है। सद्- साहित्य का अध्ययन। सद्-साहित्य के अध्ययन से सद्विचार आते हैं और सद्-विचारों से ही सद्बुद्धि आती है और फिर उसके अनुसार सत्कार्य होते हैं। अतः अपनी जीवनचर्या में प्रतिदिन कम से कम आधा घण्टा अध्ययन के लिये आरक्षित रखना चाहिये। जीवन में अपने अज्ञान के कारण समस्यायें आती हैं। धर्म शास्त्रों के अध्ययन से समस्याओं का निदान होता है, जिससे हमें अपने जीवन-दर्शन का पता चलता है, हमें आत्म- नियन्त्रण करना नहीं आता है, अपनी इच्छाओं पर संयम करना नहीं आता है, क्योंकि सुविधा भोगी कभी सुखी नहीं होता है।
हमारा अज्ञान ही दुःख है। इस संसार में सबसे ज्यादा सुखी व्यक्ति वह है जो सुख से सोता है और सुख से जागता है, जिसके जीवन में नैतिकता है, ईमानदारी है, प्रामाणिकता है, वही धार्मिक व्यक्ति है। अपने-आपको जानना, अपने-आपको देखना और अपने- आपको समझना ही हमारी जीवनचर्या की सच्चाई है, जीवन का आनन्द है। धर्म का पालन करने वाला जीवित रह कर तो गुणों का अर्जन करता है और मरने के बाद सद्गति को प्राप्त करता है। अपनी जीवनचर्या को इस तरह व्यवस्थित रखें कि वर्तमान में ही जीना सीखें अर्थात् हमारा आज अच्छा है तो कल भी अच्छा होगा। दुःख कहीं से नहीं आता है, उसे व्यक्ति स्वयं पैदा करता है। अहिंसा का जीवन सीखें। अहिंसा जीवन की ऊर्जा है, जीवन का आनन्द है। अपनी दिनचर्या में स्वार्थ से हटकर परमार्थ की ओर ध्यान देने का दृष्टिकोण रहना चाहिये।
समय सीमित है, परंतु जिम्मेदारियाँ असीम हैं। अतः हमें सदा यह विचार करते रहना चाहिये कि हमारी गृहस्थी का प्रबन्ध ठीक है या नहीं, बच्चों की शिक्षा ठीक हो रही है या नहीं, कुछ सद्कार्य किये हैं या नहीं। सज्जनता से व्यवहार करने वाला तथा पूर्ण मनोयोग से तत्परता पूर्वक काम करने वाला अवश्य अपने जीवन में सफल होता है। न तो हमे बहुत आशावादी बनकर अपने-आपको धोखे में डालना चाहिये और न ही किसी कारणवश हताश होकर घबराना चाहिये। अपने गुणों के अनुसार लाभ उठाना चाहिये। अच्छा स्वास्थ्य और अच्छा व्यवहार- यही हमारे जीवन का ध्येय होना चाहिये। चिन्ता नहीं चिन्तन होना चाहिये, व्यथा नहीं व्यवस्था करनी चाहिये। समय पर सात्त्विक भोजन और शुद्ध जल का उपयोग करना चाहिये। हमारी जीवनचर्या की सच्ची सम्पत्ति नेक काम ही है। सामर्थ्य से अधिक शारीरिक श्रम नहीं करना चाहिये। किसी का तिरस्कार करना मानवता का अपमान है। आप जो कुछ हैं, वही रहें, सहज रहें, आडम्बर-दिखावा किसी दिन आपको संकट में डाल सकता है। अतः अपनी आय से अधिक खर्च न करें।
ईर्ष्या, क्रोध, अहंकार हमारी उन्नति में बाधक हैं। जीवन में जितनी सरलता होगी, उतना ही लोगों से प्रेम-व्यवहार ज्यादा रहेगा। जीवन का प्रत्येक क्षण अमूल्य है, इसके एक-एक पल का उपयोग कर विकास के शिखर पर पहुँचना चाहिये। घर में अपने से बड़ों को प्रणाम करने की आदत डालकर आशीर्वाद ग्रहण करना चाहिये। अपने कर्तव्यों का पालन करते हुये अपने दैनिक कार्यों का शुभारम्भ करना चाहिये। अपने व्यक्तित्व को गौरवशाली बनाना चाहिये। समय की एवं वचन की पाबन्दी एक ऐसा चारित्रिक गुण है, जो हर समय और हर अवस्था में अनुकरणीय है। जिस प्रकार भी हो सके कुछ हानि सहकर भी अपने वचन एवं समय की पूर्ति करना हमारा दायित्व है।
हमें जीवन को हँसते-मुसकराते हुये जीना है। एक अंग्रेजी की कहावत है हँसोगे तो सम्पूर्ण संसार आपके साथ हँसेगा, किन्तु यदि रोओगे तो आपके साथ रोने वाला कोई नहीं मिलेगा। हँसना जीवन का आनन्द है। बड़े बुजुर्गों का आदर रखते हुये हँसते-हँसाते रहिये। हमारी जीवनचर्या में तीन गुण अवश्य रहें (1) क्षमा करना (2) सहन करना और (3) सेवा करना। जीवन में वास्तव में आवश्यकतायें तो बहुत कम होती हैं, अपेक्षायें ही अधिक होती हैं। व्यसन के जैसा कोई पाप नहीं। व्यसन को छोड़े बिना ईश्वर-भक्ति हो ही नहीं सकती। रोज दूसरों में अगर हम गुण देखते हैं, तो यह हमारी सज्जनता एवं उदारता है। किसी भी सुख-भोग के परिणाम को देखना ही मानवता है। किसी को ऐसी बात कभी नहीं करनी चाहिये, जिससे उसका जी दुःखे। सकारात्मक सोच ही जीवन है, नकारात्मक सोच मृत्यु के समान है। जो स्नेह से बँधा हो, वही बन्धु है, जो विपत्ति में साथ दे, वही मित्र है।
शरीर का किसी भी क्षण नाश हो सकता है- इस बात का ख्याल रखते हुये प्रतिक्षण का उपयोग करते हुये वर्तमान को अपना बना लेना ही महान् कौशल वाली जीवनचर्या है, जीवन-शैली है।
प्रतिदिन प्रातः काल या सायंकाल एकान्त स्थान में शान्ति चित्त होकर नेत्र मूंद कर यदि आप कुछ क्षण शुभ संकल्प, शुभ विचार और शुभ भावना में विचरण करें तो आपके भीतर ज्ञान का द्वार खुलेगा और आपको महसूस होगा कि आपके मन में उत्तम संस्कारों की उत्पत्ति हो रही है, आप शिव संकल्प द्वारा उत्तरोत्तर अध्यात्म चेतना की ओर अग्रसर हो रहे हैं। यदि आप अपना प्रत्येक कार्य ईमानदारी एवं कर्तव्य परायणता के साथ करेंगे तो आपके हृदय से पश्चात्ताप, लोभ, निराशा, प्रलोभन की भावनायें, चिन्तायें आदि दूर हो जायेगी और आप आध्यात्मिक उच्च शिखर पर आरूढ़ होकर दिव्य आनन्द, प्रेम, शान्ति और निर्भयता अनुभव करेंगे।
अपनी जीवनचर्या में निम्न बातों का समावेश कर अपने जीवन को आनन्दमय बनायें –
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