उसी प्रकार पितरो के प्रति भी हमारा कर्तव्य बनता है, क्योंकि वे इस कुल और वंश के जनक होते हैं, इसलिये उनके प्रति यह मानव का कर्तव्य बनता है। कहा जाता है कि सात पीढ़ी तक के पूर्वज श्राद्ध पक्ष में अपनी क्षुधा समाप्त करने के लिये अपनी संतानो व वंशज की ओर आशातीत होते हैं।
वैसे तो सम्पूर्ण मानव जीवन ही पहेली है, जिसके बारे में जितना भी विवरण करों कम ही है। इसीलिये मानव को ईश्वर ने गुरु रूपी अनमोल रत्न प्रदान किया जिसके माधयम से वह अपनी जिज्ञासा व समस्याओं को समाप्त कर सके।
पितृ ऋण पूर्णत्व प्रदायी अमावस्य शक्ति दीक्षा से पितृ दोषों से मुक्ति मिलती है, साथ ही जीवन के वे नकारात्मक पक्ष जो पितृ दोष के कारण निर्मित होते हैं, उनकी समाप्ति होती है और साधाक अपने सांसारिक जीवन में इस सबसे बड़े ऋण से मुक्त होकर सुखी, सम्पन्न जीवन प्राप्त करता है, पितृ पक्ष में सभी साधक को चाहिये कि वे पितृ शांति हेतु साधनात्मक क्रियाओं में भाग लें, और अपने कर्तव्यों का निर्वाह कर अपने जीवन को अभिवृद्धि की ओर अग्रसर करें।
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