सूर्य की महत्ता इतनी है कि जब भगवान शिव ने सबसे महत्वपूर्ण अवतार धारण किया जब हनुमान के रूप में सूर्य को गुरु बनाया। इससे यह स्पष्ट है कि सूर्य आराध्य भी हैं और और पूर्ण समर्थ गुरु के गुण भी सूर्य में पूर्णता के साथ विद्यमान हैं। इतना ही नहीं बजरंग बली के द्वारा सूर्य को लीलने की घटना वास्तव में सांकेतिक है। उसके द्वारा साधको को यह बताया गया है कि यदि अजर-अमर नवनिधि के स्वामी और संसार भर में निर्बाध विचरण करते हुये संकट मोचक बने रहना है, तो सूर्य को पूरी तरह आत्मसात कर लिया जाये।
सूर्य और मनुष्य का विशेष सम्बन्ध है। सूर्य ग्रहण एक खगोलीय घटना होकर तीव्रतम प्रभावकारी काल खण्ड होता है, जिसका प्रभाव पूरी सृष्टि पर पड़ता है। 21 अगस्त को पूर्ण सूर्य ग्रहण का योग बन रहा है, जो तीव्र तांत्रोक्त प्रभाव से युक्त है। जैसा कि आप सभी जानते हैं कि ग्रहण में किया गया मंत्र जप सहस्त्र गुणा फलदायी होता है। उसी रूप में दीक्षा का भी महत्व है। जो अक्षुण्ण रूप से साधक के देह में स्थापित होती है और उसके रोम-रोम को जाग्रत कर उसे लक्ष्य की ओर अग्रसर करती है। मनोकामना पूर्ति सिद्धाश्रम शक्ति युक्त सूर्य ग्रहण दीक्षा यह कोई सामान्य दीक्षा नहीं है। सूर्य सभी ग्रहों में प्रमुख हैं एक ओर जहां वह मान, सम्मान, प्रतिष्ठा, ऐश्वर्य, ख्याति, ज्ञान, बुद्धि, संतान, पूर्ण आयु, स्वास्थ्य आदि का कारक है, वहीं आत्मकारक होने कारण वह आत्म कल्याण में भी सहायक है।
इस दीक्षा का दूसरा पहलू सिद्धाश्रम शक्ति से युक्त होना है, अपने आपमें सिद्धाश्रम शब्द ही पूर्णता का द्योतक है, और यदि किसी दीक्षा को सिद्धाश्रम की चैतन्य रश्मियों के साथ आत्मसात किया जाये तो उसकी व्याख्या ही क्या करना, यह तो सद्गुरुदेव का अथाह प्रेम है कि वे इतनी उच्चकोटि की दीक्षायें साधकों-शिष्यो को प्रदान कर उनके आध्यात्मिक व भौतिक जीवन को पूर्णता प्रदान करने हेतु प्रयासरत रहते हैं। इस दीक्षा से साधक सिद्धाश्रममय चेतना को आत्मसात कर सकेगा। जिसके माध्यम से उसके जीवन की अनेक मनोकामनाओं की पूर्ति हो सकेगी। साथ ही मनुष्य जीवन का यह उद्देश्य भी होता है कि वह अपनी प्रत्येक मनोकामना पूरी करता हुआ सफल जीवन व्यतीत करे और अंत में सिद्धाश्रम को प्राप्त कर सकें।
इसी हेतु परम पूज्य सद्गुरुदेव जी सूर्य ग्रहण के चैतन्य कालखण्ड में ही टैलीपैथी के माध्यम से मनोकामना पूर्ति सिद्धाश्रम शक्ति युक्त सूर्य ग्रहण दीक्षा प्रदान करेंगे। साधक अपने पूजा स्थान में 21 को रात्रि 10:18 से 11: 51 के मध्य बैठकर गुरु मंत्र का जप करें व किसी प्रकार का सनसनाहट अथवा अचानक शरीर का तापमान बढ़ने पर भयभीत ना हो, धैर्य पूर्वक गुरु का मानसिक जप करते हैं, अंत गुरु प्रार्थना कर विश्राम करें। यह एक ऐसा अवसर है जिसकी चेतना अक्षुण्ण से अभिवृद्धि व सफल भौतिक जीवन, सुख-सम्पदा, पूर्णता की प्राप्ति होगी।
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