वाराणसी का संकट मोचन, अयोध्या की हनुमान गढ़ी और नई दिल्ली तथा यमुना बाजार का हनुमान मन्दिर सारे देश में प्रसिद्ध हैं। प्रत्येक शनिवार और मंगलवार को हनुमान जी के मन्दिर में पूजा-अर्चना करने वाले भक्तों की भीड़ लगी रहती है, पर परीक्षा के दिनों में यह भीड़ परीक्षार्थी-भक्तों के कारण दुगुनी हो जाती है। अपनी कामनाओं की पूर्ति एवं अनिष्ट के निवारण के लिये हनुमान जी की जितनी पूजा, उपासना की जाती है, सम्भवतः उतनी किसी अन्य देवता की नहीं।
यह सभी जानते हैं कि रावण ने अपने बल से देव, दानव, गन्धर्व आदि सभी को आतंकित कर दिया था। देवताओं के सेनापति इन्द्र भी रावण के आगे न टिक सके। बालि, रावण से अधिक बली था, क्योंकि उसे उसके शत्रु का आधा बल स्वयमेव प्राप्त हो जाता था। परन्तु हनुमान का बल इन दोनों के संयुक्त बल से भी अधिक था। इसीलिये इन्हें महावीर कहा जाता हैं चूंकि इन्द्र ने वरदान देकर उनके शरीर को वज्र से भी अधिक कठोर बना दिया था। इसीलिये वे वज्रांग कहलाये।
उनका यही नाम कालान्तर बजरंगबली हो गया।
पुराणों से विदित होता है कि हनुमान जी पवन के पुत्र और रूद्र के अवतार हैं। देव, दानव और मानव-सृष्टि में इनका महत्त्व सर्वोच्च है। जिस समय यह जन्मे, उस समय ब्रह्मा, विष्णु, महेश, यम, वरूण, कुबेर, अग्नि, वायु, इन्द्रादि ने इनको अजर- अमर और अनेक प्रकार का वर दिया था।
जिस प्रकार ध्यान, धारणा और समाधि के प्रभाव से रूद्रादि का सर्वाधिक सम्मान है, उसी प्रकार हनुमान जी अखण्ड ब्रह्मचर्य के पालन से अधिक पूजित और प्रसिद्ध हुये हैं और इसी कारण इनकी उपासना सर्वत्र है।
उदय होते हुये प्रकाशमान सूर्य जैसे तेजस्वी, मनोरम वीरासन में स्थित, मूँज की मेखला तथा यज्ञोपवीत धारण करने वाले, लाल वर्ण की सुन्दर शिखा वाले, कुण्डलों से शोभित, भक्तों को अभीष्ट फल देने वाले, मुनियों से वन्दित, वेदनाद से हर्षित, वानरकुल के स्वामी और समुद्र को गोपद के समान लाँघ जाने वाले स्वरूप का ध्यान व्यापक या सर्वानुकूल प्रतीत होता है।
हनुमान के चरित्र में बल और बुद्धि दोनों की महिमा समाहित है, राक्षसिनी सुरसा ने लंका गामी हनुमान को कहा था- तुम्ह बल बुद्धि निधान। इसीलिये हनुमान, महावीर की संज्ञा से विभूषित हैं। इनका शरीर वज्र के समान है। अतः इन्हें बजरंगी (वज्र अंगी) कहते हैं। इनकी वीरता आत्म निष्ठ है। सामान्य अवस्था में, ये अति सामान्य हैं, पर जब कोई इन्हें इनके बल की याद दिला देता है, तो ये अपने वीर रूप में आ जाते हैं। समुद्र के किनारे सीता की खोज के अवसर पर जाम्बवन्त का कथन यही परिचय देता है-
हनुमान अपने सहज रूप में आ गये और उन्होंने तेजस्वी पर्वत राज सुमेरू के समान रूप धारण कर लिया-
माता सीता को भी अशोक वाटिका में इन्हें देख कर ऐसा ही संदेह हुआ था और उन्होंने कहा –
इतना सुनते ही ये वीर रूप में आ गये है।
अपनी सभा में बंदी हनुमान को देख कर रावण ने भी उन्हें सामान्य ही समझा था, मारा और अपमान किया था। लेकिन पूँछ में आग लगते ही उन्होंने रौद्र रूप धारण कर लिया-
वीर रस के उद्दीपन के रूप में हनुमान की जहां भी और जो भी प्रशंसा की गई है, वह सर्वथा यथार्थ और औचित्य पूर्ण है।
इनकी वीरता की प्रशंसा शत्रु और मित्र दोनों ने की है। रावण जैसे विकट पथ भ्रष्टी ने भी इनकी वीरता को मुक्त कण्ठ से स्वीकारा है- है कपि एक महा बलसीला, हनुमान की वीरता स्वयं प्रदीप्त है। जन्म काल में ही बाल सूर्य को निगल जाना, समुद्र लाँघने जैसा दुःसाहस का काम करना, रावण की सभा में निर्भय व्यवहार, लंका दहन, लंका युद्ध आदि एक से एक वीरता के प्रमाण हैं। महाभारत की लड़ाई में इन्होंने अर्जुन के रथ की ध्वजा पर आसन जमा कर सहायता की थी, जिससे अर्जुन कपि ध्वज कहलाये-
बल निधान हनुमान का दूसरा पक्ष बुद्धि निधान का है। शास्त्रों में स्थान-स्थान पर बल के साथ-साथ इनकी बुद्धि की भी सराहना की गयी है। हनुमान चालीसा में इन्हें ज्ञान और गुण का समुद्र कहा गया है-
जय हनुमान ज्ञान गुन सागर।
राम चरित मानस के सुन्दर काण्ड के मंगला चरण में हनुमान की वन्दना के प्रसंग में-
अतुलितबलधामम्, ज्ञानिनामग्रगण्यम् सकलगुणनिधानम्
इन्हें बुद्धि विधाता तो कहा ही है, साथ ही साथ कहा है-
जयति वेदान्तविद विविध-विद्या-विशद,
वेद-वेदांगविद ब्रह्मवादी ।
ज्ञान-विज्ञान-वैराग्य-भाजन विभो,
विमल गुण गनति शुकनारदादी।।
जयति निगमागम व्याकरण करणलिपि,
काव्यकौतुक-कला-कोटि-सिंधो।
महानाटक-निपुन, कोटि-कविकुल-तिलक,
गानगुण-गर्व गंधर्व-जेता।।
समय अनुसार सूझ-बूझ के लिये हनुमान प्रसिद्ध हैं। सीता खोज के प्रसंग में ये पेड़ पर छिप जाते हैं। रावण के सारे व्यवहार को और सीता के प्रत्युत्तर को प्रकट नहीं करते। विरह अधिकता की अवस्था में मुद्रिका गिरा देते हैं। इन्हें बुद्धि और बल में निपुण देख कर ही माता सीता ने कहा –
इनके नैपुण्य को देख कर ही श्रीराम ने इन्हें जानकी के लिये संदेश वाहक बनाया। दूत का काम बड़ा ही बुद्धि और विवेक पूर्ण होता है। इस कसौटी पर भी हनुमान खरे उतरते हैं। हित और मनोहारिता में अग्रणी हनुमान के मित्र और शत्रु दोनों का लाभ होता रहा, सुग्रीव और विभीषण दोनों उपकृत हुये। हनुमान की दृष्टि गुण ग्राहिणी है। प्रथम दर्शन में ही इन्होंने श्रीराम को पहचानकर स्वामी बना लिया-
इनकी प्रत्युत्पन्नमति अनोखी है। समय की परख, तदनुकूल रूप परिवर्तन, लघु और विशाल बना लेना इनकी विपुल बुद्धि का परिचायक है। इसीलिये सुरसा ने कहा था-
विभीषण से मैत्री में तथा लक्ष्मण के प्राण रक्षार्थ बूटी लाने के समय उपस्थित दुविधा के समय हनुमान ने उचित निर्णय लिया, जो उनकी विपुल मति का परिचायक है।
दूत रामराय को कह कर हनुमान के सेवक भाव को प्रशस्ति किया गया है। ये सेवकों के आदर्श हैं। अपने स्वामी के हित साधन के लिये ये सदा सावधान हैं। इनके लिये न कहीं दुर्गम है और न कुछ कठिन ही। भगवान श्रीराम ने कहा कि-
अर्थात् हनुमान को भी अपने ही समान भ्राता के रूप में सम्बोधित किया है। रावण से तो स्पष्ट ही कहा था-
इन्होंने श्रीराम की किसी भी आज्ञा का न उल्लंघन ही किया और न उनकी उन पर आँच ही आने दी। सच्चा सेवक वही है, जिसकी सेवा साहेब को मूक कर दे-
जिस प्रकार श्री रामचन्द्र जी एवं श्रीकृष्ण जी विष्णु के अवतार हैं, उसी प्रकार श्री हनुमान जी शिव के ग्यारहवें रूद्र के अवतार हैं। शिव पुराण में हनुमान जी के शिवा अवतार, रूद्रा अवतार, रूद्रांश, कपीश्वर आदि नामों का उल्लेख है।
त्रेता युग में राक्षसों का वध करने के लिये जब विष्णु अंश से श्रीराम का अवतार हुआ तो उनकी सहायता के लिये शिव के अंशभूत हनुमान का भी अवतार हुआ। शास्त्रों के अनुसार किसी भी अवतार के अनेक हेतु होते हैं। अतएव अनेक कथायें प्रचलित हैं। त्रेतायुग के बाद द्वापर युग में महाभारत के समय अर्जुन के रथ के ऊपर ध्वज के समीप श्री हनुमान के उपस्थित रहने की कथा सर्वविदित है। शास्त्र अनुसार अश्वत्थामा, बलि, व्यास, कृपाचार्य, विभीषण, परशुराम तथा हनुमान, ये सात चिरंजीवी माने गये हैं। ब्रह्मा, विष्णु, महेश, श्रीराम, श्रीकृष्ण, दुर्गा, काली तथा भैरव देवों की उपासना की जाती है, परन्तु कलियुग के इस प्रारम्भिक चरण में हनुमान, दुर्गा तथा भैरव देव की मान्यता विशेष है। इसमें कोई सन्देह नहीं कि हनुमान जी ऐसे देव हैं, जो केवल भक्ति भाव से शीघ्र ही प्रसन्न हो जाते हैं। जिस किसी पर हनुमान जी प्रसन्न हो जाते हैं, उसे बल-बुद्धि आदि से समृद्धि करते हैं।
जीवन में हर कोई चाहता है कि उसे ऐसी शक्ति का आधार प्राप्त रहे, जिससे कि हर संकट के समय उसे सहायता प्राप्त हो और इसका बड़ा उपाय किसी देवत्व शक्ति की आराधना ही है। जब भक्त किसी भी देवत्व शक्ति को अपने आराध्य देव के रूप में स्तुति करता है, तो उसे स्वतः ही उस देवता का संरक्षण प्राप्त होने लगता है। उस देवता की शक्तियां व विशेषता साधक के रोम-रोम स्थापित होने लगती हैं, और वह अपने लक्ष्य की ओर तीव्रता से बढ़ने लगता है।
कलयुग में श्री हनुमान ही ऐसे देव हैं, जो शीघ्र प्रसन्न होकर सभी मनोकामनाओं को पूर्ण करते हैं। ये थोड़ी सी भी उपासना में प्रसन्न हो जाते हैं। श्री हनुमान की पूजा, साधना में बहुत लम्बा-चौड़ा विधि-विधान की आवश्यकता नहीं होती है। सामान्य जन हनुमान चालीसा, बजरंग बाण, सुन्दर काण्ड, स्तोत्र इत्यादि के द्वारा नित्य श्री हनुमान की आराधना करते हैं, जिससे उनका जीवन निर्विघ्न रूप से गतिशील बना रहे।
साधक जब श्री हनुमान की चैतन्य पारद विग्रह अपने पूजा स्थान में स्थापित कर लें, तो साक्षीभूत स्वरूप में भगवान श्री हनुमान की बल-बुद्धि, ज्ञान, शक्ति, ऊर्जा से संचारित होता रहता है। क्योंकि पारद को शक्ति का तेजस्वी चेतना का प्रवाह कहा गया है।
पारद ब्रह्माण्ड का वह दिव्यतम पदार्थ है, जिसका स्पर्श ही भाग्य का द्वार खोल देता है, जो शक्ति का चेतना पुंज रूप है और यही पारद यदि रूद्र अवतार श्री हनुमान के विग्रह रूप में साधक पूजा स्थान में स्थापित कर देता है, तो जीवन के हर तरह के संकटों का, कष्टो और शत्रुओं पर पूर्ण विजय श्री प्राप्त करता ही है।
श्री बजरंगबली शुभ सिन्दूर रंग में आभूषित होने का तात्पर्य उनकी चेतना को मंत्र जाप विग्रह के माध्यम से अपने जीवन की अशुभता को समाप्त करना जीवन में वीरता, पराक्रम, बल, निर्भयता और हर कार्य को दक्षता से सम्पन्न करना इस तरह के सुसंस्कार हम अपने बालकों में स्थापित करें, तो निर्भय होकर उच्च शिक्षा प्राप्त करने में सफल होते हैं और हमारी संतान जीवन संग्राम के हर क्षेत्र में विजयश्री प्राप्त करती ही है।
साथ ही हनुमान विघ्नों का नाश और आसुरी शक्तियों से सुरक्षा प्रदान करने वाले देव हैं, जिस घर में ऐसे दिव्यतम चैतन्य हनुमान पारद विग्रह का स्थापन होता है, वहां भूत-प्रेत, पिशाच, नजर दोष, टोना- टोटका का कोई प्रभाव नहीं पड़ता है।
तीन पत्रिका सदस्य बनाकर पूर्ण चैतन्य सर्व शक्ति प्रदाता हनुमान विग्रह अपने पूजा स्थान में स्थापित करने से जीवन का चहुँमुखी विकास संभव हो सकेगा।
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