अनेक जन्म की तृष्णाएं, वासनाएं, कर्म, पाप राशि, पुण्य कार्य मिलकर ही एक नये जन्म का आधार बनते हैं और केवल व्यक्ति के अपने कर्म ही नहीं, साथ में जन्म-जन्मान्तरों के पूर्वजों के कर्म भी उसके साथ जुड़े होते हैं। इसी कारण व्यक्ति को अपने जीवन में अनेक प्रकार की बाधाएं, असफलताएं देखने की बाध्यता होती है।
भारतीय दर्शन इस बात की पुष्टि करता है, कि हमारा जीवन, पूर्व जीवन से पूर्णतः जुडा़ हुआ है। शरीर के बाद भी आत्मा क्रमिक विकास की ओर गतिशील रहती है, अब तो वैज्ञानिक भी इस बात को स्वीकार करने लगे हैं। अनेक जीवन के कार्यों का प्रभाव तो निश्चित रूप से पड़ता ही है और उसी के आधार पर हमें पाप-पुण्यों को भोगना पड़ता है।
पापहारिणी का तात्पर्य है- इस जीवन के साथ-साथ पूर्वजन्म के पाप कर्मों को समाप्त कर देना, उन पर अंकुश लगा देना, जीवन के अधूरेपन को, अधंकार पूर्ण क्षणों को दुःख और दारिद्रय से अनुपीडि़त दुर्भाग्य से दूषित रेखा को सौभाग्य में बदल देना तथा जीवन पथ में आये विघ्न देने वाले अवरोधों को समाप्त कर देना और जब ऐसा हो जायेगा, तो सफलता स्वयं आपके कदम चूमेगी, फिर कोई दुःख जीवन में कैसे रह सकता है, फिर दरिद्रता, निर्धनता कैसे रह सकती है फिर कोई अभाव रहेगा ही नहीं।
यदि इसी जीवन में पूर्ण होना है, सफल होना है, अपने जीवन को ऊर्ध्वगामी बनाना है तथा समस्त दोष बाधाओं को समाप्त कर भौतिक और आध्यात्मिक जीवन को प्राप्त करना है और एक मानवीय जीवन के लिए अपेक्षित समस्त सुख-भोगों को साधक को पाना है, तो ‘पांपाकुशा’ से बढ़कर सर्वग्रही और कोई प्रयोग नहीं।
यह साधना अपने-आप में श्रेष्ठ और अद्वितीय है, इसके जैसा तीक्ष्ण प्रभावकारी प्रयोग, जो आगे-पीछे के समस्त पापों से मुक्त कर जीवन को प्रभावशाली और सर्वश्रेष्ठ बना दें, इस साधना को बार-बार सम्पन्न करना है। क्योंकि यह ज्ञात नहीं है किन-किन जन्मों के दोष हमारे ऊपर भार बनकर चल रहे है। एक-एक कर जीवन के अवरोधों को हटाना ही पापहारिणी महामेद्या साधना है।
शारदीय नवरात्रि के शक्ति पर्व की पूर्णता के साथ 02 अक्टूबर के दिन या किसी भी सोमवार को सांध्य बेला से इस साधना को सम्पन्न करना चाहिए। साधक सायं काल साधना करने से पूर्व स्नान आदि से निवृत्त होकर पीली धोती पहनें और गुरु चादर ओढ़ कर काले आसन पर पश्चिम दिशा की ओर मुंह कर बैठ जाये। अपने सामने चौकी पर एक काला वस्त्र बिछाकर किसी प्लेट में पापाकुंशा यंत्र को स्थापित कर दें। उसके पश्चात् इस यंत्र को जल में स्नान कराकर कुंकुम का तिलक लगाएं।
सर्व दोष हारिणी महामेद्या गुटिका को भी यंत्र के सामने स्थापित कर दें और उसका भी कुंकुम, अक्षत, पुष्प आदि से पूजन करें। फिर धूप और दीप दिखाकर यंत्र और गुटिका का पूजन सम्पन्न करें।
साधक आसन पर खड़े होकर के ऐं श्रीं ह्रीं क्लीं का क्रमशः पश्चिम, उत्तर, पूर्व और दक्षिण चारों दिशाओं की ओर मुख करके पापमोचिनी माला से एक-एक माला मंत्र जप सम्पन्न करें। इसके बाद पहले की तरह पश्चिम की ओर मुख करके, आसन पर बैठकर मूल मंत्र का 5 माला मंत्र-जप करें।
फिर एक माला गुरु मंत्र का जप करें। जप समाप्ति के बाद समस्त सामग्री को दूसरे दिन किसी नदी में विसर्जित कर दें तथा वापिस घर की ओर लौटते समय मुड़कर नहीं देखें। फिर घर आकर, हाथ-पैर धोकर तीन बार आचमन करें।
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