भगवती लक्ष्मी सृष्टि के पालनकर्ता विष्णु की आधारभूता शक्ति, दस महाविद्याओं में एक प्रमुख कमला महाविद्या और त्रिगुणात्मक स्वरूप में भगवती महालक्ष्मी के रूप में सम्पूर्ण विश्व में वन्दनीय हैं, क्योंकि पूरे विश्व का आधार भगवती लक्ष्मी हैं, जो क्षीरसागर से उत्पन्न, समस्त संसार का पालन-पोषण करने वाली, जीवन में समस्त सुख-सौभाग्य, आनन्द और पूर्णता प्रदान करने वाली, जीवन में समस्त सुख- सौभाग्य, आनन्द और पूर्णता प्रदान करने वाली महादेवी हैं, जिसकी आराधना सांसारिक व्यक्ति करते ही हैं।
साथ ही यह विचारणीय तथ्य है कि, ऐसी महादेवी के होते हुये भी हममें से अधिकांश व्यक्ति गरीब, निर्धन, असहाय, अभाव ग्रस्त हैं। जिनके पास पूर्ण उपयोग में आने वाली वस्तुओं का भी अभाव है, पर इसका कारण क्या है? मनुष्य भी इसके बारे में अज्ञानता ही स्पष्ट करता है। यह बात तो निर्विवाद सत्य है, कि मात्र परिश्रम से जीवन में पूर्णता और सम्पूर्णता नहीं आ सकती। केवल और केवल परिश्रम से धन की, लक्ष्मी की प्राप्ति नहीं हो सकती। धन की प्राप्ति तो सुभाग्य, कर्म व दैवीय कृपा स्वरूप में महालक्ष्मी के मूल तत्व को आत्मसात करने से ही हो सकती है।
केवल कुंकुम, अक्षत की पूजा से, केवल आरती उतारने से लक्ष्मी की प्राप्ति नहीं हो सकती, ना ही हजार-हजार घी के दीपक जलाकर हम भगवती लक्ष्मी को प्रसन्न कर सकते हैं, उनके सामने भोग लगाकर, घण्टा-घडि़याल बजा कर हम देवी की अनुकूलता प्राप्त नहीं कर सकते, ऐसा तो हम कई वर्षों से करते आ रहें हैं, कई वर्षों से दीपावली की रात्रि को दीपकों की जगमगाहट करते आ रहे हैं, आतिशबाजी देखते आ रहे हैं, भगवती की नयी प्रतिमा स्थापित करते आ रहे हैं। इन सब क्रियाओं से लक्ष्मी के मूल स्वरूप को नहीं आत्मसात किया जा सकता है। इसके लिये तो आवश्यक है कि हम देवी को चैतन्य स्वरूप में अपने घर में, अपने जीवन में महत्वपूर्ण स्थान दें।
यदि हमें वास्तविक रूप में लक्ष्मी से पूर्णता युक्त होना, अपने जीवन के अभाव को वास्तविक रूप से समाप्त करना है। जीवन में उच्चता प्राप्त करना है, तो हमें साधनात्मक दृष्टि कोण से श्रेष्ठतम क्रियाओं का आवलम्बन लेना ही पड़ेगा। उच्चकोटि की साधनात्मक क्रियाओं द्वारा भगवती महालक्ष्मी का वरद हस्त प्राप्त कर लें। ऐसे यंत्रों, विग्रहों की चेतना नित्य आत्मसात कर सकें, जिससे प्रतिदिन लक्ष्मी तत्व की ऊर्जा, चेतना की प्राप्ति होती रहे।
लक्ष्मी प्राप्ति के लिये यंत्रराज श्री यंत्र का सर्वाधिक महत्व है। शास्त्रों में श्री यंत्र को लक्ष्मी का शरीर कहा जाता है। श्री यंत्र के संदर्भ में महालक्ष्मी स्वयं कहती हैं कि- श्री यंत्र मेरा आधार है, मेरी आत्मा है, जहां पर भी इस यंत्र का विधि- विधान सहित पूजन, आराधना, आवाहन होता है, वहां मैं आयु, आरोग्य, सौभाग्य, गृहस्थ सुख, संतान स्वरूप में निश्चित रूप से वृद्धि करती हूं। प्राण-प्रतिष्ठित चैतन्य श्री यंत्र स्थापित करने मात्र से ही सफलता प्राप्त होने लगती है। सभी विद्वानों ने लक्ष्मी प्राप्ति का सबसे उपयुक्त साधन श्री यंत्र को माना है। यही कारण है कि पूरे भारत वर्ष में जिन्हें भी यह ज्ञान है, वे दीपावली की रात्रि चैतन्य प्राण प्रतिष्ठित सिद्ध श्री यंत्र की स्थापना कर पूजन, आराधना सम्पन्न करते ही हैं।
धन-सम्पत्ति के अधिपति श्री कुबेर हैं। ये यक्षपति हैं और समस्त संसार की भौतिक-सम्पदा का स्वामित्व इन्हें प्राप्त है, जो धन-सम्पदा की, वैभव-विलास की कामना रखते है, उनके लिये कुबेर यंत्र की पूजा अत्यन्त कल्याणकारी है, यह यंत्र कुबेर देवता की प्रतिमा के तुल्य प्रभावशाली है। कुबेर यंत्र को दरिद्रता निवारण कहा गया है, अर्थात् जिस घर में कुबेर यंत्र की स्थापना होती है, वहां धन की कोई कमी नहीं हो सकती। इस यंत्र को स्थापित करने से भौतिक दृष्टि से कोई अभाव नहीं रहता, घर में प्रसन्नता का वातावरण बना रहता है। आर्थिक उन्नति तथा व्यापारिक सफलता के लिये तो यह यंत्र रामबाण है। कुबेर धन के कोषाध्यक्ष हैं।
शास्त्रों में मान्यता है कि लक्ष्मी प्रतिमा के सम्मुख श्री यंत्र की स्थापना जितनी आवश्यक है, उतनी ही श्री यंत्र के पास कुबेर यंत्र की अनिवार्यता है। क्योंकि धन की प्रचुर मात्रा में उपलब्धता बनी रहे, इसके लिये आवश्यक है कि कुबेर की आराधना की जाये। कहा जाता है कि लंकाधिपति रावण ने महादेव से कुबेर यंत्र प्राप्त किया था। उसी के फल स्वरूप उसका राज्य पूर्ण समृद्ध, वैभवपूर्ण हो सका।
शीघ्र धन प्राप्ति के लिये कनकधारा यंत्र का पूजन विशेष प्रभावी है, इस यंत्र की विशेषता है कि इसके प्रभाव से अर्थोपार्जन के मार्ग स्वतः ही प्रशस्त होते हैं, जिससे व्यक्ति अल्प समय में ही अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति में सफल होता है। वर्तमान समय में इसकी आवश्यकता और अधिक बढ़ गयी है, क्योंकि सभी कार्य सही समय पर होना आवश्यक है, उसी तरह धन का अर्जन भी सही समय पर हो, कोई व्यक्ति 50-60 वर्ष की उम्र में धन की प्राप्ति करके भी क्या कर लेगा, जब वह उसका उपभोग भी नहीं कर सकता है। इसी तरह यदि युवा अवस्था में ही धन की प्रचुर मात्रा में उपलब्धता हो तो व्यक्ति अपनी इच्छाओं को मूर्त रूप देने में सफल होता है।
इस यंत्र के प्रभाव से निरंतर कार्य में वृद्धि, कर्मठता, श्रेष्ठता, सुफल की स्थितियों में वृद्धि के साथ- साथ लक्ष्मी स्वरूप में धन की वर्षा प्राप्त होती है। जिसके फल स्वरूप व्यक्ति पर कोई कर्ज, ऋण नहीं रहता, यदि कोई व्यक्ति ऋण के बोझ तले दबा है, तो शीघ्र ही वह कर्ज से मुक्ति पा जाता है। इसे स्थापित करने पर निकम्मा व्यक्ति भी धनोपार्जन करने लगता है।
इस प्रकार के त्रिगुणात्मक शक्ति युक्त यंत्रों की स्थापना प्रत्येक घर में अनिवार्य रूप से होनी चाहिये। जिससे कि भगवती महालक्ष्मी चिर-स्थायित्व रूप में विराजमान रहें। दीपावली पर्व पूर्ण विजयश्री पर्व है, अर्थात् धनहीनता, कष्ट, परेशानी, पीड़ा, दुःख और अपनी न्यूनताओं पर विजय प्राप्त करना है। इस दिवस पर व्यक्ति महालक्ष्मी का विशेष पूजन सम्पन्न करता है, अतः रूप चतुर्दशी दिवस पर गणपति लक्ष्मी का श्री सूक्त मंत्रों व रूद्राभिषेक की क्रिया से पूर्ण पूजन हो साथ ही श्री यंत्र, कुबेर यंत्र और कनकधारा यंत्र का साधक द्वारा पूर्ण शुद्ध भाव के साथ अपने स्वयं के गोत्र और नाम राशि अनुसार चैतन्य करने से उसे ही पूर्ण-पूर्ण सभी स्वरूपों में सुलाभ की प्राप्ति होना प्रारम्भ हो पाती है। ऐसा ही मंत्र जप और पूजन दीपावली की सांध्य बेला में भी करने से अक्षुण्ण लाभ की प्राप्ति होती है।
जीवन के सभी अभावों को समाप्त कर पूर्णतः लक्ष्मीवान बनने की साधनात्मक क्रिया सहस्त्र लक्ष्मी की प्राप्ति हेतु महा त्रि-शक्ति यंत्र पूजन व रिद्धि-सिद्धि शुभ-लाभ प्रदाता गणेश-लक्ष्मी विग्रह की स्थापना तथा सर्व श्रीफल का विधान दीपावली के चैतन्य मुहुर्त में प्रत्येक साधक सम्पन्न कर आनन्द, सुख, भोग, विलास, सौन्दर्य, रस, आभूषण, वस्त्र, कीर्ति, यश, गौरव, सन्तान सुख, भू-भवन, वाहन आदि से अपने जीवन को आपूरित कर सकेगा।
इस साधनात्मक क्रिया को सम्पन्न कर प्रत्येक साधक- साधिकायें जीवन में धन के अभाव को पूर्णता समाप्त करने में समर्थ हो सकेंगे।
सद्गुरुदेव नारायण के आशीर्वाद् और परम पूज्य सद्गुरुदेव के आज्ञा अनुसार प्रत्येक साधक को यह विशिष्ट सहस्त्र लक्ष्मी त्रि-शक्ति पूजन दीपावली दिवसों में सम्पन्न करना श्रेयष्कर होता है।
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