मानव जीवन अनेक विविधाओं से युक्त है, जिस प्रकार ज्योतिष गणना, नक्षत्र, ग्रहों का प्रभाव मानव जीवन में पड़ता है, उसी प्रकार और भी अनेक कारण होते हैं, जिनका प्रभाव मानव जीवन में पड़ता है, ये अलग बात है कि हम इनमें से कुछ ही के बारे में जानते, सुनते हैं, और कुछ पर ही ध्यान दे पाते है, उन तथ्यों पर कुछ क्रियायें सम्पन्न कर पाते हैं।
इन्हीं तथ्यों में पितृ ऋण का मानव जीवन पर महत्वपूर्ण प्रभाव है, जिसके कारण सफलता, असफलता, संतान सुख, सुसंस्कार, वंश वृद्धि, गृहस्थ सुख मान-सम्मान, पद, प्रतिष्ठा आदि प्रभावित होता है। साथ ही जिन्होंने हमें जन्म दिया, हमारा पालन-पोषण किया, हमारी उन्नति के लिये प्रयत्नशील रहे और अपने रक्त को देकर हमें सक्षम और योग्य बनाया। इसलिये उनके प्रति श्रद्धा, सम्मान व्यक्त करने से हमारे जीवन की सुस्थितियों में निश्चिन्त रूप से वृद्धि होती है। हमारे पूर्वज जिनका देहान्त हो गया है, उनका श्राद्ध करना पुत्र का कर्तव्य है, आश्विन कृष्ण पक्ष अमावस्या को सभी पितरो का श्राद्ध पूजन किया जा सकता है, इस दिन श्राद्ध करना उपयुक्त माना गया है।
श्राद्ध के दिन शुद्ध पवित्र होकर भोजन बनायें और पूर्वजों के प्रति श्रद्धा व्यक्त कर यह प्रार्थना करें कि आप हमें अपना अभीष्ट आशीर्वाद् प्रदान कर जीवन के महाभारत में हमारे सहायक बने, आपकी कृपा से हम पृथ्वी पर जन्म लेकर मानव जीवन के कर्तव्यों का निर्वाह करने योग्य बन पाये, इसके लिये हम आपके प्रति विशेष रूप से कृतज्ञ हैं। शुद्ध भाव से भोजन बना लेने के बाद घर के मुखिया को हाथ में जल व कुशा लेकर निम्न संकल्प बोलना चाहिये।
ऊँ विष्णुर्विष्णुर्विष्णु श्री मद् भगवते महा पुरूषस्य
विष्णोराज्ञया प्रवर्तमानस्य अद्य ब्रह्मणः द्वितीये परार्धे श्री
श्वेतवाराह कल्पे वैवस्वतमन्वन्तरे अष्टाविंशतितमे
कलियुगे कलिप्रथमचरणे भारतवर्षे जम्बूद्वीपे
आर्यावर्तान्तर्गत ब्रह्मावर्तैकदेशे श्रीमन्नृपविक्रमराज्यातीत
संवत्सरे संवत द्विसहस्त्राधिक तमे वर्षे अमुक नाम संवत्सरे
अमुक ऋतौ अमुक मासे अमुक पक्षे अमुक वासरे अमुक
तिथौ एवं ग्रहगुणविशेषणविशिष्टायां शुभपुण्य तिथौ
ममाऽत्मनः श्रुतिस्मृतिपुराणोक्तफलप्राप्त्यर्थ (अपसव्यं
दक्षिणाभिमुखः) अमुक गोत्रणामस्मन्मातामह
प्रमातामहवृद्धप्रमातामहानां सपत्नीकानां
वसुरुद्रादित्यस्वरूपाणां, जन्मजन्मान्तरे
क्षुधातृषादिदोषपरिहारार्थ पितृलोके अक्षयसुख स्वर्लोके
सद्गतिप्राप्त्यर्थ तद्दिननिमित्तं यथासंख्यं ब्राह्मणान्
श्राद्धभोजनेनाहं तर्पयिष्ये।
इसके बाद भगवान विष्णु को पका हुआ भोजन और तुलसी के पत्ते एक थाली में रखें, तत्पश्चात धेनु मुद्रा प्रदर्शित करते हुये निम्न मन्त्र से भगवान विष्णु को भोग लगावे।
ऊँ नाभ्याऽआसीदन्तरिक्ष (गूं) शीर्ष्णो द्यौः समवर्तत।
पदभ्याम्भूमिर्द्दिशः श्रो़त्रात्तथा लोकां। अकल्पयन् ।।
श्राद्ध में यह नियम है कि पांच स्थानों पर थोड़ा-थोड़ा भोजन रखे, जिसे पंच-ग्रास कहा जाता है और निम्न मन्त्र बोलते हुये प्रत्येक ग्रास पर जल चढ़ावे।
1- गौ ग्रास समर्पण 2- श्वान ग्रास समर्पण 3- काग ग्रास
4- कीट ग्रास 5- अतिथि ग्रास
इसके बाद थोड़ा सा भोजन ब्राह्मणों अथवा कोई भी भूके व्यक्ति को बायीं ओर रखकर निम्न मंत्र से दें।
नागबली सर्पेभ्यो नमः
ऊँ नमोऽस्तु सर्प्पेस्यो ये के च पृथिवीमनु ।
ये अन्तरिक्षे ये दिवि तेभ्यः सर्प्पेभ्यो नमः ।।
अब अग्नि को भोजन और घृत का भोग लगायें-
ऊँ चत्वारि श्रृंडगा त्रयो अस्य पादा द्वे शीर्षे
सप्त हस्तासो अस्य
त्रिधा बद्धो वृषभो रोरवीति महो देवो
मन्तर्या आ विवेश।।
हाथ में जल लेकर निम्न मंत्र का उच्चारण कर जल को भूमि पर छोड़े, अमुक शब्द के स्थान पर, जिसके प्रति श्राद्ध व्यक्त करना है, उनका नाम लें-
इहाद्य संकल्पित तिथौ (अपसव्यं) मम
अमुक शर्मन् पितृणां तृप्त्यर्थं ब्राह्मणा। अद्य
कृतसंकल्पसिद्धिरस्तु। (जल छोड़ें)
हाथ में जल लेकर नमस्कार करे।
इसके बाद हाथ में जल लेकर ब्रह्मार्पण करें।
ऊँ ब्रह्मार्पणं ब्रह्महविर्ब्रह्माग्नौ ब्रह्मणा हुतम्
ब्रह्मै व तेन गन्तव्यं ब्रह्मकर्मसमाधिना।
ऊँ तत्सत् बह्मार्पणमस्तु।
जल छोड़े और नमस्कार करके कहे-
ब्राह्मणों आरोगो!
ब्राह्मण तीन ग्रास भूमि पर रखे और
निम्न मन्त्र का उच्चारण करें।
ऊँ भूपतये नमः स्वाहा। ऊँ भुवनपतये
नमः स्वाहा। ऊँ भूतानांपतये नमः स्वाहा।
फिर हाथ में जल लेकर भोजन के
चारों ओर निम्न मन्त्र पढ़ते हुये जल प्रदक्षिणा दे।
अन्नं ब्रह्म रसो विष्णुर्भोक्ता देवो महेश्वरः।
एवं ध्यात्वा द्विजो भुक्ते सोऽन्नदोषैर्न
लिप्यते।।
अन्तश्चरति भूतेषु गुहायां विश्भतो मुखः।
त्वं ब्रह्म त्वं यज्ञस्त्वं वषट्कारस्त्वमोड्कारस्त्वं
विष्णोः परमं पदम्।।
प्रत्येक मन्त्र के साथ पांच छोटे-छोटे
ग्रास स्वयं ग्रहण करें।
ऊँ प्राणाय स्वाहा। ऊँ अपानाय स्वाहा।
ऊँ व्यानाय स्वाहा। ऊँ समानाय स्वाहा।
ऊँ उदानाय स्वाहा ।
फिर बायें हाथ से आंखों में जल स्पर्श करें।
इसके पश्चात ब्राह्मण भोजन करे और मृतक व्यक्ति को श्रद्धांजलि व्यक्त करें कि उसकी आत्मा को शांति मिले और उसकी मुक्ति हो।
इस विधान में शुद्ध भाव से भोजन अर्पण व मंत्र उच्चारण में त्रृटि दोष के निवारण हेतु विशेष शक्तिपात दीक्षा से पूर्ण फल प्राप्त होता है।
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