मर्यादा पुरूषोत्तम राम का सम्पूर्ण जीवन प्रेरणा का स्वरूप है। 14 वर्ष के वनवास की कठिन परिस्थितियों में भी उन्होने धैर्यवान, ओजस्वी, तेजस्वी व्यक्तित्व का परिचय देकर धर्म के अनुरूप जीवन व्यतीत कर सभी विकट परिस्थितियों पर विजय प्राप्त की, जिसके फलस्वरूप उन्हें मर्यादा पुरूषोत्तम कहा गया।
भगवान श्रीराम का जीवन आदर्श युक्त व अपार गुणों से पूर्ण है, वे वीर्यवान्, पीन बाहु, विशाल वक्ष, उदार मन, गम्भीर, ओजस्वी, संहारकर्ता एवं प्रजा पालक हैं, वे धर्म निष्ठा, सत्य वाचक और लोक कल्याणकारी भावों से युक्त हैं। श्रीराम सम्पन्नता, धर्म रक्षा, धर्म के अनुकूल आचरण करने वाले गुणों से विभूषित और वेद, वेदांग, धनुर्वेद एवं समस्त शास्त्रों के ज्ञाता हैं। वे समुद्र की भांति गम्भीर, हिमालय के समान धैर्यवान, चन्द्रमा के समान मनोहर, क्षमा में पृथ्वी के सदृश, त्याग में कुबेर और सत्य में साक्षात् धर्मराज हैं।
भगवान श्रीराम का जीवन करूणा, दया और बिना किसी भेद-भाव के प्राणी मात्र के महत्व और कल्याण का मार्ग है। शिलारूपी अहिल्या को अपने चरण कमल की धूल से अभिशाप मुक्त किया। उन्होंने शबरी के जूठे बेर खाने में जहां संकोच नहीं किया वहीं निषाद को गले लगाकर सभी जनमानस के उद्धार का संदेश दिया। वाल्मीकि जी ने गुणावली में मानव के लिये जिन आदर्शों को निरूपित किया है। वे सभी गुण श्रीराम के व्यक्तित्व में पुंज रूप में समाहित है।
श्रीराम के द्वारा स्थापित आदर्शो, गुणों में माता सीता का विशेष योगदान है, अथवा यह कहना भी औचित्य है कि सभी क्रियाओं के मूल में भगवती सीता ही हैं। जीवन की प्रत्येक अवस्था में माता सीता ने प्रभु राम को पूरा सहयोग प्रदान किया यहां तक कि जब भगवान राम 14 वर्षो के लिये वनवास जा रहे थे, तब माता ने राजसी सुख-सुविधाओं का त्याग कर श्रीराम के साथ वन जाने का निश्चय किया और प्रभु राम के सुख-दुख की संगिनी बनी, और लंका में हजारों वेदना, पीड़ा, दुख सहन करने के पश्चात् भी अपने स्वामी से आत्मिक भाव से जुड़ी रहीं हैं। उनका विचार तनिक भी विचलित ना हुआ, अशोक वाटिका में असहनीय पीड़ा में भी वे प्रत्येक क्षण राम नाम की ही रट लगाती रहीं। रावण के अनेक प्रलोभन, भयभीत करना जैसे उपाय भी उन्हें जरा सा भी डग-मग ना कर सका।
आज प्रत्येक भारतीय के परिवार में, घर में अनेक विकट परिस्थितियां देखने को मिलती है, जिसका मूल कारण यही है, कि मानवीय विचारों में मौलिक ह्रास हुआ है। व्यक्ति इतना अधिक, स्वार्थी, धूर्त हो गया है कि वह अपने सिवा किसी और के बारे में सोच भी नहीं पाता। आवश्यकता है कि हमारे मौलिक विचारों में जन-कल्याण की भावना जाग्रत हो, साथ ही हम धर्म अनुरूप जीवन में आचरण कर सके। भगवान राम के कार्यवाहक श्री हनुमान के बिना तो सारा वर्णन अधूरा ही है, प्रभु राम और हनुमान को दो स्वरूपों में देखा ही नहीं जा सकता। भगवान श्रीराम की चेतना और श्री हनुमान के बल से जीवन में वह सब कुछ प्राप्त किया जा सकता है, जिसकी आकांक्षा मानव अपने सांसारिक जीवन में रखता है।
इन्हीं स्वरूपों को आत्मसात करने हेतु राम जानकी विवाह के पंच शक्ति दिवसों पर अनेक विशिष्ट साधनायें सम्पन्न करने से सांसारिक जीवन सोलह संस्कारों के साथ-साथ श्रेष्ठ कला पूर्ण भी निर्मित होता है। बंसत पंचमी, महाशिवरात्रि जैसे श्रेष्ठ दिवसों पर शुभ श्रेष्ठ कार्य करने से वह शुभता और श्रेष्ठता जीवन में मील का पत्थर स्वरूप में स्थापित होती है। श्री राम जानकी विवाहोत्सव से मित्र सप्तमी तक उक्त साधनायें करने से जीवन की असुरमय स्वरूप स्थितियां समाप्त होती हैं।
सांसारिक जीवन में बल-बुद्धि के संयोग से ही श्रेष्ठ सफलता प्राप्त हो सकती है, मन और शरीर तेजस्वी, बलवान व निरोगी हो तो व्यक्ति श्रेष्ठता शीघ्र ही प्राप्त कर सकता है। निरोगी मन से शरीर स्फूर्तिवान होता है, तो वहीं शारीरिक रूप से स्वस्थ रहने पर मन एकाग्रचित होकर कार्य कर पाता है। इसलिये भौतिक जीवन में बल-बुद्धि, आत्मविश्वास, धैर्य की नितान्त आवश्यक है। जो साधक प्राप्त कर सकता है श्री हनुमान के माध्यम से।
23 नवम्बर या किसी भी गुरुवार को प्रातः काल स्नान आदि से निवृत्त होकर स्वच्छ वस्त्र धारण कर पूजा स्थान में उत्तर दिशा की ओर मुंह कर लाल आसन पर बैठ जायें। सद्गुरुदेव का पंचोपचार पूजन कर एक माला गुरु मंत्र का जप करें। उसके बाद तांबे की प्लेट में बल बुद्धि प्रदायक हनुमान कवच को स्थापित कर सिंदूर और पंचोपचार पूजन करें। फिर निम्न मंत्र का 51 बार जप कर कवच को गले में धारण कर लें।
सांसारिक जीवन अनेक बाधाओं से भरा पड़ा है, नित्य नई समस्यायें हमारे सामने खड़ी रहती हैं, इन समस्याओं का सामना करते हुये हमें जीवन का निर्माण करना होता है। व्यक्ति के भीतर इतनी आत्मशक्ति, ऊर्जा होनी चाहिये कि वह समस्याये देखकर घबरायें नहीं बल्कि उनका डटकर मुकाबला करें, इसी को पुरूषार्थ कहा गया है, और जो योद्धा विजय प्राप्ति हेतु रण क्षेत्र में उतरता है, और संघर्ष करता है, उसे निश्चय ही विजय प्राप्त होती है। समस्या किसी भी रूप में हो सकती है, समस्या के अनेक रूप हैं, और प्रत्येक रूप में हमारी समस्या हमारे शत्रु हैं, हमें इन्हीं शत्रुओं पर विजय प्राप्त करना है। इस साधना के माध्यम से व्यक्ति के आत्मिक शक्ति का विकास होता है, जिससे वह जीवन के विकट परिस्थितियों पर विजय प्राप्त करता है।
भगवान शनि काल पर प्रहार कर उसे पूर्ण रूप से भस्म करने में सहायक हैं, विवाह पंचमी के बाद प्रथम शनिवार को प्रातः काल स्नान आदि से निवृत्त होकर स्वच्छ वस्त्र धारण कर पूजा स्थान में पूर्व दिशा की ओर मुंह कर बैठ जाये।
सद्गुरुदेव का पूजन करें और एक माला श्री राम मंत्र का जप करें- श्रीराम जय राम जय जय राम मंत्र का जप कर साधना में सफलता हेतु प्रार्थना करें। अपने सामने एक स्वच्छ लकड़ी के बाजोट पर पीला वस्त्र बिछायें। अब एक ताम्र या स्टील प्लेट रख कर उसमें बजरंग गुटिका एवं शत्रुहन्ता माला स्थापित करें।
संकल्प लेकर गुरु चित्र को कुंकुम, अक्षत, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य अर्पित करें। फिर निम्न मंत्र का 36 बार जप करें। प्रत्येक मंत्र जप कर कुंकुम मिल अक्षत गुटिका एवं माला पर अर्पण करें, ऐसा करने से वह शक्तिकृत हो जाते है।
साधना समाप्ति के पश्चात् बजरंग गुटिका को पूजा स्थान में स्थापित कर दें और माला को 21 दिन तक गले में धारण कर लें। 21 दिन के पश्चात् गुटिका व माला को नदी में विसर्जित कर दें।
जीवन में रोग अभिशाप तुल्य होता है, असाध्य रोग से पीडि़त व्यक्ति असहनीय कष्ट सहन करने के लिये विवश होता है। उसे जीवन बोझ सा प्रतीत होने लगता है, कभी-कभी स्थिति और भयावह हो जाती है, जब व्यक्ति धन से दुर्बल हो और उसे मंहगे उपचार की भी आवश्यकता हो, ऐसे में व्यक्ति चिंतित, दुखी और असहाय महसूस करने लगता है। यह साधना ऐसी किसी भी स्थिति से निकालकर व्यक्ति को नया जीवन प्रदान करती है और वह पूर्ण स्वस्थ दीर्घायु जीवन की प्राप्ति करता है। इस साधना को कोई भी व्यक्ति अपने सगे-सम्बन्धी, मित्र के लिये संकल्प लेकर सम्पन्न कर सकता है।
23 नवम्बर राम जानकी विवाह पंचमी या किसी भी रविवार को प्रातः काल स्नान आदि से निवृत्त होकर लाल आसन पर उत्तर दिशा की ओर मुंह कर बैठ जाये। गुरु का ध्यान करें व सीता राम और हनुमान चित्र को सामने रखें व ताम्रपात्र अथवा स्टील प्लेट रख कर उस पर संजीवनी शक्ति युक्त बज्रांग स्थापित करें, 51 बार संकट मोचन हनुमान भगवान का मंत्र उच्चारित करेंं- ऊँ हनु हनु हनुमते नमः मंत्र जप के बाद असाध्य रोग के निवारण हेतु प्रार्थना करें व इस पर कुंकुम, अक्षत, पुष्प अर्पित करें व धूप, दीप दिखायें। निम्न मंत्र का 15 मिनट तक जप करें व रोगी के गले में धारण करा दें।
प्रतिदिन प्रातः इस मंत्र का 21 बार उच्चारण करें।
भूत-प्रेत से सारे घर का वातावरण विषाक्त और मलिन बन जाता है, जिस घर में कोई अप्राकृतिक मृत्यु हो, उस घर में तो ये अभिशाप बनकर छा जाते हैं। जिसके कारण व्यक्ति के भीतर कुत्सित व घृणित विचार आने लगते हैं, परिवार का कोई सदस्य अर्नगल कार्यों में लिप्त हो जाता है, पुत्र-पुत्रियां सन्मार्ग से भटक जाती हैं, ऐसी अनेक स्थितियां घर में घटित होती हैं, जो प्रेत आत्माओं के प्रभाव को स्पष्ट रूप से दर्शाती हैं।
भगवान श्रीराम जन-जन के उपास्य देव हैं, उनकी तीव्र शक्ति भक्तों पर सहज अनुकम्पा प्रदान करती है। इनकी कृपा से भूत-प्रेत-इतर योनियों के प्रकोप से मुक्ति मिलती ही है, और व्यक्ति प्रत्येक दृष्टि से सम्पन्न होता है।
23 नवम्बर या किसी भी शुक्रवार को रात्रि में स्नान आदि से निवृत्त होकर स्वच्छ वस्त्र धारण कर दक्षिण दिशा की ओर मुंह कर काले आसन पर बैठें। किसी ताम्रपात्र पर चावल की ढे़री बनाकर इतरयोनि मुक्ति बाहु व मूंगा मणि स्थापित करें। मूंगा मणि पर सिन्दूर का तिलक कर उस पर अक्षत चढ़ायें, बाहु का धूप, दीप से पूजन कर 108 बार निम्न मंत्र उच्चारण करें।
साधना समाप्ति के पश्चात् बाहु को पीडि़त व्यक्ति को धारण करा दें, अथवा परिवार में जो भी व्यक्ति मानसिक शारीरिक रूप से अधिक पीडि़त हो धारण कर ले, मूंगा मणि को किसी निर्जन स्थान पर गाड़ दें।
प्रत्येक व्यक्ति अपने जीवन में सफल होना चाहता है। उन्नति प्राप्त करना चाहता है, वह चाहता है कि अपने जीवन को सुख-सम्पन्न्ता युक्त व्यतीत कर सके। लेकिन प्रतिस्पर्धा के इस दौर में सफलता इतनी सरल भी नहीं, व्यक्ति के सामने अनेक समस्यायें आ जाती हैं, जिसके कारण बनता काम भी बिगड़ जाता है, कभी-कभी तो काम सफल होने के निकट पहुंचकर भी असफल हो जाता है। सर्व कार्य सिद्धि साधना सभी बाधाओं का शमन कर सफलता प्रदान करती है, साथ ही साधक उच्चता की ओर अग्रसर होता है।
23 नवम्बर अथवा किसी भी गुरुवार को प्रातः काल स्नान आदि से निवृत्त होकर स्वच्छ वस्त्र धारण कर पूजा स्थान में उत्तर दिशा की ओर मुंह कर बैठ जायें। सामने चावल की ढ़ेरी बनाकर उसपर सर्व कार्य सिद्धि यंत्र स्थापित करें। यंत्र का पूजन कुंकुम, अक्षत, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य करे, फिर साम्फल्य शक्ति माला को दाहिने हाथ में लेकर बायें हाथ से जल छिड़के और थोड़ा सा सिन्दूर डालें फिर निम्न मंत्र का 1 माला निम्न मंत्र का जप साम्फल्य शक्ति माला से करें।
साधना समाप्त होने के बाद यंत्र व माला को नदी में प्रवाहित कर दें।
सर्व सुख का तात्पर्य है कि व्यक्ति का जीवन सर्वमंगल युक्त हो, उसका जीवन सभी भौतिक सुख-सुविधा से पूर्ण, समृद्ध हो, कीर्ति, पद-प्रतिष्ठा उसे सरलता से प्राप्त हो सके। परिवार में सामंजस्य, सुसंस्कारी संतान, पति-पत्नी के मध्य आत्मिक जुड़ाव और कार्यो में सफलता मिलती रहे।
23 नवम्बर या किसी भी मंगलवार को प्रातः काल स्नान आदि से निवृत्त होकर स्वच्छ श्वेत वस्त्र धारण कर पूजा स्थान में उत्तर दिशा की ओर मुंह कर बैठ जायें। ताम्रपात्र में सिन्दूर से त्रिकोण बनाकर सर्वसुख प्रदायक जीवट स्थापित करें। गुटिका का पंचोपचार पूजन कर सरसों के तेल का दीपक प्रज्ज्वलित करे। पश्चात् सर्वमांगल्य माला से 2 माला जप करें।
साधना समाप्ति पर सभी सामग्री नदी में विसर्जित करें।
हर स्त्री-पुरूष के मन में कामनायें होती हैं। हर कोई अपनी कामनाओं को पूरा करना चाहता है। प्रत्येक की कामनायें भिन्न-भिन्न होती हैं, कोई चाहता है, उसे सुन्दर, सुशील पत्नी की प्राप्ति हो, किसी की इच्छा रहती है, उसे अच्छी नौकरी, व्यवसाय, वाहन, भवन उपलब्ध हो सके। इसी प्रकार स्त्रियों की भी इच्छा होती है, श्रेष्ठ योग्य जीवन साथी मिले, अच्छा ससुराल, जीवन में स्वतंत्र आदि-आदि। इच्छाओं के रूप अलग-अलग हो सकते है, लेकिन कामना तो कामना ही कही जायेगी, इस हेतु आवश्यक यह है कि हमारी कामना का स्वरूप सुकामना हो, जो गृहस्थ, सांसारिक जीवन में उच्चता और श्रेष्ठता लाती है।
इस साधना द्वारा कोई भी साधक अपने मनोरथों की पूर्ति कर सकता है और कामना पूर्ति होने पर जीवन में प्रसन्नता, सुख की प्राप्ति होती है।
23 नवम्बर को रात्रि में 09 बजे के बाद पश्चिम दिशा की ओर मुंह कर पीले आसन पर बैठ जायें। गुरु पूजन सम्पन्न कर 1 माला गुरु मंत्र का जप करें और दाहिने हाथ में मनोरथ प्रदायक माला लेकर उस पर सिन्दूर, अक्षत छिड़के। फिर बायें हाथ से माला ढ़ककर निम्न मंत्र का 20 मिनट तक जप करें।
मंत्र जप के पश्चात् माला ग्यारह दिन तक नित्य प्रातः स्नान के बाद 10 मिनट तक धारण करें, 12 वें दिन जलाशय में विसर्जित कर दें।
हनुमान की सेवा भक्ति से सारा संसार परिचित है, वे बल-बुद्धि, साहस के साथ ही साथ स्वामी भक्ति में पूर्ण निपुण थे, उनकी सेवा, भक्ति से प्रभु राम ने प्रसन्न होकर उन्हें भरतहि सम भाई की उपाधि दी। उनके शिष्यता के गुणों के प्रति आज भी समाज नतमस्तक होता है। सर्वाधिक श्रेष्ठ शिष्यता का गौरव श्री हनुमान को ही प्राप्त है।
इस साधना द्वारा साधक शिष्यत्व के उच्चतम भाव को ग्रहण कर जीवन की सर्वोच्च स्थिति प्राप्त कर सकता है, साथ ही वह अपने गुरु का प्रिय बन उनकी समस्त सिद्धियों की कृपा प्राप्त करने योग्य हो जाता है। अर्थात् वह जीवन में पूर्णता प्राप्त करने का अधिकारी बन आध्यात्मिक क्षेत्र में उच्चता प्राप्त कर लेता है।
23 नवम्बर अथवा किसी भी गुरुवार को प्रातः काल स्नान आदि से निवृत्त होकर स्वच्छ पीला वस्त्र धारण कर पूजा स्थान में पूर्व दिशा की ओर मुंह कर बैठ जायें। सद्गुरुदेव का पंचोपचार पूजन कर 2 माला गुरु मंत्र का जप करें। उसके बाद सामने लकड़ी के बाजोट पर पीला वस्त्र बिछायें और तांबे की प्लेट में सिन्दूर से ऊँ लिख कर उस पर श्री राम पादुका स्थापित कर कुंकुम, अक्षत, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य आदि से पूजन करें। फिर निम्न मंत्र का 108 बार जप करें।
जप बाद पादुका पूजा स्थान में स्थापित रहने दें व नित्य 21 बार इस मंत्र का उच्चारण करते रहें।
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