भगवान शिव एक हैं, पर विराट स्वरूप भी उन्हीं के हैं- कभी आशुतोष तो कभी महादेव या कभी रूद्र तो कभी महामृत्यंजय अपने अलग-अलग भावों से वे विराजमान हैं और उनका एक भी नाम निरर्थक नहीं है, प्रत्येक नाम के अलग- अलग गुण और प्रयोजन है।
शिव की ऐसी ही विराट महिमा है। इस व्यापक जगत में जो लोग नाना दुःखों से पूर्ण संसार रूपी समुद्र के प्रवाह में पतित होकर पुनः उससे निकलना चाहते हैं, उन्हें शिव की ही आराधना करनी चाहिये। महाशिवरात्रि शिव-आराधना, पूजन, अर्चन, अभिषेक का महापर्व है, इसी दिन भगवान शिव का पार्वती जी के साथ विवाह सम्पन्न हुआ था। अर्थात् इस दिन शिव की उपासना- साधना करने से भक्त व साधक को तेजमय विशिष्ट ऊर्जा प्राप्त होती है, क्योंकि उसे शिवरात्रि के दिन शिवलिंग का विधिवत् पूजन करने से शिव और शक्ति दोनों का ही सायुज्य प्राप्त हो जाता है, भगवान शिव योग और भोग को एक साथ प्रदान करने वाले देव हैं। तब ही तो संन्यासी, गृहस्थ, दानव, राक्षस, यक्ष, किन्नर सभी शिव की आराधना, स्तुति करते हैं।
शिवरात्रि अर्थात् शिव की रात्रि जो जगत-गुरु हैं, जो समस्त कष्टों को दूर करने वाले हैं, जिनके चिन्तन मात्र से ही समस्त सुखों की प्राप्ति हो जाती है, और जो मनुष्य के समस्त पापों को दूर कर पूर्णता प्रदान करने वाले हैं, उनकी उपासना व आराधना प्रत्येक व्यक्ति या साधक को महाशिवरात्रि के दिन अवश्य ही सम्पन्न करनी चाहिये।
महाशिवरात्रि जो आनन्द की रात्रि है, जो मनुष्य के अन्धकारमय व घोर कालिमा युक्त जीवन को प्रकाशवान व श्रेष्ठ शक्तियो से युक्त करने की रात्रि है, जो आत्मा को परमात्मा में लीन कर देने की रात्रि है, जो पूर्णता की रात्रि है, जो श्रेष्ठता की रात्रि है, जो शिव-शक्ति के सामंजस्य की रात्रि है, जो शिव तत्व को प्राप्त कर लेने की रात्रि है और ऐसे शिवतत्व को प्राप्त कर लेना ही तो जीवन का परम सौभाग्य, आनन्द की सर्वोच्चता है।
और यह सर्वोच्चता, यह आनन्द, यह सौभाग्य प्राप्त हो सकता है, शिवरात्रि के दिन कृष्णमय पूर्णेश्वर शिवलिंग के विधिवत् पूजन, अभिषेक द्वारा, क्योंकि यह शिवलिंग श्यामवर्ण है, जो जीवन में रस, आनन्द, काम सुख, सौभाग्य और योग-भोग का प्रदाता है, जिसकी आराधना से गृहस्थ जीवन की सभी मनोकामनाओं को पूर्ण किया जा सकता है। पूर्णेश्वर शिवलिंग में सृष्टि करने वाली चेतना समाहित है, यह शिवलिंग शिव-शक्ति तत्व का गायन है, जो साधक के जीवन में अनेक सुस्थितियां निर्मित कर उसे सांसारिक सुखों से युक्त करता है, और सभी तरह की विपदाओं से रक्षा प्रदान करता है। इस शिव-शक्ति की आराधना से साधक में योगेश्वर कृष्णमय चेतना शक्ति की प्राप्ति होती है, जिससे वह अपने सामाजिक पारिवारिक जीवन को सफलता पूर्वक गतिशील करते हुये सभी सुखों को भोग पाता है और चौसठ कला शक्ति से आपूरित हो, योगमय जीवन प्राप्त करता है।
शारदा तिलक में लिखा है, कि पूरे वर्ष शिव की पूजा साधना करने से भी अधिक अभीष्ट फलप्रदायी महाशिवरात्रि महापर्व पर शिव आराधना, अभिषेक से प्राप्त होता है। अभिषेक पूजन सामग्री- शुद्ध जल, दुग्ध, दधि, घृत, मधु, शक्कर, पूजन- वस्त्र, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य व प्राण प्रतिष्ठित चैतन्य पूर्णेश्वर श्यामवर्णीय शिवलिंग जो योग-भोग कृष्णमय चेतना से अभिमंत्रित चौसठ कला शक्ति युक्त है।
कृष्णमय पूर्णेश्वर शिवलिंग पूजन-
भगवान शंकर का आह्वान करें।
ऊँ सद्योजातं प्रपद्यामि सद्योजाताय वै नमः।
भवे भवे नातिभवे भवस्य मां भवोद्भवाय नमो नमः।।
ऊँ शिवाय आवाहनं समर्पयामि।
ध्यान- दोनो हाथ जोड़ लें-
नमस्ते निष्कल रूपाय नमो निष्कल तेजसे।
नमः सकलनाथाय नमस्ते सकलात्मने।।
आत्मने ब्रह्मणे तुभ्यमनन्त गुण शक्तये।
सकलाकल रूपाय शम्भवे गुरवे नमः।।
ऊँ शिवाय नमः ध्यानं समर्पयामि।
जल स्नान- श्याम वर्ण शिवलिंग को जल से स्नान करायें।
ऊँ गंगा सरस्वती देवा पयोष्णि नर्मदा जलैः।
स्नापितोऽसि मयास देव स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम्।।
ऊँ शिवाय नमः स्नानं समर्पयामि।
दुग्ध स्नान- योगेश्वरमय शिवलिंग को दूध से स्नान करायें।
गोक्षीरधाम देवेश गोक्षीर धवलोपम।
स्नापनं देव देवेश योगेश्वरं परमेश्वर।।
ऊँ शिवाय नमः दुग्ध स्नानं समर्पयामि।
दधि स्नान- चौसठ कला शक्ति प्रदायक शिवलिंग को दही से स्नान करायें-
दध्ना चैव महादेव स्नापनं कार्यते मवा।
गृहाण च मया दत्तं मम् चौसठ कलां पूर्णत्वं भव।।
ऊँ शिवाय नमः घृत स्नानं समर्पयामि नमः।।
घृत स्नान- योग-भोग प्रदाता शिवलिंग को घी से स्नान करायें।
सर्पिषा च मयास देव स्नापनं क्रियतेऽधुना।
गृहाण श्रद्धया दत्तं तव योगं भोगं च।।
ऊँ शिवाय नमः घृत स्नानं समर्पयामि नमः।
मधु स्नान- सम्मोहन शक्ति प्रदाता शिवलिंग को शहद स्नान से करायें-
इदं मधु मया दत्तं तव तुष्टय मेव च।
गृहाण त्वं हि देवेश मम सम्मोहनाये भव।।
ऊँ शिवाय नमः मधु स्नानं समर्पयामि।
शर्करा स्नान- पौरूष शक्ति प्रदाता शिवलिंग को शक्कर से स्नान करायें-
इक्षुसार समुद्भूता शर्करा देहं पुष्टि कारिका।
मलापहारका दिव्या स्नानार्थ प्रतिगृह्यताम्।
ऊँ शिवाय नमः शर्करा स्नानं समर्पयामि।
अब मुख्य अभिषेक प्रारम्भ करें, इसमें दुग्ध मिश्रित जल को पूर्णेश्वर शिवलिंग पर चढ़ायें। जो समस्त सांसारिक गृहस्थ चेतना को प्रदान करने में पूर्णतः समर्थ है। नीचे दिये गये मंत्र का 20 मिनट तक जप करते हुये आचमनी से जल चढ़ायें।
उपरोक्त मंत्र का जप मध्यम स्वर में करें। इसकी पूर्णता के पश्चात पूर्णेश्वर शिवलिंग को स्वच्छ जल से साफ कर एक दूसरी थाली में ऊँ बनाकर उस पर शिवलिंग को स्थापित करें।
जब अभिषेक पूर्ण हो जाता है तो भगवान शिव का श्रृंगार पूजन सम्पन्न किया जाता है। इस षोडश श्रृंगार में इत्र, कुंकुंम, गुलाल, वस्त्र, धूप, दीप, नैवेद्य का समर्पण किया जाता है।
वस्त्र- वस्त्र समर्पित करते हुये इस मंत्र का उच्चारण करें।
एतद् वासो मया दत्तं सोत्तरीयं सुशोभनं।
गृहाण त्वं महादेव ममायुष्य प्रदोभव।।
ऊँ उमामहेश्वराभ्यां नमः वस्त्रेय वस्त्रं समर्पयामि।
इसके बाद चन्दन, अक्षत तथा पुष्प चढ़ायें।
पुष्प- तुरीयवनसंभूतं परमानन्द सौरभम्।
पुष्पं गृहाण सोमेश पुष्पचाप विभंजन।।
ऊँ उमामहेश्वराभ्यां नमः पुष्पाणि समर्पयामि नमः।।
धूप- धूप प्रज्ज्वलित करें।
ऊँ उमामहेश्वराभ्यां नमः धूपं आघ्रापयमि।
दीप- दीप दिखायें।
साज्यवर्तियुतं दीपं सर्वमंगलकारम्।
समर्पयापि पश्येदं सोमसूर्याग्निलोचन।।
ऊँ उमामहेश्वराभ्यां नमः दीपं दर्शयामि।
नैवेद्य- नैवेद्य के ऊपर बिल्वपत्र या पुष्प रखकर अर्पण करें।
ऊँ उमामहेश्वराभ्यां नमः नैवेद्यं निवेदयामि नमः
ऋतुफलानि च समर्पयामि।
सम्पूर्ण पूजन के पश्चात् शिव आरती करें। आरती के बाद दोनों हाथों में खुले पुष्प लेकर निम्न मंत्र पढ़े और शिवलिंग पर पुष्पाजंलि अर्पित करें।
पूर्णेश्वर शिवलिंग को तुलसी पौधे के गमले में अथवा किसी भी पवित्र स्थल, पूजन स्थान पर स्थापित कर नित्य अभिषेक करें।
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