सृष्टि का संचालन तीन मूल सिद्धांत उत्पत्ति, पालन और संहार पर आधारित है। नये विचार, सद्-ज्ञान, सद्चिंतन की उत्पत्ति द्वारा मनुष्य पालन- पोषण शक्ति से आपूरित होता है और इन सभी क्रियाओं में जो भी नकारात्मक विषमता उत्पन्न होती है, उसके संहार की क्रिया सम्पन्न होती है। यही जीवन का अध्याय है, जिसे आत्मसात करने की प्रेरणा हिन्दू धर्म के अनेक पर्व, त्यौहार प्रदान करते हैं। सनातन धर्म के अनेको-अनेक पर्व हमें सृष्टि के इन्हीं मूल सिद्धांत का स्मरण कराते हैं और प्रत्येक पर्व में सृजन, वर्धन और संहार का गूढ़ रहस्य छिपा होता है, जिसे सुक्रियाओं के माध्यम से आत्मसात करना ही मूल रूप से पर्व, त्यौहार के उद्देश्य की पूर्ति होती है।
महाशिवरात्रि रस, आनन्द, ओज, ऊर्जा, इच्छा पूर्ति का महान पर्व है, इस दिवस पर इच्छाओ और अभिलाषाओं की पूर्ति की कामना विशेष रूप से की जाती है। इस वर्ष महाशिवरात्रि पर्व सद्गुरुदेव के सानिध्य में महाकाल की चैतन्य भूमि पर सम्पन्न हो रहा है, यह अवसर इन्हीं मूल सिद्धांत- शिव-शक्ति की चेतना शक्ति से उत्पत्ति अथवा नूतन जीवन निर्माण, नारायण स्वरूप गुरुत्व शक्ति से पालन-पोषण और महाकाल की चेतनामय रश्मियों से जीवन की विषमताओ, विसंगतियो के संहार पर आधारित है। जो परम पूज्य सद्गुरुदेव के अपार स्नेह, प्रेम, करूणा द्वारा प्राप्त हो रहा है। हमें अपने जीवन में सदैव यह ध्यान रखना चाहिये कि गुरुदेव की प्रत्येक क्रिया सूक्ष्म और गूढ़ होती है और हमे स्थूलता पर नहीं उस क्रिया की गूढ़ता पर अपना ध्यान देने का प्रयास करना चाहिये, यह संभव नहीं है कि हम मूल गूढ़ रहस्य को समझ सके, परन्तु सद्-चिंतन द्वारा आभास अवश्य होता है।
महाकाल की नगरी में 108 सद्गुरु नारायण पारद विग्रह व विशाल पारदेश्वर शिवलिंग पर विशिष्ट विजय प्रदायक चैतन्य मंत्र व रूद्राष्टध्यायी मंत्रों से रूद्राभिषेक की चेतना को साक्षीभूत रूप में आत्मसात करने हेतु आप सभी को सपरिवार हृदय भाव से आमंत्रित करता हूं, शिव-शक्ति परिणयमय दिवस पर कालजयी भूमि उज्जैन में गुरुदेव की सानिध्यता से निश्चय ही इन मूल तीन तत्वों से युक्त हो सकेंगे।
संसार में तीन का बड़ा महत्व है, भारतीय संस्कृति में ईश्वर के तीन रूप माने गये हैं ब्रह्मा, विष्णु, महेश! जीवन की तीन अवस्था बाल्यावस्था, युवावस्था, वृद्धावस्था, तीन काल- भूतकाल, वर्तमान काल व भविष्य काल, लोक भी तीन-ऊधर्वलोक, मधयलोक, अधोलोक। विज्ञान भी पदार्थ के आखरी विश्लेषण को तीन भागों में बांटता है-न्यूट्रान, इलेक्ट्रान, पौजिट्रान और इनके गुण लक्षण भी वही हैं, एक विधवंसक, एक सर्जक और एक संभालता है। गुरु भी इन्हीं तीन तत्व ब्रह्मा, विष्णु, महेश का मूर्त स्वरूप है, न्यूट्रान, इलेक्ट्रान, पौजिट्रान की तरह गुरु भी शिष्य में बहुत कुछ बनाता है, बहुत कुछ सम्हालता है और बहुत कुछ मिटाता है ’’
आपका अपना
विनीत श्रीमाली
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