पौराणिक काल सतयुग में समस्त विश्व को विनष्ट करने वाला तूफान उत्पन्न हुआ, जिसकी तीव्रता और विकरालता देखकर जगत के पालनकर्ता व रक्षाकर्ता भगवान विष्णु को अत्यन्त चिन्ता हुयी। कोई उपाय ना सूझने पर उन्होंने सौराष्ट्र नामक प्रान्त में हरिद्रा नाम वाले सरोवर के समीप आदि भवानी की प्रसन्नता हेतु तप किया। जिसके फलस्वरूप भगवती का बगलामुखी का प्रादुर्भाव हुआ, भगवती ने उस तूफान को शान्त कर सृष्टि विनाश से बचा लिया।
भारतवर्ष में हजारों-हजारों निखिल शिष्य भगवती बगला का दैनिक रूप से स्तुति करते हैं, उनकी आराधना करते हैं और वे अपने जीवन में इनकी तीव्र चेतना शक्ति को आत्मसात कर सफल व सुरक्षित धन-धान्य, वैभव से युक्त जीवन व्यतीत कर रहें हैं। वास्तव में भगवती बगलामुखी की तीव्रता जीवन के सभी पक्षों को सम्पूर्णता प्रदान करने में समर्थ है, भगवती अपने साधक की सभी मनोकामनाये पूर्ण करती हैं। इनकी आराधना का तत्काल प्रभाव मिलता है।
बगलामुखी जयन्ती के तेजस्वी दिवस पर त्रैलोक्य स्तम्भिनी बगलामुखी महाविद्या दीक्षा की चेतना आत्मसात कर साधक जीवन के अनेक पक्ष की न्यूनताओं पर विजय प्राप्त कर सकेगा। स्तम्भन का तात्पर्य यही है कि जीवन में जो कुछ भी न्यूनताये हैं, कष्टदायी है, दुःखद है, जिनके कारण जीवन में सैकड़ों समस्यायें बनी हुयी हैं, उनका स्तम्भन कर दिया जाये, ऐसी नकारात्मक ऊर्जा को रोक दिया जाये, ऐसे विषम परिस्थितयों को समाप्त कर दिया जाये, वे न्यूनताये, समस्यायें किसी भी रूप में हों, उनका स्वरूप शत्रु रूप में हो अथवा रोग, धनहीनता, मुकदमा, ग्रह बाधा, तंत्र बाधा, परिवार में कलह-क्लेश आदि किसी भी रूप में हों उनका शमन कर जीवन को निर्भय, सुख-सौभाग्य, समृद्ध, श्री युक्त निर्मित करने की यह ओजस्वी चैतन्य शक्तिपात दीक्षा साधक को अवश्य ही आत्मसात करना चाहिये, क्योंकि वर्तमान की कलुषित, प्रतिस्पर्धा युक्त वातावरण में ऐसी दिव्य ओजस्वी-तेजस्वी चेतना प्रत्येक साधक के लिये अनिवार्य है और समय-समय पर इस दिव्य शक्ति को स्वयं की देह में सद्गुरुदेव की तपस्यांश शक्ति द्वारा आत्मसात करना ही चाहिये और इस अत्यन्त तीव्र चेतना शक्ति को ग्रहण करने का दिव्य सुअवसर भगवती बगला का अवतरण दिवस ही है।
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