भगवती छिन्नमस्ता की उपासना से आध्यात्मिक भाव-भूमि उच्चकोटि की निर्मित होती है। जो उनके स्वरूप में स्पष्ट रूप से दर्शाया गया है, जया और विजया, ईड़ा और पिंगला हैं और स्वयं देवी सुषुम्ना है। जब अहंकार रूपी सर छिन्न-भिन्न हो जाता है, तो वहां से निकलने वाले अमृत तत्व से तीनों नाडि़या आप्लावित होती हैं। विपरीत रति क्रिया का अर्थ है कि यह स्थिति प्राप्त होने के बाद मानव का सत्व, जो प्राकृतिक रूप से नीचे की ओर बहता है, फिर विपरीत दिशा अर्थात ऊपर की ओर गतिशील होकर समस्त शरीर में व्याप्त हो जाता है। जिसके माध्यम से साधक में ऐसी चेतना शक्ति विकसित होती है, जो उसके जीवन में अंसभव नामक शब्द को सदा-सदा के लिए हटा देती है अर्थात् साधक ऐसी स्थिति प्राप्त कर अपने जीवन के प्रत्येक लक्ष्य को पूर्णता से प्राप्त कर पाता है।
दस महाविद्याओं में भगवती छिन्नमस्ता पांचवें क्रम में आती हैं, इसलिए इन्हें पंचमी विद्या भी कहा जाता है। तांत्रिक ग्रन्थों में इनको प्रचण्ड चण्डिका, छिन्न मुण्ड धारिणी आदि नाम से सम्बोधित किया गया है। इनकी साधना, उपासना भगवान परशुराम ने भी सम्पन्न की थी और नाथ पंथ के प्रवर्तक गुरु गोरखनाथ भी छिन्नमस्ता के उपासक रहें हैं। भगवती छिन्नमस्ता साधक के जीवन से मलिनता, न्यूनता समाप्त कर उसे अभय प्रदान करती है। यह महाविद्या प्रचण्ड शत्रु संहारिणी भी है और ज्ञान, चेतना, तेज प्रदान कर अपने साधक के जीवन को भौतिक रूप से भी समृद्धि, सम्पन्न बनाती है।
कामेश्वरी शक्ति युक्त छिन्न मुण्ड धारिणी छिन्नमस्ता क्लीं शक्ति की चेतना धारण करने वाला साधक वज्र के समान कठोर व कामदेव के समान आकर्षण और सम्मोहन से युक्त हो जाता है। पूर्व जन्मकृत दोष समाप्त करने में भगवती छिन्नमस्ता का अद्भुत योगदान होता है। भगवती छिन्नमस्ता अपने उग्र स्वरूप के कारण शत्रुओं का संहार करने वाली मानी जाती हैं, जो अपने साधक के शत्रुओं का मर्दन कर उसे छिन्न-भिन्न कर देती हैं। इसके साथ ही यह महाविद्या कामेश्वरी क्लीं महाकाली शक्ति युक्त होने के कारण दीर्घायु जीवन, आरोग्यता, पौरुषता और सभी रूपों में गृहस्थ जीवन के कामनाओं की पूर्ति भी संभव हो पाती है।
शारदीय नवरात्रि के शक्ति दिवसों में जीवन की कमजोर, दुर्बल स्थितियों को सशक्त बनाने और स्वयं में शक्तिमय होने की क्रिया रूप में छिन्न मुण्ड धारिणी कामेश्वरी महाविद्या दीक्षा प्रत्येक साधक-शिष्य आत्मसात कर अपने स्वः के भीतर और बाहर दोनों तरह के शत्रुओं पर विजय प्राप्त करने की चेतना से युक्त हो सकेगा साथ ही जीवन की जो भी कलुषितता है, जो मलिन स्थितियां हैं उनका शमन व शोधन हो सकेगा और जीवन सकारात्मक देवमय चेतना से आप्लावित हो सकेगा। इसके साथ ही इस दीक्षा के माध्यम से गृहस्थ जीवन में काम, आकर्षण, सम्मोहन, संतान सुख, पौरुषता, आरोग्यता और आनन्दमय वातावरण का निर्माण हो सकेगा।
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