अर्थात् पवित्र तीर्थ, श्रेष्ठ लग्न और चैतन्य अवसर पर एक लाख मंत्र जप करने से जो पुण्य लाभ होता है, वह सूर्य ग्रहण काल में केवल ग्यारह माला मंत्र जप करने से ही प्राप्त हो जाता है।
सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में सूर्य का सर्वोपरि स्थान है, साथ ही सूर्य जीवनी शक्ति प्रदाता है। जिसके संरक्षण में साधना, जप, पूजन आदि का अक्षुण्ण लाभ प्राप्त होता है। सूर्य ग्रहण काल एक ऐसा ही स्वर्णिम अवसर होता है, जब साधक सूर्य रश्मियों के माध्यम से जीवन के अनेक पक्षों पर अपना नियंत्रण स्थापित कर लेता है और अपनी परिस्थितियों को अपने अनुरुप बनाने में सफल होता है, अपनी मनोकामनाओं को सिद्ध कर पाता है। नववर्ष के प्रथम माह में ही ऐसी दिव्य साधनाओं को सम्पन्न कर साधक निश्चित रूप से पूरे वर्ष को मंगलमय शक्तियों युक्त बना सकेंगे।
श्रेष्ठ और सफल जीवन के लिये प्रचुर मात्रा में धन की उपलब्धता अनिवार्य है। धन के अभाव में व्यक्ति की सारी योग्यता, बुद्धि, कौशल एक ओर धरी रह जाती है और उसके कौशल, बुद्धि व चातुर्यता का दूसरे भरपूर लाभ उठाते हैं। इसलिए व्यक्ति के पास धन का सहज प्रवाह होना आवश्यक है, तब ही वह अपनी पूरी क्षमता का उपयोग कर पाता है और निरन्तर धन में वृद्धि का भाव बना रहता है, धन आगमन के नये स्रोत बनते रहते हैं। धन ही आज का संसार है, इसके बिना कुछ संभव नहीं होता। इसलिए सभी को निरन्तर धन प्राप्ति साधनाएं सम्पन्न करते रहना चाहिए, जिससे कि धन की निरन्तरता बनी रहे।
स्नान पश्चात् स्वच्छ वस्त्र धारण कर उत्तर दिशा की ओर मुख करके बैठें। लामा तांत्रोक्त मंत्रों से सिद्ध त्रिपिटक को सूर्य ग्रहण काल में चावल की एक ढे़री बनाकर उस पर स्थापित कर दें। रक्त चन्दन से तिलक कर पुष्प अर्पित करें और धूप-दीप दिखाएं, फिर त्रिपिटक पर त्रटक करते हुए निम्न मंत्र का अटूट धनदा माला से 11 माला मंत्र जप करें।
चावलों पर जो त्रिपिटक स्थापित है, उसे अन्न भण्डार में मिला दें तथा एक माह पश्चात त्रिपिटक और माला को नदी या तालाब में विसर्जित कर दें।
लामा साधकों एवं उनके साधनात्मक ग्रंथों के अनुसार जीवन के सहज प्रवाह के लिए जो कुछ भी बाधायें और विपदा हैं उनका निवारण आवश्यक है। मुकदमेबाजी, प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष शत्रु बाधा, राज्य बाधा या युवा पुत्री के विवाह में आ रही अड़चन, परिवार में कलह, पति-पत्नी में तनाव, पुत्र का कुमार्ग पर बढ़ जाना जैसी गृहस्थ जीवन की अनेक समस्याओं के निवारणार्थ यह साधना स्वयं में अचूक और तीव्रतम फल प्रदायक है। इस साधना का लाभ कई साधकों ने हाथों-हाथ अनुभव किया है। यहां तक कि शत्रु संकट अथवा प्राण भय की स्थिति में तो मंत्र जप समाप्त होते-होते ही अनुकूल समाचार तक मिले हैं।
इस तीव्र विपदा निवारक साधना को सम्पन्न करने के लिये सर्वाह होना आवश्यक है। लाल वस्त्र पहनकर एकांत में दक्षिण की ओर मुख कर बैठें तथा अपने सामने एक ताम्रपात्र में कुंकुम से गोलाकार आकृति बनाकर उसके मध्य सर्वाह को स्थापित कर दें, फिर जिस विपदा में मुक्ति चाहते हैं, उसका संकल्प करें। यह ध्यान रहे कि एक सर्वाह पर केवल एक समस्या से सम्बन्धित साधना ही की जा सकती है। सर्वाह को पूजा स्थान में स्थापित कर उस पर आश्रम द्वारा प्राप्त भस्म से तिलक करें और स्वयं को भी तिलक लगाएं। तेल का बड़ा दीपक जलाकर, धूप, नैवेद्य अर्पित करें। पश्चात् विपदा मुक्ति माला से निम्न मंत्र का 5 माला मंत्र जप करें।
साधना पूर्ण होने पर सर्वाह और माला किसी पवित्र नदी में विसर्जित कर दें।
चाहे स्त्री हो या पुरुष सभी के मन में सहज कामनाओं का उदय होता है। जिसे वे पूरा करने का भरसक प्रयास करते हैं। कामनाओं की पूर्ति से ही मनुष्य के हृदय में कोमल पक्षों का जाग्रय संभव हो पाता है। कामनाओं का उदय होना इस बात का संकेत है कि अभी जीवन ठूंठ नहीं हुआ है। परन्तु यदि कामनाओं की पूर्ति ना हो तो जीवन कठोर, निराश व अवसादग्रस्त हो जाता है। वैसे तो जीवन में अनेक-अनेक कामनाएं होती हैं, परन्तु अधिकांश कामनाओं में जो सर्वोपरि कामना होती है वह किसी स्त्री या पुरुष की यही होती है कि उसे अपने मनोनुकूल जीवन साथी की प्राप्ति हो सके। लेकिन अपने मन-विचार के अनुरुप जीवन साथी मिल ही जाये ऐसा संयोग विरले के साथ ही संभव हो पाता है। जीवन में अनेक ऐसे कारण होते हैं, जिससे ऐसा संयोग नहीं बन पाता है।
इसके साथ ही अन्य अनेक-अनेक इच्छाएं व्यक्ति की होती हैं। ऐसी किसी भी एक कामना पर ध्यान एकाग्रचित्त कर यदि साधक पूर्ण मनोभाव से इस साधना को सम्पन्न करे, तो निश्चित ही उसकी कामना पूरी होती ही है। ग्रहण काल में स्नान बाद सुरूचिपूर्ण वस्त्र पहन लें, फिर फूलों की पंखुडि़यों पर तिर्यक चक्र स्थापित कर दें तथा सुगन्धित अगरबत्ती, दीप जलाकर पूजन करें, पश्चात् स्पष्ट रूप से अपनी मनोकामना बोलकर संकल्प लें। यदि मानस में किसी स्त्री या पुरुष का नाम है तो उसके नाम का उच्चारण करें। पश्चात् तिर्यक चक्र पर ध्यान एकाग्र करते हुये मनोकामना सिद्धि माला से 5 माला मंत्र जप करें।
मंत्र जप के पश्चात तिर्यक चक्र को फूल की पंखडि़यों सहित उठा कर किसी स्वच्छ रूमाल में बांध कर अपने सन्दूक में रख दें तथा एक माह बाद विसर्जित कर दें।
नूतव वर्ष के प्रथम माह के प्रथम सप्ताह में घटित होने वाले प्रथम सूर्य ग्रहण की ओजस्वी-तेजस्वी चेतना साधनाओं के माध्यम से वर्ष आरम्भ पर ही आत्मसात करने से जीवन हर स्वरूप में श्रेष्ठता की ओर अग्रसर हो सकेगा। क्योंकि सृष्टि का संचालन सूर्य शक्ति के माध्यम से ही होता है। सूर्य ही ऐसे देव हैं जो सम्पूर्ण ऊर्जा शक्ति के भण्डार हैं। जिनकी ओजस्वी रश्मियों के मध्य साधनाएं सम्पन्न करने से निश्चित रूप से लाभ प्राप्त होता ही है और वर्ष आरम्भ में ऐसी सुक्रियाओं से पूरा वर्ष आरोग्य, आयु वृद्धि, कार्य व्यापार वृद्धि, सुसंस्कार संतान सुख-सौभाग्य युक्त हो सकेंगे।
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