जब हम भगवान कृष्ण के बारे में पढ़ते हैं या जानकारी प्राप्त करते हैं तो हम पाते हैं कि उन्होंने अपने जीवन की प्रत्येक क्रिया को जबरदस्त तरीके से प्रवीणता के साथ निभाया। चाहे वह एक ग्वाले का किरदार हो, जो हमेशा अपने दोस्तों की टोली संग सारे दिन धमा-चौकड़ी करता हो। चाहे एक शरारती बेटे का किरदार हो, जो अपनी माता को अपने आगे-पीछे घुमा-घुमा कर बुरा हाल कर देता है, परन्तु उसी समय वह अपनी मैया का लल्ला बन अपनी माँ को अपना सर्वस्व प्रेम भी देते हैं।
कभी गोपियों की मटकी फोड़ देता है, माखन चुराता है, साथ ही उन सभी को अपनी बांसुरी की मधुर ध्वनि से मंत्र-मुग्ध भी कर देता है। भगवान कृष्ण ने योद्धा के किरदार को भी बखूबी निभाया, इन्होंने बहुत छोटी उम्र में ही पूतना, त्रिणवर्त, वतासुर, बकासुर, अधासुर, अरितासुर, व्योमासुर, केशी कौवल्यापीड जैसे भयंकर असुरों का नाश कर समस्त गोकुल वासियों की रक्षा भी की। साथ ही इन्द्र के क्रोधित स्वरूप द्वारा हुई तेज वर्षा व कड़कती भीषण बिजलियों से अपनी केवल एक अंगुली मात्र से गोवर्धन पर्वत को उठाकर रक्षा की थी। दोस्ती की भी श्री कृष्ण अद्भुत मिसाल हैं। उन्हें अपने मित्र अत्यन्त प्रिय थे, सुदामा को उन्होंने ब्राह्मण होने का सम्मान दिलाकर उनकी परम इच्छा पूर्ण की, कृष्ण जी ने कभी ऊंच- नीच का भाव नहीं रखा।
द्वारकाधीश के रूप में वे एक कुशल शासक भी बनें। श्री कृष्ण और उनके कई असुर प्रतिद्वंद्वियों के बीच अद्भुत युद्ध भी हुये। राजा जरासन्ध ने अपनी असंख्य सेना के साथ द्वारिका पर आक्रमण किया, परन्तु उनके हाथ हमेशा असफलता ही लगी, ऐसा कहा जाता है कि जरासंध ने कुल सत्रह बार आक्रमण किया परन्तु हर बार वे कृष्ण से पराजित ही हुए।
श्रीकृष्ण एक राजा होने के बावजूद अर्जुन के रथ के सारथी बने और वह किरदार भी उन्होंने दक्षता से निभाया। सोचिए सम्पूर्ण जगत के नियंत्रक घोड़ों की देख-रेख कर रहे हैं, सफाई कर रहें हैं, गोबर हटा रहें हैं। श्री कृष्ण ने सारथी का किरदार भी पूरी दक्षता से निभाया साथ ही पाण्डवों के विजयी करने में सहयोगी रहें। प्रेम के प्रथम स्वरूप की बात हो तो भी श्री कृष्ण व राधा का ही स्मरण सर्वप्रथम होता है। उन्होंने प्रेमी का रूप भी सम्पूर्णता से निभाया, राधा-कृष्ण पवित्र प्रेम के प्रतीक हैं।
भगवान कृष्ण ने अपने पूरे जीवन काल में यह सभी क्रिया कर मानव जाति के समक्ष उदाहरण प्रदर्शित किया है, कि हमें हमारे जीवन चक्र की भिन्न-भिन्न स्थितियों में समय की मांग अनुसार हमारे लिए जो किरदार निभाना नियत है, उसे पूरी तत्परता से बिना किसी शिकायत के निभाना चाहिए।
जब हम ईमानदारी से अपने कार्य का प्रदर्शन करते हैं और बिना किसी बुरे या पूर्व उद्देश्य के अपना सर्वश्रेष्ठ देते हैं, उस समय हम स्वयं ही अपने मस्तिष्क की गुणवत्ता का निरीक्षण कर अपनी प्रगति भांप सकते हैं।
अपने कार्य प्रदर्शन के समय हमेशा सजग रहें, समय के अनुसार स्वयं को ढ़ालकर, उस क्षण हमें जो किरदार निभाना है, उसे ही सम्पूर्ण तल्लीनता से निभाएं। लेकिन याद रहे जीवन के कौन से भाग में कौन सा किरदार निभाना है इस बात पर सदा ध्यान दें। चाहे वह अपने कार्यस्थल या दफ्रतर पर एक कुशल कर्मचारी का किरदार हो या फिर परिवार में कुशल गृहस्थ का किरदार हो, हम जिस समय जो भी कार्य कर रहें है, उसे पूरी सजगता, एकाग्रता, ईमानदारी से निभाना है।
भूत-भविष्य पर ध्यान न लगाकर, वर्तमान पर ध्यान केन्द्रित करना है। एकाग्रता नहीं रहेगी तो हमारा मस्तिष्क दूर के धुंधले व बेकार के ख्यालों में सभी ओर से घिर जायेगा। यह सच है कि एकाग्रचित्त होकर अपना वर्तमान किरदार निभाना कोई सरल कार्य नहीं है, जिसे एक ही दिन में सीख लिया जा सकता हो। अपितु इसे सीखने के लिए निरंतर अभ्यास की आवश्यकता है। अपने वर्तमान स्थिति, वर्तमान कार्य पर ध्यान केन्द्रित कर भगवान कृष्ण की भांति जीवन के हर क्षेत्र में, हर किरदार में पूर्ण रूप से रच-बस कर हर स्थिति में हम विजयी बन सकते हैं।
निधि श्रीमाली
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