मानव गुण-दोष का समतुल्य पुतला है, एक ओर जहां उसमें वीरता, दृढ़ता, सत्यनिष्ठा, सदाचार, साहस, धैर्य, सहिष्णुता, विनम्रता, दया, परोपकार जैसे गुण हो सकते हैं। वहीं ईर्ष्या, द्वेष, कटुता, कायरता, घृणा, क्रोध, अहंकार आदि अनेक विकार भी उत्पन्न होते हैं। कोई भी मनुष्य पूर्णता का दावा नहीं कर सकता। जिसमें केवल गुण ही गुण हो- वह भगवान होता है, जिसमें गुण अधिक, दोष कम- वह देवता कहलाता है, जिसमें गुण-दोष समान वह मानव है और जिसमें गुण कम और दोष अधिक वह राक्षसी भाव का व्यक्ति है।
मानव मन अपनी चंचलता के कारण सदा संघर्ष में उलझा रहता है। मानव के पास बुद्धि का अपार भंडार है, बुद्धि बल के कारण ही उसे अन्य जीवों से श्रेष्ठ माना जाता है। आहार, निद्रा, भय और मैथुन तो पशुओं के जीवन में भी होता है, लेकिन मनुष्य जीवन में धर्म, कर्म, सत्य, निष्ठा, साहस, चार्तुय आदि गुण भी होते हैं। यदि मनुष्य अपने जीवन में धर्म पथ पर चलने वाला, निरंतर क्रियाशील, सत्य पाल्य, गुरु-ईश्वर के प्रति निष्ठावान और विपरीत परिस्थितियों में बुद्धि चातुर्य, साहस से विजय प्राप्त करता है तो ही उसकी मनुष्यता मानव योग्य है। आहार, निद्रा, भय और मैथुन में लिप्त जीवन केवल पशु तुल्य ही कहा जायेगा।
मनुष्य ने अपनी बौद्धिक क्षमता तथा मानसिक शक्ति के बल पर अनेक तरह की उपलब्धियां प्राप्त करके यह सिद्ध भी कर दिया है कि सृष्टि के समस्त चराचरों में केवल वही सर्वश्रेष्ठ प्राणी है। मनुष्य उचित-अनुचित, कर्तव्य-अकर्तव्य, धर्म-अधर्म, भले-बुरे के बारे में चिंतन कर निर्णय करने की अद्भुत क्षमता रखता है, उसमें दृढ़ता, कर्मठता, स्वावलंबन, साहस, सहिष्णुता, धैर्य आदि जैसे दैवीय गुण विद्यमान है।
संसार में ऐसा कुछ भी नहीं है, जो आपके सामर्थ्य से बाहर हो आप केवल सफ़लता असफ़लता की परवाह किये बिना लक्ष्य प्राप्ति के लिए आत्मविश्वास और कर्मठता से जीवन में निरन्तर क्रियाशील रहें। सफ़लता का एक ही सूत्र है विपत्तियों में भी अपना धैर्य स्थिर रखकर कर्मभाव को क्रियाशील रखें।
मनुष्य में कमी भी है कि वह संघर्ष करने की क्षमता होते हुए भी संघर्ष करते-करते कभी-कभी निराश और हताश हो जाता है। विपरीत परिस्थितियां उसे चुनौती देती हैं, जिसे वह स्वीकार नहीं कर पाता। जिसके कारण वह सफलता से वंचित रह जाता है। कभी-कभी वह भाग्यवादी बनकर कर्मभाव को त्याग देता है, जिससे निराशा के गर्त में गिरता चला जाता है और स्वयं को भाग्य के हाथों में छोड़ देता है, निराशा उसके पुरुषार्थ को कुंठित कर देती है। यदि जापान अपने दो प्रमुख नगरों पर परमाणु बम गिरायें जाने को किस्मत का खेल मानकर चुपचाप सहन कर लेता तो वह सदा के लिए समाप्त हो जाता। जापान के निवासियों के जीवट, कर्मठता तथा आत्मविश्वास की जितनी प्रशंसा की जाए कम है। उन्होंने यह दिखा दिया कि यदि मनुष्य सोच-समझकर, योजनाबद्ध तरीके से परिश्रम करें, तो सफलता उससे दूर नहीं रह सकती। कवि ने कहा है –
संभलो कि सुयोग न जाय चला
कब व्यर्थ हुआ सदुपाय भला
समझो जग को न निरा सपना
पथ आप प्रशस्त करो अपना
अखिलेश्वर है अवलंबन को
नर हो, न निराश करो मन को।
कवि ने कहा- संभल जाओ, इससे पहले कि यह अवसर, यह सुयोग चला जाये, तुम कुछ सद्-उपाय कर लो, किसी के सद्-प्रयास कभी भी व्यर्थ नही जाते। फिर कहा- यह जगत केवल कोरा सपना नहीं है, इसे सपना समझने की भूल मत करना, इस मनुष्य जीवन में तुम अपना पथ स्वयं प्रशस्त कर सकते हो और केवल तुममें ही वह क्षमता है, तुममें ही वह सामर्थ्य है, अन्य जीव-जन्तु ऐसा नहीं कर सकते, तुम ईश्वर का आभार मानों कि तुम्हें उन्होंने ऐसा अवसर दिया और अंत में कवि कहता है- अखिलेश्वर है अवलंबन को नर हो ना निराश करो मन को वह ईश्वर, वह परमात्मा रूपी गुरु तुम्हारा अवलंबन (सहारा) बनने के लिए तैयार है। वह तुम्हारा आधार बनेगा, तुम मनुष्य हो, केवल तुम ही कर्मशील, बुद्धिमान तथा चिंतनशील प्राणी हो, तुममें क्रिया शक्ति है, तुम क्यों निराश होते हो, जब वह सर्व समर्थवान नारायण तुम्हारे साथ है। निराश होकर बैठ जाना मनुष्य की क्षमता, योग्यता तथा आत्मविश्वास का अपमान है। निराशा तुम्हारा गुण नहीं है, तुम्हारा गुण है- उत्साह, आत्मविश्वास, कर्मठता, जीवटता और क्रियाशीलता। अपनी पराजय को अपने लिए चुनौती मानकर दुगुने उत्साह एवं वीरता से संघर्ष करना तुम्हारी प्रकृति है, पराजय को विजय में बदलना तुम्हारा स्वभाव है। तुम उत्साह से भरपूर सतत् चलते रहो——- प्रगति पथ पर बढ़ते रहो——-नूतन वर्ष की यही शुभकामनायें——-कल्याण हो–!!
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