माँ का हृदय तो होता ही करुणामय है, इसी स्वरूप के कारण ही वह देवी स्वरूपा कहलाती है और दे देती है वह सब कुछ, जो उसके पास है। जिससे उसके पुत्र आत्मीय को किसी भी प्रकार का कोई कष्ट न सहना पड़े, फिर उसके जीवन में किसी भी प्रकार की बाधाएं एवं अड़चने नहीं आतीं, वह उसके जीवन की प्रत्येक समस्याओं को दूर कर, जो उसके जीवन की उन्नति में बाधक सिद्ध हो रही होती है, स्वच्छ एवं सरल मार्ग प्रशस्त करती है। जिस पर चल कर उसका जीवन सुखमय बन जाता है, उसकी समस्त त्रुटियों की ओर ध्यान न देकर उसे सम्पन्नता युक्त जीवन प्रदान करती है।
देवी के तो अनेक रूप होते हैं- जगदम्बा, दुर्गा, तारा, काली किन्तु इन महाविद्याओं से परे एक और स्वरूप है ललिताम्बा जो ब्रह्माण्ड के समस्त सिद्धियों की स्वामिनी है। जहां वह अपने प्रेम, स्नेह और करुणा से साधक को अपना आशीर्वाद् प्रदान करती है, वहीं उसे पूर्व जन्मकृत पाप-दोषों से मुक्त और उसके जीवन के समस्त भौतिक और आध्यात्मिक शत्रुओं का विनाश कर उसे चिन्ता मुक्त जीवन प्रदान करती है।
आज के युग में प्रत्येक व्यक्ति सौन्दर्य युक्त, प्रभाव युक्त, शक्तिशाली एवं अद्वितीय जीवन जीना चाहता है और इसके लिये भरसक प्रयत्न भी करता है, किन्तु अपने आप को असफल एवं असमर्थ ही पाता है और इस असमर्थता को दूर करने के लिए वह कोई भी मार्ग और कोई भी उपाय करने के लिए तत्पर रहता है, ऐसे क्षणों में यदि सही मार्ग प्रशस्त हो जाए, तो वह अपने जीवन के उन अभावों को दूर कर पूर्ण जीवन जीने का अधिकारी हो जाता है और उसी पूर्ण जीवन की सृष्टि वह कर सकता है श्री प्राप्ति ललिताम्बा साधना के माध्यम से।
श्री के नौ आवरणों में रहस्य निहित है, श्री के सभी भावों का जो ललिता, त्रिपुर सुन्दरी, त्रिपुर वासिनी, त्रिपुर मालिनी, त्रिपुराम्बा, त्रिपुरासिद्धा, त्रिपुराक्षी, त्रिपुरभेदनी एवं त्रिपुरेशी कहलाती है। जो पराम्बा की नौ विशिष्ट शक्तियों के नाम हैं। ये शक्तियां मनुष्य के सम्पूर्ण जीवन से पूर्ण तादात्मय रखती हैं। जब साधक इन्हीं नौ स्वरूपों का तादात्मय अपनी देह से कर लेता है या ऐसा कहें कि विविध शक्ति स्वरूपों को समाहित कर श्री सम्पन्न बन जाता है।
श्री का तात्पर्य श्रेष्ठता है अर्थात् जो श्री सम्पन्न है, वही सभी श्रेष्ठताओं से युक्त हो सकता है। चाहे जीवन की भौतिक श्रेष्ठता हो या आध्यात्मिक श्री शक्ति से ही जीवन में श्रेष्ठमय सुस्थितियों का निर्माण होता है।
भगवती के इन नौ स्वरूपों में ही जीवन की समस्त कामनाओं की पूर्ति का मंत्र भी निहित है। यदि विचार पूर्वक देखा जाये तो मानव जीवन में भी नौ स्थितियां ही महत्वपूर्ण हैं। सर्व प्रथम तनाव मुक्त जीवन, सर्व कामना पूर्ति, आरोग्यता, शत्रु बाधा शमन, पूर्ण भाग्योदय, श्रेष्ठमय व्यक्तित्व, पद-प्रतिष्ठा, गृहस्थ व संतान सुख एंव कार्य सफलता भौतिक रूप से मानव जीवन की ये ही पहली आवश्यकता है। आध्यात्मिक पक्ष तो इनकी पूर्ति के बाद ही आरम्भ होता है। कहने का तात्पर्य है कि भौतिक इच्छाओं की पूर्ति के बाद ही आध्यात्मिकता का आरम्भ होता है।
भगवती जगदम्बा के किसी विशिष्ट रूप की साधना करने पर शीघ्र अनुकूल ढंग से लाभ भी विशिष्ट प्राप्त होता है। ललिताम्बा साधना प्रबल तांत्रोक्त साधना है, ललिताम्बा जयन्ती के चैतन्य दिवस पर इस अभीष्ट वरदाय स्वरूप की साधना करने से जीवन के अभीष्ट निश्चित ही फलित होते हैं। साधक के जीवन में चैतन्यता आवश्यक है और वह चैतयन्ता दैवीय शक्ति की आराधना के माध्यम से ही संभव हो पाती है। जीवन की दुर्गतियों चाहे वे मानसिक-शारीरिक अथवा आर्थिक हों, इन सभी स्थितियों के विनाश की चेतना श्री विद्या त्रिपुरा ललिताम्बा में पूर्णता से समावेश है। भगवती ललिताम्बा ऐश्वर्य और ज्ञान प्रदाता शक्तियों से भी युक्त है।
यह उन साधक का सौभाग्य है जो भगवती ललिताम्बा साधना में प्रवृत्त होते हैं, क्योंकि अन्य देवियों की अपेक्षा भगवती ललिताम्बा की साधना अपने आप में उत्कृष्ट और श्रेयस्कर मानी जाती है। शंकर भाष्य, तंत्रसार, रस तंत्र, विश्वामित्र संहिता आदि में ललिताम्बा साधना से कोटि-कोटि फल प्राप्ति का उल्लेख है। इसमें बताया गया है कि ललिताम्बा साधना सम्पन्न करने वाला साधक पूरे संसार में, जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में विजय प्राप्त करता है, जीवन में उसे किसी भी प्रकार को कोई भय नहीं रहता। इनकी साधना से नपुंसक व वृद्ध व्यक्ति भी पूर्ण यौवनवान एवं कामदेव के समान प्रभावशाली बन जाता है। सम्मोहन, आकर्षण उसमें स्वतः ही विद्यमान हो जाते हैं।
17 फरवरी रविवार को प्रातः स्नानादि से स्वच्छ होकर अपने पूजन कक्ष में बैठ जायें तथा स्वच्छ वस्त्र धारण कर पूर्व दिशा की ओर मुंह कर अपने सामने चौकी पर लाल वस्त्र बिछाकर उसके मध्य में एक ताम्र पात्र में ललिताम्बा यंत्र स्थापित करें, सामने चावल की ढे़री बनाकर रसराज गुटिका प्रत्येक पर एक गोल सुपारी रखें तथा दाहिनी ओर घी का दीपक प्रज्ज्वलित कर पुष्प, कुंकुंम, अक्षत अर्पित करें। अब धूप जलाकर आत्म शुद्धि का भाव अर्पित करें।
श्री, सौभाग्य, लक्ष्मी शक्ति से युक्त ललिताम्बा यंत्र दाहिने हाथ में लेकर त्राटक करते हुये अपनी मनोकामना व्यक्त कर प्रार्थना करें कि भगवती ललिताम्बा न केवल आपसे वरन आपकी वंश परम्परा से भी जुड़े और समस्त परिवार जनों का कल्याण और आगामी पीढ़ी के लिये भी वरदायक हों। अब भगवती ध्यान करें-
ध्यान के पश्चात् ललिताम्बा मंत्र का 5 माला मंत्र जप श्रीं शक्ति माला से करें।
मंत्र जप के पश्चात् एक माला गुरु मंत्र जप करें, पश्चात् पुष्प व अक्षत लेकर क्षमा प्रार्थना कर प्रसाद ग्रहण करें। साधना समाप्ति के पश्चात् सभी सामग्री को लाल कपड़े में बांध कर तिजोरी में रख दें।
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