लेकिन होता क्या है हर मनुष्य चाहता है कि उसे कोई अलौकिक शक्ति मिल जाये और वह अपनी सभी कामनाएं पूरी कर ले। इसी लोभ के कारण वह पंडो, पुजारियों, साधुओं के पीछे भागता रहता है, अपने कुण्डली, ग्रह, गोचर दिखाता है और बराबर खोजता है कि उसे कुछ मिल जाये। शायद ही ऐसा कोई चमत्कार उसके जीवन में होता हो, पहले के लोगों ने भी यही किया और वे चले गये पर चमत्कार नहीं हुआ, मैंने तो नहीं देखा चमत्कार, सुना बहुत हूँ और सुनी बात पर पूरी तरह भरोसा कर लूं, ऐसा संभव भी नहीं। मेरा कहना है कि बिना कारण कोई क्रिया नहीं हो सकती है।
पहले कारण बनाना पड़ेगा, फिर क्रिया का समय आयेगा अर्थात् पहले भूमि क्रय करनी होगी, फिर नींव बनेगी, उसके बाद मकान की बारी आयेगी और उससे भी पहले यह मानस बनाना होगा कि मुझे मकान बनाना है और अपना ही मकान बनाना है और जब यह मानस, यह विचार दृढ़ हो जाये, संकल्पित हो जाये, फिर क्रिया करनी पड़ेगी। जब आप अपने जीवन के 10 साल, 12 साल तक निरन्तर इस विचार पर क्रियाशील रहेंगे, एक चिंतन के साथ बढ़ते रहेंगे और चिंतन के साथ-साथ उस उद्देश्य की पूर्ति के लिए अपने कार्य को क्रियान्वित करते रहेंगे, तब आपका मकान, आपका घर बन सकेगा।
आपमें चमत्कारिक गुण हैं, प्रत्येक व्यक्ति में ऐसे गुण है और एक से बढ़कर एक विशिष्ट गुण हैं। जब व्यक्ति इन्हीं गुणों में किसी एक गुण को अच्छी तरह पकड़ लेता है, तो वह अपने जीवन का काया कल्प कर लेता है, बदल देता है जीवन के ढर्रे को और सत्य भी यही है कि आपके भीतर जो विशिष्टता है, वही आपकी अलौकिक शक्ति है।
परन्तु होता क्या है? सभी बाहर की दौड़ में हैं, अपने गुण, अपने साम्थर्य, अपनी क्षमता से परिचित होने का प्रयास तो करते हैं, पर जिस गहराई की अनिवार्यता है, जो जरूरी तत्व है गम्भीरता से ढूढ़ने की, उससे पीछे हट जाते हैं। जिस तरह बुराई की लत एक दिन में नहीं लगती, उसी तरह गुणों का भी उदय, अलौकिक शक्तियों का उदय एक दिन में नहीं होता, इसके लिए निरन्तर पूरी क्षमता के साथ, एक निश्चित मनोभाव बनाकर कर्म करना पड़ता है।
आप एक ही दिन में मेरे एकदम से निकट नहीं आ गए, एक ही दिन में आपको मुझ पर भरोसा नहीं हुआ और ना ही एक ही दिन में आप मेरी सारी बाते समझ पाये और ना मैं आपको, जब आपका मेरा बार-बार मिलना होता रहा, आपकी मेरी बराबर बातचीत होती रही, तब फिर आपको धीरे-धीरे लगा होगा कि यह व्यक्ति मेरा श्रेष्ठ सहयोगी, मेरा सबसे बेहतर मार्गदर्शक है, फिर आपकी मेरी आत्मीयता बढ़ी, तब जाकर हमारा एक-दूसरे के प्रति समर्पित घनिष्ट सम्बन्ध स्थापित हो पाया। लेकिन बहुत से लोग ऐसे भी हैं, जो नहीं बना पाये, क्यों नहीं बना पायें क्योंकि जिस गम्भीरता की आवश्यकता है उसके अनुरुप उन्होंने प्रयास नहीं किया होगा।
जीवन में कुछ भी अचानक से नहीं होता, उसकी पूरी एक प्रक्रिया होती है और जो चीजें पूरी प्रक्रिया के अनुरुप घटित होती हैं, वे ही स्थायी हैं, अचानक आयी हर वस्तु अस्थायी है। इसलिए अचानक चमत्कार की आशा करना एक प्रकार से धोखा है, स्वयं से। श्रम और कर्म से प्राप्त वस्तु पर अपना स्वयं का आधिपत्य होता है और उसकी प्रसन्नता आत्मिक संतुष्टि प्रदान करती है। मानव जीवन का इससे बड़ा उपहास यही है कि मनुष्य अपनी सभी कामनाएं मुफ्त में पूरी करना चाहता है, जीवन के दुख, संकट, परेशानी, उलझन और दर्द का मूल कारण भी यही है। जीवन के क्रिया-कलाप इसके प्रमाण हैं, जेब में सौ का नोट पड़ा हो फिर भी यदि रास्तें में एक छोटा सा सिक्का पड़ा मिल जाये तो उठा लेते हैं। क्यों उठा लेते हैं, क्योंकि वह मुफ्त का होता है। परिश्रम से प्राप्त की गई वस्तुओं की महत्ता होती है, उसका मूल्य, उसकी अहमियत का एहसास होता है।
एक सफल व्यापारी की बात आपको बताता हूं, उस व्यापारी का बड़ा अच्छा व्यक्तित्व है, वह मनुष्य जीवन का बड़ा पारखी माना जाता है। सैकड़ो कर्मचारी उसके यहां कार्यरत हैं, आश्चर्य की बात यह है कि उसके सभी कर्मचारी निष्ठावान हैं। एक बार मैंने पूछा- तुम्हारे पास इतने निष्ठावान कर्मचारी कहां से आ गये? कैसा रखा तुमने इनको? मेरी बात पर वह हंसने लगा। उसने बताया कि जब उसे कोई कर्मचारी अपने संस्थान में रखना होता है, तो वह उसके लिऐ विज्ञापन नहीं देता है और ना ही किसी से चर्चा करता है। स्वयं तलाश कर रख लेता है, उसने अपने संस्थान में एक खजांची रख छोड़ा है। हर समय उसके पास लाखों रूपये होते हैं, पर क्या मजाल एक भी रूपया कम पड़ जाये या हेरा-फेरी हो जाये। खजांची को मैंने खोजकर रखा है। शायद उसके बारे में पता करके रखा होगा। नहीं, अपने संस्थान में रखने से पहले मैं इसको पहिचानता तक भी न था। तब किसी मित्र की सिफारिश पर रखा होगा? नहीं—–नहीं जी! मैंने स्वयं तलाश कर रखा है।
वह कैसे ? तब उसने कहा- अपने संस्थान के लिए उसे ईमानदार खजांची की आवश्यकता महसूस हुई। अब तक वह स्वयं इस काम को करता आ रहा था। अब उसके पास इतना समय नहीं था। वह एक सुबह चुपचाप निकला, सड़क पर आ गया और उसने सौ रूपये का एक नोट सड़क पर डाल दिया। नोट डालकर एक ओर खड़ा हो गया। जब कोई उसे उठाने के बाद लेकर चलता बनने का प्रयत्न करता तो वह लपककर नोट उठा लेता था। कहता- नोट मेरा है। वह नोट का नम्बर भी बता देता था। लगभग नजर पड़ने वाला हर राहगीर ऐसा ही कर रहा था। कुछ देर बाद एक युवक निकला। उसने इधर-उधर देखा, नोट पहले देख चुका था। उसे उठाकर वह तुरन्त पास में तैनात कांस्टेबल के पास गया। श्रीमान! यह किसी का गिर गया है, इसे उचित अधिकारी को दे दें, पता न चलने पर सरकारी खजाने में जमा कर दें। उस व्यापारी ने लपककर उस युवक को धन्यवाद दिया। उसका नाम-पता पूछा।
फिर पूछा- तुम्हारी जेब में क्या सौ रूपये से ज्यादा रकम हैं? युवक ने कहा- नहीं श्रीमान! केवल बीस रूपये हैं, मैं बेरोजगार हूं, नौकरी की तलाश है। व्यापारी ने आगे कुछ न पूछा, वह चला गया, उस युवक के पते पर व्यापारी ने अपने संस्थान का खजांची नियुक्त कर पत्र भेज दिया। पत्र लेकर संस्थान में आने वाला वह बेरोजगार युवक उसे पहचान कर हैरान रह गया। अरे—–आप—-आप—–तो—- व्यापारी ने कहा- हां! तुम्हारी ही मुझे तलाश थी। उसे अपने यहां काम पर रख लिया, उसकी परख एकदम ठीक निकली, वास्तव में वह युवक ईमानदार था। उसकी कई बार परीक्षा ले चुका था वह और उस परीक्षा में वह युवक शतप्रतिशत खरा उतरा। इसी तरह परखकर उसने अपने अन्य कर्मचारी भी रखे थे। वह स्वयं भी अत्यन्त दीन-हीन-दशा से उठकर अपनी क्षमता पर इतना बड़ा संस्थान बना सका था। बचपन में वह मजदूर था। पहले मजदूरी करता था।
अब आप उस व्यापारी को अलौकिक शक्ति सम्पन्न विशेष गुणों वाला व्यक्ति कह सकते हैं। वास्तव में किसी व्यक्ति के विशेष गुणकारी कार्य ही उसको अलौकिक चेतना से सम्पन्न बनाते हैं, यही गुणकारी कार्य जीवन में चमत्कार करने में समर्थ होते हैं, जब कोई व्यक्ति इस प्रकार के गुणों के कारण कुछ विशिष्ट कर लेता है, तो वह श्रेष्ठ व्यक्तित्व का स्वरूप प्राप्त कर लेता है। यही विशिष्ट गुण सभी को अपने जीवन में ढूंढना हैं, अपनी विशेषता पहचान कर विशिष्ट कार्यों को सम्पन्न करना है और जब आप अपने विशिष्ट गुणों से परिचित हो जायेंगे, तो स्वतः ही आपमें एक अलौकिक शक्ति विद्यमान होने लगेंगी। वास्तव में मनुष्य के गुणकारी काम ही उसकी अलौकिक शक्तियां है। प्रत्येक मनुष्य में गुण होते हैं। ऐसी बात नहीं है कि बाकी गुणहीन रहते हैं। गुण भव्य हैं, पर गुण एक विशाल इमारत की कोठरियों के समान हैं। जिन लोगों ने कोठरियों को खोला ही नहीं है, उनका अलौकिक शक्तियों से सामना कैसे हो?
जीवन की कामनाएं यूं ही पूरी नहीं होती है, उनके लिए गुण रूपी अलौकिक शक्तियां आवश्यक है। उनका उपयोग आवश्यक है, यह गुण रूपी शक्तियां सभी मनुष्यों में हैं। केवल कोठरियों के द्वार खोलना है, कोठरियों के द्वार खोलने के लिए विशेष योग्यता, शिक्षा, परिवार की पृष्ठभूमि आदि आवश्यक नहीं है। हर वर्ग, हर श्रेणी का व्यक्ति इस प्रकार की कोठरियों को खोल सकता है, केवल उसमें इच्छा शक्ति होना आवश्यक है। कामनाएं हमारी वासनाएं बनकर हमको ललचाती रहती हैं, हम अच्छा सुखी जीवन चाहते हैं। अच्छा भोजन, अच्छे कपड़े, अच्छा रहन-सहन, अच्छी पत्नी, अच्छा मकान, अच्छा पैसा चाहते हैं।
हमारी कामनाएं बहुत हैं, मनुष्य का शरीर जर्जर हो जाता है, एकदम टूट जाता है, पर कामनाएं नहीं मरतीं। संतो का कथन है कि कामनाएं नहीं मरतीं है, शरीर मर जाता है। यह सत्य है, हमारी कामनाएं अनन्त हैं, एक कामना पूरी होती है, तो दूसरी के लिए हम ललक उठते हैं। यह प्रत्येक मानव का स्वभाव है, कोई भी मानव इसका अपवाद नहीं है, हर आदमी कामनाओं और लालसाओं की गठरी लादे फिर रहा है और वह अपनी कल्पनाओं में कामनायें लेकर जीवन भर भटकता रहता है, अधिकांश का यही हाल होता है।
इस विराट विश्व की आबादी का एक बहुत बड़ा भाग मनुष्य की सीमा रेखा से भी निम्न स्तर का जीवन जी रहा है। गरीबी की रेखा से भी निम्न स्तर है, उनका मन भी कामनायें लिये है, लालसाओं से भरा पड़ा है, पर वे लोग जीवन-भर ऐडि़या रगड़-रगड़ कर मर जाते हैं। उनकी तमन्ना उनके साथ ही दफन हो जाया करती है। आखिर ऐसा क्यों होता है? इसका सीधा सा कारण है कि उनमें जो शक्तियां होती हैं, वे शांत हैं, उन लोगो ने कभी अपनी शक्तियों को जानने का प्रयत्न ही नहीं किया।
दुनिया के अधिकांश लोग गरीबी में जीवन जीकर अपनी कामनाओं के साथ दफन हो जाते हैं, इसके लिये कोई और नहीं, वह स्वयं जिम्मेदार है। आखिर कामनाएं क्यों नहीं पूरी कर पाते? खाना कपड़ा, मकान के लिये क्यों तरसते हैं? इसमें उनका दोष है। संसार का कोई भी मेहनतकश आदमी भूखा नहीं मर सकता है। साधनों की कमी, अपने निकम्मेपन पर पर्दा डालने का प्रयास है। मनुष्य चाहे तो अपनी प्रत्येक कामना पूरी कर सकता है। परम पिता परमेश्वर ने उसे इस योग्य बनाया है। अब वह ईश्वर प्रदत्त अपनी इस योग्यता का उपयोग न करे, तो इसमें दोष उसी का है। एक कवि ने एक बहुत अच्छा व्याख्यान दिया, कवि ने कहा- हम मनुष्य हैं और हमारे साथ सबसे बड़ी कठिनाई या समस्या यह है कि हम सरलता से हर काम का फल पाना चाहते हैं। अपनी हर कामना को हम हाथ पर हाथ रखकर पूरी करना चाहते हैं।
वास्तव में कवि का यह कथन सत्य है, हमारी कामनायें हैं, पर हम चाहते हैं कि हमारे हाथ में जादू की छड़ी हो और हम उसे घुमाकर सारी मनोकामना पूरी कर लें। खुल जा सिम-सिम! अली बाबा की तरह खजाना खुल जायें——अलौकिक शक्ति आये, हमारा स्वप्न पूरा हो जाये! लेकिन अंत में कुछ भी हाथ नहीं आता, इसी स्वप्न को लिये-लिये हम एडि़यां रगड़कर मर जाते हैं और कामनाएं हमारे साथ अतृप्त ही चली जाती हैं। सत्य तो यह है कि मनुष्य की ऐसी कोई सुमनोकामना नहीं होती है, जिसको पूरा ना किया जा सके, सबकी पूर्ति हो सकती है। एक लेखक का कथन है कि मनुष्य की सभी अपनी कामनाएं पूरी नहीं होती हैं, तो वह भाग्य को, ईश्वर को दोष देने लगता है, जब कि पूर्ण रूप से जिम्मेदार वही है। भला इसमें ईश्वर का क्या दोष है! ईश्वर ने मनुष्य के रूप में पूरा शरीर दिया, दिमाग दिया और क्या दे ईश्वर! यही उसकी बड़ी कृपा है, कि उसने हमको हष्ट-पुष्ट देह, विचार, दिमाग दिया है। हम शरीर, विचार से अपंग नहीं हैं। ईश्वर ने अपनी रचना के माध्यम से सृष्टि के सभी भण्डार खुले छोड़ रखें हैं, कोई पाबन्दी नहीं है, यह हम पर निर्भर है कि हम क्या और कितना प्राप्त करने के लिए किस तरह परिश्रम करते हैं।
भाग्य का भी दोष नहीं है, भाग्य बदल सकता है, इसमें कोई बड़ी बात नहीं है, लेकिन भाग्य बदलने का जज्बा होना चाहिये। दक्षिण अफ्रिका के जोहान्सबर्ग में सोने की खदानें हैं। वहां लोग ठेके पर जमीन लेकर सोना निकालते हैं। विलियम स्टीवर्ड ने जमीन का ठेका लिया। ढेरो खुदाई की पर एक कण सोना नही मिला। हार कर ठेका छोड़ चला गया। उसी जमीन का ठेका एक और व्यक्ति ने लिया। दस फीट और खुदाई करने पर उसमें से सोने की परतें निकल आयी। इसे आप क्या कहेंगे? भाग्य, नहीं विलियम स्टीवर्ड हिम्मत हार गया, छोड़ कर चला गया। अगर वह हिम्मत न हारता तो उसे सोने की परतें अवश्य प्राप्त होती। हिम्मत हारने वाला, जिसमें धैर्य ना हो वह जीवन भर रोता ही रहता है। चींटी का उदाहरण कितनी बार आपने बचपन में सुना होगा और प्रैक्टिल जीवन में भी देखा होगा। चींटी कितनी बार चढ़ती-गिरती है, पूरी पत्रिका में यही शब्द यदि लिखा जायें और चींटी वास्तव में उतनी बार गिरे तो भी वह हिम्मत नहीं हारेगी। अन्ततः आप देखेंगे कि वह सफल होती है।
फिर आप क्यों नहीं हो सकते? निश्चित रूप से आप में वे सारी शक्तियां, वह ज्ञान और चेतना है, जिसके द्वारा आप सब कुछ प्राप्त कर सकते हैं। जेपलीन ब्रदर्स हिम्मत हार गये होते तो आज हवाई जहाज नहीं होता, एडीसन अल्वा हिम्मत हार गये होते तो आज टेलीफोन, बिजली नहीं होती—–हिमालय में जीवन बिताने वाला वहां की प्रचण्ड ठंड देखकर हिम्मत हार जाता, तो वह कभी सिद्ध योगी नहीं बन पाता, स्वतंत्रता सेनानी अंगेजी शासन के क्रूर व्यवहार से हिम्मत हार जाते तो भारत स्वतंत्र नहीं हो पाता है। इसमें भाग्य क्या कर सकता है। यह तो आपके हिम्मत, आपके जज्बे, साहस की क्रिया है।
इसलिये हमारी कामनाएं पूरी नहीं होती तो इसमें ईश्वर का दोष नहीं है, न ही भाग्य का। यह बात कड़वी हो सकती है, परन्तु है सत्य, तर्कसंगत है। गम्भीरता से आप विचार करेंगे तो आपमें स्वीकृति निश्चित ही आयेगी। आप निरन्तर प्रयास करते रहिये, पूरी लगन के साथ आप अपना प्रयास मत छोडि़यें, बंजर भूमि पर भी खेती हो सकती है। आपने सुना होगा- बिहार गया से जीतन मांझी के बारे में, उनके जीवन पर एक फिल्म भी बनी। पूरा जीवन उस व्यक्ति ने लगा दिया पहाड़ के बीच रास्ता बनाने में 22 साल तक परिश्रम किया और अंत में सफलता मिली, सरकार भी उनके हिम्मत के सामने नतमस्तक हुयी, आप कल्पना कर सकतें हैं कितना साहस और धैर्य था जीतम मांझी में।
जीवन की हर समस्या से वह व्यक्ति जूझा, लड़ता रहा। बात केवल इतनी सी थी कि पहाड़ के कारण अस्पताल जाने के लिये लम्बी यात्रा करना पड़ती थी और इसी कारण वह अपनी पत्नी को सही समय पर इलाज के लिये अस्पताल पहुंचाने में असफल रहा, यही घटना जीतन मांझी के जीवन की चुनौती बन गयी और उस व्यक्ति ने विशाल पहाड़ को अपने व्यक्तित्व के सामने बौना कर दिया, एक सामान्य सा व्यक्ति जिसमें आप से भी कम चातुर्यता है, जो बिलकुल आधुनिक नहीं है आप तो उस व्यक्ति से कहीं अधिक सक्षम हैं, ज्ञान है, बुद्धि है, विवेक है और वह सभी संसाधन ईश्वर ने आपको दिया है, जो आपके जीवन के लिये आवश्यक है।
फिर आप क्यों नहीं विशालता को प्राप्त कर सकते, आप अपना प्रयास तो जारी रखें, जीवन के अंत तक करना पड़े तो क्या हुआ, मन में यह विश्वास हों, मन में यह संकल्प हो जिन्दगी में जंग लड़ते हुये चले जाना पड़े तो कोई गम नहीं, लेकिन हिम्मत नहीं हारेंगे। आप इस भरोसे के साथ, इस विचार के साथ आगे बढि़ये निश्चित रूप से एक दिन आप विशाल रूपी व्यक्तित्व की प्राप्ति करेंगे——–कल्याण हो—-!!!
परम पूज्य सद्गुरुदेव
कैलाश चन्द्र श्रीमाली
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