भारतीय संस्कृति में सभी पर्वों, त्यौहारों का अपना विशेष महत्व होता है। प्रत्येक पर्व सद्गुणों और जीवट शक्ति की वृद्धि का चिंतन स्वयं में समेटे होते हैं। साथ ही भारतीय संस्कृति के सभी पर्व-उत्सव अधर्म पर धर्म की, बुराई पर अच्छाई की विजय प्राप्त कर जीवन में शुभ-सौभाग्य प्राप्ति के प्रतीक हैं। पर्व ऐसे क्षण होते हैं, जब मनुष्य परिवार, समाज, मित्र, सम्बन्धियों के साथ मिलकर जीवन में हर्ष-उल्लास युक्त क्षणों का आनन्द लेता है और सभी के साथ प्रसन्नता पूर्वक अपने भावों को अभिव्यक्त करता है, जिससे आपसी सम्बन्धों में मधुरता और स्थिरता आती है। साथ ही अपने इष्ट देव, भगवान और गुरु से विनीत भाव में मंगलमय जीवन प्राप्ति की प्रार्थना करता है एवं जीवन में प्राप्त आनन्दमय क्षणों के लिये उन्हें धन्यवाद् अर्पित करता है। पर्व-त्यौहार के विशेष क्षण हमें ईश्वर से एकात्म भाव स्थापित करने का अवसर प्रदान करने में सहायक होते हैं, यह एक ऐसा चेतनामय विशिष्ट क्षण होता है, जिसमें प्रार्थना, साधना, विनती करने पर स्वयं से, परिवार से, सम्बन्धियों से और देशवासियों से प्रेम और सकारात्मक भावों की प्राप्ति होती है, साथ ही आपसी सौहादर्य, विश्वास में वृद्धि होती है। इन विशिष्ट क्षणों में की गयी पूजा, साधना, मंत्र, आरती, उपवास का अक्षुण्ण प्रभाव होता है, जिससे हमारी कामनायें शीघ्र फलीभूत होती हैं।
उत्सव सभी के लिए प्रेरणा का स्रोत है, उत्सव विधि-पूर्वक सम्पन्न करने से यह स्मरण बना रहता है कि कठिनाईयों, परेशानियों का सामना कर और असीम संघर्ष के बाद ही भगवान ने भी अधर्म पर विजय प्राप्त की और समाज में धर्म द्वारा सुख-सौभाग्य, प्रसन्नता, आनन्द, प्रेम का वातावरण बन सका। प्रत्येक व्यक्ति का यह कर्तव्य है कि वह पर्व-त्यौहार को विधि-विधान सहित पूरी भावना से सम्पन्न करें, सभी के द्वारा यह प्रयत्न होना चाहिये कि वह संसार में कहीं भी हो, किसी भी स्थिति में हो उसे एक स्थान पर सामूहिक रूप से एकत्रित होकर परिवारमय भावों के साथ पर्व-त्यौहार सम्पन्न कर ईश्वर, गुरु से आशीर्वाद् प्राप्ति की भावना व्यक्त करनी चाहिये।
आज के आधुनिक युग में अधिकांश त्यौहार सोशल मीडिया पर ही सम्पन्न होते जा रहें हैं। ध्यान रखें उत्सव का मूल तत्व परिवार में ही निहित है, परिवार के साथ उत्सव का जो आनन्द प्राप्त होता है, अपने परिवार के छोटे सदस्यों को उपहार देकर, बड़ें सदस्यों से आशीर्वाद प्राप्त कर जो प्रसन्नता और संतुष्टि प्राप्त होती है, वह अन्यत्र कहीं नहीं मिल सकती। ईश्वरीय रचित इन सभी पर्वों, त्यौहारों को हम स्वः प्रशंसा और प्रदर्शन के कारण धूमिल कर रहें हैं, जिससे पारिवारिक-सामाजिक मूल्यों का ह्रास बहुत तेजी से हो रहा है और हम जिस दिशा में बढ़ रहें, वे दिशायें हमारी दशा को हानि पहुंचाने वाली हैं अर्थात् हम अपने ही विनाश की ओर अग्रसर हो रहें हैं। यदि हम स्वयं में निहित बुराईयों के साथ जीवन यापन करेंगे तो हममें और रावण, हिरण्यकश्यप, कंस में कोई भिन्नता नहीं रहेगी। पर्व, त्यौहार, उत्सव इसीलिये सम्पन्न किये जाते हैं कि आन्तरिक रूप में व्याप्त असुरी शक्तियों का शमन हो सके। उत्सव इस बात का सूचक है कि हम अपना जीवन निर्वाह सद्भावों के साथ कर सकते हैं। हम नकारात्मक शक्तियों पर निर्भर नहीं हैं- धर्म और श्रद्धा मार्ग पर ही जीवन में उत्साह, आनन्द, प्रसन्नता सम्भव है।
अपनी निष्ठा, आस्था, समर्पण और भावना को प्रबल, सशक्त और दृढ़ करने के उद्देश्य से ही प्रत्येक 21 तारीख को सामूहिक सद्गुरु आवाहन, गुरु पूजन, मंत्र जाप, हवन, अभिषेक, आरती, भजन आदि क्रियायें सम्पन्न करने का निर्देश परम पूज्य सद्गुरुदेव के द्वारा आप सभी को प्राप्त हुआ। अनेक स्थानों पर ऐसे भव्य कार्यक्रम निरन्तर सम्पन्न हो रहें है, परन्तु खेद के साथ मुझे कहना पड़ रहा है कि आज भी अधिकतर साधक, शिष्य निद्रा में हैं, मैं समझ नहीं पाता वे अपने जीवन के बहुमूल्य समय को क्यों व्यर्थ कर रहें है, आखिरकार आप खोना क्या चाहते हो? आप इसकी गम्भीरता क्यों नहीं समझने का प्रयास कर रहें है। सामूहिक पूजन, मंत्र जप, भजन से आप सभी में निहित शक्तियां एकत्रित होकर किसी भी देवी-देवता, ईश्वर अथवा सद्गुरुदेव को आपकी प्रार्थना स्वीकार करने के लिये विवश कर देता है। एकता में जो शक्ति निहित है, उसकी गहनता को समझें आप, आप अपनी कर्महीनता, आलस्य और स्वार्थमय तत्वों से बाहर निकलें। प्रत्येक माह की 21 तारीख आपका उत्सव है, आपके लिये प्रकाशमय दिवस है, जीवन के अंधियारे को समाप्त करने का क्षण है और आप उस दिवस की चैतन्यता व्यर्थ जाने दे रहें हैं। यही कारण है कि ना जीवन में गुरु से एकात्म सम्बन्ध स्थापित हो पा रहा है और ना ही जीवन के दुःख-संताप से मुक्ति मिल रही है। आपको दीक्षित कर सद्गुरुदेव जी ने अपनी जिम्मेदारियों का पूर्णता से निर्वहन किया, अब आप अपनी शिष्यता, अपने साधक होने का गौरव कैसे सुरक्षित रखते हैं, यह आपका निर्णय है—–!!!
आपका अपना
विनीत श्रीमाली
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