चैत्र नवरात्रि नूतन वर्ष की उत्पत्ति का पर्व होता है, जो कि शक्ति साधना के लिए सिद्ध मुहूर्त युक्त है और प्रकृति में उपस्थित शक्ति की चैतन्यता को प्रखर मंत्रें एवं विधान के द्वारा अपने भीतर आत्मसात किया जा सकता है। इन दिवसों में आद्या शक्ति की चैतन्यता, ऊर्जा प्राप्त कर साधक जीवन में व्याप्त शत्रु उदण्डता, बाधा और स्वयं के विकारों पर विजय प्राप्त करने में समर्थ बनता है, शक्ति से ही जीवन है, शक्ति ही श्वास-प्रश्वास की क्रिया है। शक्ति से ही जीवन में साहस, पौरूषता, प्रचण्डता व सुख-समृद्धि-शांति है।
भगवती माता जी ने भले ही सामान्य रूप से एक गृहिणी स्वरूप में अपना सम्पूर्ण जीवन व्यतीत कर दिया हो, परन्तु वे वास्तविक रूप से साक्षात् शक्ति स्वरूपा ही हैं, जो वात्सल्य भाव व गोपनीय ढंग से सदैव सृजन व वृद्धि की क्रिया में संलग्न रहीं, माँ तो सदा ही शिशुवत् शिष्यों के कल्याण हेतु परित्याग की वेदी पर आहुत होने के लिए तत्पर रहती हैं, अपना सब कुछ न्यौछावर कर अपने शिशु के कल्याण का मार्ग प्रशस्त करती है———माँ भगवती—-हम सभी की ऐसी ही मातृ शक्ति हैं जिनकी उपासना, श्रद्धा, स्मरण से जीवन समृद्ध व सुखद बनता है ।
आद्या शक्ति माँ सम्पूर्ण संसार में सबसे अधिक पूज्य है, उनकी आराधना सर्वोत्तम मानी गयी है। भौतिक रूप में प्रकृति शरीर धारिणी हमारी गुरु माता भगवती उसी परात्पर शक्ति माता की स्वरूप हैं। जिनके वात्सल्य में अनंत शिशुवत् शिष्य-शिष्यायें शिक्षित-दीक्षित होकर पूर्णता प्राप्त कर रहें हैं। यह हमारी गुरु माता के मातृत्व भाव का व्यापक स्वरूप है, जिसे तीक्ष्ण से तीक्ष्ण बुद्धि द्वारा नहीं अपितु निर्विकार अबोध भाव से ग्रहण किया जा सकता है।
माता के स्वरूप में जो क्षमा है, जो सरलता है, जो दया है, शिशु को गोद में उठा लेने की जो उत्सुकता है, जो अपार वात्सल्य है, वह पितृ स्वरूप में एक विलक्षण गम्भीरता के भीतर छिपा होता है, उसे प्रकट करने वाली माता ही है, पिता-पुत्र के बीच मध्यस्ता कराने वाली माता ही है। माँ के चरणों में बैठकर उनके संकल्प, इच्छा के अनुरूप कोई भी पितृ चरणों का अधिकारी बन सकता है।
उन्हीं परम प्रिय माँ की ममता, उनके वात्सल्य की महिमा का गुणगान करने का अवसर हमें प्राप्त हो रहा है। दयामयी परमेश्वरी पथ प्रदर्शिका माता भगवती की स्तुति करने का सौभाग्य हमारे समक्ष उपस्थित हो रहा है। जिनके वात्सल्य स्पर्श से जीवन में व्याप्त विनाशक कोलाहल का समाप्त होना सुनिश्चित है।
अयोध्या भूमि केवल श्रीराम की जन्मभूमि ना होकर सम्पूर्ण मानवीय संस्कृति के लिए प्रेरणा स्रोत है। यह भूमि जहां मर्यादा, आचरण, व्यवहार, चरित्र, स्वभाव, विचार की चैतन्यता से आपूरित है तो वहीं पुरुषों में भी पुरुषोत्तम के विशिष्ट गुण से आभूषित है। भगवान श्रीराम केवल भक्ति मार्ग का विषय ही नहीं है, बल्कि उनकी साधना, उपासना से मर्यादित भाव-भूमि के साथ-साथ पौरूषता, भौतिक सुख, सर्व कर्म शक्ति प्रदाता पुरुषोत्तम की चेतना से आपूरित है, इसी से असुर रूपी स्थितियों पर विजय ध्वज स्थापित किया जा सकता है।
नवरात्रि के शक्तिमय दिवसों में भगवान श्रीराम की चैतन्यता से आपूरित भूमि फैजाबाद उ-प्र में शक्ति साधना, उपासना, दीक्षा व नारायण भगवती की वात्सल्यमय अनुकम्पा की कामना करना जीवन का अहोभाग्य है और इन सभी क्रियाओं के माध्यम से जीवन विशिष्ट दैवीय ऊर्जा से युक्त होगा और सद्गुरुमय चैतन्यता से साधक अपने स्वयं के जीवन को हर स्वरूप से सर्वश्रेष्ठ व पुरुषोत्तममय बना सकेंगे।
माँ आद्या शक्ति स्वरूपा भगवती का जन्मोत्सव नारायण स्वरूप श्रीराम की चैतन्य भूमि फैजाबाद में सम्पन्न होगा। इस दिव्य महोत्सव में आद्या शक्ति नवदुर्गा धूम्र विलोचन चण्डी शक्ति पुरुषोत्तम साधना, पूजन, हवन, दीक्षा युक्त साधनात्मक क्रियाओं से जीवन में विजयश्री युक्त स्थितियों का निर्माण और जीवन निर्विघ्नता के साथ श्रेष्ठमय सद्गुणों से विभूषित हो सकेगा। साथ ही संतान पक्ष अनुशीलता, आज्ञा पालन वृद्धि, सुसंस्कारमय भावों से आपूरित होंगे और भगवती माता जी के अनन्त करूणा, वात्सलय की चेतना आत्मसात कर अभूतपूर्व जीवनी शक्ति से आप्लावित हो सकेंगे। जिससे जीवन अभ्युदय युक्त यशस्वी बन सकेगा।
आपका सपरिवार हार्दिक अभिनंदन है—!!
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