भगवान शंकराचार्य कहते हैं-
अर्थात् सांसारिक जीवन का भटकाव प्राणी को जन्म-जन्मांतर तक जीवन-मरण के बंधन से बांधे रखता है। सत्य यही है कि संसार में सुख बहुत कम है और जो है भी वह आभास मात्र ही है, वास्तव में संसार रहने योग्य नहीं है बल्कि अपने कर्मों द्वारा रहने योग्य बनाया जाता है। सांसारिक व्यक्ति हर क्षण किसी ना किसी क्रिया में उलझा रहता है, उसकी उलझने दिन-रात उसे परेशान करती हैं। संसार तो हर पल बीच मझधार में डूबाने के लिए तैयार है, इस भवसागर से पार कराने वाला महापुरुष दुर्लभ संयोग से ही मिलता है और जब वह मिलता है, तब यदि भटकाव पैदा हो तो यह उस प्राणी का, उस साधक-शिष्य का प्रबल दुर्भाग्य ही कहा जायेगा।
इसलिये जीवन में जब ऐसी स्थितियां बने, ऐसा विशिष्ट योग निर्मित हो तो पहली प्रार्थना होनी चाहिये कि हे ईश्वर! हे गुरुवर! हे निखिल! मुझे सद्मार्ग दें, मेरे कल्याण का मार्ग दिखा। एक बात स्पष्ट रूप से आपको समझनी चाहिये कि आप से अधिक आपका कोई मित्र, सम्बन्धी, रिश्तेदार, परिवार आपके हित के लिए नहीं सोच सकता और यदि कोई ऐसा है जो आपसे अधिक आपके हित के लिए सोचता है तो वह है आपका सद्गुरु। इसलिये जब स्थितियां ऐसीं आयें, जब ऐसा योग निर्मित हो जो शाश्वत कल्याण का मार्ग हो, उस मार्ग पर चलने में हिचकिचाना मत, आंख बंद करके पूर्ण समर्पण भाव, दृढ़ इच्छा शक्ति के साथ उस मार्ग पर बढ़ जाना।
भटकाव की स्थितियां बहुत सी आयेंगी, भटकाने वाले लोग भी आयेंगे। अनेक प्रकार से भ्रमित करेंगे, लोभ भी देंगे अनेक-अनेक तरह की स्थितियों का सामना करना पड़ सकता है, आप अडिग रहो अपने कर्म पर।
आपको किसी की सुननी नहीं, किसी की माननी भी नहीं है, अपनी बुद्धि से, अपने विवेक से, स्वयं के मनन-चिंतन से और आपके अन्तः करण से जो प्रेरणा प्राप्त होती है, उसी मार्ग का चयन करना और एक बात ध्यान रखना आगे नदी गहरी है और उस पर नाव भी पुराना है, इसलिये तुम केवट से मिले रहना, मझधार पार कराने वाला केवल वही है। इस समय आपको अपने आन्तरिक विवेक का प्रयोग करना है। क्योंकि-
संत कबीर का कहना है- समुद्र की लहर में मोती आकर बिखर गये, बगुले को उनका भेद नहीं पता लेकिन हंस उन्हें चुन-चुन कर खा रहा है। जो साधक गहन चिंतनशील हैं, जिनमें तथ्यों को पहचानने की क्षमता है, जो विवेकवान हैं वे मोती पहचान जायेंगे और सही रूप में उन्हीं साधक स्वरूप हंसों के पंखुडि़यों में प्राणश ऊर्जा का संचार हो सकेगा और वे ही उच्च गगन में अपना स्थान बना सकेंगे।
सद्गुरुदेव जी महाराज के संरक्षण और उनकी आज्ञा से आप सभी मानस पुत्र-पुत्रियों को मैं हृदय भाव से आमंत्रित करता हूं और सद्गुरुदेव नारायण-माँ भगवती की ओर से आपका आवाहन करता हूं, आप सभी को देव शक्तिमय गंगोत्री-बद्रीनाथ धाम के दिव्यतम छठी इंद्रिय जाग्रय साधना महोत्सव में सपरिवार सम्मलित होना ही है। क्योंकि ये सप्तपुरी तीर्थ धाम सर्व तारणमय व योग-भोग प्रदायक चेतना से आपूरित हैं साथ ही सहड्ड वर्षो से समस्त प्रमुख ऋषियों व स्वामी निखिलेश्वरानंद जी की सिद्धाश्रममय कर्मभूमि व तपोभूमि भी रही है। इसलिये दोनों दिव्य धामों की यात्रा एक साथ परमहंस स्वामी निखिलेश्वरानंद महाराज जी का स्मरण, ध्यान, चिंतन, मनन करते हुये देवमय शक्तियों को आत्मसात करते हुये सर्व पाप मोचनी पवित्र गंगा शक्ति व काल भैरव विजयश्री की साधनात्मक दीक्षायें व पूजन की क्रियायें सद्गुरुदेव महाराज जी के आज्ञा अनुसार सम्पन्न होंगी। ———–आप सभी का पुनः आवाहन करता हूं————उद्घोषणा करता हूं———–आपका सपरिवार इस दिव्य यात्रा में आना———-सांसारिक जीवन की सर्वोच्च उपलब्धि होगी——–कल्याण हो—!!
अर्थात् इस संसार में मनुष्य का जन्म सर्व पुण्य उदय होने पर सद्गुरु की असीम कृपा से मिलता है। जिस तरह वृक्ष से पत्ता झड़ जाने पर दुबारा नहीं लगता उसी तरह यह मनुष्य शरीर बार-बार नहीं मिलता।
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