इस प्रकार पहले सफेद केश के चिन्हानुसार बलराम इसके पश्चात् काले केश यानि कि भगवान कृष्ण माता देवकी की कोख में प्रविष्ट हुए। इसी कारण से बलराम गौर वर्ण व श्रीकृष्ण श्याम वर्ण थे। भगवान बलराम के जन्म की कथा भी अद्भुत और विज्ञान से परे है। कंस पहले ही माता देवकी की छः संतानों की हत्या कर चुका था, इसलिए जब बलराम जी उनके गर्भ में थे, तब सातवें माह में भगवान की माया ने उन्हें वासुदेव की दूसरी अर्धांगिनी रोहिणी की कोख में स्थानांतरित कर दिया था। रोहिणी उस समय गोकुल में रह रही थी, मां रोहिणी द्वारा उत्पन्न संतान से कंस के प्राणों को कोई खतरा नहीं था, इसलिए उन्हें कारागार में नहीं रखा गया था, इस प्रकार बलराम जी का जन्म माँ रोहिणी द्वारा हुआ। अत्यन्त शुभ मंगल बेला श्रावण मास के प्रथमार्द्ध में श्रवण नक्षत्र में श्री बलराम जी का जन्म हुआ।
बलराम का जन्म भगवान कृष्ण के भाई के रूप में हुआ था, इन्हें बलदेव, बालभद्र, हलयुद्ध के नामों से भी जाना जाता है। बलराम शेषनाग के अवतार है। हरिवंश पुराण में इन्हें संकर्षण नाम से भगवान विष्णु के आठवें अवतार के रूप में दर्शाया गया है। भगवान बलराम शौर्य के प्रतीक हैं, ये आज्ञाकारी पुत्र होने के साथ-साथ आदर्श भाई, आदर्श पति व आदर्शवादी पुरुष हैं। इनका जीवन हमें कर्तव्य निष्ठ भाव से सत्य के मार्ग पर निडर होकर चलने की शिक्षा देता है व सरल, सज्जन जीवन यापन करने के लिए प्रेरित करता है।
बहुत ही कम उम्र में ही बलराम ने श्री कृष्ण के साथ मिलकर धेनुकासुर का वध कर दिया था। बलराम ने मथुरा जाकर कंस का वध करने में कृष्ण का सहयोग किया था। साथ ही अत्याचारी कंस का वध करने के बाद कंस के पिता राजा उग्रसेन, जिन्हें कंस ने बंदी बनाकर रखा था, कृष्ण व बलराम ने उन्हें पुनः मथुरा का राज्यपद सौंप दिया था। इसके बाद वे दोनों भाई गुरु सांदीपन के आश्रम में शिक्षा लेने उज्जैन प्रस्थान किया।
भगवत पुराण के अनुसार रेवती सूर्यवंशी राजा कुकुदमी की पुत्री थी, जो कुशस्थली नाम के राज्य के शासक थे। रेवती नक्षत्र का नाम राजकुमारी रेवती के नाम पर ही है। जब राजकुमारी विवाह योग्य हुई, तब उनके पिता उनके लिए एक सुयोग्य वर ढूंढने लगे परन्तु उन्हें अपनी गुणवती पुत्री के लिए कोई उपयुक्त वर नहीं मिला, इसके उपाय हेतु वे अपनी पुत्री को लेकर भगवान ब्रह्मा के पास गये, परन्तु उस समय ब्रह्म जी गंधर्वो व अन्य देवताओं के साथ गायन व वाद्य कला द्वारा मनोरंजन में व्यस्त थे। राजा कुकुदमी और रेवती द्वार पर ही धैर्यपूर्वक भगवान ब्रह्मा की गायन सभा सम्पन्न होने की प्रतीक्षा करने लगे। अंततः गायन सम्पन्न होने पर राजा कुकुदमी ने भगवान ब्रह्म को प्रणाम कर उन्हें बताया कि वे अपनी सर्वगुण सम्पन्न पुत्री रेवती के लिए एक सुयोग्य वर ढूंढ रहें हैं। परन्तु अभी तक उन्हें योग्य वर नहीं मिल पाया है, इसलिए इस कार्य को पूर्ण करने में भगवान ब्रह्मा उनकी सहायता करें। इस पर ब्रह्मा जी ने उन्हें बताया कि यहां उनके आने के बाद पृथ्वी पर 27 चतुर्युग बीत चुके है।
राजा कुकुदमी अंचभित हो गए, ब्रह्मा जी ने उनहें आश्वस्त करते हुये कहा कि अभी द्वापर युग चल रहा है और शीघ्र ही कलियुग आरम्भ हो जायेगा, परन्तु वे चिन्ता न करें भगवान विष्णु के अवतार के रूप में श्रीकृष्ण व बलराम पृथ्वी पर उपस्थित हैं। ब्रह्मा जी ने राजा कुकुदमी को अपनी पुत्री रेवती का विवाह श्री बलराम से करने के लिए कहा।
जब राजा कुकुदमी वे रेवती पुनः पृथ्वी पर आये तब कई युग बीत जाने के कारण उन्होंने पाया कि वहां पर मनुष्य का कद छोटा गया था, जोश कम हो गया था तथा बुद्धि तीव्र हो गई थी। बाद में वे अपनी पुत्री के विवाह का प्रस्ताव लेकर बलराम के पास गए परन्तु युग में अंतर होने के कारण रेवती की कद-काठी विशाल थी। इसके उपाय हेतु बलराम ने अपने अस्त्र को रेवती के सिर पर रखकर उनका कद उस युग के उपयुक्त कर दिया और इसके पश्चात् बलराम व रेवती का विवाह सम्पन्न हुआ। बलराम के दो पुत्र व एक पुत्री थी। सांसारिक मनुष्य रेवती नक्षत्र से रोहिणी नक्षत्र के मध्य संकल्प के साथ विशेष साधना या पूजन करता है, तो वह भी जीवन संग्राम में बलराम की तरह श्रेष्ठता से युक्त होता है।
निधि श्रीमाली
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