भारत में प्राचीन समय से ही गाय को देव स्वरूप महत्व दिया गया है। प्राचीन समय में समृद्धि की गणना गायों की संख्या से की जाती थी, उस समय गाय को ऐश्वर्य का प्रतीक माना जाता था। यूयं गावो मेदयथा कृशं चिद् अर्थात् गाय के दूध से निर्बल व्यक्ति सबल और कृषकाय व्यक्ति सुन्दर, सुडौल बनता है। वेद में कहा गया है कि अघ्न्येय सा वधेतां महते सौभाग्य अर्थात् सौभाग्य प्राप्ति के लिए गाय का पालन व सेवा करनी चाहिए।
भविष्य पुराण में वर्णित है कि गौ माता के पृष्ठ देश में ब्रह्मा का वास है, गले में विष्णु का, मुख में रूद्र का, मध्य में समस्त देवताओं का, रोम कूपों में महर्षि गण, पूछ में अन्नत नाग, खूरों में समस्त पर्वत, गौमूत्र में गंगा आदि नदियां, गौमय में लक्ष्मी और नेत्रों में सूर्य, चन्द्र वास करते है।
मान्यता है कि गौमाता को खिलाया गया एक ग्रास भी सभी देवी-देवताओं को संतुष्टि प्रदान करता है। इसीलिए धर्म ग्रंथों में उल्लेख है कि समस्त देवी-देवताओं व पितरों को प्रसन्न करने व उनकी कृपा हेतु गाय की सेवा करनी चाहिए। एकमात्र गाय में ही 36 प्रकार के देवी-देवताओं का निवास है, इसीलिए हिन्दू धर्म में प्रातः सबसे पहले गौ ग्रास निकालने की परम्परा है।
वैज्ञानिक दृष्टि से गाय धरती पर एकमात्र ऐसी प्राणी है जो ऑक्सीजन ग्रहण करती है और ऑक्सीजन ही छोड़ती है। गाय के शरीर से निकलने वाली सात्विक तरंगे आस-पास के वातावरण को प्रदूषण रहित बनाती हैं। गाय या उसके बछड़े के रंभाने से निकलने वाली आवाज अनेक तरह के रोगों का शमन करती है। इसके साथ ही गाय का घी, दूध, दही व गौ मूत्र के भी अनेक लाभ बताये गयें हैं।
गाय का घी- देशी गाय का घी नेत्र ज्योति वृद्धि कारक, वीर्यवर्धक, भूख बढ़ाने वाला, त्रिदोष नाशक, ओज, तेज, बल, उम्र, कांति दायक और स्मरण शक्ति बढ़ाने वाला है, यह सभी घृतों में सर्वश्रेष्ठ है।
गाय का दूध- आचार्य चरक के अनुसार गाय का दूध वात, पित्त और रक्त विकार को दूर करता है। यह शरीर और मस्तिष्क को ताकत देने वाला तथा रूप-रंग और यौवन को स्थिर रखने वाला माना गया है। काली गाय का दूध त्रिदोष को संतुलित करता है। पीले रंग की गाय का दूध वात और पित्त को शांत करने में तो लाल व चितकबरी गाय का दूध वात को शांत करने में सर्वश्रेष्ठ माना गया है।
गाय का दही- गाय के दूध से निर्मित दही विशेष रूप से मधुर तथा अम्लरस युक्त, खान-पान में रुचि उत्पन्न करने वाला, पाचन शक्ति वर्धक, हृदय के लिए लाभदायक, शरीर को बल देने वाला तथा वात नाशक होता है।
मक्खनः वीर्य वर्धक, रूप-रंग, बल तथा पाचन-अग्नि को बढ़ाने वाला, मल को बांधने वाला, वात, पित्त व रक्त विकार को शांत करने वाला एवं टीबी और बवासीर में लाभदायक है। शिशुओ के लिए तो अमृत समान है।
गौ मूत्र का औषधीय महत्व हमारे पूर्वजों को गोमूत्र के औषधि-गुणों का ज्ञान था, यही कारण है कि प्राचीन समय से गौमूत्र का प्रयोग अनेक बीमारियों के उपचार के लिये किया जाता रहा है। महाभारत काल में नकुल सर्वश्रेष्ठ गोमूत्र चिकित्सक के रूप में विख्यात थे। आयुर्वेद शास्त्र में कुचला, धतूरा, भिलावा, थहूर आदि विषैले पदार्थों के विष का प्रभाव दूर करने अथवा उनका शोधन करने के लिए गोमूत्र के प्रयोग का वर्णन मिलता है, जिसका आज भी उपयोग किया जाता है। वास्तु शास्त्र के अनुसार घर में गोमूत्र के छिड़काव से वास्तु दोष दूर होते हैं। गाय के मूत्र में पोटाशियम, सोडियम, नाइट्रोजन, फास्फेट, यूरिया एवं यूरिक एसिड पाया जाता है। वैज्ञानिक सिद्ध है कि गोमूत्र वातावरण में ऋण अयनों को बहुत ज्यादा बढ़ा देता है, जिससे सकारात्मक ऊर्जा में वृद्धि होती है।
आयुर्वेद के अनुसार गोमूत्र एक दिव्य रसायन है। यह कटु, (कड़वा) तीक्ष्ण (तीखा) उष्ण (गर्म) क्षार और तिक्तक (चरपरा) है। यह शरीर में कुपित धातुओं को शांत कर पाचक अग्नि को तेज करता है। गोमूत्र के अनेक दिव्य औषधीय प्रयोगों का वर्णन आयुर्वेद के ग्रंथों में मिलता है। जैसे पानी में कुछ बूंदे गोमूत्र की डालकर नेत्रों को धोते रहने से आंखों के चारों ओर झाइयां नहीं पड़ती तथा नेत्र ज्योति में वृद्धि होती है। भैषज्य रत्नावली नामक ग्रंथ में लिखा है कि गौ मूत्र को गरम करके कान में डालने से, कान का दर्द दूर होता है। लीवर, तिल्ली, किडनी की समस्याओं को दूर करने के लिए निर्मित ज्यादातर दवाओं के निर्माण में गोमूत्र का प्रयोग किया जाता है। क्योंकि यह हल्का दस्तावर तथा मूत्रल है।
जिनको हाई ब्लड प्रेशर की समस्या हो, उन्हें 2-5 तोले (30ग्राम) की मात्र में गोमूत्र सुबह खाली पेट पीना चाहिए। जिससे रक्त वाहिनियों में विस्तार व ब्लॉकेज भी दूर होता है।
गौ मूत्र से प्रतिदिन कुल्ला करने वाले की जीभ साफ होती है, साथ ही वाणी में स्पष्टता आती है व आवाज मधुर होती है।
सेंधा नमक को गोमूत्र तथा मठ्ठे में पका कर गाढ़ा कर लें। इसके बाद सूखी खुजली वाले स्थान पर गोबर के उपले से थोड़ा सा रगड़ कर लेप लगा दें। दो दिन में सूखी खुजली का जड़ से नाश हो जाता है।
दर्द वाली जगह पर गौ मूत्र की सिकाई से आराम मिलता है।
गौ मूत्र पीने से वात, पित्त और कफ से निजात मिलती है।
गौ मूत्र, त्रिफला और गाय का दूध मिलाकर पीने से एनीमिया की शिकायत दूर होती है साथ ही खून भी साफ होता है।
गौ मूत्र शरीर के भीतर के अनेक कीटाणु का नाश करता है।
गौ मूत्र कैंसर के इलाज के लिए भी बहुत ही लाभदायक है।
ध्यान देः गौ मूत्र के अधिक सेवन से पतला दस्त, शरीर में गर्मी की वृद्धि, जी-घबराना, उल्टी आदि समस्या उत्पन्न हो सकती है। इसलिए विशेषज्ञ से राय लेकर ही गौ मूत्र का सेवन करें।
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