अर्थात् सतयुग में सारे तीर्थ स्थान, त्रेतायुग में पुष्कर तीर्थ, द्वापर में कुरुक्षेत्र और कलियुग में केवल गंगा ही सर्व पुण्यदायी रहेगी।
गंगा की तीन धाराएं तीन लोकों को पवित्र करती हुयी प्रवाहित होती हैं- आकाश गंगा (पृथ्वी पर प्रवाहित) गंगा तथा पाताल गंगा। अतः इसका नाम त्रिपथगंगा है। स्वर्ग लोक से उत्पत्ति और निवास के कारण गंगा को सुरसरि तथा देवनदी भी कहा जाता है।
शास्त्रों में गंगा जल अत्यंत पवित्र माना जाता है। जिसका अनेक विशिष्टों अवसरों व अन्य महत्ता के अनुरुप हमारे जीवन में उपयोग किया जाता है। जो निम्न हैं-
गंगा दशहरा पर्व पर पूजा तथा भोग की सामग्री लेकर गंगा स्नान करने श्रद्धालु गण जाते हैं। निकट में गंगा नदी न होने पर पास की किसी भी नदी में या घर के जल में गंगाजल डालकर स्नान, पूजन, दान किया जा सकता है।
शास्त्रों में वर्णन है कि गंगा स्नान के पश्चात् गंगा स्तुति करनी चाहिये, इसके पश्चात् सामर्थ्य अनुसार दान करने से दस प्रकार के पाप नष्ट हो जाते हैं।
जीव हिंसा, पाप-ताप, संताप, देव गुरु, गौ का अपमान, कालसर्प योग, कुग्रह योग, मातृ-पितृ दोष दर्शन, अन्तः करण की मलिनता, मन-कर्म, वचन के अपराध, भूत-प्रेत बाधा, रूग्ण देह। इन दस तरह के दोषों के निवारण हेतु सभी पूजन सामग्री दस की संख्या में रखनी चाहिये साथ ही दस याचकों को दान करना चाहिये।
दस तरह के पाप-दोषों निवारण करने वाली पवित्र गंगा पर्व नाम गंगा दशहरा पड़ा। हमारी हिन्दु सभ्यता में सात पवित्र नदियों का वर्णन है गंगा, यमुना, सरस्वती, गोदावरी, नर्मदा, कावेरी नदी, सिन्धु नदी, इन सभी में गंगा विशेष पूजनीया है और इन्हीं का नाम सर्वप्रथम आता है।
प्राचीन कथन
प्राचीन काल में अयोध्या नरेश सगर ने सौवां अश्वमेघ यज्ञ प्रारम्भ किया था। अपना राज्य पद छिन जाने के भय से देवराज इन्द्र उस यज्ञ में उपयोग होने वाले घोड़े को चुरा ले गये और पाताल लोक जाकर कपिल मुनि के आश्रम में बांध दिया। घोड़ा लुप्त हो जाने से यज्ञ कार्य बाधित हो गया। सगर की दो रानियों में एक रानी के साठ हजार पुत्र थे। वे उस घोड़े को खोजने निकले और पृथ्वी पर उसे कहीं न पाकर पृथ्वी को खोदते, खोदते पाताल लोक पहुंच गए। वहां उन्होंने कपिल मुनि के आश्रम में घोड़ा बंधा देखा। उनके चिल्लाने-पुकारने से कपिल मुनि की समाधि टूट गई और उनकी क्रोधाग्नि से वे साठ हजार सगर पुत्र भस्म हो गये।
इधर बहुत समय तक पुत्रों के न लौटने पर राजा ने अपने पौत्र अंशुमान को भेजा। वह भी खोजता हुआ वहीं पहुंचा। अपने बांधवों की अकाल मृत्यु देखकर अंशुमान ने ऋषि से उनकी मुक्ति का उपाय पूछा तो कपिल मुनि ने गंगाजल के स्पर्श से मुक्ति बतायी। किन्तु गंगा स्वर्ग लोक में थी। अंशुमान और उनके पुत्र दिलीप ने कठिन तपस्या की, किन्तु विफल रहे। दिलीप के पुत्र भगीरथ ने वर्षों तक कठोर तपस्या कर ब्रह्माजी को प्रसन्न किया और गंगा नदी को पृथ्वी पर भेजने की प्रार्थना की।
ब्रह्मा ने कहा कि स्वर्ग से उतरती गंगा का वेग और भार पृथ्वी नहीं सहन कर पायेगी, केवल शंकर ही सहन कर सकते हैं। पुनः भगीरथ ने तपस्या करके भगवान शंकर को इस कार्य के लिए अनुकम्पा करने की प्रार्थना की। ब्रहा ने कमण्डलु से गंगा को छोड़ा तो वह हिमालय पर खड़े शिव की जटाओं में ही फंसी रह गई। पुनः प्रार्थना करने पर शिव ने गंगा की धार को मुक्त किया। भगीरथ के प्रयत्न से गंगा पृथ्वी पर आयी, इसीलिये इनका नाम भागीरथी गंगा पड़ा।
भगीरथ के पीछे गंगा की धारा बहती चली। मार्ग में जहनु ऋषि का आश्रम था, वहां गंगा की धारा विराम की स्थिति में आ गयी, तब भगीरथ के प्रार्थना करने से जहनु ऋषि ने गति प्रदान की, उस स्थान का नाम जाहनवी हुआ। गंगा की धारा आगे बहते-बहते कपिल मुनि के आश्रम तक पहुंची और उनके जल के स्पर्श से सगर पुत्रों को मुक्ति मिली। आज भी वह स्थल गंगासागर तीर्थ के रूप में विख्यात है। कहा जाता है कि सारे तीर्थ बार-बार, गंगासागर एक बार।
गंगा से जुड़ी अनेक कथाएं है जिनसे यह स्पष्ट होता है कि हिमालय के शिखर से चलकर अनेकों पर्वतों को स्पर्श कर लांघती हुयी इस नदी के जल में अनेक जड़ी-बूटी, लाभदायक लवण आदि का मिश्रण हो जाता है। इसी के प्रभावों से वर्षों तक रखे गंगाजल में भी न तो दुर्गन्ध आती है और न ही कीड़े पड़ते हैं, गंगा के जल की सबसे बड़ी विशेषता है कि गन्दगी से यह पानी गंदला नहीं होता, वरन गन्दगी को मिटा देता है।
सांसारिक साधक का जीवन निरन्तर पवित्र व क्रियाशील रहे, इसी हेतु गंगा के उद्गम स्थल भगीरथी तेजमय गंगोत्री तीर्थ स्थान पर साधना करने का श्रेष्ठ अवसर प्रदान किया गया है। जो साधक अपने जीवन को युगो-युगो तक क्रियाशील रखने के भाव से अभिभूत हैं। वे अवश्य ही 10 मई से 17 मई में आयोजित छठी इन्द्रिय जाग्रय साधना महोत्सव में आयेंगे ही।
निधि श्रीमाली
It is mandatory to obtain Guru Diksha from Revered Gurudev before performing any Sadhana or taking any other Diksha. Please contact Kailash Siddhashram, Jodhpur through Email , Whatsapp, Phone or Submit Request to obtain consecrated-energized and mantra-sanctified Sadhana material and further guidance,