मिथिला के राजा जनक के राज्य में भयंकर अकाल पड़ा। वह बहुत ही पुण्यात्मा थे, धर्म-कर्म के कार्यों में बढ़-चढ़ कर भाग लेते। ज्ञान प्राप्ति के लिये वे आये दिन सभा में कोई न कोई शास्त्रार्थ करवाते और विजेताओं को गौ दान भी करते। लेकिन अकाल पड़ने से वे बहुत विचलित हो गये थे, अपनी प्रजा को भूखों मरते देख कर उन्हें बहुत पीड़ा होती। उन्होंने ज्ञानी पंडितों को दरबार में बुलवाया और इस समस्या के निवारण हेतु उपाय बताने को कहा। सभी ने अपनी-अपनी राय राजा जनक के सामने रखी। कुल मिलाकर बात यह सामने आयी कि यदि राजा जनक स्वयं हल चलाकर भूमि जोते तो अकाल दूर हो सकता है।
अब अपनी प्रजा के लिये राजा जनक हल उठाकर चल पड़े। वह दिन था वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की नवमी का। जहां पर उन्होंने हल चलाया वह स्थान वर्तमान में सीतामढ़ी बिहार बताया जाता है। तो राजा जनक हल जोतने लगे। हल चलाते-चलाते एक जगह आकर हल अटक गया, उन्होंने पूरी कोशिश की लेकिन हल की नोक ऐसी धंसी हुई थी कि निकलने का नाम ही न लें। लेकिन वह तो राजा थे, उन्होंने अपने सैनिकों से कहा कि यहां आस-पास की जमीन की खुदाई करनी शुरु करो और देखा कि स्वर्णमय बड़ा सा कलश है, जिसमें हल की नोक उलझी हुई है। कलश को बाहर निकाला तो देखा उसमें एक नवजात कन्या है। धरती मां के आशीर्वाद स्वरूप राज्य में मूसलाधार बारिश हुई और राज्य का अकाल दूर हुआ। जब कन्या का नामकरण किया जाने लगा तो चूंकि हल की नोक को सीता कहा जाता है और उसी की बदौलत यह कन्या उनके जीवन में आयी तो उन्होंने इस कन्या का नाम सीता रखा।
स्कन्द पुराण में वर्णित है कि- हे विष्णो! आप जब -जब अवतार स्वीकार करते हैं, तब-तब भगवती कमला आपकी संगिनी के रूप में अवतरित होती रहीं हैं। वास्तव में भगवती सीता सर्व वेदमयी व लोकमयी, मूल प्रकृति स्वरूपिणी हैं। मानव जीवन में जिस श्री की अत्यधिक आवश्यकता होती है, जिस पर सम्पूर्ण संसार का आश्रय निर्भर है, उन्हीं जगत्माया कमला का अतवरण माता सीता के रूप में हुआ जो इच्छा-क्रिया शक्ति की अधिष्ठात्री हैं।
रावण की सभा में श्री हनुमान ने कहा था-
रावण! जिन्हें तुम सीता समझते हो, जो आज तुम्हारे घर में अवस्थित हैं, उनके स्वरूप से तुम परिचित नहीं हो, वे सीता ही कालरात्रि सर्व लंका विनाशिनी हैं। 13 मई सीता नवमी का यह दिव्य दिवस उन्हीं जगत माया के आविर्भाव स्वरूप असुरमय स्थितियों के शमन का अवसर है। जिस तरह राधाष्टमी सम्मोहन, सौन्दर्य, वशीकरण सिद्धि दिवस रूप में सम्पन्न किया जाता है। उसी तरह सीता नवमी जीवन में व्याप्त सैकड़ों रावण रूपी असुरों का संहार मुहुर्त है।
इस दिवस पर विशेष रूप से भगवती सीता का कालरात्रि स्वरूप में साधना, पूजा, आराधना, दीक्षा सम्पन्न कर साधक महावीर हनुमान जैसा बल, बुद्धि, ओज, तेज से आपूरित हो सकते हैं।
जगत जननी महामाया सीता के आविर्भाव से भगवान श्री राम शील, विनय, पराक्रमी, पुरुषोत्तम शक्तियों युक्त आर्यावर्त का विस्तार किया। उसी रूप में आद्या शक्ति माता सीता की आराधना कर साधक अपने जीवन को शक्ति, ऊर्जा, चेतना से आपूरित कर सकेंगे।
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