वट वृक्ष त्रिमूर्ति देवों का प्रतीक है, इसकी छाल में विष्णु, जड़ में ब्रह्मा और शाखाओं में शिव का वास होता है। जिस प्रकार पीपल को विष्णु जी का प्रतीक माना जाता है, उसी प्रकार वट वृक्ष शिव जी का प्रतीक है। बाल मुकुंद का स्वरूप धारण कर भगवान विष्णु इस वृक्ष के पत्ते पर शयन करते हैं। पौराणिक मान्यता है कि यह पवित्र वृक्ष सृष्टि का परिचायक है।
वाल्मीकि रामायण में वर्णन है कि भारद्वाज ऋषि ने भगवान राम से कहा था- नर श्रेष्ठ तुम दोनों भाई गंगा और यमुना के संगम पर जाना, वहां यमुना के पार उतर जाना, आगे बढ़ने पर तुम्हें बहुत विशाल वट वृक्ष मिलेगा, वह चारों ओर से दूसरे वृक्षों से घिरा हुआ होगा, उसका नाम श्यामवट है। उसकी छाया में बहुत से सिद्ध पुरुष निवास करते हैं। वहां तुम सभी को सीता सहित आशीर्वाद् प्राप्ति की प्रार्थना करनी चाहिए।
पाराशर मुनि के अनुसार वट मूले तपोवास अर्थात् वट वृक्ष के नीचे बैठकर मंत्र जाप, पूजन तप साधना सिद्धि प्राप्ति में सहायक है। साथ ही यह सभी मनोरथों को पूर्ण करने वाला है। वट वृक्ष दीर्घायु व अमरत्व बोध का भी प्रतीक है। भगवान बुद्ध को इसी वृक्ष की छाया में बोधित्व की प्राप्ति हुयी थी, इसीलिए इसे ज्ञान प्रदान करने वाला भी कहा जाता है। जैन धर्म के तीर्थकर ऋषभदेव ने भी अक्षय वट के नीचे तपस्या की थी। प्रयागराज में इस स्थान को ऋषभदेव तपोवन के नाम से जाना जाता है।
कुरुक्षेत्र के निकट ज्योतिसर नामक स्थान पर भी एक वट वृक्ष जिसके बारे में माना जाता है कि यह भगवान कृष्ण द्वारा अर्जुन को दिए गये गीता उपदेश का साक्षी है। उपरोक्त वर्णन से स्पष्ट हो चुका है कि प्राचीन समय से वट वृक्ष की महत्ता सर्वोपरि रही है। वट वृक्ष की छाया में अनेक दिव्य महापुरुषों ने साधना सिद्धि, ज्ञान, चेतना से अभिभूत हुये हैं। वास्तव में यह अक्षय वट त्रिमूर्ति देव शक्तियों की चेतना प्रदान करने में पूर्णता सक्षम व समर्थ है।
लोक प्रचलित सावित्री व सत्यवान कथा में भी इसी वृक्ष के नीचे सावित्री ने अपनी सतीत्व शक्ति के माध्यम से अपने पति को पुनः जीवनदान की याचना की थी। शास्त्र अनुसार ज्येष्ठ मास की अमावस्या को अक्षय वट पूजन, साधना सम्पन्न करने से अखण्ड सुहाग सौभाग्य की प्राप्ति होती है और घर-परिवार में सुस्थितियों का आगमन होता है। साथ ही संतान सुख की अभिलाषा पूर्ण होती है।
अक्षय वट साधना का मूल तत्व पूर्ण कुटुम्ब सुख प्राप्ति है। इस साधना के माध्यम से स्त्रियां अपने गृहस्थ जीवन को सुख-शांति युक्त निर्मित करने में सफल होती हैं। साथ ही उनका जो भी मनोरथ होता है, उसकी पूर्णता का मार्ग प्रशस्त होता है। परिवार में श्रेष्ठ प्रेममय वातावरण निर्मित होता है। इस साधना के माध्यम से पुत्र प्राप्ति या उसके उन्नति- प्रगति, रक्षा की कामना भी सिद्ध होती है। साथ ही शिव-गौरी सौन्दर्य सम्मोहन सौभाग्य शक्ति की प्राप्ति होती है। इस साधना को प्रत्येक स्त्री व बालिका को अपने गृहस्थ जीवन को अत्यधिक मधुर, आत्मीय, सामंजस्य पूर्ण बनाने हेतु सम्पन्न करना ही चाहिये, क्योंकि गृहस्थ सुख से ही जीवन आनन्दमय बनता है।
वर्तमान समय में लगभग सभी परिवारों में अनेक प्रकार की विषमतायें उत्पन्न हो जाती हैं, जिससे परिवार का प्रत्येक व्यक्ति छुटकारा पाना चाहता है। साथ ही पूर्ण गृहस्थ सुख का आनन्द प्राप्त करने की कामना रखता है। परन्तु अनेक प्रयत्न, समझौता व कई तरह के उपाय करने के पश्चात् भी वह इन समस्याओं से निजात नही प्राप्त कर पाता है।
वर्तमान में परिवार के आंतरिक क्लेश इतनी अधिक वैमनस्य पूर्ण हो गये हैं कि आपसी सम्बन्धी ही प्रचण्ड विरोधी और शत्रु स्वरूप स्थितियां निर्मित हो जाती हैं।
यह साधना सम्पन्न करने पर घर के सदस्यों के बीच आपसी तारतम्यता बनने लगती है तथा उनकी मानसिकता प्रेम पूर्ण भावों से युक्त हो जाती है। उनके मध्य सौहार्द का वातावरण बनने लगता है, जिससे पूरा परिवार फिर से संगठित हो जाता है। साथ ही सुहाग की पूर्ण रक्षा होती है और पति की ओर से पूर्ण सम्मान, प्रेम, आत्मीयता प्राप्त होती है। इस साधना से परिवार में उन्नति-प्रगति, सफलता का मार्ग भी प्रशस्त होता है।
यह साधना अत्यन्त उच्चकोटि की साधना है, इस साधना को निम्न कामनाओं को लेकर कर सकते हैं-
यंत्र पर सिन्दूर का तिलक लगाकर गुलाब का पुष्प अर्पित करें। फिर दाहिने हाथ में दो आचमन जल लेकर संकल्प कर जल ग्रहण कर लें। फिर निम्न मंत्र का 5 माला मंत्र जप करें-
उसी दिन संध्याकाल में वट वृक्ष के पेड़ को मौली लपेटते हुये 5 परिक्रमा करें। परिक्रमा करते समय अपने हाथ में पांचों काम्य गुटिका रखें तथा प्रत्येक परिक्रमा पूर्ण होने पर एक काम्य गुटिका पेड़ की जड़ में रख दें। अगले दिन यंत्र व माला को उसी पेड़ की जड़ में रख दें।
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