साधना की प्रक्रिया उतनी जटिल नहीं होती, महत्व तो क्षण विशेष का होता है, भारतीय ऋषियों द्वारा काल ज्ञान और ज्योतिष पर इतना अधिक ध्यान केन्द्रित करना इस बात का सूचक है, कि व्यक्ति के जीवन में काल की सर्वाधिक महत्ता होती है।
जीवन में विशेष काल, क्षण, मुहुर्त का अपना विशेष महत्व होता है, जो साधक के चिंतन, विचार और गंभीरता पर निर्भर है, कि वह उसे किस तरह से अपने जीवन में महत्व देता है। एक ही समय में दो अलग- अलग व्यक्ति भिन्न-भिन्न क्रियायें सम्पन्न कर अलग- अलग परिणाम के भुक्त भोगी बनते हैं। जैसे किसी विशिष्ट अवसर पर आप टीवी देखकर अपना समय और ऊर्जा व्यर्थ कर दें, उसी समय में दूसरा व्यक्ति साधना, पूजा द्वारा जीवन को और अधिक ऊर्जावान, चेतनावान बनाने की क्रिया सम्पन्न करे। इसलिए यह कहना पड़ रहा है कि आपकी गंभीरता और आपका उद्देश्य जीवन में बहुत ही अधिक महत्व रखता है।
सूर्य ग्रहण एक ऐसा ही अवसर है, जब नक्षत्रों के संयोग और ग्रहण के प्रभाव से जीवन का काया कल्प किया जा सकता है और प्रत्येक ग्रहण पर भिन्न-भिन्न उद्देश्यों की पूर्ति की क्रिया सम्पन्न की जा सकती है। आपको अपने जीवनकाल में दस सूर्य ग्रहण का लाभ उठाने का अवसर मिले, परन्तु जो अवसर एक बार चूक गये तो जीवन में मात्र नौ ही ग्रहण बचेंगे और कौन जाने कल कैसी परिस्थिति हो, साधना कर सकें या नहीं कर सकें? इसलिये श्रेष्ठ साधक वे ही हैं जो क्षण के महत्व को पहचान कर निर्णय लेने में विलम्ब नहीं करते हैं।
अवतारों के जीवन में भी ग्रहण की महत्ता के प्रसंग देखने को मिलते हैं। भगवान राम ने अपने गुरु से ‘दीक्षा’ ग्रहण के समय ही प्राप्त की थी, इसी प्रकार भगवान कृष्ण ने भी सान्दीपन ऋषि से दीक्षा जब प्राप्त की थी, तो उस समय ग्रहण काल चल रहा था क्योंकि ग्रहण के समय ही तपस्यांश को, दीक्षा या साधनात्मक प्रवाह को पूरी तरह ग्रहण किया जा सकता है।
साधक के जीवन में अनेक प्रकार की इच्छायें होती हैं। ऐसा स्वर्णिम ग्रहण- संयोग जीवन में सब कुछ दे सकता है- धन, पद, प्रतिष्ठा, यश, मान, ऐश्वर्य, कुण्डलिनी जागरण, पूर्णता, श्रेष्ठता, तेजस्विता और जीवन में वह सब जो हम चाहते हैं, क्योंकि ऐसे ग्रह संयोग में की गई साधना निष्फल नहीं होती है। हम जीवन में चाहते है कि दीर्घायु हों, हमारा सुखी परिवार हो, श्रेष्ठ पुत्र-पुत्रियां हों, श्रेष्ठ व्यापार-नौकरी हो, हम आर्थिक दृष्टि से उन्नति करें, किसी प्रकार की कोई राज्य-बाधा हमारे जीवन में नहीं आये, हम पूर्ण स्वस्थ हों, हम ब्रह्माण्ड के रहस्यों को जान सकें, सद्गुरुदेव व सिद्धाश्रम के दर्शन कर सकें और इसी जीवन में पूर्णत्व प्राप्त कर सकें। कई प्रकार की मनोकामनायें हो सकती हैं साधक के जीवन में।
सिद्धाश्रम प्रणीत विशिष्ट तंत्र सिद्ध मनोकामना पूर्ति साधना द्वारा साधक अपनी किसी भी कामना का संकल्प कर अपने कामनाओं को मूर्त रूप देने में सफल होता है। यह साधना इतना प्रभावी है, जिसका वार कभी भी खाली नहीं जाता, सही रूप में यह ब्रह्मास्त्र के समान ही है, जो कमान से निकलने के बाद परिणाम लेकर ही आता है, इसके साथ ही यह सूर्य ग्रहण 03 जुलाई को सद्गुरु के पूर्ण रूप से ब्राह्माण्डीय स्वरूप धारण करने के दिवस पर सम्पन्न हो रहा है अर्थात् इस दिवस पर ब्रह्म स्वरूप सद्गुरु और सूर्य ग्रहण की रश्मियों का अद्भुत योग बन रहा है। जिससे साधक निश्चित ही पूर्ण-पूर्ण रूप से आत्मसात कर जीवन में सर्व सुखमय जीवन की प्राप्ति कर सकेगा।
साधक इस साधना को अपनी किसी भी मनोकामना पूर्ति हेतु कर सकता है, चाहे वह व्यापार, नौकरी, मनवांछित वर-वधू प्राप्ति, गृहस्थ सुख, धन-धान्य, वाहन, सुख-सौभाग्य, उच्च शिक्षा, आकर्षण, सम्मोहन, आरोग्यता, तंत्र बाधा, साधना सिद्धि इत्यादि किसी भी इच्छा हेतु सम्पन्न कर सकता है।
सबसे पहले अपने सामने गुरु चित्र, गुरु यंत्र का स्थापन करें। पंचोपचार विधि से पूजन करें। इसके पश्चात् साधना में सफलता के लिये 3 माला गुरु मंत्र की जप करें। किसी थाली में अक्षत से एक त्रिशूल बनाकर उस पर मनोकामना पूर्ति यंत्र व चावल की एक ढ़ेरी पर सिद्धाश्रम गुटिका स्थापित करें।
मंत्र जप प्रारम्भ करने से पूर्व दोनों हाथ जोड़कर सिद्धाश्रम के समस्त योगियों व गुरु मण्डल की अभ्यर्थना और आशीर्वाद की प्रार्थना करें-
अब सूर्य तेजस्वी माला से निम्न मंत्र का 5 माला मंत्र जप करें, जो कि ग्रहणकाल में ही पूर्ण हो जानी चाहिये।
मंत्र जप के पश्चात् गुरु-मंत्र की दो माला जप करें। फिर आसन से खड़े होकर गुरु-आरती और समर्पण स्तुति करें। साधना की पूर्णता पर यंत्र, माला, गुटिका व अक्षत आदि सभी को जल में विसर्जित कर दें।
पूज्यपाद गुरुदेव ने इस बात की ओर बार-बार संकेत किया, है कि तुम यात्रा तो कर रहे हो किन्तु उनींदे से रह कर। यदि साधक गहन चिंतनशील है, तो वह अनुभव करेगा, कि गुरुदेव का प्रत्येक शब्द गहन अर्थवत्ता लिये हुये होता है और यही अर्थवत्ता उनके इस वाक्य में भी निहित है।
आत्म चैतन्य साधना में भी यही अर्थवक्ता निहित है। प्रत्येक व्यक्ति पूज्यपाद गुरुदेव के सम्मुख आने पर मन में श्रेष्ठ संकल्पों को धारण करता है, श्रेष्ठताओं को आत्मसात करने का चिंतन करता है, किन्तु उनसे कुछ दूर होते ही जीवन की विविध विसंगतियों से उलझ कर निराश और हताश सा जीवन जीने को बाध्य हो जाता है। यह एक श्रेयस्कर स्थिति नहीं, क्योंकि जीवन के उच्च आध्यात्मिक लक्ष्य सामने होने पर भी उस ओर गतिशील ना हो पाना जीवन की अत्यन्त दूभर स्थिति है।
इसी का निराकरण करने का उपाय है- आत्म चैतन्य साधना। आत्म चैतन्य साधना सम्पन्न कर शिष्य अपने आत्म पक्ष को इस प्रकार जाग्रत व चैतन्य करने में सक्षम हो पाता है, कि उसे पल-प्रतिपल पूज्यपाद गुरुदेव की सूक्ष्म उपस्थिति का भान होता है और उनका मार्ग दर्शन एवं निर्देशन उपलब्ध होता है। जब तक पूज्यपाद गुरुदेव से इस रूप में सम्पर्कित होने की स्थिति नहीं बनेगी तब तक जीवन में कुछ अलग हट कर घटित हो भी सकेगा, ऐसा भी संभव नहीं।
इस साधना को सम्पन्न करने के लिए निखिल दिव्य चैतन्य यंत्र एवं आत्म शक्ति माला आवश्यक है। सूर्य ग्रहण अथवा किसी भी सोमवार की रात्रि में प्रारम्भ कर तीन दिनों तक सम्पन्न की जाने वाली साधना है जिसमें साधक को उत्तर मुख बैठ कर निम्न मंत्र का नित्य 11 माला मंत्र जप करना है।
साधना की समाप्ति पर यंत्र व माला विसर्जित कर दें तथा साधना काल की अनुभूतियां पूज्यपाद गुरुदेव के अतिरिक्त, किसी अन्य से न कहें। साधना के मध्य में साधक को यदि विभिन्न योगियों, ऋषियों के विम्बात्मक रूप से दर्शन सुलभ होते हैं तो साधना में सफलता का विशेष लक्षण होता है।
भगवती ज्वालामालिनी शिव की ऊर्जा शक्ति हैं, शक्तिशालिनी हैं, इनके जाज्वल्य मान स्वरूप के कारण समस्त देवी-देवता भी इन्हें नमन करते हैं।
ज्वालामालिनी तंत्र साधना का प्रभाव अपने आप में अचूक होता है और जब कोई साधक साधना सम्पन्न करता है, तो उसे उस देवी या देवता की ऊर्जा शक्ति प्राप्त होती ही है, ज्वालामालिनी देवी की साधना करने पर साधक को इस दैवीय शक्ति का कुछ अंश तो प्राप्त होता ही है और यह अंश मात्र ही, साधक को सुखमय जीवन प्रदान करने में पूर्णतः सक्षम है।
ज्वालामालिनी साधना सम्पन्न करने पर उस साधक के ऊपर जो विपरीत परिस्थितियां हावी होती हैं, वे इस साधना द्वारा उसके अनुरुप होती चली जाती है।
ज्वालामालिनी साधना से साधक के मन के अनुरुप ही कार्य घटित होने लग जाता है, जिससे वह साधक अपना मनचाहा कार्य पूर्ण कर लेता है।
यह किसी भी प्रकार के विघ्न बाधाओं को दूर करने में सहायक तथा शत्रु नाशक साधना है।
इस विशिष्ट साधना को सम्पन्न कर साधक तेज, ओज, बल सभी कुछ प्राप्त कर लेता है और उसकी कांतिहीन देह दिव्य आभा लिये लालिमा युक्त प्रतीत होने लगती है।
धीरे-धीरे उसकी श्रेष्ठ देह यष्टि एवं उसके प्रभाव युक्त व्यक्तित्व दूसरों के आकर्षण का केन्द्र बनने लगता है और सबसे बड़ी बात तो यह है कि जब चाहे विपरीत होती परिस्थितियों को अपने अनुकूल कर लेने में पूर्णतः सक्षम हो जाता है और तब वह हर क्षण उन्नति के मार्ग पर अग्रसर होता हुआ श्रेष्ठ एवं सफल जीवन प्राप्त कर लेता है।
ज्वाला शक्ति की साधना सूर्य ग्रहण तेजस्वी दिवस पर सम्पन्न कर साधक अभूतपूर्व ऊर्जा शक्ति के द्वारा शत्रु का पूर्णता से विनाश करने में सक्षम हो जाता है। इस अद्वितीय साधना से किसी भी प्रकार के शत्रु द्वारा किये गये टोने-टोटकों का प्रभाव व्यर्थ हो जाता है, यदि किसी व्यक्ति ने शत्रुतावश मूठ का प्रयोग किया हो, तो इस साधना द्वारा मूठ को विपरीत दिशा दी जा सकती है।
सूर्य ग्रहण काल अथवा आषाढ़ी नवरात्रि के किसी भी दिवस पर साधक स्नानदि से निवृत्त होकर पीली धोती पहन कर पीले आसन पर बैठ जायें और अपने सामने लकड़ी के बाजोट पर पीला वस्त्र बिछा कर, उस पर ज्वालामालिनी यंत्र और गुरु चित्र को स्थापित कर, फिर घी का दीपक प्रज्ज्वलित कर कुंकुम, अक्षत, पुष्प से उनका पूजन करें। तत्पश्चात् ज्वाला माला से गुरु मंत्र की चार माला और उसी माला से ही निम्न मंत्र की 5 माला जप सम्पन्न करें-
मंत्र जप पूर्ण करने के पश्चात् माला धारण कर लें व यंत्र को किसी पवित्र नदी में विसर्जित अथवा गुरु चरणों में अर्पित कर दें।
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