माँ गायत्री को समस्त देवी-देवताओं की जननी व लक्ष्मी, पार्वती, सरस्वती का संयुक्त अवतार कहा गया है। विभिन्न पुराणों में उनके स्वरूप का भिन्न-भिन्न तरह से वर्णन है। कहीं उन्हें लाल कमल पर विराजित, धन की देवी, जिनके पांच सिर, दस नेत्र हैं, जो पृथ्वी व आकाश के साथ-साथ आठ विभिन्न दिशाओं में देख रहीं हैं, इनके दस भुजाएं हैं। जिनमें उनके सभी अवतारों के शस्त्र-अस्त्र हैं। वहीं कई पुराणों में इन्हें सफेद हंस पर विराजित एक हाथ में पुस्तक व दूसरे हाथ औषधि लिये, ज्ञान की देवी के रूप में वर्णित किया गया है।
या गायत त्रयते अर्थात् गाने वाले का त्रण करने वाली। यह शब्द गायत्री संस्कृत की उक्त गायंतं त्रियते इति से बना है और पौराणिक मान्यता है कि गायत्री मंत्र का नित्य उच्चारण करने से साधक जीवन की समस्त विपत्तियों से सुरक्षित रहता है। गायत्री मंत्र गायत्री छंद में रचा अत्यन्त प्रसिद्ध मंत्र है।
इसके देवता सविता है और ऋषि विश्वामित्र है। गायत्री मंत्र को हिन्दू धर्म में सबसे महत्वूपर्ण मंत्र माना जाता है। यह मंत्र हमें ज्ञान प्रदान करता है। इस मंत्र का तात्पर्य है- हे प्रभु, कृपा करके हमारी बुद्धि को उजाला प्रदान कीजिये और हमें धर्म का सही मार्ग दिखाइये। यह मंत्र सूर्य देवता के लिए प्रार्थना रूप में भी माना जाता है।
(1) ऊँ प्रणव, प्रणव परब्रह्म परमात्मा का नाम है।
(2) ऊँ के अ + उ + म इन तीन अक्षरों को ब्रह्म, विष्णु और शिव का रूप माना गया है।
(3) भूः भुवः स्वः गायत्री मंत्र के बीज हैं। बीज मंत्र का जाप करने से ही साधना सफल होती है।
(4) भूः- मनुष्य को प्राण प्रदान करने वाला।
(5) भुवः- दुखों का नाश करने वाला।
(6) स्वः- सुख प्रदान करने वाला।
(7) तत्- वह
(8) सवितुर- सूर्य की भांति उज्ज्वल।
(9) वरेण-यं- सबसे उत्तम।
(10) भर्गो- कर्मो का उद्धार करने वाला।
(11) देवस्य- प्रभु
(12 ) धीमहि- आत्म चिंतन के योग्य (ध्यान)
(13) धियो- बुद्धि।
(14) यो- जो।
(15) नः- हमारी।
(16) प्रचो-दयात्- हमें शक्ति दें (प्रार्थना)
भगवान कृष्ण ने भगवद् गीता में कहा है कि गायत्री मंत्र में वे स्वयं विराजित हैं, उन्होंने कहा है कि सामवेद के सभी स्तोत्रों में मैं बृहतसम हूं और सभी मंत्रों में मैं गायत्री मंत्र हूं।
गायत्री मंत्र ऐसा मंत्र है कि जो हिन्दू धर्म के चारों वेदो में पाया गया है। यजुर्वेद और सामवेद में गायत्री मंत्र को प्रमुख मंत्र माना जाता है। लेकिन इसके साथ बाकि सभी वेदों में किसी न किसी संदर्भ में गायत्री मंत्र का उल्लेख देखने को मिलता है।
अथर्ववेद में वेदमाता गायत्री की स्तुति की गई है, जिससे इन्हें आयु, प्राण, शक्ति, पशु, कीर्ति, धन और ब्रह्मतेज प्रदान करने वाली कहा गया है। शंख स्मृति में कहा गया है-
अर्थात् गायत्री वेदों की जननी है। गायत्री पापों का नाश करने वाली है। गायत्री से अन्य कोई पवित्र करने वाला मंत्र स्वर्ग और पृथ्वी पर नहीं है।
गायत्री मंत्र में कुल चौबीस अक्षर हैं। ऋषियों ने इन अक्षरों में बीज रूप में विद्यमान उन शक्तियों को पहचाना जिन्हें चौबीस अवतार, चौबीस ऋषि, चौबीस शक्तियां और चौबीस सिद्धियां कहा जाता है। गायत्री मंत्र के चौबीस अक्षरों में चौबीस देवता है। उनकी चौबीस चैतन्य शक्तियां हैं। गायत्री मंत्र के चौबीस अक्षर 24 शक्ति बीज हैं। गायत्री मंत्र की उपासना करने से उन 24 शक्तियों का लाभ और सिद्धियां मिलती है।
ऐसा कोई भी ग्रंथ या शास्त्र नहीं है, जिसमें गायत्री मंत्र की महिमा न हो। इसके साथ ही देवी भागवत् के पूरे तीन अध्याय में सिर्फ गायत्री मंत्र की ही महिमा बताई गई है। भागवत् के अनुसार एक माला गायत्री मंत्र का जाप करने से दिन भर के पाप कट जाते हैं। वहीं तीन माला गायत्री मंत्र का जाप करने से नौ दिन के पाप कटते हैं और नौ माला गायत्री मंत्र का जाप करने से नौ महीने के पाप कट जाते हैं। इसके अलावा भागवत के दसवें स्कन्द में भगवान कृष्ण की दिनचर्या का वर्णन मिलता है, जिसके अनुसार श्री कृष्ण रोजाना ब्रह्म मुहुर्त में एक घ्ंटे गायत्री मंत्र का जाप करते थे। वहीं अथर्ववेद में गायत्री मंत्र की महिमा का वर्णन किया गया है और इस मंत्र के बारे में एक श्लोक है कि-
इस मंत्र का जाप करने से आयु बढ़ती है व मनुष्य की प्राण शक्ति भी बढ़ जाती है।
गायत्री मंत्र के उच्चारण से जो ध्वनि निकलती है, वह हमारे मस्तिष्क को शांत व कुशाग्र बनाती है। प्राचीन काल से कई ऋषि-मुनियों ने गायत्री मंत्र की सहायता से सिद्धियां अर्जित की है। आज भी यदि विद्यार्थी वर्ग गायत्री मंत्र का नित्य जाप करता है, तो इससे उनकी एकाग्रता कई गुणा बढ़ जाती है, क्योंकि इस मंत्र के उच्चारण मे जीभ, होंठ, Vocal cord (स्वरतंत्री), Palate (तालु) पर दबाव बनता है, जो सीधा मस्तिष्क को जागृत करता है। गायत्री मंत्र के नित्य उच्चारण से शरीर में जो कंपन होती है, उससे हमारी रोग-प्रतिरोधक क्षमता भी बढ़ती है। इसके साथ ही गायत्री मंत्र के उचित रूप में उच्चारण से श्वास, सम्बन्धी समस्यायें भी ठीक हो जाती है। इस मंत्र के उच्चारण से एण्डोरफिन व विभिन्न तरह के हार्मोन्स बनते हैं, जो शरीर को आराम पहुंचाते है और इनसे अवसाद की स्थितियां भी दूर होती है।
It is mandatory to obtain Guru Diksha from Revered Gurudev before performing any Sadhana or taking any other Diksha. Please contact Kailash Siddhashram, Jodhpur through Email , Whatsapp, Phone or Submit Request to obtain consecrated-energized and mantra-sanctified Sadhana material and further guidance,