भगवती दुर्गा की साधना में नवार्ण मंत्र का विशेष महात्म्य है। नवार्ण मंत्र के बारे में तो अधिकतर लोगों को ज्ञान है, परन्तु उसकी साधना के द्वारा होने वाले लाभ से अधिकतर लोग अनभिज्ञ होते हैं।
ऋषियों ने कहा है, कि चाहे व्यक्ति शिव उपासक हो या विष्णु उपासक, वह चाहे किसी भी धर्म को मानने वाला हो, नवार्ण साधना तो उसके जीवन की उन्नति के लिए अनुकूल एवं सुखदायक है ही। इसके नव वर्ण अर्थात् नव अक्षर अपने आप में विराट शक्ति पुंज लिये हुये हैं। इस ग्रन्थ में प्रत्येक अक्षर की साधना दी हुई है। इतने विस्तार में फिलहाल जाने की जरूरत नहीं है। परन्तु गुप्त चामुण्डा तंत्र में बताया गया है, कि नवार्ण मंत्र से नव अक्षरो को सिद्ध करने पर नौ लाभ प्राप्त कर सकते हैं।
गुप्त चामुण्डा तंत्र के अनुसार नर्वाण मंत्र के ये नौ बीज तथा उनसे सम्बन्धित फल प्राप्ति इस प्रकार से हैं-
ऐं- यह बीज नवार्ण मंत्र का पहला और सरस्वती बीज है, इसको सिद्ध करने पर स्मरण शक्ति तीव्र होती है, यदि बालक इस साधना को या इस बीज का उच्चारण करें तो, निश्चय ही वह परीक्षा में सफलता प्राप्त करता है। सिर दर्द, माइग्रेन, आधा शीशी आदि विकार और बीमारियां समाप्त हो जाती हैं। इस बीज मंत्र से साधक वाणी के द्वारा लोगों को प्रभावित करने में पूर्ण रूप से समर्थ होता है।
ह्रीं- यह लक्ष्मी बीज है, जो कि सम्पूर्ण विश्व प्रचलित है। इस बीज की साधना करने से या इसका मंत्र जप करने से धनहीनता दूर होती है, निरन्तर आर्थिक उन्नति होने लगती है और अर्थ सम्बन्धी रूके हुये काम ठीक हो जाते हैं। जो साधक निरन्तर केवल इसी बीज का उच्चारण करता है, उसका व्यापार बढ़ने लगता है, आर्थिक स्रोत मजबूत होते हैं और अनायास धन प्राप्ति के विशेष अवसर बनते हैं।
क्लीं- यह काली बीज है, शत्रुओं का संहार करने, शत्रुओं पर विजय प्राप्त करने, मुकदमे में सफलता प्राप्त करने और मन के विकारों काम, क्रोध, लोभ, मोह आदि पर नियंत्रण प्राप्त करने के लिए यह महत्वपूर्ण बीज है। जो इस बीज का उच्चारण कर कोर्ट-कचहरी में जाता है, तो उस दिन उसके अनुकूल वातावरण बना रहता है। महाकाली के उसको प्रत्यक्ष दर्शन के लिए यह अपने आप में सिद्ध बीज है।
चा- यह सौभाग्य बीज है और इसकी महत्ता शास्त्रों ने एक स्वर से स्वीकार की है। सुहाग की रक्षा, पति की उन्नति, पति के स्वास्थ्य और पति की पूर्ण आयु के लिये यह अपने आप में अद्वितीय बीज है। इसी प्रकार यदि पत्नी बीमार हो या उसे किसी प्रकार की तकलीफ हो, तो इस अक्षर का निरन्तर जप करने से या पत्नी को इस बीज मंत्र से सिद्ध करके जल पिलाने से उसके स्वास्थ्य में आश्चर्यजनक अनुकूलता आने लगती है, गृहस्थ जीवन की सुदृढ़ता के लिये यह बीज मंत्र सिद्ध है।
मुं- यह आत्म मंत्र है, आत्म उन्नति, कुण्डलिनी जागरण, जीवन की पूर्णता और अन्त में ब्रह्म से पूर्ण साक्षात्कार के लिए यह मंत्र सर्वाधिक उपयुक्त एवं अद्वितीय है। उच्चकोटि के संन्यासी निरन्तर इस मंत्र का जप करते हुये, अपने जीवन को पूर्णता प्रदान करते हैं, जो साधक निरन्तर इस बीज मंत्र का उच्चारण करता रहता है, उसकी कुण्डलिनी शीघ्र ही जाग्रत हो जाती है।
डा- यह सन्तान सुख बीज है और भगवती जगदम्बा का सर्वाधिक प्रिय बीज है, यदि पुत्र उत्पन्न न हो रहा हो या संतान बाधा हो अथवा किसी प्रकार की पुत्र से सम्बन्धित तकलीफ हो, तो इस बीज मंत्र को सिद्ध करने से अनुकूलता प्राप्त होती है। पुत्र के स्वास्थ्य और दीर्घायु के लिये भी इसी बीज मंत्र का आश्रय लिया जाता है।
यै- यह भाग्योदय बीज है और मानव जीवन में इस बीज का सर्वाधिक महत्व है, यदि दुर्भाग्य साथ नहीं छोड़ रहा हो, पग-पग पर बाधायें आ रही हों, कोई काम भली प्रकार से सम्पन्न नहीं हो रहा हो, तो इस मंत्र को विशेष महत्व दिया गया है। जो साधक निरन्तर इस बीज मंत्र का जप करता रहता है, उसका शीघ्र ही भाग्योदय हो जाता है और वह अपने जीवन में सभी दृष्टियों से पूर्ण सफलता प्राप्त कर लेता है।
वि- यह सम्मान, प्रसिद्धि, उच्चता, श्रेष्ठता और सफलता का बीज मंत्र है। किसी प्रकार के पुरस्कार प्राप्त करने, समाज में सम्मान और यश प्राप्त करने, राज्य में उन्नति और सफलता पाने के लिए इस बीज मंत्र का उपयोग किया जाता है। जो साधक निरन्तर इस बीज मंत्र की साधना करता है, वह निश्चय ही राज्य सम्मान एवं राज्य उन्नति प्राप्त करने में सफल हो पाता है।
च्चे- यह सम्पूर्णता का बीज है, जीवन सभी दृष्टियों से पूर्ण और सफल हो, चाहे स्वास्थ्य धन, परिवार यश, सुख, सौभाग्य, सन्तान, भाग्योदय और सफलता का तत्व हो, इसे बीज राज कहा गया है। जो साधक इस बीज मंत्र की साधना करता है, वह निश्चय ही अपने जीवन में पूर्ण सफलता प्राप्त करता है।
03 जुलाई आषाढ़ी नवरात्रि अथवा किसी माह के त्रयोदशी पर रात्रि 9 बजे के पश्चात् स्नानादि से निवृत्त होकर पीली धोती पहन, उत्तर की ओर मुंह कर सामने भगवती जगदम्बा का चित्र स्थापित करें, साधना के समय अखण्ड तेल का दीपक प्रज्ज्वलित होते रहना चाहिये।
ऋष्यादि-न्यासः निम्न उच्चारण करते हुये बताये हुये शरीर के
अंगो को दाहिने हाथ से स्पर्श करें-
ब्रह्म-विष्णु-रुद्र ऋषिभ्यो नमः। (शिरसि)
गायत्री विष्णु छन्दोभ्यां नमः। (मुखे)
काली-लक्ष्मी-सरस्वती देवताभ्यो नमः। (हृदि)
ऐं बीजाय नमः। (गुह्ये)
ह्रीं शक्तये नमः। (पादयोः)
क्लीं कीलकाय नमः। (नाभौ)
कर न्यास- कर न्यास करने से साधक स्वयं मंत्र मय बन जाता है, उसके बाहर-भीतर की शुद्धि हो जाती है तथा दिव्य बल प्राप्त करने से वह साधना में सफलता प्राप्त कर लेता है।
ऐं अंगुष्ठाभ्यां नमः। ह्रीं तर्जनीभ्यां नमः।
चामुण्डायै अनामिकाभ्यां नमः।
विच्चे कनिष्ठिकाभ्यां नमः।
ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे करताल कर पृष्ठाभ्यां नमः।
हृदयादि न्यास-
ऐं हृदयाय नमः। ह्रीं शिरसे स्वाहा।
क्लीं शिखायै वषट्। चामुण्डायै कवचाय हुं।
विच्चे नेत्र-त्रयाय वौषट्।
ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चै अस्त्रय फट्।
अक्षर न्यास-
ऐं नमः (शिखा) ह्रीं नमः (दक्षिण नेत्र)
कलीं नमः (उत्तर नेत्र) चां नमः (दक्षिण कान)
मुं नमः (उत्तर कान) डां नमः (दक्षिण नासिका)
यै नमः (दक्षिण नासिका) विं नमः (मुखे)
त्वे नमः (गुह्य)
न्यासादि के पश्चात् ताम्रपात्र में त्रिभुज बनाकर उस पर नवार्ण यंत्र स्थापित करें, फिर रक्त चंदन, पुष्प, अक्षत अर्पित कर नर्वाण मंत्र का 3 माला 9 दिन तक जप शक्ति माला से करें।
इस प्रकार कुल 27 माला मंत्र जप करना है, साधना पूर्णता पर सभी सामग्री लाल कपड़े में लपेट कर गुरु चरणों में अर्पित कर दें। यह साधना अपने गृहस्थ जीवन के सभी पक्षों को सुदृढ़ बनाने की साधना है, जिसके द्वारा साधक सांसारिक जीवन के सभी सुख-समृद्धि, योग-भोग की प्राप्ति करता ही है।
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