धूमावती दस महाविद्याओं में एक है, जिस प्रकार तारा बुद्धि और समृद्धि की, त्रिपुर सुन्दरी पराक्रम एवं सौभाग्य की सूचक मानी जाती हैं। इसी प्रकार धूमावती शत्रुओं पर प्रचण्ड वज्र की तरह प्रहार करने वाली मानी जाती हैं। यह अपने आराधक को अप्रतिम अभय प्रदान करने वाली देवी हैं, जो प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष दोनों ही रूपों में सहायक सिद्ध होती हैं।
दस महाविद्याओं के क्रम में धूमावती सप्तम महाविद्या है, ये शत्रु का भक्षण करने वाली महाशक्ति और दुःखों की निवृत्ति करने वाली महोदवी हैं। बुरी शक्तियों से पराजित न होना और विपरीत स्थितियों को अपने अनुकूल बना देना इस साधना से संभव है। धूमावती महाविद्या को ‘दारूण विद्या’ भी कहा जाता है, सृष्टि में जितने भी दुःख, व्याधियां, बाधायें हैं, उन सभी के शमन हेतु धूमावती श्रेष्ठतम साधना मानी जाती है। जो व्यक्ति या साधक इस महाशक्ति की आराधना-उपासना करता है, ये उस साधक पर अति प्रसन्न होकर उसके शत्रुओं का भक्षण तो करती ही हैं, साथ ही उसके जीवन में धन-धान्य, समृद्धि की कमी नहीं होने देतीं, इसीलिये ये लक्ष्मी के नाम से भी पूजित हैं, अतः लक्ष्मी प्रप्ति के लिये भी साधक को इस शक्ति की आराधना करते रहना चाहिये।
प्रत्येक व्यक्ति की आकांक्षा होती है, कि किस तरह पूरी क्षमता के साथ उन्नति की तरफ अग्रसर हो और अपने जीवन में जो कुछ चाहता है वह उसे पूरी तरह मिल जाये। पर हम जो प्रयत्न करते हैं, उसमें हमें सफलता नहीं मिल पाती, इसके कई कारणों में से एक प्रमुख कारण यह है कि चाहे अनचाहे, जाने अनजाने कई शत्रु-स्वतः पैदा हो जाते हैं और वे हमारी प्रगति में बाधायें डालते हैं। इस प्रकार से हमारे जीवन मे जो प्रगति होनी चाहिए, वह नहीं हो पाती क्योंकि हमारी सारी शक्ति इन गुप्त शत्रुओं का सामना करने में ही व्यय हो जाती है।
केवल हमारे जीवन में व्यक्ति ही शत्रु नहीं होते अपितु शास्त्रों में नौ प्रकार के शत्रु माने गये हैं जिनकी वजह से हमारी प्रगति सही प्रकार से नहीं हो पाती। ये नौ शत्रु हैं-
1- प्रत्यक्ष शत्रु– जिससे हम शत्रुता का भाव रखते हैं।
2- अप्रत्यक्ष शत्रु– जो स्पष्ट रूप से हमारे सामने तन कर खड़ा नहीं है, परन्तु उसकी सारी प्रवृत्तियां शत्रुवत ही हैं।
3- विश्वासघाती शत्रु– जो हमारे मित्र हैं, हमारे व्यापार में पार्टनर हैं, जिन पर हम भरोसा करते हैं, समय पड़ने पर वे ही हमें धोखा दे देते हैं या पीठ में छुरा घोंप देते हैं, ऐसे शत्रु ज्यादा नुकसान दायक होते हैं।
4- ऋण शत्रु- कर्ज अपने आप में पूर्ण शत्रु है क्योंकि जब पैसे मांगने वाला व्यक्ति सुबह-सुबह आ धमकता है तो जो वेदना होती है, वह भुक्त भोगी ही समझ सकता है। इसलिए यह शत्रु भी हमारे जीवन की उन्नति में पूर्ण रूप से बाधक है।
5- दरिद्रता शत्रु– दरिद्रता या निर्धनता हमारे जीवन का प्रबल शत्रु है, क्योंकि जब घर में गरीबी होती है, तो हम अपने जीवन में जो कुछ करना चाहते हैं, वह नहीं कर पाते, हम अपने जीवन में जो उन्नति चाहते हैं वह नहीं कर पाते। हम अपने जीवन में जो कुछ भी करना चाहते हैं वह कर नहीं पाते, क्योंकि यह दरिद्रता हर कदम पर हमारा रास्ता रोक कर खड़ी हो जाती है और पग-पग पर हमें अपमानित होना पड़ता है। इसलिए दरिद्रता शत्रु भी हमारे जीवन में पूर्ण रूप से बाधक है।
6- रोग शत्रु– जीवन में सब कुछ होते हुए भी यदि आदमी बीमार, असक्त और कमजोर है या कलिष्ट बीमारियों से वह घिरा रहता है, तो उसका सारा उत्साह, सारा जोश अपने आप में ही समाप्त हो जाता है और जीवन को जीने की जो उमंग होती है, वह उमंग ही समाप्त हो जाती है। अतः रोगों से छुटकारा पाना जीवन का महत्वपूर्ण लक्ष्य होता है।
7- कुभार्या शत्रु– हम अपने जीवन में विवाह इसीलिए करते हैं कि पतिव्रता और श्रेष्ठ पत्नी या पति मिले और दोनों के सहयोग से गृहस्थ जीवन को सही प्रकार से संचालित होने की क्रिया हो सके। यदि पति या पत्नी ही कुमार्गी हो या कुलक्षणा, बीमार हो, कदम कदम पर अपमानित करने वाली हो, भली प्रकार से सुख न देने वाली हो अथवा पति शराबी, कुगामी हो तो निश्चय ही वे एक-दूसरे के शत्रु समान ही होते हैं। हम समाज भय से उसे कुछ कह नहीं सकते और बराबर अपमान का घूंट पीते रहना पड़ता है।
8- कुपुत्र शत्रु– यदि पुत्र नहीं हो, तो जीवन अंधकारमय होता है और यदि पुत्र है, मगर वह परेशानी पैदा करने वाला है, अशिक्षित, मूर्ख या भ्रष्ट है, कुमार्ग पर चलने वाला है, आज्ञाकारी नहीं है और सही प्रकार से कमाने वाला या उन्नति करने वाला नहीं है, आलसी है, तो वह भी शत्रु ही माना जाता है।
9- भाग्यहीनता शत्रु– यदि हमारा भाग्य ही कमजोर है, हम अच्छे के लिए प्रयत्न करें और सफलता न मिले, यदि हम परिश्रम करें और उसका परिणाम प्राप्त न हो, यदि हम व्यापार के लिए जी तोड़ मेहनत करें और उससे लाभ न मिले, तो यह भाग्य का दोष ही माना जाता है और ऐसा भाग्य भी शत्रुवत ही होता है।
उपरोक्त नौ प्रकार के शत्रु माने गये हैं, इनमें से यदि एक से अधिक आपके शत्रु हैं, तो आपके जीवन की प्रगति रूक जाती है। आपके जीवन की आकांक्षा, जीवन की इच्छायें सब कुछ समाप्त हो जाती हैं और जीवन में आप जो कुछ करना चाहते हैं, इन शत्रुओं की वजह से कुछ भी नहीं कर पाते और एक प्रकार से आपका जीवन सामान्य जीवन से भी बदतर हो जाता है।
जीवन में नित्य आती समस्याओं, बाधाओं व विपरीत परिस्थितियों के निराकरण के लिए यह आवश्यक है कि व्यक्ति दैवीय शक्ति को अपने रोम-प्रतिरोम में आत्मसात कर प्रखर व तेजस्वी व्यक्तित्व से आपूरित हो जिससे वह अपने जीवन की अड़चनों, विसंगतियों व शत्रुओं का सामना पूरी क्षमता से कर अपनी विजय सुनिश्चत करने में समक्ष हो सके। धूमावती साधना से साधक सफ़लता-उन्नति का सरल व सुगम मार्ग निर्मित करने व सुरक्षित जीवन की कामना निश्चित रूप से पूरी कर पाता है।
उपनिषदों में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि हर हालत में अपने शत्रुओं को समाप्त करना ही चाहिए और शत्रुओं पर विजय प्राप्त करना ही जीवन की पूर्णता है। जो व्यक्ति जितना जल्दी अपने शत्रुओं का संहार करता है, उसे उतना ही ज्यादा समय मिल जाता है, कि वह अपने जीवन में पूर्ण प्रगति करे।
शत्रुओं पर बिजली की तरह कड़कने का तात्पर्य शत्रुओं को मटियामेट करना नहीं है, शत्रुओं को समाप्त करने का भाव नहीं है, अपितु इस शीर्षक का तात्पर्य है कि आपका व्यक्तित्व प्रखर और तेजस्वी हो, जिससे शत्रु भयभीत रहें और आपके सामने खड़ा ना हो सके, जिससे रोग, ऋण और दरिद्रता समूल नष्ट हो सके, जिससे पत्नी और पुत्र सही मार्ग पर आकर आपके लिए सहायक हो सकें, जिससे आपके विश्वासघाती मित्र और व्यापार के पार्टनर आपके अनुकूल बन सकें और इस प्रकार से आपका जीवन ज्यादा सुखमय, आनन्दायक और सभी श्रेष्ठताओं से युक्त हो सके।
यों तो शत्रुओं को समाप्त करने के लिए तांत्रिक ग्रंथों में कई विधान बताये गये हैं, परन्तु हमारा उद्देश्य शत्रुओं को अपने अनुकूल बनाना है, उनकी शत्रुता समाप्त करना है और इसके लिए आज के युग में केवल धूमावती साधना ही सर्वश्रेष्ठ और तुरन्त प्रभाव देने वाली है।
धूमावती साधना तुरन्त असर दिखाने वाली साधना है, साधना समाप्त होते-होते ही अनुकूल परिणाम दिखाई देता है और इस साधना के माध्यम से हम जीवन के सभी शत्रुओं पर पूर्ण रूप से विजय प्राप्त करने में सफल हो पाते हैं। इसीलिए तो उच्चकोटि के शास्त्रें में धूमावती को सर्वश्रेष्ठ साधना बताया है, उन्होंने स्पष्ट किया है कि यदि साधक धूमावती जयन्ती पर धूमावती की यह एक दिवसीय साधना सम्पन्न कर लेता है, तो उसे सभी प्रकार के रोगों से मुक्ति और सभी प्रकार की बाधाओं से निवृत्ति प्राप्त होती ही है।
अर्थात् सभी प्रकार के रोग, ऋण, दुर्भाग्य और शत्रु बाधा से मुक्ति केवल धूमावती साधना ही दे सकती है।
प्रत्येक व्यक्ति अपने जीवन में अनुकूल समय का इंतजार करता है, जिससे उसे कम परिश्रम से ही श्रेष्ठ सफलता प्राप्त हो जाये। किसी भी सिद्धि दिवस अथवा जयन्ती का मंतव्य भी यही होता है कि साधक उस दिवस विशेष की चैतन्तयता व जीवन्तता के माध्यम से श्रेष्ठतम स्वरूप में सफलता अर्जित कर ऊर्जावान बन सके। वास्तव में जो साधक सही अर्थों में साधना करना चाहते हैं, जो सही अर्थों में धूमावती को प्रत्यक्ष करना चाहते हैं, जो हकीकत में अपने शत्रुओं का संहार कर भगवती धूमावती की पूर्ण कृपा चाहते हैं, जो सभी प्रकार के शत्रुओं को परास्त कर पूर्ण विजय प्राप्त करना चाहते हैं, उन साधकों के लिये धूमावती सिद्धि दिवस पूर्ण वरदान स्वरूप है, क्योंकि यह मात्र कोई सामान्य दिवस ना होकर एक सिद्ध मुहुर्त है और ऐसे सिद्धि प्रदायक दिवस पर साधना, मंत्र जाप का अक्षुण्ण रूप में फल प्राप्त होता है। साथ ही प्रत्येक साधक को वर्ष में एक बार धूमावती साधना अवश्य ही सम्पन्न करनी चाहिए जिससे कि उसके जीवन के सभी शत्रु और वर्ष भर की विषमतायें समाप्त हो सकें और वह जीवन में पूर्ण उन्नति प्राप्त कर सकें।
इसके लिए पिप्लाद ऋषि द्वारा वर्णित ‘धूमावती महायंत्र’ की आवश्यकता होती है, जो कि विशेष मंत्रों से सिद्ध और प्राण प्रतिष्ठा युक्त हो। इसके साथ ही साथ तांत्रिक ग्रन्थों में बताया गया है कि साधना में धूम्र विलोचन माला से ही मंत्र जप होना चाहिए।
साधक इस साधना को धूमावती सिद्धि दिवस 10 जून रात्रि में अथवा किसी भी अमावस्या को सम्पन्न कर सकता है। वह स्नान कर लाल आसन पर बैठ जाये और लाल धोती धारण करे, फिर सामने एक तांबे के पात्र में श्रेष्ठ मंत्र सिद्ध धूमावती महायंत्र और उसके ऊपर शूर्पधारिणी गुटिका को स्थापित कर दें। इसके बाद सामने तेल का दीपक प्रज्ज्वलित कर धूम्र विलोचन माला से मंत्र जप सम्पन्न करें।
साधक को चाहिए वह इस यंत्र के सामने हाथ में जल लेकर संकल्प करे कि मैं समस्त प्रकार के शत्रुओं को समाप्त कर जीवन में हर दृष्टियों से पूर्ण उन्नति चाहता हूं। यदि कोई विशेष शत्रु हो जो आपको जरूरत से ज्यादा परेशान कर रहा हो तो उस शत्रु का नाम लेकर उच्चारण कर सकते हैं। इसके बाद दक्षिण दिशा की ओर मुंह कर निम्न की 11 माला मंत्र जप करें-
यह मंत्र अपने आपमें अत्यंत तेजस्वी और महत्वपूर्ण है। जब मंत्र जप पूरा हो जाये तब धूमावती यंत्र और माला को किसी नदी, तालाब या कुएँ में विसर्जित कर दें अथवा किसी मंदिर में जाकर रख दें।
इस प्रकार यह साधना सम्पन्न होती है जो कि आगे के पूरे जीवन को संवारने, सुखमय बनाने और उन्नति युक्त बनाने में सहायक है। जो साधक विविध समस्याओं से ग्रस्त हैं, जो विविध शत्रुओं से परेशान हैं, वे इस साधना के द्वारा उन शत्रुओं का संहार कर, शत्रुओं पर विजय प्राप्त करते हुए, श्रेष्ठ और अद्वितीय उन्नति प्राप्त कर सकेंगे।
It is mandatory to obtain Guru Diksha from Revered Gurudev before performing any Sadhana or taking any other Diksha. Please contact Kailash Siddhashram, Jodhpur through Email , Whatsapp, Phone or Submit Request to obtain consecrated-energized and mantra-sanctified Sadhana material and further guidance,