भविष्य पुराण में युधिष्ठर के द्वारा रक्षा विधान पूछे जाने पर श्री कृष्ण ने यह कथा सुनाई थी। प्राचीन समय में देवों और दैत्यों के बीच भयंकर युद्ध हुआ, जिसमें दैत्यों की विजय की संभावना होने लगी। दैत्यों के विषम प्रभाव से यज्ञ तथा धार्मिक कार्य बन्द हो गये। इससे देवताओं की शक्ति तथा बल क्षीण हो गया। घबरा कर इन्द्र देव बृहस्पति की शरण में गये और अपनी निर्बलता की बात कह कर युद्ध में विजय प्राप्ति का उपाय पूछा।
उसी समय इन्द्राणी वहाँ आयी और पति को विश्वास दिलाया कि अगले दिन (श्रावण पूर्णिमा) को वे कुछ उपाय अवश्य करेंगी। अगले दिन इन्द्राणी ने स्नान करके ब्राह्मणों से स्वस्तिवाचन कराया और इन्द्र की दाहिनी कलाई में रक्षा सूत्र बांधकर उन्हें शुभकामना के साथ युद्ध में भेजा। देवों के मनोबल से और रक्षा सूत्र के प्रभाव से युद्ध में देवता विजयश्री को प्राप्त किये। तब से श्रावण पूर्णिमा के दिन रक्षा बन्धन का पर्व प्रचलित है।
द्वापर युग में एक समय असुर बहुत शक्तिशाली हो गये और उन्होंने ऋषि-मुनियों को परेशान करना, बच्चों को चुरा कर मार देना, अकारण लोगो को पीटना प्रारंभ कर दिया। असुरों के अत्याचारों से त्रस्त लोग बलराम-कृष्ण के पास पहुँचे और उनसे रक्षा की प्रार्थना की। कृष्ण अत्यंत क्रुद्ध हुये और चतुरअंगिनी सेना (पैदल, हाथी, घोड़े, रथ) तैयार करने की आज्ञा दी। यह सब देखकर कृष्ण की बहन सुभद्रा बहुत घबरायी क्योंकि वह असुरों के मायाजाल को जानती थी। सुभद्रा गौरा पार्वती के मंदिर में गयी और भाईयों की मंगलकामना के लिये प्रार्थना की। उसी समय माता गौरा पार्वती के गले में बंधा रेशमी सूत्र नीचे गिर पड़ा। सुभद्रा ने प्रसाद समझ कर वह सूत्र उठा लिया। घर आकर सुभद्रा ने उस सूत्र को अपने भाइयों की कलाई पर रक्षा रूप में बांध कर युद्ध में विजयी होने की शुभकामना दी। वह श्रावण पूर्णिमा का दिन था। असुरों के साथ भयंकर युद्ध में कृष्ण-बलराम विजयी हुये। तब से इस दिन रक्षा बन्धन का त्यौहार घर-घर में मनाया जाने लगा।
एक बार चोट लगने से कृष्ण के हाथ से खून बहने लगा गया, यह देखकर द्रौपदी ने तुरंत अपनी साड़ी फाड़कर कृष्ण के हाथ में बांध दिया, जिससे रक्त बंद हो गया। उसी सूत्र बन्धन के ऋण से ऋणी कृष्ण ने चीर हरण के समय द्रौपदी का वस्त्र अनन्त लंबा कर दिया और उनकी रक्षा की। रक्षा बंधन की पवित्रता और महत्व को मुस्लिम धर्म ने भी स्वीकार किया था। चित्तोड़ की रानी कर्मावती के द्वारा हुमायूँ को राखी भेजकर सहायता मांगने की कथा हम सभी जानते हैं।
It is mandatory to obtain Guru Diksha from Revered Gurudev before performing any Sadhana or taking any other Diksha. Please contact Kailash Siddhashram, Jodhpur through Email , Whatsapp, Phone or Submit Request to obtain consecrated-energized and mantra-sanctified Sadhana material and further guidance,