1- भूखण्ड पर निर्माण कार्य करते समय इसकी ढलान उत्तर-पूर्व की ओर रखें, जिससे सभी प्रकार के जल का निष्कासन इस तरफ से हो सकें तात्पर्य यह है कि पूरे घर के फर्श की ढलान दक्षिण से उत्तर-पूर्व की ओर हो, यानी दक्षिण-नैऋत्य आदि ऊंचे हो और पूर्व व उत्तर नीचे की ओर।
2- भूल कर भी ईशानकोण यानी पूर्वोत्तर में सैप्टिक टैंक न बनवायें, परन्तु कुआं, बावली या भूमिगत जल संग्रह करना उत्तम है, यह निर्माण पूर्व से लेकर उत्तर तक कर सकते हैं।
3- यहां आरोग्यवर्द्धक व वास्तु दोष नाशक तुलसी एवं मनी प्लांट के पौधे लगायें, इससे शुभ फल की प्राप्ति होगी।
4- इस कोण में किसी भी रूप में गंदगी न फैलायें, जैसे– झुठे बर्तन रखना या साफ करना, कचरा इकठ्ठा करना या फिर कचरादान या झाडू रखना आदि, इससे ऋणात्मक ऊर्जा में वृद्धि होती है और ईशान-दोष उत्पन्न होता है।
5- यदि ईशानकोण में पहले से ही शौचायल बना हो और उसे हटाना नामुमकिन हो तो वास्तु दोष नाशक श्रीफल पूर्व दिशा में लटका दें, शौचालय से सटा पूजा घर न बनायें, शौचालय से सटा पूजा घर बहुत ही नुकसानदायक है, ऐसे में नैऋत्य को छोड़ कर अन्यत्र पूजा घर बनायें।
6- जहां तक संभव हो मुख्य द्वार पूर्व व उत्तर दिशाओं में ही बनवायें, यथा संभव ईशानकोण में मुख्य द्वार न बनवायें पूर्व से उत्तर तक का निर्माण हल्का रखें, खिड़कियों व रोशनदानों की संख्या इधर सर्वाधिक रखें, कोई घना पेड़ (पूर्व से उत्तर के मध्य) न लगायें, छोटे पौधे इस तरफ लगाना बहुत ही लाभदायक हैं, बेर, इमली, कैक्टस आदि घर में, विशेष तौर कर इस दिशा में, भूलकर भी न लगायें, ये ऋणात्मक प्रभाव उत्पन्न करते हैं।
7- अगर किसी कारण पूर्वोत्तर का स्थान का ऊंचा है अथवा आपके घर के पूर्व या उत्तर की ओर प्राकृतिक रूप से ही कोई ऊंचा टीला, पहाड़ी या बिल्डिंग है, जो आपके घर के ईशान को वेध रही है तो नैऋत्य में भी चबूतरे आदि का निर्माण करके ईशान को नैऋत्य से हल्का एवं नीचा कर दें, इससे वास्तुदोष में कमी आयेगी, साथ ही नैऋत्यकोण में घने एवं ऊंचे वृक्ष लगा कर भी इस दोष के प्रभाव में क्षीणता आती है।
8- किसी भी प्रकार के छोटे-छोटे विद्युत उपकरणों की स्थापना ईशानकोण में न करें, ये अग्नितत्व प्रधान होने के कारण अग्नि कोण में ही लगायें।
9- मन्दिर, अध्ययन कक्ष, अतिथि कक्ष एवं स्वागत कक्ष हमेशा ईशानकोण में ही बनायें, अन्य दिशाओं में ये हानिकारक हैं।
10- ईशान में बने मंदिर में अपने इष्टदेव, कुल देव एवं सद्गुरु की मूर्ति या चित्र लगायें, यहां मंदिर के भीतर ही पितरों के चित्र आदि देवी-देवताओं के संग स्थापित न करें, इन्हें वायव्य या नैऋत्यकोण में स्थान दें, घर में मूर्तियों का आकार छः इंच से ज्यादा न हो एवं इनकी स्थापना भी जरूर करवा लें, स्थापना हो जाने के बाद नियमित रूप से इनकी आरती-पूजा एवं भोग लगाना आवश्यक है।
11- यहां गृह स्वामी शयनकक्ष बनाना उचित नहीं हैं, अटैच्ड टॉयलेट-बाथरूम का निर्माण करना भी यहां उचित नहीं हैं। यहां शयन कक्ष होने से वैवाहिक जीवन बुरी तरह प्रभावित होता हैं और शौचालय होने से पूरे परिवार की मानसिक स्थिति बिगड़ सकती है, यहां रहने वाला गृह स्वामी अनिद्रा, तनाव या डिप्रेशन का शिकार हो सकता है।
12- शुद्ध जल से भरे बर्तन ईशानकोण में ही रखें, ईशान में थोड़ा-बहुत दोष हो तो यहां नियमित रूप से नमक के पानी से पोंछा लगायें, बहुत लाभ होगा।
13- अपने व्यावसायिक स्थल पर भी यदि संभव हो तो पूर्व या उत्तर की ओर मुंह करके बैठें, किसी भी टांड या बीम के नीचे न बैठें, पानी पीते एवं भोजन करते समय भी अपना मुंह पूर्व में ही रखें, कुछ विद्वानों की राय में पितरों को प्रसन्न करने एवं यश की प्रप्ति के लिए भोजन करते समय दक्षिणाभिमुख होकर बैठें।
14- यदि ईशानकोण को वेधा हो रहा हो या अन्य किसी प्रकार से दूषित हो रहा हो और दोष निवारण का कोई मार्ग नहीं दिख रहा हो तो मात्र पूर्व एंव उत्तर की दीवारों को हल्का कर दें, इससे ईशानदोष काफी सीमा तक कम हो जाता हैं, पर किसी भी प्रकार की तोड़-फोड़ से पहले विद्वानों की राय लेना उचित होगा।
15- व्यापारिक स्थल में यदि सीढि़यां बनवानी हो तो ईशान में बनवायें, लेकिन ईशान की तरफ बनी सीढि़यां मात्र पूर्व की ओर मुख वाले व्यापारिक स्थल या दुकान हेतु लाभकारी है, दुकान का मुंह अन्य दिशा में होने पर सीढि़यां भी अलग स्थान पर बनवायें।
16- जिस घर में ईशान वेध होगा वहां अनेक रोग सदैव मुंह बाये खड़े रहेंगे, इसलिए ईशान में किसी भी प्रकार का अवरोध न होनें दें, अब विज्ञान ने प्रमाणित कर दिया है कि वस्तु की पंचभूतों की अवधारणायें पूर्णतः वैज्ञानिक है, पूर्व-उत्तर दिशाओं के खुला एवं हल्का होने पर सूर्य एवं वायु का लाभ मिलता है, अतः इन दिशाओं को बाधित करना रोगों को आमंत्रण देना ही है।
17- शयनकक्ष को ईशान में न बनाना लाभदायक है, क्योंकि शुक्र शयन कक्ष या शयन सुख का कारक है, जबकि पूर्व दिशा का प्रतिनिधि ग्रह सूर्य है, पंचधा मैत्री चक्र के अनुसार ये दोनो ग्रह एक-दूसरे के शत्रु हैं, इसलिए शयन कक्ष के स्थान (नैऋत्य/दक्षिण-पश्चिम) पर शुभ नहीं तथा मंदिर के स्थान (ईशानकोण) पर शयन कक्ष लाभदायक नहीं होता है।
18- फैक्टरी में बड़े-बड़े ट्रांसफार्मर, बॉयलर या अग्नि या विद्युत पैदा करने वाले अन्य उपकरण ईशान या पूर्वोत्तर में न लगायें, बॉयलर को खासतौर पर अग्निकोण में तथा ट्रांसफार्मर जैसे भारी संयंत्रों को नैऋत्य या दक्षिण दिशा में लगायें, ईशान की तरफ लगे बॉयलर-ट्रांसफार्मर से बार-बार अग्नि से संबंधित दुर्घटनाएं होने का भय होता है, कारखाने का मालिक तनाव में रह सकता है और सरकार की ओर से भी बार-बार परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है, कार्यालय में इस तरफ रिसैप्शन, मंदिर या पानी के संग्रह आदि का स्थान बनायें।
इस प्रकार उपरोक्त नियमों का पालन कर व्यक्ति अनेक समस्याओं से बच सकता अपनी ऊर्जा एवं दक्षता का उचित उपयोग कर लाभान्वित हो सकते हैं।
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