सावित्री और सत्यवान की कथा अनुसार जब सत्यवान की मृत्यु का समय निकट आ पहुंचा, तब सत्यवान जंगल में समिधा के लिये लकडि़या काटने जाने लगे, भविष्य वक्ता के अनुसार वह उनका अन्तिम दिन था, यह सोचकर सावित्री भी उनके साथ जंगल जाने लगी। सत्यवान के बहुत समझाने पर भी जब सावित्री नहीं मानी तो सत्यवान उसे अपने साथ ले जाने को सहमत हो गये। लकडि़या काटते हुये अचानक सत्यवान को सर में दर्द होने लगा और चक्क्र आने लगा, वो कुल्हाड़ी फेक कर नीचे उतर आये। पति का सर अपने गोद में लेकर सावित्री अपने आंचल से हवा करने लगी।
थोड़ी देर में सावित्री ने दक्षिण दिशा से अपनी ओर आते हुये भैंसे पर सवार एक पुरुष को देखा। इस देव पुरुष का शरीर सुन्दर अंग वाला था और वे अपने हाथ में यम पाश लिये हुये थे। देखते ही देखते देवपुरुष ने सत्यवान को पाश में जकड़ लिया और सत्यवान के शरीर से आत्म पुरुष को बाहर खींच लिया।
आर्त स्वर में अत्यन्त व्याकुल होकर सावित्री ने उस पुरुष से पूछा हे देव! आप कौन हैं और इस तरह मेरे हृदय के स्वामी को बल पूर्वक खींच कर कहां ले जा रहें हैं। सावित्री के पूछने पर यमराज ने उत्तर दिया मै यम हूं, तुम्हारे पति की आयु पूर्ण हो गयी है, इसलिये मैं इसे ले जा रहा हूं। तुम्हारे सतीत्व के सामने मेरे दूत टिक नहीं पाते, इसलिये मैं स्वयं आया हूं। हे तपस्वनी! मार्ग से हट जाओ और मुझे मेरा काम करने दो। यह कहकर यमराज दक्षिण दिशा की ओर जाने लगे।
सावित्री भी यम के पीछे-पीछे जाने लगी। यमराज ने बहुत समझाया लेकिन सावित्री ने कहा जहां मेरे पति देव जा रहें है, मैं भी वहीं जाऊंगी। यमराज बार-बार मना करते रहे, लेकिन सावित्री पीछे-पीछे जाती रही। पतिव्रता स्त्री के तप और निष्ठा से हारकर यमराज ने कहा की तुम अपने पति के बदले तीन वरदान मांग लो। पहले वर में सावित्री ने अपने अंधे सांस-ससुर की आंखे मांगी, यमराज ने एवमस्तु कहा! दूसरे वरदान में उसने अपने पिता के सौ पुत्र मांगे, यमराज ने दूसरा वरदान भी दे दिया। अब तीसरे वरदान की बारी थी। इस बार सावित्री ने अपने लिये सत्यवान से तेजस्वी पुत्र का वरदान मांगा, यमराज एवमस्तु कह कर जाने लगे, तो सावित्री ने रोकते हुये कहा, पति के बिना पुत्र कैसे सम्भव? ऐसा कहकर सावित्री ने यमराज को उलझन मे डाल दिया। वचन से बंधे होने से यमराज को सत्यवान को पुनर्जीवित करना पड़ा।
इस तरह सावित्री ने अपने पत्नी धर्म और पति निष्ठा से न केवल अपने पति के प्राण वापस पाये बल्कि अपने अंधे सास-ससुर के नेत्र की दृष्टि और अपने पुत्र विहीन पिता के लिये 100 पुत्र भी वरदान के रूप में प्राप्त किया।
सावित्री के अन्तः मन में जो एकनिष्ठता का भाव और सतीत्व का ओज था, वह उनके साधनात्मक बल के तेज का ही प्रतीक है और उन्होंने इसी साधनात्मक बल से जीवन की असीम पीड़ादायी क्षणों का भी दृढ़ता से सामना कर अपने सौभाग्य को पुनः जीवित ही नहीं किया बल्कि उनके सौभाग्य चेतना में असीम वृद्धि भी हुयी, जिसके द्वारा वे अपने सम्पूर्ण गृहस्थ जीवन आनन्दमय स्वरूप में व्यतीत करने में सफल हुयीं।
प्रायः सभी परिवारों में भिन्न-भिन्न कारणों से दुर्भाग्यपूर्ण परिस्थतियां उत्पन्न होती रहती हैं। जिसके कारण पति-पत्नी के मध्य तनाव तो उत्पन्न होते ही हैं, साथ ही पारिवारिक, सामाजिक जीवन में भी विषमताओं का सामना करना पड़ता है।
जीवन के अभाव, कष्ट, दुःख, बाधा, कलुषिता, कलेश, चिंता, तनाव का निवारण दैवीय चेतना द्वारा ही संभव है और इसी चेतना शक्ति के द्वारा ही जीवन में मंगलमय स्थितियों का विस्तार हो पाता है और जीवन सुचारू रूप से गतिशील होता है। सत्यवान सौभाग्य साधना द्वारा पति-पत्नी के मध्य बेहतर सामंजस्य स्थापित होता है, जो गृहस्थ जीवन को श्रेष्ठता से गतिशील बनाये रखने के लिये अति अनिवार्य है। जिससे जीवन की अनेक समस्याओं का समाधान स्वतः होने लगता है। इस साधना के द्वारा प्रत्येक क्षण स्त्री के अखण्ड सौभाग्य की रक्षा होती है और सुख-समृद्धि युक्त जीवन का निर्माण होता है। परिवार में सम्मान, अपनत्व की भाव-भूमि निर्मित होने से परिवार के कलह-क्लेशों का शमन होता है।
प्रत्येक स्त्री अपने जीवन में शुभ चेतना की प्राप्ति के लिये अनेक-अनेक उपाय करती हैं। उसकी कामना होती है, कि वह केवल सुहागन ही नहीं अपितु सर्व सौभाग्यशाली भी हों, उसे अपने पति से अत्यधिक स्नेह, प्रेम, आत्मीय लगाव और श्रेष्ठ संतान की प्राप्ति का सुख भी मिले।
इस हेतु स्त्रियों को धार्मिक परम्पराओं के पालन के साथ ही दैवीय चेतना, ऊर्जा शक्ति को अपने भीतर आत्मसात करने की क्रियाओं का आश्रय भी प्राप्त करना चाहिये, क्योंकि जीवन में इन्हीं चेतना शक्ति के द्वारा ही अशुभता, अनिष्ट योगों और प्रारब्ध स्वरूप प्राप्त होने वाले कुफलों का निस्तारण संभव हो पाता है। जिससे जीवन में सर्व गृहस्थ सुख प्राप्ति की स्थितियों में वृद्धि होती है।
सौभाग्य तृतीया 18 अगस्त अथवा किसी भी शुक्रवार को पूर्ण श्रृंगार कर पूजन कक्ष में आसन ग्रहण करें। सत्यवान- सावित्री विग्रह व सुहाग रक्षा सूत्र स्थापित कर कुंकुम, अक्षत, पुष्प आदि से पूजन कर दोनों हाथ जोड़कर प्रार्थना करें-
सुहाग सौभाग्यं देहि त्वं मम् सुव्रते।
पुत्रन पौत्रश्च सौख्यं सिद्धिं च गृहाणार्घ्यं नमोऽस्तुते।।
दाहिने हाथ में जल लेकर संकल्प लें-
मम् सर्व व्याधि सकलदोष परिहारार्थं ब्रह्मसावित्री
सौभाग्यं शक्तिये प्रीत्यर्थं च सौभाग्ये साधनामहं करिष्ये।।
अब सौभाग्य शक्ति माला से 5 माला मंत्र जप करें-
मंत्र जप पश्चात् सुहाग रक्षा सूत्र अपने पति के दाहिने हाथ में बांध दें और अन्य सभी सामग्री पीपल वृक्ष के नीचे रख कर पांच बार परिक्रमा कर पीपल को जल अर्पित करें।
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