यहां यह बात ध्यान देने योग्य है कि जो व्यक्ति आगे बढ़ने का प्रयास करते हैं, उनके ही मार्ग में रुकावटें आती हैं, शत्रु उत्पन्न होते हैं। जो अपने जीवन को एक निश्चित गति पर कोल्हू के बैल की तरह चलने देते हैं, उसके शत्रु कैसे होंगे? जो जीवन से भाग कर छुप जाता है, वह साधना का नाटक करता है, उसके भी शत्रु कैसे होंगे? इसलिये शत्रु तो जीवन का अंग है, इनसे घबरा कर पैर पीछे हटा लिये तो उन्नति नहीं हो सकती।
इतिहास उठा कर देखें तो हमें यह स्पष्ट मालूम पड़ेगा कि हमने केवल उन्हीं की पूजा की है, जो अपने शत्रुओं से लड़े हैं और जिन्होंने शत्रुओं पर विजय प्राप्त की है, चाहे वे राम हों अथवा श्रीकृष्ण, हनुमान हों अथवा महाकाली, इनमें से प्रत्येक का जीवन आख्यान राक्षस विजय से जुड़ा है, अतः आवश्यकता है, कि अपने आपको प्रबल बनाया जाये, शत्रुओं का वीरता से सामना किया जाये और शत्रुओं पर विजय प्राप्त की जाये, संघर्ष कर जीवन में कुछ प्राप्त करने का आनन्द ही अनोखा होता है।
शिव के अंश, शिव स्वरूप, शक्ति सम्पन्न, शक्ति स्वरूप महाकाली सेवक के रूप में भैरव की मान्यता विख्यात है, भैरव जन-जन के देव हैं। जो साधक विशेष मंत्रों को नहीं जानता, पूजा का विशेष विधान नहीं जानता, वह भी भैरव पूजा कर सकता है और ऐसे एक दो नहीं हजारों-लाखों उदाहरण है, जहां सामान्य साधक को भैरव कृपा से विशेष सफलता मिली है।
भैरव की मान्यता मूल रूप से रक्षाकारक देव के रूप में है, बड़े से बड़े यज्ञ में पहले भैरव स्थापना की जाती है, जिससे दसों दिशायें आबद्ध हो जाये और सम्पूर्ण कार्य में कोई विघ्न उपस्थित नहीं हो सकता है। भूत, पिशाच, प्रेत, तांत्रिक प्रयोग कैसा भी प्रबल प्रहार किया जाये तो जहां भैरव की उपस्थिति है, वहां से यह प्रहार उल्टे लौट आते हैं और इस प्रकार के गलत तांत्रिक प्रयोग करने वालों का ही नाश कर देते हैं।
भैरव पूजा का विधान अत्यन्त सरल है और आज पाठकों के लिये काल भैरव की अचूक प्रभावी साधनाये स्पष्ट की जा रही है, जिनमें सरलता से ही, इनकी सिद्धि और उपयोगिता है।
दिनांक 19-11-2019 को काल मंगल रक्त भैरवाष्टमी दिवस है, इस दिन जो साधक भक्ति पूर्वक भैरव साधना सम्पन्न कर लेता है, भैरव साक्षात उसमें विराजमान हो जाते हैं। भैरव साधना के स्वरूप को मूलरूप से तांत्रिक स्वरूप दे दिया गया है, जो कि गलत है, यह तो एक सात्विक जीवन की आवश्यक साधना है। आप अपनी ओर से किसी का बुरा नहीं चाहते हैं, लेकिन क्या आप पर कोई प्रहार करेगा तो उसका जवाब नहीं देगे? क्या आपको व्यर्थ के मुकदमों की बाधाओं का सामना करना पड़ेगा, तो मुकदमे नहीं लडेंगे?
क्या आपके विरुद्ध तांत्रिक प्रयोग होंगे और घर में तांत्रिक प्रयोगों के कारण जरा, पीड़ा, बीमारी मृत्यु, शोक, रोग, दुख रहेगा तो इसे दूर करने का उपाय नहीं करेंगे? जीवन को श्रेष्ठ रूप से जीने के लिये इन सब बाधाओं को हटाना आवश्यक है और इसके लिये सरल से सरल और अचूक से अचूक साधना काल भैरव साधना ही है, जो आपके हाथ में शक्ति का, उत्साह का वह वज्र थमा सकते हैं, जिसके बलबूते आप अपना जीवन अपनी इच्छानुसार जी सकते हैं, अपने व्यक्तित्व को पराक्रमी बना सकते हैं, अपनी श्रेष्ठता स्थापित कर सकते हैं।
मूल रूप से दो बाधायें व्यक्ति के जीवन को दीमक की तरह खा जाती है, ये हैं- शत्रु बाधा, रोग-बीमारी। इनमें से कोई भी एक बाधा रहने पर व्यक्ति अपना जीवन सही ढंग से नही जी सकता, इसके चक्र में उलझता हुआ अपनी शक्ति क्षीण करता रहता है, काल भैरवाष्टमी पर इन्हीं बाधाओं के निवारण हेतु किया जाने वाले विशेष साधना पाठकों के लिये प्रस्तुत किये जा रहें हैं, इन महत्वपूर्ण साधनाओं को निष्ठा से सम्पन्न कर तत्काल प्रभाव का लाभ प्राप्त कर सकते हैं।
प्रत्येक साधना के लिये अलग-अलग मंत्र विधान है, कुछ विशेष सामग्री है, साधक जिस बाधा विशेष का निवारण करना चाहता है, उससे सम्बन्धित साधना काल भैरवाष्टमी को विशेष रूप से सम्पन्न करे, भैरव साधना सम्पन्न करने से जीवन में भैरव रक्षा का पूर्ण वर निश्चित रूप से प्राप्त होता है।
भैरवाष्टमी के दिन प्रातः साधक स्नान कर लाल वस्त्र धारण करें, सिन्दूर का तिलक लगायें, अपने सामने मिट्टी की ढ़ेरी बनाकर उस पर पानी छिड़के फिर सिन्दूर छिड़कें और उस पर काल भैरव गुटिका स्थापित करें, ढ़ेरी के चारों ओर पांच आक्रान्त चक्र तिल की ढ़ेरियां बनाकर रखें, प्रत्येक चक्र पर सिन्दूर छिड़के, अब अपने पूजा स्थान में दीप और गुग्गुल का धूप तथा अगरबत्ती इत्यादि जला दें, अपने हाथ में जल लेकर संकल्प करें कि मैं अपनी अमुक शत्रु बाधा के निवारण हेतु काल भैरव साधना सम्पन्न कर रहा हूं।
अब एक पात्र में सरसों, काले तिल मिलाएं, उसमें थोड़ा तेल डालें, थोड़ा सिन्दूर डाल कर उसे मिला दें, इस मिश्रण को निम्न भैरव मंत्र का जप करते हुये काल भैरव गुटिका के समक्ष अर्पित करते रहें-
इस प्रकार 51 बार इस मंत्र का जप कर पूजा में रखें, धूप और दीप से भैरव आरती सम्पन्न करें, अब भैरव गुटिका को छोड़ कर बाकी सब सामग्री काले कपड़े में बांध कर जमीन में गाड़ दें और उस पर भारी पत्थर रख दें। आगे दो रविवार तक भैरव गुटिका के समक्ष इस मंत्र का जप करते रहें। यह साधना इतना प्रबल है, कि प्रबल से प्रबल शत्रु भी तीस दिन के भीतर-भीतर शांत हो जाता है, उसकी शक्ति क्षीण हो जाती है, इसमें कोई संदेह नहीं।
यह साधना भी प्रातः ही सम्पन्न किया जाता है, इसमें यदि स्वयं की बीमारी नाश हेतु साधना करना है, तो अपने नाम का संकल्प लें और यदि दूसरे के नाम से करना है, तो उसके नाम का संकल्प लें।
ऊँ अस्य श्री बटुक भैरव स्त्रोतस्य सप्त ऋषिः ऋषयः, मातृका छन्दः श्री बटुकः भेरवों देवता, ममेप्सित सिद्धयर्थ जपे विनियोगः।
अपने सामने एक पात्र में काल भैरव महायंत्र स्थापित कर उस पर सिन्दूर चढ़ायें तथा एक दीपक जलाएं जिसमें चार बत्तियां हो तथा दक्षिण दिशा की ओर मुंह कर बैठें, भैरव यंत्र के सामने पुष्प, लड्डु, सिन्दूर, लौंग तथा पुष्प माला, काला डोरा रखें तथा मंत्र जप प्रारम्भ करें, मंत्र जप के पहले जल से भरे पात्र का मुंह लाल कपड़े से बांध दें। अब एक पात्र में तिल लें उसमें सात सुपारी रखें तथा निम्न मंत्र का जप करते हुये तिल दक्षिण दिशा की और फेंकते रहें-
108 बार मंत्र जप के पश्चात् सातों सुपारी सभी दिशाओं में फेंक दें, भैरव यंत्र की पूजा में प्रयोग लाये काले डोरे से रोगी की भुजा पर बांध दें अथवा गले में पहना दें, पूजा का पवित्र जल भी पिलाएं, पुराने से पुराने रोग इस साधना से दूर होते देखे गये हैं।
It is mandatory to obtain Guru Diksha from Revered Gurudev before performing any Sadhana or taking any other Diksha. Please contact Kailash Siddhashram, Jodhpur through Email , Whatsapp, Phone or Submit Request to obtain consecrated-energized and mantra-sanctified Sadhana material and further guidance,