जिस प्रकार दीपावली में अनेक दीपक प्रज्ज्वलित करने का मंतव्य है कि जीवन को तेज व उज्जवलता प्रदान कर सकें। होली में हम जीवन में नये रंग भरते हैं व अन्य सभी पर्व जैसे शिवरात्रि, रक्षाबंधन, नवरात्रि, गणेश चतुर्थी, श्रीकृष्ण जन्माष्टमी आदि उत्सव सभी परिवार सगे-सम्बन्धी, मित्रों के साथ मनाते हैं, ठीक वैसा ही माहौल शिविर में भी होता है। जिससे हम हर रूप से जीवन का नव-निर्माण कर सकें। लेकिन यदि हम इसी के विपरीत स्वयं के साथ एकान्त में हर पर्व मनाने लगे तो यह कठिन होगा। हमें एकाग्रता, ध्यान का अभाव महसूस होगा और ना ही उस पर्व का आनन्द उठा पायेगे व देह के भीतर नकारात्मकता के भाव-चिंतनों की वृद्धि होगी क्योंकि मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है, इसीलिये हम सभी को साथ मिलकर जीवन को एक पर्व के रूप में मनाना चाहिये। इसी के विपरीत हम अकेले ही कोई उत्सव या कार्य सम्पन्न करने की सोचे तो इससे कई रूकावटें आयेंगी, आत्म विरोधाभास आयेगा, आपकी आलोचना भी होगी व हर तरफ से मानसिक दबाव भी बढ़ेगा, जीवन में लक्ष्य तक पहुंचने में काफी कठिनाई आयेगी व कार्य सिद्धि में विलम्ब भी होगा।
यह एक तथ्य है कि सामूहिक रूप से किये गये हर सत्कर्म में निश्चित सफलता प्राप्त होती है, आदिकाल व वर्तमान में भी किसी कार्य में विजयी होकर सफलता प्राप्त करने के लिये सामूहिक हवन-पूजन का आयोजन होता है। चाहे उसका उद्देश्य युद्ध में विजय हो, अकाल ग्रस्त भूमि पर वर्षा करवाना हो या फिर क्रिकेट मैच में जीत के लिये ही क्यों ना हो। जिससे कार्य प्रयोजन सफल हो सके, इसी हेतु आराधना, वन्दना, उपासना, प्रार्थना, यज्ञ सम्पन्न किये जाते हैं।
शिविर या साधनात्मक कार्यक्रम का आयोजन करना भी कोई सरल कार्य नहीं है, इस तरह के आयोजन करने में एक अलग जीवट शक्ति की आवश्यकता होती है व मजबूत संकल्प शक्ति बनाये रखनी होती है, तभी एक विशाल व सफल आयोजन संभव हो पाता है, जिससे इसमें उपस्थित सभी को आनंद की अनुभूति हो और साधक पूर्णरूपेण विकास की ओर अग्रसर हो। इस प्रकार की व्यवस्था करने में सभी की भागीदारी समान होती है, हर साधक का कार्य व सहयोग महत्वपूर्ण होता है। सफल आयोजन को सम्पन्न करने हेतु काफी योजनाएं बनानी होती हैं व काफी समय भी देना होता है। सभी साधकों को समान लाभ मिलता है और यही वह अवसर होता है, जब सामूहिक रूप में साधना कर अपने जीवन के लक्ष्यों को पूरा करने का अवसर मिलता है।
शिविर में गुरुदेव के समक्ष साधना को सम्पन्न करने का भय, समय का अभाव, साधना को पूर्ण करने का संदेह उसी समय निकल जाता है। सामूहिक साधना करना एक सौभाग्य की बात है व ऐसा करने में एक अनूठी प्रसन्नता के भाव की अनुभूति होती है व चारो ओर का माहौल भजन की करताल से ऊर्जावान हो जाता है, जिसकी आभा को व्यक्त नहीं केवल अनुभव किया जा सकता है। इसी संकल्प के साथ कि आप कुछ साधनाएं शिविर के उपरान्त भी सामूहिक रूप से सम्पन्न करने का प्रयत्न करे व अगले अंक में कुछ साधनाओं के विषय पर हम चर्चा भी करेंगे।
आपका अपना
विनीत श्रीमाली
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