पवित्र ग्रन्थ वेदों के मंत्रों में जो सन्देश है, उनमें कुछ मन्त्र ऐसे भी हैं, जिनमें कहा गया- हे प्रभु! तू पिता है और हम तेरे पुत्र हैं और पुत्र के लिये पिता की गोद आसान होता है। पिता राजा भी हो, तो भी बेटा दौड़कर अधिकार पूर्वक उसकी गोद में बैठ जाता है। जब तुम पिता हो, मेरे परमात्मा और हम तेरे बेटे हैं तो तेरी गोद हमसे इतनी दूर क्यों है? इतनी मुश्किल क्यो है? हमारे लिये तू आसान क्यों नहीं है कि हम दौड़कर जाएं और तेरी गोद में बैठ जाएं। वेदों में बड़ी प्यारी प्रार्थनाएं हैं। प्रार्थना यह भी है-
तुम ही माता हो, अनेक-अनेक धनों को देने वाले पिता तुम्हीं हो, असंख्य उपकार करने वाली माता भी तुम ही हो। इतनी स्तुति करने के बाद भक्त आगे कहता है- मेरे प्रभु! हम आपसे आपकी प्रसन्नता मांगते हैं। हमेशा हम पर प्रसन्न रहना, अपने बच्चों से कभी रूठना नहीं। क्योंकि अगर तू प्रसन्न है, तो फिर कुछ मांगने की जरूरत नहीं है। फिर तो बिना मांगे ही सबकुछ मिल जाता है। पिता प्रसन्न है तो सन्तान को सब सुख दे देगा। पिता नाराज हो जाये और बहुत ज्यादा रुष्ट हो जाए, इतना रुष्ट हो जाये कि सन्तान से कहे कि तेरा चेहरा भी देखना नहीं चाहता। अपनी सम्पत्ति और अपने नाम में से अपना अधिकार छीन लेता है और प्रसन्न हो जाये तो जो कुछ पिता का है वह सब कुछ अपने आप पुत्र का हो जाता है। भक्त ने यह कहा कि मेरे प्रभु तू एक बार मुझ पर प्रसन्न हो फिर मुझे कुछ मांगने की जरूरत है ही नहीं। तुम अपने आप मुझे सब कुछ दे ही दोगे जो हमारे लिये जरुरी है।
कहीं-कहीं ऐसी भी प्रार्थना है- जहां यह कहा गया है कि हे दयालु देव वह दिन ला, जिस दिन मैं और आप दो न रहें, एक हो जाएं अर्थात् मैं जल की धारा की तरह सागर में अपने आपको अर्पित कर दूं। मेरा प्रेम, मेरी श्रद्धा, मेरी भक्ति, इतनी ऊंचाई पर पहुंच जाये कि मैं अपने चैतन्य को आप महाचैतन्य से जोड़ दूं।
ज्ञान प्रकाश में, प्रसार में जिनकी मनोवृत्ति है अर्थात् जो यह सोचते हैं कि दुनिया में ज्ञान का प्रसार होना चाहिये, ज्ञान का फैलाव होना चाहिये और ज्ञान क्या? सबसे पहले मनुष्य इस बात को सोचें कि दुख का एकमात्र कारण यह भी है कि अज्ञान के कारण ही हम दुखों को भोगते हैं। जैसे-जैसे समझ बढ़ती जाती है, संसार की उलझनें हटती जाती है। दुनिया में इन्सान अपने दुख के कारण ही दुखी है। जैसे ही ज्ञान आने लग जाता है, विधि के विधान की समझ आ गई तो दर्द निवारण चीज हाथ में आ जाती है और पता चल जाता है कि ऐसा करने से मेरा भला हो जायेगा। इसलिये सद्गुरु जो ज्ञान का प्रकाश करने वाले होते हैं, वे केवल यही तो हमको समझाते हैं कि किस तरह से हम अपने दर्द को दूर कर सकते हैं। हमारी पीड़ा कहां बसी हुई है। इसलिये अपने विकास की यात्र पर निकलो तो सबसे पहले तो एक परिचय जानना बहुत जरूरी है। जो आपका अन्नमय कोष है अर्थात् आहार, निद्रा और अनुशासित, संयमित दिनचर्या के द्वारा यह शरीर ठीक होता है। तो क्या खाना है और क्या नहीं खाना इस पर पहले ध्यान रखना है।
कुछ चीजें इतनी कीमती हैं जो दुनिया की हर चीज से ज्यादा महत्वपूर्ण हैं। नींद परमात्मा का दिया हुआ वरदान है। एक बार अगर नींद गई तो कितनी भी गोलियां खाई जायें नींद की, तो वे आपके अन्दर मूर्छा पैदा करती है, पर जो नींद से ताजगी आती है, वह ताजगी आपको मिल ही नहीं सकती, क्योंकि नींद तो परमात्मा की देन है और ये पैसे से नहीं पाई जा सकती। यह बात बहुत देर में समझ आती है। प्रसन्न रहने की आदत हो। प्रसन्नता आपके लिये वरदान बन जाये तो यह बहुत बड़ी कृपा है परमात्मा की ओर अगर आदमी डिप्रेस्ड रहने लग जाये तो दुनिया भर के पदार्थ लाकर सामने रख देना उसे खुशी नहीं मिल सकेगी। फूलों के बगीचे में भी खड़ा हो जाये अगर डिप्रेशन रहता हो तो वहां भी रोता रहेगा आदमी। खुशी नहीं आ पायेगी। परमात्मा ने जो छोटी-छोटी चीजें आपको दी हैं, उनको पाकर अपने अन्दर खुशी जगाओं, क्योंकि अगर ये खुशियां रूठ गई तो दुनिया की बड़ी से बड़ी चीज मिल जायेगी तो भी खुशियां नहीं मिल पाएंगी। इसलिये भगवान की दी हुई देन को धन्यावाद दो। मनुष्य बड़ी-बड़ी चीजों के पीछे भागता है और सोचता है कि ये बड़ी-बड़ी चीजें संसार के पदार्थ हैं, लेकिन बाद में समझ में आता है कि जो छोटी-छोटी चीजें तेरे पास हैं वे ही ज्यादा कीमती है, बड़ी-बड़ी चीजें तो बेकार की हैं। इसलिये ज्ञान के मार्ग पर निकलना बहुत जरूरी है। होश में आकर जीना बहुत जरूरी है।
बहुत लोग प्रार्थनाएं किया करते हैं कि हे भगवान, रास्ता जीवन का सरल बना। मुसीबतों का बोझ कम कर दे, चिन्ताएं खत्म कर दे। दुनिया में तो दिन भी है और रात भी है, दुख भी है। उन्नति है तो अवनति भी है, मान है तो अपमान भी है, लेना है तो देना भी है। यह तो क्रम है जीवन का, इसके बीच तो जीना ही पड़ेगा। एक जैसे दिन तो हो ही नहीं सकते। एक जैसा मौसम तो हमेशा नहीं रहता। एक जैसी जमीन तो हर जगह मिलेगी नहीं। जिन्दगी भी इसी तरह से है, कहीं ऊंची और कहीं नीची, कहीं पहाड़ है तो कहीं घाटियां हैं। कहीं संयोग है तो कहीं वियोग है। जीवन तो ऐसा ही है। भगवान से यह प्रार्थना कभी मत करो कि जमीन को भगवान एक जैसा कर दो, सारे कांटे काटकर एक तरफ कर दो, फूल ही फूल खिल जायें, दुनिया में ऐसा सम्भव नहीं है।
प्रार्थना करनी है तो केवल एक प्रार्थना करो- जिन्दगी में ऊबड़-खाबड़ मार्ग कैसा भी क्यों न हो, उसकी परवाह नहीं, मैं रास्ते को आसान करने के लिये प्रार्थना नहीं कर सकता, तू कर सकता है तो मेरे मालिक एक ही कृपा कर कि उबड-खाबड़ रास्ते पर चलना मुझे आ जाये, इतनी शक्ति मुझे दे और ऐसी प्रार्थना से आपका मार्ग सरल व सुगम बन जायेगा——जीवन में ऐसी नीति अपनाने वाले अपनी यात्रा—-व अपने लक्ष्य की प्राप्ति करने में सफल होते हैं।
रामकृष्ण परमहंस कहते थे- सज्जन वह है, भगवान ने जो दिया उसमें सन्तुष्ट तो हो और जब न दे भगवान कुछ भी न मिले भूखा भी रहना पड़ जाये तो और ज्यादा धन्यवाद करते चलो आज तूने उपवास करा दिया, यह तो तेरी कृपा है। अगर इतना सब्र तुम्हारे अन्दर हो तो भक्ति जागती है अन्यथा नहीं। जितना हम चाहते हैं उतना न मिल पाए तो शिकायतो पर उतर आते है, यह उचित नहीं है, प्रभु की महकती ज्योति को हृदय में प्राप्त करो, उनका धन्यवाद करो और उनके मार्ग पर बढ़ते रहो।
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