शिव की शक्तियों में भैरव व भैरवी साधनायें प्रमुख कही जाती हैं क्योकि ये साधनायें तुरन्त फल प्रदान करती हैं और शिव और शक्ति का समन्वित रूप होने के कारण गृहस्थ साधकों के लिये अत्यन्त सुफलदायक रहती है यह आवश्यक नहीं है कि भैरवी साधनायें केवल पुरुष ही कर सकते हैं क्योंकि साधना के क्षेत्र में पुरुष या स्त्री शब्द ही नहीं आता। जो भी अपने जीवन में शक्ति एवं शिवमय स्वरूप बनना चाहता है, वह साधक कहलाता है, चैतन्य भैरवी साधना ऐसी ही तीव्र विशिष्ट साधना है।
शास्त्रों में कहा गया है कि शिव और शक्ति के सम्मुख भैरव एवं भैरवियां नृत्य करती हैं, वहीं यक्ष, गंधर्व और यक्षिणियां भी शिव का अनुग्रह फल प्राप्त कर उनकी सेवा में रत रहती थीं। संसार में रहने वाले प्रत्येक व्यक्ति के लिये शिव भाव पूर्ण रूप से प्राप्त करना सहज-सुलभ नहीं होता, उनके लिये उचित है कि वे भैरव, यक्षिणी को साधना से अपने व्यक्तित्व को निखारने की क्रिया करें।
व्यक्ति जीवन में कामप्रद होता ही है, काम का तात्पर्य केवल शारीरिक मिलन ही नहीं है अपितु काम का तात्पर्य है जीवन सौन्दर्य, आनन्द, इच्छाओं की पूर्ति, सरसता, भोग एवं कामनाओं की पूर्णता है। इन सब के लिये आवश्यक है कि मनुष्य अर्थात् साधक शक्ति के आदि स्रोत भगवान महादेव और शक्ति की उपासना अवश्य करें, कामना पूर्ति के लिये चैतन्य भैरवी साधना सर्वश्रेष्ठ है। चैतन्य भैरवी साधना कौन सम्पन्न करें-
इस साधना को प्रारम्भ करने के लिये किसी विशेष मुहूर्त की आवश्यकता नहीं है क्योंकि मनुष्य के जीवन में कामनायें और इच्छायें कभी भी जागृत हो सकती हैं, उस समय वह संकल्प लेकर यह साधना प्रारम्भ कर सकता है। परन्तु त्रिपुर भैरवी जयंती अथवा किसी भी शुक्रवार को प्रारम्भ करना श्रेयष्कर रहता है।
साधना सामग्री- चैतन्य भैरवी यंत्र, भैरवी सिद्धि माला, चार भैरवी गुटिका तथा विघ्न नाशिनी जड़ी। यह रात्रि कालीन साधना है 9 बजे रात्रि के बाद साधना प्रारम्भ करनी चाहिये। इस साधना से पूर्व स्नान आदि नित्य क्रिया से निवृत्त होकर साधक दक्षिणा दिशा की ओर मुख करके लाल आसन पर बैठे सामने चौकी पर लाल वस्त्र बिछाकर चावल से चौकी पर अष्टदल कमल बनाकर उसमें चैतन्य भैरवी यंत्र स्थापित करें, उसके बाद यंत्र के चारों दिशाओं में चार भैरवी गुटिका को पूर्व, दक्षिण, उत्तर तथा पश्चिम क्रम से स्थापित करें।
यंत्र के सामने जड़ी को भी स्थापित कर दें। इसके बाद पंचोपचार गुरु पूजन करके साधना में सफलता के लिये पूज्य गुरुदेव से प्रार्थना करें-
अर्थात् चैतन्य भैरवी की देह कान्ति उदीयमान सहस्त्रों सूर्यो के समान है। सभी अंग विविध आभूषणों से विभूषित हैं। मस्तक पर मुकुट और ललाट पर चन्द्र कला हैं। बाएं हाथ में पाश और अंकुश तथा दाहिने हाथों में वर और अभय है। यह अत्यन्त स्थूल और उन्नत स्तनों से युक्त हैं।
इसके बाद यंत्र तथा गुटिकाओं का पूजन सामान्य विधि से करें। पहले जल से स्नान करावें-
इसके बाद कुंकुम से यंत्र के ऊपर और गुटिकाओं पर तिलक लगाये, अक्षत, धूप और दीप दिखाकर पुष्प चढ़ायें, फिर पीले चावल चढ़ाते हुये निम्न मंत्रों का उच्चारण करें-
ऊँ वामायै नमः, ऊँ ज्येष्ठायै नमः, ऊँ रौद्रायै नमः,
ऊँ अम्बिकायै नमः, ऊँ इच्छायै नमः, ऊँ ज्ञानायै नमः,
ऊँ क्रियायै नमः, ऊँ कुब्जिकायै नमः,
ऊँ चित्रयै नमः, ऊँ विषघ्निकायै नमः,
ऊँ भूचर्यै (भ्रामर्यै) नमः, ऊँ आनन्दायै नमः।
इसके बाद निम्न मंत्र का उच्चारण करते हुये यंत्र पर गुलाब के फूल की पंखुडियां चढायें।
ऊँ डाकिन्यै नमः। ऊँ राकिण्यै नमः।
ऊँ लाकिन्यै नमः। ऊँ काकिन्यै नमः।
ऊँ शाकिन्यै नमः। ऊँ हाकिन्यै नमः।
इसके बाद निम्न मंत्र का भैरवी सिद्धि माला से 11 माला मंत्र जप करें।
यह 3 दिन की रात्रिकालीन साधना है, इस साधना में आपने जो भी मनोकामना रखी है उसकी सफलता साधना के माध्यम से निश्चित रूप से संभव है, परन्तु आपकी श्रद्धा एवं तत्परता आवश्यक है। साधना समाप्ति पर जड़ी लाल कपड़े में बांधकर अपने घर के दरवाजे या दुकान में बांध दें व अन्य सभी सामग्री को लाल वस्त्र में बांधकर नदी में या सरोवर में प्रवाहित कर दें। साधना काल में मंत्र जप तक दीपक जलता रहें इसका विशेष ध्यान रखें। इसमें तेल का दीपक जलाएं, इस तरह साधना के पूर्ण होने पर किसी एक कुंवारी कन्या को भोजन तथा यथोचित दक्षिणा प्रदान करें।
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