इसी प्रकार ग्रहण में वैज्ञानिक रूप से भले ही बुराइयां क्यों न हों, पर उसमें एक गुण अवश्य है और वह यह कि ग्रहण काल का दिव्य समय साधना हेतु अत्यधिक उपयोगी होता है। साधारण समय में किया गया एक लाख जप, सूर्य ग्रहण के समय किये गये कुल मंत्र जप के बराबर होता है अर्थात् ग्रहण के समय किया गया मंत्र जप साधारण समय में किये गये मंत्र जप से कई गुना अधिक प्रभावी होता है। इस तरह कोई भी साधना यदि ग्रहण काल में सम्पन्न की जाये, तो उसका शतगुना फल साधक को प्राप्त होता है, जिससे कि उसकी सफलता निश्चित होती है।
जीवन में सब कुछ तो दोबारा भी प्राप्त किया जा सकता है, परन्तु वह क्षण जो बीत गया उसे दोबारा वापस नहीं लाया जा सकता। नक्षत्रों का जो संयोग, ग्रहण का जो प्रभाव इस बार बन रहा है, वह एक बार बीत गया तो दोबारा नहीं आ सकेगा। सूर्य ग्रहण तो आयेगा पर जो नक्षत्र संयोग इस बार है, वे ठीक उसी प्रकार नहीं होंगे। हो सकता है। इसलिये श्रेष्ठ साधक वे ही हैं, जो क्षण के महत्व को पहचान कर निर्णय लेने में विलम्ब नहीं करते हैं। साधना की प्रक्रिया उतनी कठिन या जटिल नहीं होती, महत्व तो क्षण विशेष का होता है, भारतीय ऋषियों ने काल ज्ञान और ज्योतिष पर इतने अधिक ग्रंथ लिखे हैं तो उसके पीछे मंतव्य यही है कि काल बहुत बलवान होता है।
अवतारों के जीवन में भी ग्रहण की महत्ता के प्रसंग देखने मिलते हैं। भगवान राम ने अपने गुरु से दीक्षा ग्रहण के समय ही प्राप्त की थी, इसी प्रकार भगवान कृष्ण ने भी सान्दीपन ऋषि से दीक्षा जब प्राप्त की थी, तो उस समय ग्रहण काल चल रहा था क्योंकि ग्रहण के समय ही तपस्यांश को, दीक्षा या साधनात्मक प्रवाह को पूरी तरह ग्रहण किया जा सकता है।
ऐसा स्वर्णिम ग्रहण-संयोग जीवन में- धन, पद, प्रतिष्ठा, यश, मान-सम्मान, ऐश्वर्य, कुण्डलिनी जागरण, श्रेष्ठता, तेजिस्वता और जीवन में वह सब जो हम चाहते हैं, अद्वितीय ग्रह संयोग में की गई साधना कभी निष्फल नहीं होती है।
इस वर्ष की पूर्णता पर पूर्ण चैतन्य खग्रास सूर्य ग्रहण का प्रारम्भ 25 दिसम्बर सांयः 05:48 बजे से 26 दिसम्बर प्रातः 10:59 तक रहेगा। इस काल में इन सुस्थितियों की प्राप्ति के लिये तारा साधना, शत्रु संहारक मुण्डकाली व जीवन को सूर्य स्वरूप जाज्वल्यमान बनाने के लिये रवि तेजस साधना सम्पन्न करना श्रेयष्कर रहेगा।
जीवन में दीर्घायु हों, हमारा सुखी परिवार हो, श्रेष्ठ पुत्र-पुत्रियां हों, श्रेष्ठ व्यापार-नौकरी हो, हम आर्थिक दृष्टि से उन्नति करें, किसी प्रकार की कोई राज्य-बाधा हमारे जीवन में नहीं आये, हम पूर्ण स्वस्थ हों, सद्गुरुदेव व सिद्धाश्रम के दर्शन कर सकें और इसी जीवन में पूर्णत्व प्राप्त कर सके। इस तरह जीवन में अनेक कामनायें होती हैं, वैज्ञानिकों के लिये विशेष कौतुहल का विषय होगा और वे अपने उपकरणों से इसके प्रभाव, नक्षत्रों के संयोग एवं आकाशीय गतिविधियों का परीक्षण करेंगे। अपने कैमरे से वे चित्र उतारने का प्रयास करेंगे, ठीक वहीं योगी, यति व सन्यासी भी ग्रहण के क्षणों का उपयोग अपनी मनोवांछित साधना, मंत्र को सिद्ध कर सकें। जीवन के इन्हीं कामनाओं का मूर्त रूप देने का यह अवसर होता है, इसी हेतु सांसारिक जीवन को सर्व सुखमय बनाने की विशिष्ट साधनायें प्रस्तुत हैं।
सूर्य ग्रहण के समय यदि साधक मुण्डकाली साधना को सम्पन्न कर लेता है, तो उसके चेहरे पर व्याप्त दुःख, निराशा अपने आप ही समाप्त हो जाती है, क्योंकि यह साधना महाकाली तंत्र साधना है और महाकाली रक्त रंजित मुण्ड हाथ में लिये, रक्त से सनी तलवार लिये हुये है। वह साधक को अभय प्रदान करने वाली हैं, ग्रहण काल में महाकाली शीघ्र सिद्ध होती है यह निर्विवाद तथ्य है। यह साधना गोपनीय, दुर्लभ और तीक्ष्ण प्रभावकारी है।
ग्रहण काल में इस साधना को निम्नलिखित कार्यों की पूर्ति हेतु सम्पन्न किया जा सकता है-
वस्तुतः इस प्रयोग को इन विशिष्ट क्षणों में सम्पन्न करने पर निश्चित लाभ प्राप्त होता ही है।
इस साधना के लिये आवश्यक सामग्री है- काली यंत्र, मनोकामना चैतन्य माला, मुण्ड फल।
मंत्र जप के पश्चात् समस्त सामग्री को बाजोट पर बिछे लाल वस्त्र में बांध कर सुबह बहते जल अर्थात् नदी या समुद्र में विसर्जित कर दें।
पूरे साधना काल में दीप प्रज्ज्वलित रहना चाहिये।
यह प्रयोग अपने आप में दिव्य और शीघ्र फलदायी है,
इस ग्रहण काल में जिस मनोकामना की पूर्ति के लिये साधना की जाती है, वह अवश्य पूर्ण होती है।
धन प्राप्ति की इच्छा रखना और धन प्राप्ति के लिये कार्य करने में न तो कोई दोष है और न अपराध, गृहस्थ जीवन के लिये धन ही मूल है, जिसके आधार पर उसका गृहस्थ रूपी वृक्ष फलता-फूलता और वृद्धि करता है।
धन की साधना हेतु दस महाविद्याओं में तारा साधना सर्वश्रेष्ठ मानी गयी है और ऐसा भी कहा जाता है कि तारा महाविद्या सिद्ध होने पर साधक को प्रतिदिन स्वर्ण प्रदान करती है अर्थात् यह निश्चित है कि तारा सिद्धि प्राप्त साधक की आय में वृद्धि हो जाती है और उसे आय के नये-नये स्रोत प्राप्त होते हैं, आकस्मिक धन प्राप्ति भी सम्भव होती है।
सूर्य ग्रहण का चैतन्य काल तारा साधना के लिये श्रेष्ठ सिद्ध मुहुर्त दिवस है और इस दिन तांत्रोक्त तारा साधना अवश्य करना चाहिये।
इस साधना हेतु तांत्रोक्त तारा यंत्र, ग्रहण अभिषेक युक्त तारा अष्ट सिद्धि माला, सिद्धिदायक सूर्य गुटिका होना चाहिये।
ग्रहण काल से पूर्व उठ कर स्नान कर शुद्ध पीली धोती धारण कर उत्तराभिमुख बैठ जायें, सिद्धिदायक सूर्य गुटिका गले में धारण कर तांत्रोक्त तारा यंत्र की पूजा करें फिर तारा अष्टसिद्धि माला से निम्न मंत्र की ग्यारह माला मंत्र जप करें।
जब मंत्र जप पूर्ण हो जाये तब यंत्र को उस स्थान पर रख दें, जो आपके लिये विशेष महत्वपूर्ण हो, जैसे कि आपका कार्यालय, आपका सोने का कमरा या अन्य कोई महत्वपूर्ण स्थान हो, ऐसा करने पर तारा साधना सिद्ध होती है और शीघ्र ही मनोवांछित सफलता की प्राप्ति होती है।
हर व्यक्ति की अपने जीवन में मूलभूत कुछ इच्छायें होती हैं और वे निम्न हैं-
पूर्ण ऐश्वर्य युक्त जीवन के साथ-साथ आत्म-कल्याण। ऊपर जितने भी बिन्दु स्पष्ट किये हैं, वे ज्योतिषीय दृष्टि से सूर्य में निहित हैं, अतः जो कोई भी व्यक्ति रवि तेजस साधना सम्पन्न कर लेता है, उसे स्वतः ही उपरोक्त स्थितियां अपने जीवन में घटित होती अनुभव होने लगती हैं।
स्वामी खरपरानन्द भारती जी ने तो यहां तक कहा है, कि और साधनाये छोड़कर भी जो व्यक्ति इस साधना को सम्पन्न कर लेता है, वह पूरे गगन में छोटे-मोटे टिमटिमाते तारों के बीच में चन्द्रवत चमकता रहता है। अतः यह साधना अति लाभकारी है एवं हर व्यक्ति को यह सम्पन्न करना ही चाहिये। ऐसा करने से उसकी समस्त इच्छाएं पूर्ण होती हैं।
साधक लाल वस्त्र धारण करें, लाल आसन पर पूर्व दिशा की ओर मुख कर बैठें और अपने सामने लाल वस्त्र से ढ़के बाजोट पर सूर्य तेजस यंत्र स्थापित करें। यंत्र का पंचोपचार पूजन करें तथा रवि तेजस माला से निम्न मंत्र की 11 माला मंत्र जप करें-
साधना समाप्ति के बाद यंत्र व माला को किसी जलाशय अथवा मन्दिर में अर्पित कर दें। ऐसा करने से साधना सिद्ध होती है।
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