ऋषियों व देवताओं ने तो साधनायें सम्पन्न कर कुण्डलिनी जागरण, वायु गमन, अष्ट सिद्धियों युक्त चौसठ कलाओं में निपुणता प्राप्त की। साधनाओं के माध्यम से ही असुरों पर विजय प्राप्त कर देवत्वमय जीवन को आत्मसात किया। लेकिन हम किस प्रकार आज हमारे नित्य जीवन में होने वाली भौतिक समस्याओं का निवारण करें? क्योंकि हमारे पास न तो समय, सब्र है और ना ही कर्मठता व निष्ठा है, साथ ही इस भौतिकता के युग में हर तरफ से स्वयं को संशय में घिरा पाते हैं, जिससे न तो समस्या का समाधान कर पाते हैं ना ही हमें कोई रास्ता दिखता है। भौतिक जीवन में आने वाले कष्टों के निवारण के लिये हमें सर्व प्रथम साधना की अनिवार्यता स्वीकार करनी होगी व हमारे लिये उपयुक्त साधना व साधना के दौरान आत्मीय मानस चिंतन में होने वाले अनुभवों को समझना होगा और जो हमारी प्रगति रूकी हुई है उसे गति देना व समस्या से बाहर निकलना सीखना होगा। समस्या की समाधान की ओर निरन्तर चिंतनशील होते हुये क्रियान्वित होंगे तो अवश्य ही सफल होंगे। प्राप्त ज्ञान का अपने जीवन के प्रत्येक क्षण में उपयोग करना होगा। ऋषि हमसे ज्यादा सम्पन्न थे, स्वस्थ थे, गृहस्थ थे, घर में धन का अभाव नहीं था, कोई रोग उनको घेरे नहीं था और वे जीवन में इतने ऊंचे उठे कि आज भी हम उनकी सर्व सम्पन्नता का उदाहरण देते हैं।
ऐसी सरल व सटीक साधनायें जो नित्य की जा सकें, जिसका विधान सहज हो व हमारे लिये सदुपयोगी हो, हम ऐसी साधनाओं में सफल हों, जिसमें हमें साक्षात्कार हो, प्रत्यक्षीकरण हो, दिव्य शक्ति की उपस्थिति का अनुभव हो, साथ ही इन साधनाओं को स्वयं व जन कल्याण के लिये या फिर कोई सामूहिक लक्ष्य प्राप्ति के लिये सम्पन्न करने का हमें अभिमान हो। इसका लाभ हमें तो मिलेगा, साथ ही समाज कल्याण व सर्व विकास से हम एक सामर्थ्यवान कुटुम्ब की तरह आगे बढ़ेगें। मनुष्य तब तक उन्नति नहीं प्राप्त कर सकता, जब तक कि उसे दैवीय शक्ति प्राप्त नहीं हो जाती और वो आत्म चैतन्य क्रियाशीलता व साधनात्मक ऊर्जा केवल श्रेष्ठ मार्गदर्शन द्वारा निरन्तर क्रियाशील रहने से ही संभव हो पाती है।
एक कमजोर व आश्रित व्यक्तित्व के बजाय एक दृढ़ आत्मनिर्भर व्यक्तित्व बने और इसके लिये हमें संदेह को त्याग, दृढ़ता के साथ गुरु आशीर्वाद पाकर नवीनता की ओर अग्रसर होना ही होगा। हमारे मन में निरन्तर कुछ पाने की अभिलाषा रहती है, जिस पल सद्गुरु कृपा प्राप्त हो जाती है, तब न तो शोक न ही भय रहता है, हमारे कर्म का भार स्वतः ही समाप्त होने लग जाता है, तब साधक का लक्ष्य मात्र गुरु के दिये ज्ञान को ग्रहण करना बांटना व इस गुरु चेतना का विस्तार करना बन जाता है।
यह संभव है लक्ष्यों की प्राप्ति के लिये समय-समय पर आने वाले शुभ-मंगलमय पर्व दिवसों पर दैवीय आराधना, वन्दना स्वरूप साधनायें सम्पन्न करने से साधक के अन्तसः में देव शक्तियों की वृद्धि होती है। आप आने वाले नूतन वर्ष को सुमंगलमय बनाने के लिये साधनायें अवश्य सम्पन्न करें। इसके लिये आपको पूर्ण विधि-विधान व साधना सामग्री उपलब्ध करायी जायेगी। शुभ संकल्प भाव के साथ अपने को क्रियाशील रखें–!!
आपका अपना
विनीत श्रीमाली
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