यह अवसर भी ऐसे प्रयासों का एक अंग है। जब पौष का समापन और माघीय चेतना का प्रारम्भ होता है और सूर्य संक्रांति का चेतनावान कालखण्ड प्रारम्भ होकर अनेक नवीनता, नूतनता और विशिष्टता को समेटे हुये, हमारे समक्ष उपस्थित होता है। वास्तव में ऐसे माह को ही देवमय, ऋषिमय कहा गया है, और यदि इस माह में अपने कुल के देव पुरुषों व विशिष्ट ऋषियों की साधना की जाये जिनके नाम और गोत्र का हमारे साथ आत्मीय जुड़ाव है, तो फिर जीवन में विशिष्ट चैतन्यता और तेजस्विता आती ही है।
इसके मूल में यही रहस्य छिपा है, कि हम प्रत्येक अवसर की महत्ता समझते हुये उस अनुरूप साधना सम्पन्न करें, और केवल इतना ही नहीं सदैव चिंतन युक्त रहकर जीवन के एक-एक क्षण की महत्ता समझते हुये प्रत्येक माह का विवेचन कर, उसके अनुरूप और अनुकूल साधना युक्त जीवन रच लें।
नव वर्ष मनाने की वास्तविक धारणा तब ही उपयोगी होती है, जब हमें इस बात का बोध हो कि हम ऐसे अवसर को किस रूप में आत्मसात करें, जिससे हमारे जीवन में नूतन श्रेष्ठता, सफलता आ सके, भारतीय परम्परा के अनुसार यह काल ऐसा चैतन्य और ऊर्जामय अवसर है, जिसका उपयोग वर्ष भर में की जाने वाली शक्ति साधनाओं के लिये आवश्यक ऊर्जा संग्रहित करने में किया जा सकता है। वास्तव में हमारे ऋषि-मुनि इस काल खण्ड का उपयोग अपने को पवित्र व उदात्त बनाने में करते थे, उन्हीं की प्रेरणा से हमारा जीवन पवित्र व उदात्तमय बनें।
देव तर्पण, पितृ तर्पण और ऋषि तर्पण तो हमारे प्राचीन शैली का अभिन्न अंग रहा है। दैनिक जीवन का प्रारम्भ ही इस प्रकार से होता रहा और इसमें कोई नूतन बात नहीं, किंतु पौष माह में वे जिस प्रकार से विशेष रूप से ऋषि पूजन करते थे, वह अवश्य ही साधना जगत का दुर्लभ और गोपनीय रहस्य है। केवल सप्त ऋषियों- सनक, सनन्दन, सनातन, कपिल, आसुरी और पंच सिख का ही आह्नान और पूजन नहीं, वरन पुलह, पुलस्त्य, वशिष्ठ, मरीचि, नारद, भृगु, अंगिरा एवं इसी कोटि के अन्य देव शक्तियों का पूजन भी इसी विशेष माह में करने का विधान रखा गया है।
इस दिवस की साधना आप स्वयं सम्पन्न कर अनुभव कर सकेंगे, कि आम घिसे-पिटे, ऊट-पटांग ढंग से नववर्ष का प्रारम्भ करने की अपेक्षा यदि साधनात्मक ढंग से यह पर्व मनाया जाये तो केवल उस दिवस विशेष पर ही नहीं, वरन सम्पूर्ण वर्ष भर जीवन में सर्व स्वरूप में उल्लास और ताजगी आ जाती है, जिससे व्यक्ति स्वयं को उर्जावान, चेतनावान अनुभव करता है। भोग केवल रोग को जन्म देती है, जबकि साधना देती है शरीर और मन को पुष्टि। पौष माह की यह साधना ऐसी ही पुष्टिदायक साधना है।
शराब और पार्टियों में बिताया गया समय किसी भी प्रकार से नववर्ष का उत्सव नहीं हो सकता, उससे व्यक्ति का जीवन अंधकारमय निर्मित होता है। जबकि इसका आरम्भ उत्साह, उल्लास और साधनात्मक चिंतन से करने से व्यक्ति नई दिशा व नूतन चिन्तन से अपने जीवन की श्रेष्ठता व उच्चता में वृद्धि करता है। यह उमंग, जोश, बल, उत्साह, आनन्द, श्रेष्ठता हमें मिल सकती है, इस नववर्ष साधना के माध्यम से, जो हमारे जीवन को पूर्णता प्रदान करने वाला है, श्रेष्ठता प्रदान करने वाला है, अद्वितीयमय निर्मित करता है।
इस साधना के माध्यम से हम कुछ ही घंटो में अपने आगे के पूरे 365 दिनों को संवार सकते हैं, इस विशेष साधना के माध्यम से हम अपने प्रत्येक दिन को आनन्द, उमंग और उत्साह से सरोबार कर सकते हैं।
जहां व्यक्ति नववर्ष का आरम्भ, जो उसके जीवन के मूल्यवान क्षण होते हैं, उन स्वर्णिम क्षणों को, जिनको वह अज्ञानतावश, मूर्खता पूर्ण तरीकों से हो-हल्ला, नाच-गा कर, जुआ, आदि खेल कर गंवा बैठता है, वहीं एक समझदार व्यक्ति, साधक या शिष्य उन्हीं महत्वपूर्ण और मूल्यवान क्षणों का उचित और साधनात्मक ढंग से प्रयोग कर अपने जीवन के प्रत्येक दिन को स्वर्णिम, श्रेष्ठ, दिव्य और उत्सवमय बना लेता है।
इस साधना के माध्यम से व्यक्ति के शरीर में एक विशेष प्रकार की तेजस्विता और दिव्यता आ जाती है, जिस तेज और बल के माध्यम से वह पूरे वर्ष आनन्द प्राप्त करता रहता है और तब उसके जीवन में किसी भी प्रकार की कोई न्यूनता नहीं रह जाती, क्योंकि नववर्ष के दिव्य, स्वर्णिम क्षणों का उचित प्रयोग कर वह उस ऊर्जा शक्ति के माध्यम से अपने जीवन के भौतिक और आध्यात्मिक दोनों पक्षों को सफलता युक्त बना लेता है।
अब यह निर्णय तो व्यक्ति को स्वयं करना है, कि वह किस प्रकार के जीवन की सृष्टि बनाना चाहता है, दुःखी, पीडि़त, निराशाजनक और कष्टप्रद जीवन या फिर श्रेष्ठ, दिव्य, आनन्द और पूर्णता युक्त जीवन की। यह निर्णय तो उसके खुद का है, कि वह किस प्रकार के जीवन को व्यतीत करें।
इस साधना को सम्पन्न कर व्यक्ति के कदम अपने- आप ही उस पथ की ओर बढ़ने लगते हैं, जो पथ उसे नित्य उन्न्ति की ओर अग्रसर करता है, जो साधना के बल से प्राप्त रश्मियों के स्पर्श से नववर्षोत्सव कहलाता है, जो साधक के जीवन में नित्य आनन्द, उत्सव, छलछलाहट भर देता है और तब उसका प्रत्येक दिन उत्सवमय, उल्लासमय हो जाता है।
हमें अपने प्राचीन ग्रंथों, शास्त्रों और पुराणो आदि से यह ज्ञात होता है, कि हमारे ऋषि, मुनि, योगी हमसे कहीं अधिक श्रेष्ठ और परिपूर्ण थे, परन्तु उनकी इस श्रेष्ठता और परिपूर्णता का रहस्य यह है, कि उन्होंने प्रत्येक प्रकार के वर्ष का प्रारम्भ उस साधनात्मक चिंतन को अपना कर किया, जिस कारण वे प्रत्येक दिवस को एक श्रेष्ठ और पूर्णता युक्त निर्मित कर सके। और यदि हम इस दिवस की साधना को अपने जीवन में एक बार सम्पन्न कर लें, तो हम भी इन न्यूनताओं से भरे जीवन को पीछे धकेलकर श्रेष्ठ, उन्नतिदायक और परिपूर्ण जीवन प्राप्त कर सकेंगे।
1 जनवरी 2020 को यह साधना सम्पन्न किया जाना चाहिये, परन्तु वर्ष में जितने भी नववर्ष प्रचलित हों, उन अवसरों पर भी इस साधना को सम्पन्न किया जा सकता है। यह एक दुर्लभ साधना है, जिसे प्रत्येक साधक को पूर्णता के साथ सम्पन्न करना ही चाहिये।
शास्त्रों में नववर्ष का प्रारम्भ सूर्योदय से माना गया है, जिस समय सूर्य की पहली किरण पड़ती है उसी समय इस साधना को प्रारम्भ करना चाहिये। स्नानादि कर शुद्ध श्वेत वस्त्र धारण कर लें, पूर्वाभिमुख होकर बैठें, मन को विचार शून्य बनाये तथा आत्मिक शुद्धि के लिये तीन बार ओऽम्कार की ध्वनि करें। अपने सामने बाजोट पर निखिल दिव्य यंत्र स्थापित करें, यंत्र के सामने पांच चावल की ढेरियां बनाये तथा प्रत्येक पर एक गोल सुपारी रखें। यंत्र एवं इन पांचों ढेरियों पर स्थापित सुपारी का पंचोपचार पूजन करें, पूजन करते समय गुं गुरुभ्यो नमः मंत्र का उच्चारण करें, इन पांचों ढेरियों के आगे कुछ चिरमी के दाने अर्पित करें तथा पांच मिनट तक ध्यान मुद्रा में सद्गुरुदेव का चिंतन करें, क्योंकि गुरुदेव ही परम पुरुष हैं जो समस्त ऋषियों द्वारा अचिन्त्य रूप से वन्दनीय हैं।
तत्पश्चात् एक पात्र में पहले से तैयार किये गये अष्टांग अर्घ्य, जिसमें दूब, अक्षत, पुष्प, सरसों, दही, जौ, शहद व दूध हो, उसे सद्गुरुदेव एवं समस्त ऋषियों व देवर्षियों को अर्पित करने की भावना करते हुये एक पात्र में तर्पण करें तथा निम्न मंत्र उच्चारित करें-
जप काल में घी का दीपक व सुगन्धित अगरबत्ती को अवश्य ही प्रज्ज्वलित रखें। इसके उपरान्त इस साधना के द्वारा नववर्ष को सहस्र लक्ष्मियों से युक्त करने हेतु श्रद्धा स्वरूप निम्न मंत्र का 5 माला जप करें।
साधना के उपरान्त यंत्र को पूजा स्थान में स्थापित कर दें और सभी सुपारी एक रेशमी थैली में बांधकर पवित्रता पूर्वक जल में प्रवाहित कर दें।
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