विचार तैरने जैसा है, मनन डुबकी जैसा है। विचार में एक शब्द से दूसरे शब्द पर जाते हैं, मनन में एक ही शब्द की गहराई में जाते हैं। स्थान नहीं बदलता, गहराई बदलती है। विचार रेखाबद्ध प्रक्रिया है, सतह वही बनी रहती है। तुम चाहे दुकान की बात सोचो, चाहे मोक्ष की, सतह में कोई फर्क नहीं पड़ता, रहते तुम पानी की सतह पर ही हो। तुम चाहे परमात्मा के सम्बन्ध में सोचो और चाहे पत्नी के बारे में, सोच की सतह वही बनी रहती है, अर्थात् निरन्तर सोचने की स्थितियां बनी रहती हैं। मनन से सतह की जगह गहराई में यात्रा शुरु होती है। मनन में एक ही शब्द को उसकी समस्तता में, उसके गहरे तलों पर प्रवेश करने की चेष्टा करनी होती है। मनन ही मंत्र है और नानक के सभी शिक्षाओं का सार मनन है। इसलिये तो एक नाम ओंकार- बस उस एक ओंकार के नाम को, एक सतनाम को अपने शिष्यों को वे देते रहे।
उस पर सोचना नहीं है, उसमें डूबना है। उस पर विचार नहीं करना है, उसकी गहराई में डुबकी लगानी है। एक ही नाम गूंजता रहेगा- ऊँ, ऊँ, ऊँ, ऊँ ——और जैसे-जैसे नाम की गूंज बढ़ेगी, वैसे-वैसे तुम्हारी गहराई का तल बदलेगा। तीन तल हैं, पहले सोच्चार, तुम जोर से उच्चार करते हो ओंकार का ऊँ —-! होंठ का प्रयोग होता है, बाहर वाणी गूंजती है, इसको वाणी का तल कहते हैं। फिर तुम होंठ बंद कर लेते हो, जीभ भी नहीं हिलाते, मन में ही गूंज होती है ऊँ —–। यह दूसरा तल है, यह पहले तल से गहरा है। इसमें शरीर का उपयोग नहीं हो रहा। होंठ, जीभ सब बंद है, सिर्फ मन का उपयोग हो रहा है। तुम एक सीढ़ी नीचे उतर गये। फिर तीसरी सीढ़ी है, जहां मन का भी उपयोग नहीं हो रहा है, जहां तुम ओंकार की ध्वनि नहीं करते, तुम सिर्फ चुप हो कर सुनते हो और ध्वनि गूंजती है। तब मन भी गया। जैसे ही मन गया, मनन हुआ। मनन यानी मन का न हो जाना। जहां मन न हुआ, वहां मनन शुरु होता है।
सबसे पहले तुम्हारे भीतर ओंकार की ध्वनि गूंजती है जन्म के साथ। तुम्हें बच्चे प्रसन्न दिखाई पड़ते हैं- अकारण, अपने झूले में पड़े टांगें फेंक रहे हैं, हाथ हिला रहे हैं, मुस्कुरा रहे हैं। मातायें समझती हैं कि शायद पिछले जन्म की कोई स्मृति आ रही है तो आनंदित हो रहे हैं। क्योंकि कोई कारण तो नहीं है आनंदित होने का- न कोई चुनाव जीता है, न कोई धन कमा लिया है, न कोई प्रतिष्ठा पा ली है, अपने झूले में पड़े, अभी यात्रा शुरु ही नहीं हुई, अभी प्रसन्नता क्या है? मनस्विद भी बड़ी चिंता करते रहे हैं कि बच्चे की प्रसन्नता का कारण क्या है? जहां तक मनस्विदों की समझ जाती है, वे मानते हैं कि शरीर स्वस्थ है, इसीलिये बच्चा प्रसन्न है। लेकिन जहां तक योगियों की खोज ले जाती है, वहां कारण दूसरा है। शरीर का स्वास्थ्य काफी नहीं है, भीतर ओंकार का नाद गूंज रहा है, एक मधुर संगीत भीतर गूंज रहा है, जो बच्चा सुनता है, उसकी तारी लग जाती है। सुनता है, मुस्कुराता है, आनंदित होता है। स्वास्थ्य तो बाद में भी रहेगा, लेकिन यह प्रसन्नता खो जायेगी। पीछे भी स्वस्थ रहेगा, लेकिन यह नाद खो जायेगा। ओंकार की ध्वनि को सुनना मुश्किल हो जायेगा, क्योंकि शब्दों की पर्त उसे घेर लेगी।
ध्वनि एक ओंकार है, यह पहली घटना है, जहां जीवन का स्रोत है। इसके बाद शब्दों का जमाव है। वह हमारी शिक्षा, संस्कार, समाज, सभ्यता! फिर तीसरी पर्त है, शब्दों का उच्चारण- बोलना, बातचीत, वार्तालाप। जब तुम बोल रहे हो, तब तुम अपने से सबसे ज्यादा दूर हो। इसलिये तो नानक कहते है कि पहले सुनना सीख लो, क्योंकि तब तुम सुन रहे हो, तब तुम मध्य में हो। तब तुम बोलने की तरफ भी जा सकते हो और चाहो तो शून्य की तरफ भी जा सकते हो, तुम बीच में खड़े हो।
तीन स्थितियां हुई- ओंकार की स्थिति, उच्चार की स्थिति और दोनों के मध्य में भाव और विचार की स्थिति। जब तुम सुन रहे हो- तब तुम भाव और विचार की स्थिति के बीच में खड़े हो। अभी तुम दोनों तरफ झुक सकते हो, दाएं या बाएं। जो तुमने सुना, अगर तुम दूसरे को बताने निकल पड़े, तो तुम वार्ता में उतर गये। जो तुमने सुना, अगर तुम उसको गुनगुनाने लगे, मनन करने लगे, तो तुम शून्य में चले गये और बहुत बारीक है फासला और हर व्यक्ति को अपने भीतर फासले को ठीक से समझ कर संतुलन को व्यवस्था देनी पड़ती है। मनन उसी क्षण शुरू हो जाता है, जब तुम किसी एक शब्द की गहराई में उतरने लगते हो और कोई भी शब्द काम आ सकता है। लेकिन ओंकार से सुंदर कोई शब्द नहीं, क्योंकि वह शुद्ध ध्वनि है।
कोई भी एक शब्द की गहराई में तुम उतरोगे तो धीरे-धीरे शब्द छूट जायेगा और धीरे-धीरे जैसे-जैसे शब्द छूटेगा, वैसे-वैसे मनन शुरु हो जायेगा। शब्द तो छूट जाता है। सभी मंत्र छूट जाते हैं, तभी तो महामंत्र का उद्घोष होता है, जब मंत्र छूट जाते हैं। योगियों की खोज भीतर ओंकार की गूंज है, एक मधुर संगीत भीतर सुनता है, वह मुस्कराता है, आनंदित होता है। लेकिन यह प्रसन्नता खो जायेगी, यह नाद खो जायेगा। ओंकार की ध्वनि को सुनना मुश्किल हो जायेगा, क्योंकि शब्दों की पर्त तुम्हें घेर लेगी।
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