गुणः तेजपात मधुर, तनिक तीखा, गरम, रेशदार, हलका तथा कफ, वात, बवासीर, हृदय रोग, अरुचि और पीनस रोग को दूर करने वाला होता है। इसके पत्ते सुगन्धित होते हैं। यूनानी मत के अनुसार तेजपात मस्तिष्क पोषक, यकृत व प्लीहा के लिये हितकारी और मूत्र वर्द्धक है, आधुनिक मतानुसार तेजपात में स्वेदल, मूत्रल, मल शुद्धि करने वाला, स्तन्यवर्द्धक और कफनाशक गुण होते हैं।
परिचयः तेजपात दो इंच लम्बा और एक सवा इंच चौड़ा पत्ता होता है। यह ठण्डे पहाड़ों, हिमालय की घाटियों, उत्तरांचल में पैदा होने वाले लगभग 30-40 फुट ऊंचे वृक्ष का पत्ता होता है। यह वृक्ष पूरे वर्ष हरा भरा रहता है। यह पत्ता बाजार में किराना व पंसारी की दुकान पर सर्वत्र उपलब्ध होता है।
उपयोगः औषधि के रूप में इसका उपयोग विशेष रूप से उदर रोगों में किया जाता है, जैसे आम प्रकोप, अपच, उदर शूल, उदर वायु, बार-बार दस्त लगना आदि। इसके अलावा कफजन्य रोगों की चिकित्सा में भी इसका उपयोग गुणकारी सिद्ध होता है। महिलाओं की गर्भाशय सम्बन्धी व्याधियों की चिकित्सा में इसका उपयोग करके गर्भाशय की शिथिलता दूर की जाती है ताकि गर्भ धारण हो सके और गर्भ स्राव या गर्भपात की सम्भावना को रोका जा सके।
प्रसव के समय, गर्भाशय की शिथिलता के कारण, यदि सब विकार बाहर न निकला हो, तो तेजपात के चूर्ण के साथ सम मात्रा में दालचीनी व छोटी इलायची के दाने पिसे हुये मिला कर काढ़ा पिलाया जाता है। उत्तेजक, कफ और वातशामक होने से तेजपात का उपयोग बच्चों के कफजन्य, वातजन्य और आम जन्य रोगों की चिकित्सा में सहायक है।
सिरदर्दः तेजपात के 2-3 पत्ते व इसके डण्ठल का एक टुकड़ा पानी में पीस कर इसका लेप कुनकुना गरम करके, माथे पर लगाने से गर्मी या ठण्ड से होने वाला सिरदर्द दूर हो जाता है। एक बार लगाने पर पूरा आराम न हो तो दुबारा लेप लगाएं। घण्टे भर बाद लेप पोंछ देना चाहिये।
श्वास रोगः श्वास फूलता हो तो तेजपात और पीपली का महीन पिसा चूर्ण 10-10 ग्राम, अदरक के रस या शहद में मिला कर, दिन में तीन बार 1-1 चम्मच सेवन करने से लाभ हो जाता है।
जोड़ो का दर्दः तेजपात की छाल को जल में पीसें। इसके लुआबदार लेप को दर्द की जगह लगा कर, रुई रख कर, पट्टी बांध दें। इससे सूजन व दर्द दूर हो जाता है।
जुकामः यदि जुकाम हुये 4-5 दिन हो चुके हों, बार-बार छीकें आ रही हों, नाक बह रही हो, नाक में जलन हो रही हो और जीभ पर स्वाद का अनुभव न होता हो तो सुबह, दोपहर व रात में तेजपात की चाय पीने से ये सारे कष्ट दूर हो जाते हैं।
चाय बनाने की विधिः 50 ग्राम तेजपात को मोटा-मोटा कूट कर तवे पर थोड़ा सेक लें फिर डिब्बे में भर कर रखें। इस मिश्रण को एक चम्मच मात्रा में एक गिलास पानी में डाल कर उबालें। जब पानी आधा रह जाये तब इसमें एक कप दूध व स्वाद के अनुसार आवश्यक मात्रा में शक्कर डाल दें। जब उफान आ जाये तब इसे उतार कर छान लें यह पाचकमय चाय उदर में गैस व अपच से निवृत्ति प्रदान करती है। अत्यधिक शीत ऋतु में इसका काढ़ा बनाकर पीने से पूर्व सिर व कानों को कपड़े से ढ़क कर रखें। दिन में तीन बार यह काढ़ा 3-4 दिन पीने से सर्दी-जुकाम ठीक हो जाता है।
रत्तफ़पित्तः नाक, मुंह, पखाना और मूत्र मार्ग से रक्त गिरने लगे तो इसे रक्तपित्त रोग कहते हैं। शरीर के किसी भी अंग से रक्त गिरता हो तो तेजपात का शर्बत, घड़े में रखे बासे पानी में घोल कर, चार-चार घण्टे से पीना चाहिये।
शर्बत बनाने की विधिः 250 ग्राम तेजपात को मोटा-मोटा कूट लें। एक बर्तन में एक लीटर पानी भर कर रात को तेजपात डाल कर रख दें। सुबह इसे उबालें, जब पानी आधा लीटर बचे तब उतार कर छान लें और एक किलो शक्कर डाल कर तार की चाशनी बना लें। इसमें गुलाब या केवड़े का एसेन्स 2 ग्राम डाल कर घोल दें।
आधा कप ठण्डे पानी में यह शर्बत घोल कर दिन में तीन बार पीयें। इससे रक्तपित्त रोग दूर होता है व प्यास, मुंह सूखना, जलन होना आदि कष्ट भी दूर होते हैं।
अरुचिः भूख कम हो जाये, खाना खाने में रुचि न रहे, मुंह का स्वाद बिगड़ जाये, इन लक्षणों को अरुचि होना कहते हैं। इस रोग को दूर करने के लिये तेजपात का रायता खाना उपयोगी रहता है।
रायता बनाने की विधिः आधा किलो ताजा जमा हुआ दही लेकर पतले कपड़े में रख कर, पोटली बना कर, लटका दें। इसमें टपकने वाले पानी को स्टील के बर्तन ले लें। इस पानी में तेजपात का चूर्ण एक छोटा चम्मच और एक-दो चुटकी पिसा काला नमक डाल दें। इसे नाश्ते या भोजन के साथ घूंट घूंट पीते रहें। इस प्रयोग से अरुचि दूर होती है, अपच होना, गैस बनना, मन्दाग्नि व कफ प्रकोप आदि व्याधियां भी दूर होती हैं। ताजे जमे हुये दही में थोड़ा पानी डाल कर, तेजपात का चूर्ण व काला नमक घोल कर भी रायता तैयार किया जा सकता है।
सूखी खांसीः बार-बार खांसी आये और कफ न निकले, इसे सूखी खांसी कहते हैं। तेजपात का अवलेह बनाकर सुबह दोपहर शाम को 1-1 बड़ा चम्मच खाने से कफ (बलगम) गीला और ढ़ीला होकर आसानी से निकल जाता है और सूखी खांसी आना बन्द हो जाता है।
अवलेह बनाने की विधिः 200 ग्राम शहद में 50 ग्राम तेजपत्ता का चूर्ण डाल कर अच्छी तरह से मिला दें। 50 ग्राम मुनक्का के बीज निकाल कर पीस लें और इसमें डाल कर अच्छी तरह मिला दें। अब बादाम और पीपली 10-10 ग्राम कूट पीस कर इसमें डाल कर सबको एक कर लें। दिन में तीन बार 1-1 चम्मच इस अवलेह को खाने से सूखी खांसी बन्द हो जाती है। अगर कभी बलगम में खून का अंश दिखता हो तो यह बन्द हो जाता है। यह अवलेह दस्त साफ लाता है और हृदय को बल भी देता है।
हरा धनिया चबाने से जीभ के छाले मिट जाते है। नित्य 3-4 बार लाभ होने तक यह प्रयोग करते रहें।
यदि जीभ में जलन अनुभव हो, तब दही में पानी मिलाकर पतला घोल बनाकर उससे गरारे करें, आराम मिलेगा।
जीभ पर फुंसियां होने पर गाय के दूध से बना दही बनाकर पका केला के साथ खायें। यह प्रयोग सूर्योदय से पहले ग्रहण करें, लाभ होने तक नित्य करते रहें।
हरड़ के काढ़े में शहद मिलाकर पीने से गले की व्याधि मिटती है। प्रयोग लाभ मिलने तक दिन में दो बार करें।
मुंह में छाले हो गये हों तब रात को सोने से पहले मुख में देशी घी अच्छी तरह लगा लें और सो जायें, सुबह तक आराम मिल जायेगा।
तरबूज के छिलके सुखाकर जला लें, इसकी राख को एक शीशी में भरकर रखें। मुंह में छाले होने पर इस राख को दिन में 3-4 बार छालों पर लगायें। लाभ होने तक प्रयोग करें।
लौंग और इसके साथ इलायची (छोटी) मिलाकर चबाने से छाले मिटते हैं।
सिरके में नमक और फिटकरी डालकर कुल्ला करने से मसूढ़ों से खून आना बन्द हो जाता है।
नीम का तेल लगाने से मसूढ़ों के रोग मिटते हैं।
मक्खन में काली मिर्च का चूर्ण मिलाकर खाते रहने से हकलाना दूर होता है। यह प्रयोग नित्य प्रातः काल करना चाहिये।
सरसों के तेल में महीन पिसा नमक मिलाकर मंजन करने से दांत मजबूत होते हैं।
आग में फुलाये हुये सुहागे में पिसी मिश्री मिलाकर दांत मांजने से दांत मजबूत होते हैं।
दूध में घी मिलाकर पीने से दांत दर्द मिट जाता है।
आक के दूध में रुई भिगोकर घी में तलें, फिर इसे पीडि़त दाढ़ के नीचे रखें, इस प्रयोग से दाढ़ का दर्द दूर हो जाता है।
तरबूज का सेवन करते रहने से हाई ब्लडप्रेशर रोग में आराम मिलता है।
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