भगवान भोले शंकर संतजनो को मोक्ष प्रदान करने के लिये अविन्तकापुरी उज्जैन में अवतरित हुये, जीवन कि अकालता से बचने के लिये सर्व कल्याणकारी सर्वज्ञ-सर्वत्र को नमन।
जब तक तुम शिव के पास जा रहे हो, तब तक पत्थर शिवलिंग हैं, जिस दिन तुमने जाना बंद कर दिया, उसी दिन शिवलिंग पत्थर हो जायेगा। तुम शब्दों पर मत जाना गहराई में जाना, क्योंकि गहरे में जाकर ही शब्दों का मूल मिलता है। भाषायें कैसी भी हों, मूल क्या प्राप्त हो रहा है, वही सबसे महत्वपूर्ण है। भावना के वशीभूत होकर पूरी सृष्टि गतिशील है, केवल आपका और मेरा विषय नहीं हैं। सौर मंडल के सभी ग्रह एक-दूसरे के आकर्षण, शक्ति से वशीभूत हैं और एक-दूसरे का चक्कर लगा रहें, अनन्त काल से लगा रहें और लगाते रहते हैं, एक क्षण के लिये भी रूकते नहीं। तो सौर मंडल का विज्ञान भी भावना का है और संसार का भी मूल भावना से जुड़ा है। धरा पर रहने वाला प्रत्येक जीव मनुष्य, पशु, पक्षी सभी भावना के ही वशीभूत हैं।
इसलिये मैंने कहा शिव तब तक ही शिव हैं, जब तक तुम उनकी उपासना कर रहे हो, जिस दिन तुमने उनकी उपासना करना बंद कर दिया, वे पत्थर हो जायेंगे। वह पत्थर जिसकी तुम ज्योतिर्लिंग रूप में उपासना करते हो, जो तुम्हारे सभी कामनाओं को पूरा करने वाला है, वह ज्योतिर्लिंग तुम्हारे भावनाओं के दूषित होते ही पत्थर हो जायेगा, फिर तुम्हारे लिये वह पत्थर समान है और तुम स्वतंत्र हो पत्थर मानों या ज्योतिर्लिंग, तुम्हें कोई बाध्य नहीं करेगा, कि तुम ज्योतिर्लिंग ही मानो अथवा पत्थर, इसमें तुम्हारी पूर्ण स्वतंत्रता है। मानने का विज्ञान इतना ही है कि तुम्हारी जो भावना है, तुम्हारे विचार का जो केन्द्र है और उस ज्योतिर्लिंग की भावना, विचार एक-दूसरे से मेल रखते हों, भावनाओं में समानता हो, फिर तुम खींचे हुये चले जाओगे। बुद्ध को मानने वालो के साथ ऐसा ही था, जीसस को जो लोग मान रहें हैं उनके साथ भी ऐसा ही था, ऐसा ही पैगम्बर, महावीर, गुरु नानक को मानने वालो के साथ भी था और महाकाल शिव को मानने वालों के साथ भी ऐसा ही है। भावनाओं का तार, विचारों का तारतम्य जुड़ा हुआ है एक-दूसरे से, इसलिये लोग जा रहें और बार-बार जा रहें हैं, ऐसा नहीं कि एक बार गये और दस साल तक फिर नाम ही नहीं लिया, जाते रहते हैं, जब भी समय मिला निकल गये महाकाल की नगरी।
क्योंकि तारतम्य जुड़ा हुआ है और ऐसा जुड़ा हुआ है कि जाये बिना रहा नहीं जाता, ना जाये तो भीतर हलचल मच जाती है, यदि हलचल ना मचें, तो समझ जाना तारतम्य अभी पूरी तरह जुड़ा नहीं, कोई कड़ी अधूरी रह गई है। जिसका जुड़ा होगा वह रह नहीं सकता और यदि वर्ष का सर्वाधिक महत्वपूर्ण पर्व हो, उसके आराध्य का दिवस हो तो रूकना असंभव है, किसी बाधा में इतनी क्षमता ही नहीं कि उसके पांव में बेडि़या बांध दें। वह पहुंच ही जायेगा। जितनी बार जायेगा, जितना मिलेगा उतना जानेगा, तारतम्य उतना ही गहरे तक जुड़ता जायेगा। सही मायने में गहरे तक जुड़ कर ही, गहराई में जाने पर उस तत्व की पूर्णता से प्राप्ति होती है। इसलिये जाते रहना है, जब तक गहराई तक ना पहुंच जाओ, जब तक तारतम्य पूरी तरह जुड़ ना जाये।
सद्गुरुदेव तंत्र के प्रखर ज्ञाता हैं, हैं इसलिये कि वे कभी हमारे बीच से गये नहीं, सदा उनकी उपस्थिति का भास होगा, यदि तारतम्य जुड़ा हो तो और वे हैं इसलिये तंत्र साधना सिद्ध करना उतना ही सरल है, जितनी की अन्य साधनाये। तंत्र जीवन का मूल है, पूरे जीवन की प्रक्रिया का नाम है। तंत्र सर्वाधिक पवित्र, चैतन्य और जाग्रत तत्व है। तंत्र की चेतना से अभिभूत होकर जीवन की अनेक विषमताओ का शमन कर सकते हैं। इसलिये तंत्र ज्ञाता के सानिध्य में, तंत्र के सर्वाधिक तेजस्वी भूमि पर तंत्र की साधना, दीक्षा, पूजन, दर्शन, अभिषेक द्वारा तंत्र बाधा, शत्रु बाधा व दुःखो, कष्टों से मुक्त हो सकेंगे व शिव परिवारमय, रिद्धि-सिद्धि युक्त शुभ-लाभ लक्ष्मीमय जीवन से अभिभूत होगें।
महानतम पर्व शिवरात्रि आपके जीवन में ध्वल प्रकाश रूप में आच्छादित हो सके ऐसा ही आप सभी के लिये मंगल कामना करता हूं।
आपका अपना
विनीत श्रीमाली
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