जब भी मातृ-शक्ति की बात आती है, उसकी उपासना और साधना की चर्चा होती है, तब स्वतः ही किसी भी शक्ति उपासक के नेत्रों व हृदय में अत्यन्त आह्लाद के साथ मां भगवती दुर्गा का मनोहारी बिम्ब आकर छा जाता है, उसके ओठों पर मां भगवती दुर्गा का ही नाम अत्यन्त मधुरता से थिरक उठता है और वह अत्यन्त व्यग्रता से नवरात्रि के उस पर्व की प्रतीक्षा करने लगता है, जिसके एक-एक शक्तिमय दिन को सार्थक कर सके, भोग सके और दुर्गामय हो सके।
मां भगवती दुर्गा का स्वरूप अत्यन्त गम्भीर व जटिल है, केवल दुर्गा कहकर या इसी स्वरूप में चिन्तन कर उनका सम्पूर्ण रहस्य समझ पाना कठिन ही है। इसके स्थान पर यदि इनके नवदुर्गा स्वरूपों का अवलोकन करें तब इनकी विशालता की हल्की सी झलक दिखाई देती है। भगवती दुर्गा के ये नौ स्वरूप हैं- शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चन्द्रघंटा, कूष्माण्डा, स्कन्दमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी एवं सिद्धि दात्री। इन नव विशिष्ट स्वरूपों का शास्त्रों में जिस प्रकार वर्णन मिलता है, उनके अनुसार प्रथम दुर्गा शैल पुत्री वास्तव में भगवान शिव की पत्नी पार्वती है, जो पूर्व जन्म में सती के नाम से विख्यात थी एवं जिन्होंने अपने पिता द्वारा अपने पति शिव का अपमान किये जाने के कारण यज्ञ कुंड में प्राण त्याग दिये थे।
दूसरी दुर्गा ब्रह्मचारिणी अपने उग्र तप के कारण, ब्रह्म का आचरण करने वाली ब्रह्मचारिणी कहलाई। तृतीय दुर्गा चंद्रघंटा उग्र स्वरूपा एवं दुष्टों का संहार करने को तत्पर देवी है जबकि चतुर्थ दुर्गा कूष्माण्डा अपने भ्रू विलास से ही समस्त ब्रह्माण्ड को उत्पन्न करने में समर्थ है। पंचम दुर्गा स्कन्दमाता देवताओं के भी सेनापति भगवान स्कन्द (कार्तिकेय) की माता होने कारण इस संज्ञा से विभूषित हैं। छठी दुर्गा की संज्ञा कात्यायनी है जो कात्यायन ऋषि की तपस्या के कारण उनके घर पुत्री रूप में अवतरित होने के कारण इस नाम से जानी गई और जिनका स्वरूप अत्यन्त दिव्य व स्वर्णिम वर्णित किया गया है। सातवीं दुर्गा की संज्ञा कालरात्रि है जो विकराल स्वरूपा और संहार करने को तत्पर विशिष्ट शक्ति है। महागौरी की संज्ञा से विभूषित अष्टम दुर्गा वास्तव में महालक्ष्मी ही है एवं नवम् दुर्गा सिद्धिदात्री परालौकिक विद्याओं को पूर्ण स्वरूप में सिद्धता प्रदान करती हैं।
समस्त अठारह सिद्धियां तथा अणिमा, लघिमा, दूर श्रवण आदि इन्हीं की कृपा से साधक को प्राप्त हो पाती है। यहां नवदुर्गा का संक्षेप में वर्णन करने से तात्पर्य मात्र इतना ही है कि जब साधक का चिन्तन व्यापक होता है तभी उसकी धारणा शक्ति में भी पुष्टता आती है। धारण शक्ति में पुष्टता के द्वारा ही साधना में सफलता अत्यन्त सन्निकट हो जाती है, अतः नूतन वर्ष को पूर्ण जाज्वल्यमान युक्त करना हो तो भगवती दुर्गा का सामान्य चिन्तन न करके उनके इसी नवदुर्गा स्वरूप का चिन्तन करें और साधना में सिद्धता से युक्त हों।
नवदुर्गा साधना अपने मूलरूप में अत्यन्त सरल साधना है और इससे जुड़े विशिष्ट साधना को सम्पन्न करते हुये साधक इस चैत्र नवरात्रि में निश्चय ही पूर्ण शक्तिमय चेतना से अभिभूत हो सकता है। साधक काफी समय पूर्व से इस सम्बन्ध में अपने मानस को स्थिर कर, साधना हेतु दृढ़ संकल्प कर आवश्यक यंत्र आदि की व्यवस्था कर लें। इस हेतु विशिष्ट दिवसों पर त्रिगुणात्मक स्वरूप में साधना विधान प्रस्तुत किया जा रहा है। जिसे आप अपनी कामना अनुसार सम्पन्न कर सकते हैं।
प्रथम दिवस 25 मार्च
नवरात्रि का प्रथम दिवस शैलपुत्री के रूप में साध्य हैं, भगवती शैलपुत्री की साधना से जीवन की समस्त मनोकामनाओं की पूर्ति संभव है। जीवन की भौतिक और आध्यात्मिक समस्त इच्छाओं को पूर्णता देने के लिए यह साधना रामबाण के समान है, जिसका सुफल निश्चित रूप से साधक प्राप्त करता ही है। इनकी साधना-उपासना से जीवन में स्थिरता आती है और गृहस्थ जीवन सर्व सुखों से युक्त होता है, जिससे जीवन में प्रसन्नता, आनन्द, आत्मीयता, प्रेम का संचार निरन्तर बना रहता है। भगवती शैलपुत्री प्रथम दुर्गा स्वरूप में मूलाधार चक्र की चेतना स्वरूप हैं, जिनकी साधना, पूजा, अर्चना से मूलाधार चक्र जागृत व चैतन्य होता है, इसके साथ ही नवग्रह से जुडे़ सभी प्रकार के दोष दूर होते हैं और सुख-सौभाग्य की प्राप्ति होती है।
नवरात्रि प्रथम दिवस पर प्रातः काल उठ कर स्नानादि करके पीले वस्त्र धारण कर लकड़ी के बाजोट पर लाल रंग का वस्त्र बिछायें तथा उस पर केसर से शं अकित करें उसके ऊपर मनोकामना पूर्ति यंत्र स्थापित करें तथा साधक शैलपुत्री का ध्यान करते हुए लाल रंग के पुष्प चढ़ायें-
करोड़ों चन्द्रमा के समान प्रभामयी, हाथों में त्रिशूल और वर माथे में जटावाली देवी शैलपुत्री का मैं ध्यान करता हूं। इस ध्यान के बाद यंत्र का सामान्य पूजन करें, घी का दीपक लगायें तथा भगवती से अपनी मनोकामना पूर्ति की प्रार्थना कर नैवेद्य चढ़ायें फिर गुरू ध्यान करें, एक माला गुरू मंत्र का जप करें, फिर कामना सिद्धि माला से 3 माला मंत्र जप करें निम्न मंत्र जप करतें हुऐ अक्षत के एक-एक दाने यंत्र पर चढ़ायें।
इसके बाद पुनः मनोकामना पूर्ति की प्रार्थना कर भगवती की आरती करें।
भगवती ब्रह्मचारिणी चन्द्र स्वरूप मन की स्वामिनी है, इन्हें मन और वाक्य को संयम प्रदान करने वाली देवी के नाम से जाना जाता है। मानव जब तपस्या के द्वारा मन और वाणी को संयम कर अनाहत की ध्वनि सुनता है, तब देवी की कृपा से व्यवहारिक अनुभव होता है, इनकी कृपा से मानव संयत और शांत होता है, देवी साधक को जीवन के पूर्ण ब्रह्मानन्द की अनुभूति के लोक तक सहज ही ले जाती हैं।
ब्रह्मचारिणी की साधना से साधक आरोग्यमय चेतना से आप्लावित होता है, साथ ही साधक मन-देह-विचार से हष्ट-पुष्ट व चैतन्य बनता हैं। भगवती ब्रह्माचारिणी को ब्रह्म स्वरूपा भी कहा गया है जिसका तात्पर्य है कि इनकी साधना से साधक के भीतर स्थित आत्मशक्ति व जीवट शक्ति में वृद्धि होती है। आध्यात्मिक पथ पर गतिशील साधक के लिये यह साधना अत्यन्त अनिवार्य है, जिसके माध्यम से उसे उच्चकोटि की सफलता प्राप्त होती है। यदि घर में कोई सदस्य निरन्तर रोगग्रस्त बना हुआ है तो उसके लिये संकल्प कर परिवार का कोई भी सदस्य इस साधना को सम्पन्न करें तो वह सदस्य अवश्य ही लाभ अनुभव करता है।
वृर्श उमा प्रकर्तव्या पद्योपरि व्यवस्थिता।
योग पऋोत्तरा संग मृग सिंह परिश्कृता।।
धयान-धारण-संतान-निरू-नियमे स्थिता।
कमण्डल ससूत्रक्ष वरदोन्नत पाणिनी ।।
ग्रह माला विराजन्ती जयाद्यैः परिवारिता।
पदाकुण्ल धात्री च जिवार्चनरता सदा।।
वृष पर पप्र, उसके ऊपर अवस्थित उमा मूर्ति।
मृगछाला का उत्तरीय, मृग और सिंह से परिवेष्टित ध्यान और धारणा सन्न्तति द्वारा नियमित संयमकारिणी, कमण्डल, अक्ष माला और वरदहस्ता गणों से सुशोभित, जया आदि सखी वृन्दों से घिरी, पद्म कुण्डल धारिणी तथा सदाशिव की पूजा में निमग्न देवी ब्रह्मचारिणी हैं।
नवरात्रि के प्रथम दिवस पर मध्यः काल अथवा अपनी सुविधा अनुसार किसी भी समय पीले वस्त्र धारण कर पीले रंग के चावलों की ढ़ेरी बनाकर उस पर महामृत्यंजय शक्तिमय हकीक पत्थर स्थापित करें और कुंकुम से तिलक कर अक्षत अर्पित करें, पश्चात् ब्रह्मचारिणी का ध्यान करें-
ध्यान के पश्चात आरोग्य वृद्धि माला से 5 माला मंत्र जप करें।
साधना के बाद प्रसाद वितरण करें।
स्त्रियों के जीवन में सौभाग्य प्राप्ति का विस्तृत स्वरूप होना आवश्यक है। अतः जहां अविवाहित स्त्रियों के लिए सुयोग्य वर प्राप्ति में यह साधना सहायक है, वहीं मातृत्व सुख से वंचित स्त्रियों के लिए संतान प्राप्ति की यह एक ऐसी साधना है, जिसमें देवी के वरदायक प्रभाव के साथ-साथ उनका शक्तिमय स्वरूप भी समाहित है। इस साधना द्वारा संतान सुखों की प्राप्ति होती है व संतान सुसंस्कार युक्त व आज्ञाकारी बनती है।
नवरात्रि प्रथम दिवस पर साधक सायः काल अथवा अपनी सुविधा अनुसार स्नान आदि से निवृत्त होकर पीले वस्त्र धारण कर पीले आसन पर पूर्व दिशा की ओर मुख कर बैठ जायें। यदि कोई साधिका इस साधना को सम्पन्न कर रही हो तो वह भी पीले वस्त्र धारण कर बालों को खुला छोड़ दे। साधक अपने सामने बाजोट पर वस्त्र बिछाकर सौभाग्य संतान सुख प्राप्ति चंद्रघंटा जीवट स्थापित कर इसके चारों ओर थाली में सोलह बिन्दी निम्न मंत्रों के उच्चारण के साथ लगायें, पश्चात् कुंकुम, अक्षत, धूप, दीप व पुष्प से पूजन करें-
ह्रीं कामश्वयै नमः कं भगमालिन्यै नमः
ऐं नित्य क्लिकायै नमः ई मेंरूण्डायै नमः
लं वाहन वासिन्यै नमः ह्रीं महाविद्येश्वयै नमः
हं शिवदूत्यै नमः सं त्वरितायै नमः
कं कुलसुन्दर्यै नमः हं नित्यायै नमः
लं नीलपताकिन्यै नमः ह्रीं विजयायैं नमः
सं सर्वमंगलयै नमः ह्रीं नित्यायै नमः
लं विचित्तायै नमः ह्रीं त्रिपुर सुन्दयै नमः
इसके बाद भगवती का पूर्ण मनोभाव से ध्यान करें।
व्याघ्र चर्माम्बरा क्रूरा गजचर्मोत्तरीसका ।
मुण्डमालाधारा घोरा शुष्कावापी समोदरा ।।
खड् गपाशधरातीव भीशणा भयदायिनी ।
खट्वांगधारिणी रौद्रा कालरात्रिवापरा ।।
विस्तीर्णवदना जिह्नां चालयंती मुहुर्मुहः।
विस्तार जघना वेगाज्जघाना सुरसैनिकान्।।
व्याघ्र छाल और गज चर्म उनकी वेशभूषा है जो क्रूर हैं, मुण्डों की माला धारण करती हैं, भीषण हैं, जलहीन सरोवर जैसा जिनका उदर है, खड्ग और पाश धारण करती है, बहुत ही भीषण भयावाह खट्वांग धारिणी, कालरात्रि जैसी भीषण विस्तीर्ण बदन निरन्तर जिह्ना चलाने वाली विस्तृत लघना जिन्होंने वेग से असुर के सैन्यों का हनन किया था वे देवी चन्द्रघण्टा हैं।
तत्पश्चात सौभाग्य शक्ति माला से निम्न मंत्र की पांच माला मंत्र जप सम्पन्न करें।
मंत्र जप के पश्चात सभी सामग्री को किसी नदी में विसर्जित कर दें। इस प्रकार यह साधना सम्पूर्ण होती है।
कूष्माण्डा पर्वत वासिनी शव के आसन पर आसीन बडे़-बडे़ दांतो वाली नीच कुल के जीवों को भी शरणदायिनी जिनकी साधना से नौ महीने में सभी अभीष्ट पूर्ण होते हैं। कूष्माण्डा साधना करने वाले साधक को जीवन में सुख-सौभाग्य, धन-धान्य तथा ऐश्वर्य की प्राप्ति होती रहती हैं।
माँ कूष्माण्डा साधना से साधक के सभी कष्ट मिट जाते हैं। इनकी साधना से आयु-यश, बल और आरोग्य की वृद्धि होती है तथा हृदय में शुद्ध रक्त का संचार होता है। शास्त्रों के अनुसार कूष्माण्डा साधना ग्रहों के राजा सूर्य पर शनि प्रभाव से उत्पन्न् दोष दूर करती हैं। इसके साथ ही व्यापार, दाम्पत्य, धन सुख, समृद्धि में वृद्धि होती है। साथ ही विभिन्न रोगों से भी मुक्ति मिलती है, जिनमें नेत्र दोष, मस्तिष्क, ह्नदय, मेरूदंड, उदर रक्त और पित्त से संबंधित अनेक रोग सम्मिलित हैं।
पंचमी दिवस पर प्रातः काल साधक पीले रंग का वस्त्र बिछा कर किसी ताम्रपात्र में ऐश्वर्य प्राप्ति गोमती चक्र स्थापित कर कूष्माण्डा का ध्यान करें-
फिर गोमती चक्र का संक्षिप्त पूजन कर नैवेद्य अर्पित कर गुरू ध्यान कर 5 मिनट गुरू मंत्र जप करें। फिर धनदा कूष्माण्डा माला से 3 माला मंत्र जप करें-
साधना समाप्ति पर माँ भगवती की आरती सम्पन्न कर प्रसाद वितरण कर स्वयं ग्रहण करें।
गृहस्थ सुख शांति में न्यूनता हो या घर में कलह निरन्तर बना रहता हो अथवा घर के सभी सदस्यों के मध्य कटुता और द्वेष उत्पन्न हो गया हो तो उन सब में आपस में परस्पर प्रेम की वृद्धि तथा कलह समाप्ति हेतु यह साधना सम्पन्न करें। माना जाता है कि मां की उपासना से मन की सारी कुण्ठा समाप्त हो जाती है। मृत्यु लोक में ही स्वर्ग की भांति परम शांति एवं सुख का अनुभव प्राप्त होता है। साधना के पूर्ण होने पर मोक्ष का मार्ग स्वतः खुल जाता है।
नवरात्रि पंचमी पर दोपहर अथवा अपने सुविधा अनुसार किसी भी समय अपने सामने बाजोट रख कर उसके ऊपर पीलें रंग का वस्त्र बिछाकर उस पर कुंकुम से ऊँ लिखें फिर उस पर किसी ताम्रपात्र में मंत्र सिद्ध प्राण प्रतिष्ठा युक्त गृहस्थ सुख प्राप्ति यंत्र को स्थापित कर भगवती जगदम्बा के स्कन्द स्वरूप का ध्यान करें।
ऊँ द्विभुजां स्कन्दजननीं वराभययुतां स्मरेत्।
गौरवर्णां महादेवीं नानालंकारभूषिताम्।।
दिव्य वस्त्र परिधनां वामक्रोडे़ सुपुत्रिकाम्।
प्रसन्नवदनां नित्यं जगद्धात्रीं सुखप्रदाम्।।
सर्वलक्षण सम्पन्नां पीनोन्नत पयोधराम।
एवं स्कन्दमातरं ध्यायेत् विन्ध्यवासिनीमै।।
सिंहासनगत नित्यं पद्माचितकरद्वया।
शुभदास्तु सदा देवी स्कन्दमाता यशस्विनी।।
वर अभय युक्त दो भुजाओं वाली कार्तिकेय जननी को सदा स्मरण करें। वह गौरवर्ण की हैं। नाना अलंकारों से विभूषित दिव्य वस्त्र पहने बायीं गोद में सुपुत्र को लिए सदा प्रसन्न जगत का उद्धार करने वाली सभी सुलक्षणों से युक्त और सर्वदा विन्धय पर्वत पर रहने वाली स्कन्दमाता का ध्यान करें।
फिर यंत्र का पूजन कर नैवेद्य अर्पित करें तथा स्कन्द शक्ति माला से निम्न मंत्र की 3 माला मंत्र जप करें।
साधना समाप्ति पर भगवती की आरती सम्पन्न कर प्रसाद का वितरण कर ग्रहण करें।
भगवती कात्यायनी साधना अपने-आप में एक श्रेष्ठ एवं अद्वितीय साधना है। यदि व्यक्ति के आस-पास विपरीत वातावरण निर्मित हो रहा हो और उसके शत्रु दिन-प्रतिदिन उसे हानि पहूंचाने का प्रयास करते हों, तो उसके लिए कात्यायनी साधना सर्वश्रेष्ठ हैं। साथ ही सुखद वैवाहिक जीवन के लिये कात्यायनी साधना प्राचीन समय से विशिष्ट फल प्रदायक है।
जिन साधक-साधिकाओ को शादी से जुड़ी समस्याये-अड़चने हो, उन्हें मां कात्यायनी विशिष्ट रूप से सम्पन्न करनी चाहिये। कात्यायनी साधना से त्वचा, मस्तिष्क संक्रमण आदि बीमारियों में लाभ मिलता हैं।
पंचमी दिवस पर रात्रि काल में या किसी भी समय साधक अपनी इच्छानुसार इस साधना को सम्पन्न् कर सकता है। सर्वप्रथम साधक स्नान कर उत्तराभिमुख हो पीले वस्त्र धारण कर आसन पर शांत चित्त बैठ जाये और कात्यायनी देवी के स्वरूप का श्रद्धापूर्वक ध्यान कर पूजन प्रारम्भ करें।
ध्यान
ऊँ गरूड़ोत्पलसन्निभां मणिमय कुण्डलमंडिताम्।
नेमि भावविलोचनां महिशोत्तमांगनिशेदुशीम्।।
शंख, चक्र कृपाण-खेटक-वाण-कार्मुक शूलकाम्।
तर्जनीमपि विभ्रती निजबाहुभिः शशिखेराम्।।
चन्द्रासोज्ज्वकरा शार्दूलवरवाहना।
कात्यायनी शुभं दद्यात् देवी दानवघातिनी।।
रक्त मणि जैसे वर्ण वाली मणिमय कुण्डल शोभित भावपूर्ण नेत्रों वाली महिष के मस्तक पर सवार कात्यायनी को नमस्कार जो अपने हाथों में शंख, चक्र, कृपाण, खेटक, बाण धनुष और शुल धारण की हुई हैं। जिनके मस्तक पर चन्द्रमा विराजते हैं, ऐसी कात्यायनी देवी का मैं ध्यान करता हूं।
सबसे पहले लाल वस्त्र पर बाजोट के ऊपर कात्यायनी लॅाकेट और भैरव गुटिका को स्थापित कर दें तथा कुंकुम, अक्षत, पुष्प, धूप, दीप और नैवेद्य से उनका पूजन करें, इसके पश्चात् एकाग्र मन से अपने गुरु का 5 मिनट तक ध्यान करें और फिर एक माला गुरू मंत्र का जाप कर शत्रुहंता माला से 5 माला कात्यायनी मंत्र का जप सम्पन्न करें।
म्ंत्र-जप के पश्चात् लॅाकेटे अपने गले में धारण कर पूज्य गुरूदेव से आशीर्वाद प्राप्ति की कामना व्यक्त करें, पश्चात् सभी सामग्री किसी नदी या सरोवर में विसर्जित कर दें।
कालरात्रि की साधना सम्पन्न करने से व्यक्ति के मन से अकाल मृत्यु का भय समाप्त होता है तथा यह साधना व्यापार करने वालों के लिये भी अत्यन्त उपयोगी है, इसे सम्पन्न करने पर उनके व्यापार में आश्चर्यजनक रूप से वृद्धि होती है। ऋण मुक्ति एवं अचल संपत्ति के लिए मां कालरात्रि की साधना का विशेष महत्व होता है, इस साधना से भूत-प्रेत बाधा, व्यापार अग्निभय, शत्रुभय आदि से छुटकारा प्राप्त होता है।
राम नवमी पर साधक प्रातः काल दैनिक क्रिया से निवृत्त होकर स्वच्छ वस्त्र बिछाकर काल मोचन स्वरूप में नारियल को स्थापित कर कालरात्रि का ध्यान करें-
सा भिन्नांजन संकाश दंष्ट्रन्चित् वरानना।
विशाल लोचन नारी बभूव तनुमध्यमा्।।
खड्ग- पात्र-शिरः खेटैरलंकृत चतुर्भुजा।
कबंधा-हारमुरसा विभ्राणा शिरसास्त्रजाम्।।
गाढे़ काजल जैसी काली बडे़-बडे़ दांतों से शोभित मुख पर बड़ी-बड़ी आंखें, शरीर क्षीण, खड्ग, पान-पात्र, नरमुण्ड और खेटक से चारों हाथ अलंकृत, गले में मस्तक विहीन देहों की माला और खुले केशों वाली कालरात्रि देवी का ध्यान करता हूं।
फिर नारियल का पूजन कर नैवेद्य चढ़ायें तथा धूप, दीप, अगरबत्ती लगा कर कालरात्रि माला से निम्न मंत्र की 3 माला मंत्र जप करें।
साधना समाप्ति पर भगवती की आरती सम्पन्न कर प्रसाद का वितरण करें।
महागौरी परम सौभाग्य प्रदायक देवी हैं। अप्रतिम सौन्दर्य-सम्मोहन प्राप्ति में यह साधना अभूतपूर्व सहायक है, यह साधना उन लोगों के लिये सर्वश्रेष्ठ है जिनकी आजीविका शेयर मार्केट, व्यापार आदि पर निर्भर हो। महागौरी की उपासना से मन पवित्र हो जाता है तथा साधक का ”दय निर्मल बन जाता है।
सम्मोहन वशीकरण से साधक के सभी कार्य सिद्ध होते हैं। अपने सामने बाजोट पर श्वेत रेशमी वस्त्र बिछाकर ताम्रपात्र में महागौरी क्लीं गुटिका स्थापित कर भगवती महागौरी का ध्यान करें-
गौरीं रत्न-निबद्ध-नूपुर लसत पादाम्बुजाभिष्टदां
कांचीरत्न दुकूल हार ललितां नीलां त्रिनेत्रेज्ज्वलाम्।।
शूलाद्यस्त्र-सहरमण्डिलत भुजामुदवक्त्र पीनस्तनीं।
आबद्धामुतरश्मि रत्नमुकुटां वंदे महेशप्रियाम् ।।
श्वेतहस्तिसमारूढ़ा श्वेताम्बरधर शुचिः ।
महागौरी शुभं दद्यान्महादेव प्रमोददा।।
रत्न निर्मित नुपूरों से शोभित निम्बदेश नील कान्ति त्रिनयना, उज्ज्वल प्रभा शूल आदि हजारों अस्त्रों से शोभित हाथ पीन, चन्द्र शोभित मुकुटवाली महेश प्रिया की वन्दना करता हूं। नृत्य त्याग कर काली जिस दिन सौम्य और शांत होकर शिव के अंग में आकर स्थित होती हैं, उस दिन ऋषिगण उसे महागौरी के नाम से सम्बोधित करते हैं। भगवती शांत होकर सौम्यावस्था को प्रकट करती हैं। महागौरी अनादि शक्ति का अनिर्वचनीय रूप है।
गुटिका का संक्षिप्त पूजन कर नैवेद्य अर्पित करे व सम्मोहन शक्ति माला से निम्न मंत्र की 3 माला जप करें।
साधना समाप्ति पर आरती सम्पन्न कर नैवेद्य ग्रहण करें।
सिद्धिदात्री साधना भौतिक और आध्यात्मिक सभी दृष्टियों से पूर्णता प्राप्त करने के लिए है। इस साधना को करने से समस्त साधनाओं में सफलता प्राप्त होने लग जाती है। इस साधना को सम्पन्न करने के बाद साधक वर्ष भर जितनी साधनाएं करता है उसमें उसे सफलता प्राप्त होती ही है। यदि वह पूर्ण श्रद्धा और विश्वास के साथ साधना सम्पन्न करें तो सभी प्रकार की सिद्धियों का स्वामी हो जाता है, तथा सृष्टि में कुछ भी उसके लिए अगम्य नहीं रह जाता है। ब्रह्माण्ड पर पूर्ण विजय प्राप्त करने का सामर्थ्य उसमें आ जाता है। मार्कण्डेय पुराण के अनुसार अणिमा, महिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, ईशित्व और वशित्व, ये आठ सिद्धियां होती हैं। पूर्ण निष्ठा के साथ साधना करने वाले साधक को इन सभी सिद्धियों की प्राप्ति होती है।
यह साधना रात्रि कालीन है, राम नवमी की रात्रि स्वच्छ वस्त्र बिछाकर उस पर आद्या शक्ति दुर्गा यंत्र स्थापित करें। फिर मां दुर्गा का ध्यान करें-
ऊँ उद्यदादित्य रागरंजितां योगमायां मोहस्तनी।
शिव विरन्चि के शव मुकुट सेवित चरणां।।
शिवमातरं शिवानीं च ब्रह्माणी च ब्रह्म जननीं।
वैष्णवी विष्णु प्रसतिं त्रिपुरां त्रिपुरां त्रिपुरेश्वरीं।
नमामि मातरं सिद्धिदात्रीम्।
सिद्धि गन्धार्व यक्षायैः असुरैरमरैपि।
साध्यमाना सदाभूयात् सिद्धिदा सिद्धिदायिनी।।
जो प्रातः सूर्य के रक्त राग से रंजित हैं, योगमाया महेश्वरी शिव, ब्रह्मा और विष्णु के मुकुट द्वारा सेवित चरणों वाली चांद और सूरज के कम्पन्न जनित आनन्द के स्फरण से स्फुरित हैं। जो नित्य सिद्ध अमरों द्वारा परिवेष्टित हैं, जो पवित्र प्रणव के सुर की मूर्च्छना से बिन्दु को विकसित करती हैं।
दिगम्बरा पूजित होकर अभय और वरदान देने वाली विश्व जननी शिव जननी, शिव की पत्नी ब्रह्म शक्ति, ब्रह्म जननी, विष्णु शक्ति, विष्णु जननी, त्रिपुरा त्रिपुरेश्वरी हैं। देवी सिद्धिदात्री माता को प्रणाम करता हूं।
यंत्र का पंचोपचार पूजन कर नैवेद्य अर्पित करे, फिर सर्वसिद्धि माला से 7 माला मंत्र जप करें-
साधना समाप्ति पर मां दुर्गा की आरती करें व प्रसाद ग्रहण कर लें।
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