‘‘मां’’ इस एक शब्द में ही इतना प्रेम, वात्सल्य छिपा है, जिसका उच्चारण या स्मरण करते ही सुरक्षा का भाव-चिंतन मन-मस्तिष्क में दौड़ने लगता है और अनोखी आनन्द की अनुभूति होने लगती है। मन प्रफुल्लित, विचार शांत व हृदय सरल, सहज हो जाता है।
इस एक शब्द में इतना सामर्थ्य है, आप विचार करें, यदि कोई एकाग्र विचार व शुद्ध भाव से मां का आह्वान करे, तो वह क्या कुछ नहीं प्राप्त कर सकता है। मां तो हर क्षण तत्पर है, अपनी संतानो की हर इच्छा पूरी करने के लिये, संतान ही भाव-श्रद्धा के अभाव में मां का सही रूप में आह्वान नही कर पाता।
08 अप्रैल मां भगवती का अवतरण दिवस है, उनके प्रादुर्भाव के उत्सव का क्षण है, जो निखिलमय शिष्यों का प्रकाश पर्व कहा जाता है। यह एक ऐसा क्षण होता है जब शिष्य, साधक मां भगवती व प्रभु निखिल में पूरी तन्मयता से लीन होने के लिये व्याकुल हो जाते हैं। उनके रोम-रोम से मां भगवती व सद्गुरुदेव निखिल का आह्वान स्वतः होने लगता है और वे साधक मां-सद्गुरुदेव का ध्यान कर उन्हें अश्रुपूरित आंखों से अपनी श्रद्धा, भक्ति अर्पित करते हैं। यह शिष्यता की उच्चकोटि भावभूमि है। जिसे हर साधक अपने जीवन में प्राप्त करना चाहता ही है।
परन्तु मां का वात्सल्य तो उसे ही प्राप्त हो सकता है, जिसका हृदय सरल, सहज व कोमल और सभी प्रकार के दंभ, विकार, न्यूनता, छल-कपट, झूठ, कुविचार से रहित हो। विरले ही ऐसे साधक होते हैं, जिनमें ऐसी उच्चकोटि की भाव-भूमि होती है। इसके साथ यह भी विचारणीय है कि मां का पुत्र कैसा भी हो? वह चाहे जैसा व्यवहार करे, फिर भी मां अपने संतान के लिये सर्वस्व न्यौछावर करने को तत्पर रहती है। इसीलिये मां की उपमा आज तक किसी वस्तु, पदार्थ, व्यक्ति इत्यादि से नहीं की जा सकी। क्योंकि मां अद्भुत, अवर्णनीय तथ्य है, जिसे केवल शिशुवत होकर अनुभव किया जा सकता है।
मां तो सृजन का नाम है, जो जीवन को विस्तार दे वह मां, जो सुख दें, वैभव दे, प्रेम दे, सम्पन्नता दे, आरोग्यता दे वही तो मां है। जीवन की समस्त इच्छायें मां के चरणों में पूरी हो जाती हैं। शक्ति पर्व व शक्ति साधनाओं का यही मूल मंतव्य है कि शक्ति की उपासना मां स्वरूप में सम्पन्न कर साधक जीवन की समस्त सिद्धियों को हस्तगत कर लेता हैं।
हम सभी की गुरु मां सिद्धाश्रम तेजपुंज स्वरूप में समस्त निखिल शिष्यों के मध्य विद्यमान हैं। यह हमारी अज्ञानता ही है कि हम उनकी वात्सल्य शक्ति को अपने भीतर आत्मसात नहीं कर पायें, और जीवन में जरा, व्याधि, दुःख से ही सदा घिरे रहते हैं और स्वयं को कोसते रहते हैं। यह जो सदा से हमारी दीनता है, यह हमारी अज्ञानता के कारण ही उत्पन्न हुई है और इसका निदान भी हमारे द्वारा संभव है। हमें केवल अपने भीतर उस जाज्वल्य शक्ति को जाग्रत करना है और यह संभव है मां व प्रभु निखिल की उपासना से।
उन्हीं मातृ शक्ति के जन्मोत्सव, प्रकट उत्सव पर आप सभी शिशुवत् भाव युक्त शिष्यों का आवाहन है, जिनकी करुणा का अमृतपान कर जीवन में तृप्ति और संतुष्टि अनुभव होती है, जिनके चरणो की वन्दना कर कोई भी शिष्य सद्गुरु नारायण की कृपा का पात्र बन जाता है। उनकी अनन्त शक्तियों को स्वयं में समाहित करने की योग्यता से परिचित हो जाता है।
उन्हीं आद्या शक्ति स्वरूपा मां भगवती का जन्मोत्सव बछरांवा रायबरेली में सम्पन्न होगा, इस दिव्य महोत्सव में सम्मिलित होकर आप सभी साधक, शिष्य सिद्धाश्रम शक्ति स्वरूप में अवस्थित भगवती माता जी के अनन्त करुणा, वात्सल की चेतना आत्मसात कर जीवनी शक्ति से आप्लावित हो सकेंगे। यह जन्मोत्सव मातृ ऋण के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने का भाव है, उनकी स्तुति, चिंतन, ध्यान, भजन कर अनवरत् रूप से बहती मां के वात्सल्य शक्ति से सराबोर होने का चिंतन है। सच्चिदानन्द नारायण भगवती की चेतना को साक्षीभूत स्वरूप में आत्मसात कर जीवन को अभ्युदय, यशस्वी बनाने का मार्ग है।
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